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*रत्नकोश नामक ग्रन्थ भी अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है।  
 
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*इसके लेखक का भी कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता, किन्तु कतिपय संदर्भों और आलोचना-प्रसंगों में जैसे कि रुचिदत्त मिश्र ने तत्त्व चिन्तामणि प्रकाश में तथा गदाधर ने शक्तिवाद में रत्नकोशकार का नाम तरणि मिश्र बताया है।  
 
*इसके लेखक का भी कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता, किन्तु कतिपय संदर्भों और आलोचना-प्रसंगों में जैसे कि रुचिदत्त मिश्र ने तत्त्व चिन्तामणि प्रकाश में तथा गदाधर ने शक्तिवाद में रत्नकोशकार का नाम तरणि मिश्र बताया है।  
*प्राचीन न्याय-वैशेषिक के अनेक आचार्यों ने इसके अनेक सिद्धान्तों का खण्डन-मण्डन किया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि रत्नकोश एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ था।<balloon title="श्रीनिवास शास्त्री प्रशस्तपाद भाष्य हिन्दी अनुवाद, पृ. 8" style=color:blue>*</balloon>
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*प्राचीन न्याय-वैशेषिक के अनेक आचार्यों ने इसके अनेक सिद्धान्तों का खण्डन-मण्डन किया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि रत्नकोश एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ था।<ref>श्रीनिवास शास्त्री प्रशस्तपाद भाष्य हिन्दी अनुवाद, पृ. 8</ref>
 
*मणिकण्ठ मिश्र (1200 ई.) ने न्यायरत्न में, गंगेशोपाध्याय (1300 ई.) ने तत्त्वचिन्तामणि में तथा द्वितीयवाचस्पति मिश्र (1450) ने तत्त्वालोक में रत्नकोश का उल्लेख किया है।  
 
*मणिकण्ठ मिश्र (1200 ई.) ने न्यायरत्न में, गंगेशोपाध्याय (1300 ई.) ने तत्त्वचिन्तामणि में तथा द्वितीयवाचस्पति मिश्र (1450) ने तत्त्वालोक में रत्नकोश का उल्लेख किया है।  
 
*हरिराम तर्कवागीश ने तो रत्नकोश विचार नाम का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है।  
 
*हरिराम तर्कवागीश ने तो रत्नकोश विचार नाम का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है।  
 
*इस प्रकार मूलरूप में उपलब्ध न होने पर भी प्राय: इस ग्रन्थ की चर्चा की जाती है और इसके उद्धरणों का समादरपूर्वक उल्लेख किया जाता है।  
 
*इस प्रकार मूलरूप में उपलब्ध न होने पर भी प्राय: इस ग्रन्थ की चर्चा की जाती है और इसके उद्धरणों का समादरपूर्वक उल्लेख किया जाता है।  
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10:31, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

तरणिमिश्र विरचित रत्नकोश

  • रत्नकोश नामक ग्रन्थ भी अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है।
  • इसके लेखक का भी कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता, किन्तु कतिपय संदर्भों और आलोचना-प्रसंगों में जैसे कि रुचिदत्त मिश्र ने तत्त्व चिन्तामणि प्रकाश में तथा गदाधर ने शक्तिवाद में रत्नकोशकार का नाम तरणि मिश्र बताया है।
  • प्राचीन न्याय-वैशेषिक के अनेक आचार्यों ने इसके अनेक सिद्धान्तों का खण्डन-मण्डन किया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि रत्नकोश एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ था।[1]
  • मणिकण्ठ मिश्र (1200 ई.) ने न्यायरत्न में, गंगेशोपाध्याय (1300 ई.) ने तत्त्वचिन्तामणि में तथा द्वितीयवाचस्पति मिश्र (1450) ने तत्त्वालोक में रत्नकोश का उल्लेख किया है।
  • हरिराम तर्कवागीश ने तो रत्नकोश विचार नाम का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है।
  • इस प्रकार मूलरूप में उपलब्ध न होने पर भी प्राय: इस ग्रन्थ की चर्चा की जाती है और इसके उद्धरणों का समादरपूर्वक उल्लेख किया जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीनिवास शास्त्री प्रशस्तपाद भाष्य हिन्दी अनुवाद, पृ. 8

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