"राहुल देव बर्मन" के अवतरणों में अंतर

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'''आर. डी. बर्मन''' एक महान संगीतकार थे।(जन्म 27 जून, 1939 कोलकाता, पश्चिम बंगाल, मृत्यु 4 जनवरी, 1994)
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'''आर. डी. बर्मन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''R. D. Burman'', जन्म- [[27 जून]], [[1939]], [[कोलकाता]]; मृत्यु- [[4 जनवरी]], [[1994]], [[मुम्बई]]) भारतीय [[हिन्दी सिनेमा]] में एक महान् संगीतकार के रूप में प्रसिद्ध थे। आर. डी. बर्मन का पूरा नाम 'राहुल देव बर्मन' था और फ़िल्मी दुनिया में वे 'पंचम दा' के नाम से विख्यात थे। उन्होंने अपने कॅरियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में [[संगीत]] दिया। मधुर संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने वाले संगीतकार राहुल देव बर्मन के लोकप्रिय संगीत से सजे गीत 'चिंगारी कोई भड़के', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'पिया तू अब तो आजा' आदि हैं।  
आर. डी. बर्मन का पूरा नाम राहुल देव बर्मन था और फ़िल्मी दुनिया में पंचम दा के नाम से विख्यात थे और उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में [[संगीत]] दिया था। मधुर संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने वाले संगीतकार राहुल देव बर्मन के लोकप्रिय संगीत चिंगारी कोई भड़के, कुछ तो लोग कहेंगे, पिया तू अब तो आजा......हैं।  
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==परिचय==
==जीवन परिचय==
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आर. डी. बर्मन का जन्म 27 जून, 1939 को [[कलकत्ता]], [[पश्चिम बंगाल]] में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल, [[कोलकाता]] से प्राप्त की थी। बाद में उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से [[सरोद]] भी सीखा। आर. डी. बर्मन ने [[आशा भोंसले]] के साथ [[विवाह]] किया था।
====जन्म====
 
आर. डी. बर्मन का जन्म [[27 जून]], 1939 को [[कलकत्ता]], [[पश्चिम बंगाल]] में हुआ था।  
 
====शिक्षा====
 
आर. डी. बर्मन की प्रारंभिक शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल [[कोलकाता]] से की थी। बाद में उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा था।
 
====विवाह====
 
आर. डी. बर्मन ने [[आशा भोंसले]] के साथ विवाह किया था।
 
 
 
 
==संगीतकार==
 
==संगीतकार==
आर. डी. बर्मन के पिता एस.डी. बर्मन भी जाने माने संगीतकार थे और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उनके सहायक के रूप में की थी। आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया।
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आर. डी. बर्मन के पिता [[एस. डी. बर्मन]] (सचिन देव बर्मन) भी जाने माने संगीतकार थे और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उनके सहायक के रूप में की थी। आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया।
==पंचम नाम==
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====पंचम दा नाम====
 
आर. डी. बर्मन को पंचम नाम से फ़िल्म जगत में पुकारा जाता था। आर. डी. बचपन में जब भी गुनगुनाते थे, 'प' शब्द का ही उपयोग करते थे। यह [[अभिनेता]] [[अशोक कुमार]] के ध्यान में आई। सा रे गा मा पा में ‘प’ का स्थान पाँचवाँ है। इसलिए उन्होंने राहुल देव को पंचम नाम से पुकारना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनका यही नाम लोकप्रिय हो गया।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2010/06/100627_burman_jayanti_ac.shtml |title=बरक़रार है आर. डी. बर्मन की धुनों का जादू |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear= 2011|last= |first= |authorlink= |format=एच. टी. एम. एल |publisher=बी.बी. सी |language= हिन्दी}}</ref>
 
आर. डी. बर्मन को पंचम नाम से फ़िल्म जगत में पुकारा जाता था। आर. डी. बचपन में जब भी गुनगुनाते थे, 'प' शब्द का ही उपयोग करते थे। यह [[अभिनेता]] [[अशोक कुमार]] के ध्यान में आई। सा रे गा मा पा में ‘प’ का स्थान पाँचवाँ है। इसलिए उन्होंने राहुल देव को पंचम नाम से पुकारना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनका यही नाम लोकप्रिय हो गया।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2010/06/100627_burman_jayanti_ac.shtml |title=बरक़रार है आर. डी. बर्मन की धुनों का जादू |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear= 2011|last= |first= |authorlink= |format=एच. टी. एम. एल |publisher=बी.बी. सी |language= हिन्दी}}</ref>
 
