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*प्राचीन काव्यग्रंथों से यह संकेत मिलता है, कि [[समुद्रगुप्त]] के बड़े लड़के का नाम रामगुप्त था, और पिता की मृत्यु के बाद शुरू में वही राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
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'''रामगुप्त''' [[गुप्त राजवंश]] के ख्याति प्राप्त [[समुद्रगुप्त]] का पुत्र था। प्राचीन काव्य ग्रंथों से यह संकेत मिलता है कि समुद्रगुप्त के बड़े लड़के का नाम रामगुप्त था और [[पिता]] की मृत्यु के बाद शुरू में वही राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ था। वह बड़ा निर्बल, कामी तथा नपुँसक व्यक्ति था।
*वह बड़ा निर्बल, कामी तथा नपुँसक व्यक्ति था।  
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*उसका विवाह [[ध्रुवदेवी]] के साथ हुआ था। पर पति के नपुँसक और निर्बल होने के कारण वह उससे संतुष्ट नहीं थी।  
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==निर्बल शासक==
*रामगुप्त की निर्बलता से लाभ उठाकर साम्राज्य के अनेक सामन्तों ने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। विशेषतया, 'शाहानुशाहि [[कुषाण]] या शक' राजा, जो समुद्रगुप्त की शक्ति के कारण आत्मनिवेदन, भेंट-उपहार, कन्योपदान आदि उपायों से उसे संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते थे। अब रामगुप्त की कमज़ोरी से लाभ उठाकर उद्दण्ड हो गए, और उन्होंने [[गुप्त साम्राज्य]] पर आक्रमण कर दिया।  
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रामगुप्त का [[विवाह संस्कार|विवाह]] [[ध्रुवदेवी]] के साथ हुआ था। पर पति के नपुँसक और निर्बल होने के कारण वह उससे संतुष्ट नहीं थी। रामगुप्त की निर्बलता से लाभ उठाकर साम्राज्य के अनेक सामन्तों ने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। विशेषत: 'शाहानुशाहि [[कुषाण]] या शक' राजा, जो समुद्रगुप्त की शक्ति के कारण आत्मनिवेदन, भेंट-उपहार, कन्योपदान आदि उपायों से उसे संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते थे, अब रामगुप्त की कमज़ोरी से लाभ उठाकर उद्दण्ड हो गए और उन्होंने [[गुप्त साम्राज्य]] पर आक्रमण कर दिया।
*[[हिमालय]] की उपत्यका में युद्ध हुआ, जिसमें रामगुप्त हार गया। एक पहाड़ी दुर्ग में गुप्त सेनाएँ घिर गईं, और नपुँसक रामगुप्त ने शक राज्य की सेवा में सन्धि के लिए याचना की। जो सन्धि के शर्तें शकराज की ओर से पेश की गईं, उनमें से एक यह थी, कि पट्ट-महादेवी ध्रुवदेवी को शकराज के सुपुर्द कर दिया जाए।  
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====पराजय====
*नपुँसक रामगुप्त इसके लिए भी तैयार हो गया। पर उसका छोटा भाई [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चंद्रगुप्त]] इसे सह न सका। उसने स्वयं ध्रुवदेवी का रूप धारण किया। अन्य बहुत से सैनिकों को भी परिचारिका के रूप में स्त्री-वेश पहनाया गया। शकराज के अन्तःपुर में पहुँचकर स्त्री-वेशधारी चंद्रगुप्त ने शकराज का घात कर दिया।  
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[[हिमालय]] की उपत्यका में युद्ध हुआ, जिसमें रामगुप्त हार गया। एक पहाड़ी [[दुर्ग]] में [[गुप्त]] सेनाएँ घिर गईं और नपुँसक रामगुप्त ने [[शक साम्राज्य|शक राज्य]] की सेवा में सन्धि के लिए याचना की। जो सन्धि के शर्तें शकराज की ओर से पेश की गईं, उनमें से एक यह भी थी कि "पट्ट-महादेवी ध्रुवदेवी को शकराज के सुपुर्द कर दिया जाए।" नपुँसक रामगुप्त इसके लिए भी तैयार हो गया। पर उसका छोटा भाई [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चंद्रगुप्त]] इसे सह न सका।
*इसके बाद निर्बल रामगुप्त को भी मारकर चंद्रगुप्त ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया, और अपनी भाभी ध्रुवदेवी के साथ विवाह किया।  
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==चंद्रगुप्त द्वारा वध==
*ध्रुवदेवी चंद्रगुप्त द्वितीय की 'पट्टमहादेवी' बनी।
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चंद्रगुप्त ने स्वयं ध्रुवदेवी का रूप धारण किया। अन्य बहुत-से सैनिकों को भी परिचारिका के रूप में स्त्री-वेश पहनाया गया। शकराज के अन्तःपुर में पहुँचकर स्त्री-वेशधारी चंद्रगुप्त ने शकराज का घात कर दिया। इसके बाद निर्बल रामगुप्त को भी मारकर चंद्रगुप्त ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया और अपनी भाभी ध्रुवदेवी के साथ विवाह किया। ध्रुवदेवी चंद्रगुप्त द्वितीय की 'पट्टमहादेवी' बनी। इस [[कथा]] के निर्देश न केवल प्राचीन काव्य-साहित्य में, अपितु [[शिलालेख|शिलालेखों]] में भी उपलब्ध होते हैं।
*इस कथा के निर्देश न केवल प्राचीन काव्य-साहित्य में, अपितु शिलालेखों में भी उपलब्ध होते हैं।  
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==कथा साहित्य में उल्लेख==
*प्राचीन समय में यह कथा इतनी लोकप्रिय थी, कि प्रसिद्ध कवि [[विशाखदत्त]] ने भी इसे लेकर 'देवीचंद्रगुप्तम' नाम का एक नाटक लिखा था। विशाखदत्त कृत देवीचन्द्रगुप्तम् नामक नाटक में सर्वप्रथम रामगुप्त का अस्तित्व प्रकाश में आया। यह नाटक इस समय उपलब्ध नहीं होता, पर इसके उद्धरण अनेक ग्रंथों में दिए गए हैं, जिनसे इस कथा कि रूपरेखा का परिचय मिल जाता है। [[बाणभट्ट|बाण]] के '[[हर्षचरित]]' में भी इस कथा का निर्देश यह लिखकर किया गया है, कि 'दूसरी पत्नी का कामुक शकपति कामिनी-वेशधारी चंद्रगुप्त के द्वारा मारा गया।'  
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प्राचीन समय में यह [[कथा]] इतनी लोकप्रिय थी कि प्रसिद्ध [[कवि]] [[विशाखदत्त]] ने भी इसे लेकर 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नाम का एक [[नाटक]] लिखा। विशाखदत्त कृत देवीचन्द्रगुप्तम् नामक नाटक में सर्वप्रथम रामगुप्त का अस्तित्व प्रकाश में आया। यह नाटक इस समय उपलब्ध नहीं होता, पर इसके उद्धरण अनेक ग्रंथों में दिए गए हैं, जिनसे इस कथा कि रूपरेखा का परिचय मिल जाता है। [[बाणभट्ट|बाण]] के '[[हर्षचरित]]' में भी इस कथा का निर्देश यह लिखकर किया गया है कि 'दूसरी पत्नी का कामुक शकपति कामिनी-वेशधारी चंद्रगुप्त के द्वारा मारा गया।'
*राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' में 'ध्रुववदेवी' के नाम का श्लोक है, जिसमें यह वर्णन मिलता है कि चन्द्रगुप्त ने रामगुप्त की हत्या कर गद्दी हथिया ली तथा [[ध्रुवदेवी]] से शादी कर ली। काव्यमीमांसा का शर्मगुप्त या सेनगुप्त को ही रामगुप्त माना गया है।  
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*राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' में 'ध्रुववदेवी' के नाम का [[श्लोक]] है, जिसमें यह वर्णन मिलता है कि चन्द्रगुप्त ने रामगुप्त की हत्या कर गद्दी हथिया ली तथा [[ध्रुवदेवी]] से शादी कर ली। काव्यमीमांसा के 'शर्मगुप्त' या 'सेनगुप्त' को ही रामगुप्त माना गया है।
*मुद्रा साक्ष्य के आधार पर देखा जाए तो रामगुप्त के कुछ तांबे के सिक्के विदिशा व उदयगिरि से प्राप्त हुए हैं जिन पर रामगुप्त, गरुण अंकित है व तिथि गुप्त कालीन है।  
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*मुद्रा साक्ष्य के आधार पर देखा जाए तो रामगुप्त के कुछ [[तांबा|तांबे]] के सिक्के [[विदिशा]] व उदयगिरि से प्राप्त हुए हैं जिन पर रामगुप्त, गरुण अंकित है व [[तिथि]] [[गुप्त काल|गुप्त कालीन]] है।  
 