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====सफलता का स्वाद====
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एस.डी. बर्मन हमेशा आर. डी. बर्मन को अपने साथ रखते थे। इस वजह से आर. डी. बर्मन को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी। जब एस.डी. ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफ़ी बीमार थे। आर. डी. बर्मन ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फ़िल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। आर. डी. बर्मन को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं।
 
==पहला अवसर==
 
==पहला अवसर==
[[एस. डी. बर्मन]]  की वजह से आर. डी. बर्मन को फ़िल्म जगत के सभी लोग जानते थे। पंचम दा को माउथआर्गन बजाने का बेहद शौक़ था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल उस समय ‘दोस्ती’ फ़िल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की जरूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें क्योंकि वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए। मेहमूद से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। मेहमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें जरूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के जरिये मेहमूद ने अपना वादा निभाया।
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एस. डी. बर्मन की वजह से आर. डी. बर्मन को फ़िल्म जगत के सभी लोग जानते थे। पंचम दा को माउथआर्गन बजाने का बेहद शौक़ था। [[लक्ष्मीकांत]] [[प्यारेलाल]] उस समय ‘दोस्ती’ फ़िल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की ज़रूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें क्योंकि वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए। [[महमूद]] से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। महमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें ज़रूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के ज़रिये महमूद ने अपना वादा निभाया।
==पहला एकल गीत==
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====पहला एकल गीत====
 
[[महमूद]] की फ़िल्म छोटे नवाब बतौर संगीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी। लेकिन उन्हें असली पहचान फ़िल्म 'तीसरी मंजिल' और फ़िल्म 'पड़ोसन' से मिली। उन्होंने नासिर हुसैन, रमेश सिप्पी जैसे फ़िल्मकारों के साथ लंबे समय तक काम किया।
 
[[महमूद]] की फ़िल्म छोटे नवाब बतौर संगीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी। लेकिन उन्हें असली पहचान फ़िल्म 'तीसरी मंजिल' और फ़िल्म 'पड़ोसन' से मिली। उन्होंने नासिर हुसैन, रमेश सिप्पी जैसे फ़िल्मकारों के साथ लंबे समय तक काम किया।
==अन्य गीत==
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====प्रयोग के हिमायती====
सिप्पी के साथ उन्होंने 'सीता और गीता', 'शोले', 'शान' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। नासिर हुसैन के साथ उनका लंबा साथ रहा और उन्होंने तीसरी मंजिल, कारवाँ, हम किसी से कम नहीं, यादों की बारात जैसी कई फ़िल्मों के गानों को यादगार बना दिया। आर. डी. बर्मन के विविधतापूर्ण गानों में एक ओर जहाँ शास्त्रीय संगीत पर आधारित रैना बीती जाए, मेरा कुछ सामान जैसे गाने है वहीं महबूबा महबूबा, पिया तू अब तो आजा जैसे गाने भी हैं।
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[[चित्र:R-D-Barman.jpg|left|thumb|200px|राहुल देव बर्मन]]
 