*रामगुप्त की ऐतिहासिकता का पुर्ननिर्माण करने वाले विद्धान सर्वप्रथम '[[राखालदास बंद्योपाध्याय|राखालदास बनर्जी]]' थे। इसके अतिरिक्त डॉ. अल्टेकर , डॉ मिराशी, श्री पी.एल. गुप्त, डॉ. बाजपेयी आदि है।  
 
*रामगुप्त की ऐतिहासिकता का पुर्ननिर्माण करने वाले विद्धान सर्वप्रथम '[[राखालदास बंद्योपाध्याय|राखालदास बनर्जी]]' थे। इसके अतिरिक्त डॉ. अल्टेकर , डॉ मिराशी, श्री पी.एल. गुप्त, डॉ. बाजपेयी आदि है।  
*रामगुप्त के ऐतिहासिकता के विरोध में - डॉ. स्मिथ, डॉ. राय चौधरी, डॉ, जे.एन. बनर्जी, डॉ. वसाक तथा डॉ. नारायण आदि विद्वान है।  
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*रामगुप्त के ऐतिहासिकता के विरोध में डॉ. स्मिथ, [[हेमचंद्र रायचौधरी]], डॉ, जे.एन. बनर्जी, डॉ. वसाक तथा डॉ. नारायण आदि विद्वान है।  
 
*राजा अमोधवर्ष के ताम्रपात्र में भी इस कथा का निर्देश किया गया है।  
 
*राजा अमोधवर्ष के ताम्रपात्र में भी इस कथा का निर्देश किया गया है।  
*अरब लेखकों ने भी इस कथा को लेकर पुस्तकें लिखी थीं।  
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*[[अरब]] लेखकों ने भी इस कथा को लेकर पुस्तकें लिखी थीं। बाद में [[अरबी भाषा|अरबी]] के आधार पर [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में भी इस कथानक को लिखा गया।  
*बाद में [[अरबी भाषा|अरबी]] के आधार पर [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में भी इस कथानक को लिखा गया।  
 
 
*बारहवीं [[सदी]] में अब्दुलहसन अली नाम के एक लेखक ने इस कथा को "मलमलुतवारीख़" नामक पुस्तक में लिखा। यह पुस्तक इस समय भी उपलब्ध है।  
 
*बारहवीं [[सदी]] में अब्दुलहसन अली नाम के एक लेखक ने इस कथा को "मलमलुतवारीख़" नामक पुस्तक में लिखा। यह पुस्तक इस समय भी उपलब्ध है।  
*अब यह प्रमाणित होता है कि समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चन्द्रगुप्त द्वितीय]] नहीं अपित रामगुप्त था।  
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*अब यह प्रमाणित होता है कि [[समुद्रगुप्त]] का उत्तराधिकारी [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चन्द्रगुप्त द्वितीय]] नहीं अपित रामगुप्त था।  
*'रामचंद्र गुणचंद्र' कृत नाटक 'दपर्ण' से ज्ञात होता है कि रामगुप्त समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी था।  
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*'रामचंद्र गुणचंद्र' कृत [[नाटक]] 'दपर्ण' से ज्ञात होता है कि रामगुप्त समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी था।
 
  
 
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10:30, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण

रामगुप्त गुप्त राजवंश के ख्याति प्राप्त समुद्रगुप्त का पुत्र था। प्राचीन काव्य ग्रंथों से यह संकेत मिलता है कि समुद्रगुप्त के बड़े लड़के का नाम रामगुप्त था और पिता की मृत्यु के बाद शुरू में वही राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ था। वह बड़ा निर्बल, कामी तथा नपुँसक व्यक्ति था।

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निर्बल शासक

रामगुप्त का विवाह ध्रुवदेवी के साथ हुआ था। पर पति के नपुँसक और निर्बल होने के कारण वह उससे संतुष्ट नहीं थी। रामगुप्त की निर्बलता से लाभ उठाकर साम्राज्य के अनेक सामन्तों ने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। विशेषत: 'शाहानुशाहि कुषाण या शक' राजा, जो समुद्रगुप्त की शक्ति के कारण आत्मनिवेदन, भेंट-उपहार, कन्योपदान आदि उपायों से उसे संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते थे, अब रामगुप्त की कमज़ोरी से लाभ उठाकर उद्दण्ड हो गए और उन्होंने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।

पराजय

हिमालय की उपत्यका में युद्ध हुआ, जिसमें रामगुप्त हार गया। एक पहाड़ी दुर्ग में गुप्त सेनाएँ घिर गईं और नपुँसक रामगुप्त ने शक राज्य की सेवा में सन्धि के लिए याचना की। जो सन्धि के शर्तें शकराज की ओर से पेश की गईं, उनमें से एक यह भी थी कि "पट्ट-महादेवी ध्रुवदेवी को शकराज के सुपुर्द कर दिया जाए।" नपुँसक रामगुप्त इसके लिए भी तैयार हो गया। पर उसका छोटा भाई चंद्रगुप्त इसे सह न सका।

चंद्रगुप्त द्वारा वध

चंद्रगुप्त ने स्वयं ध्रुवदेवी का रूप धारण किया। अन्य बहुत-से सैनिकों को भी परिचारिका के रूप में स्त्री-वेश पहनाया गया। शकराज के अन्तःपुर में पहुँचकर स्त्री-वेशधारी चंद्रगुप्त ने शकराज का घात कर दिया। इसके बाद निर्बल रामगुप्त को भी मारकर चंद्रगुप्त ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया और अपनी भाभी ध्रुवदेवी के साथ विवाह किया। ध्रुवदेवी चंद्रगुप्त द्वितीय की 'पट्टमहादेवी' बनी। इस कथा के निर्देश न केवल प्राचीन काव्य-साहित्य में, अपितु शिलालेखों में भी उपलब्ध होते हैं।

कथा साहित्य में उल्लेख

प्राचीन समय में यह कथा इतनी लोकप्रिय थी कि प्रसिद्ध कवि विशाखदत्त ने भी इसे लेकर 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नाम का एक नाटक लिखा। विशाखदत्त कृत देवीचन्द्रगुप्तम् नामक नाटक में सर्वप्रथम रामगुप्त का अस्तित्व प्रकाश में आया। यह नाटक इस समय उपलब्ध नहीं होता, पर इसके उद्धरण अनेक ग्रंथों में दिए गए हैं, जिनसे इस कथा कि रूपरेखा का परिचय मिल जाता है। बाण के 'हर्षचरित' में भी इस कथा का निर्देश यह लिखकर किया गया है कि 'दूसरी पत्नी का कामुक शकपति कामिनी-वेशधारी चंद्रगुप्त के द्वारा मारा गया।'

  • राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' में 'ध्रुववदेवी' के नाम का श्लोक है, जिसमें यह वर्णन मिलता है कि चन्द्रगुप्त ने रामगुप्त की हत्या कर गद्दी हथिया ली तथा ध्रुवदेवी से शादी कर ली। काव्यमीमांसा के 'शर्मगुप्त' या 'सेनगुप्त' को ही रामगुप्त माना गया है।
  • मुद्रा साक्ष्य के आधार पर देखा जाए तो रामगुप्त के कुछ तांबे के सिक्के विदिशा व उदयगिरि से प्राप्त हुए हैं जिन पर रामगुप्त, गरुण अंकित है व तिथि गुप्त कालीन है।
  • रामगुप्त की ऐतिहासिकता का पुर्ननिर्माण करने वाले विद्धान सर्वप्रथम 'राखालदास बनर्जी' थे। इसके अतिरिक्त डॉ. अल्टेकर , डॉ मिराशी, श्री पी.एल. गुप्त, डॉ. बाजपेयी आदि है।
  • रामगुप्त के ऐतिहासिकता के विरोध में डॉ. स्मिथ, हेमचंद्र रायचौधरी, डॉ, जे.एन. बनर्जी, डॉ. वसाक तथा डॉ. नारायण आदि विद्वान है।
  • राजा अमोधवर्ष के ताम्रपात्र में भी इस कथा का निर्देश किया गया है।
  • अरब लेखकों ने भी इस कथा को लेकर पुस्तकें लिखी थीं। बाद में अरबी के आधार पर फ़ारसी में भी इस कथानक को लिखा गया।
  • बारहवीं सदी में अब्दुलहसन अली नाम के एक लेखक ने इस कथा को "मलमलुतवारीख़" नामक पुस्तक में लिखा। यह पुस्तक इस समय भी उपलब्ध है।
  • अब यह प्रमाणित होता है कि समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त द्वितीय नहीं अपित रामगुप्त था।
  • 'रामचंद्र गुणचंद्र' कृत नाटक 'दपर्ण' से ज्ञात होता है कि रामगुप्त समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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