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आर. डी. बर्मन को संगीत में प्रयोग करने का बेहद शौक़ था। नई तकनीक को भी वे बेहद पसंद करते थे। उन्होंने विदेश यात्राएँ कर संगीत संयोजन का अध्ययन किया। 27 ट्रैक की रिकॉर्डिंग के बारे में जाना। इलेक्ट्रॉनिक [[वाद्य यंत्र|वाद्ययंत्रों]] का प्रयोग किया। कंघी और कई फ़ालतू समझी जाने वाली चीजों का उपयोग उन्होंने अपने [[संगीत]] में किया। भारतीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का उन्होंने भरपूर उपयोग किया। आर. डी. बर्मन के बारे में कहा जाता है कि वे समय से आगे के संगीतकार थे। उन्होंने अपने संगीत में वे प्रयोग कर दिखाए थे, जो आज के संगीतकार कर रहे हैं। आर. डी. का यह दुर्भाग्य रहा कि उनके समय में फ़िल्मों में एक्शन हावी हो गया था और संगीत के लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं थी। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फ़िल्म जगत नहीं कर पाया। 4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक़ ढेर सारे गीत वे दे गए।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/युवा-संगीत-जनक/युवा-संगीत-के-जनक-राहुल-देव-बर्मन-1.htm |title=युवा संगीत के जनक : राहुल देव बर्मन |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दूनिया |language=हिन्दी }}</ref>
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====युवाओं के संगीतकार====
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आर. डी. बर्मन द्वारा संगीतबद्ध की गई फ़िल्में ‘तीसरी मंजिल’ और ‘यादों की बारात’ ने धूम मचा दी। [[राजेश खन्ना]] को सुपर सितारा बनाने में भी आर. डी. बर्मन का अहम योगदान है। राजेश खन्ना, [[किशोर कुमार]] और आर. डी. बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी। आर. डी. का संगीत युवा वर्ग को बेहद पसंद आया। उनके संगीत में बेफ़िक्री, जोश, ऊर्जा और मधुरता है, जिसे युवाओं ने पसंद किया। ‘दम मारो दम’ जैसी धुन उन्होंने उस दौर में बनाकर तहलका मचा दिया था। जब राजेश खन्ना का सितारा अस्त हुआ तो आर. डी. ने [[अमिताभ बच्चन|अमिताभ]] के लिए यादगार धुनें बनाईं। आर. डी. बर्मन का संगीत आज का युवा भी सुनता है। समय का उनके संगीत पर कोई असर नहीं हुआ। पुराने गानों को रीमिक्स कर आज पेश किया जाता है, उनमें आर. डी. द्वारा संगीतबद्ध गीत ही सबसे अधिक होते हैं।
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ऐसा नहीं है कि आर. डी. ने धूम-धड़ाके वाली धुनें ही बनाईं। गीतकार [[गुलज़ार]] के साथ राहुल देव एक अलग ही संगीतकार के रूप में नजर आते हैं। ‘आँधी’, ‘किनारा’, ‘परिचय’, ‘खुश्बू’, ‘इजाजत’, ‘लिबास’ फ़िल्मों के गीत सुनकर लगता ही नहीं कि ये वही आर. डी. बर्मन हैं, जिन्होंने ‘दम मारो दम’ जैसा गाना बनाया है।
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==प्रसिद्ध गीत==
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जी.पी. सिप्पी के साथ उन्होंने 'सीता और गीता', '[[शोले (फ़िल्म)|शोले]]', 'शान' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। नासिर हुसैन के साथ उनका लंबा साथ रहा और उन्होंने तीसरी मंजिल, कारवाँ, हम किसी से कम नहीं, यादों की बारात जैसी कई फ़िल्मों के गानों को यादगार बना दिया। आर. डी. बर्मन के विविधतापूर्ण गानों में एक ओर जहाँ शास्त्रीय संगीत पर आधारित रैना बीती जाए, मेरा कुछ सामान जैसे गाने है वहीं महबूबा महबूबा, पिया तू अब तो आजा जैसे गाने भी हैं।
 
==लोकप्रियता==
 
==लोकप्रियता==
1970 के दशक की उनकी लोकप्रियता 1980 के दशक में भी कायम रही और इस दौरान भी उन्होंने कई चर्चित फ़िल्मों में संगीत दिया। लेकिन दशक के आखिरी कुछ वर्ष अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे और उनकी कई फ़िल्में नाकाम रहीं।
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[[1970]] के दशक की उनकी लोकप्रियता [[1980]] के दशक में भी क़ायम रही और इस दौरान भी उन्होंने कई चर्चित फ़िल्मों में संगीत दिया। लेकिन दशक के आखिरी कुछ वर्ष अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे और उनकी कई फ़िल्में नाकाम रहीं। '1942 ए लव स्टोरी' उनके निधन के बाद प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म के गानों में नई ताजगी थी और उन्हें खूब पसंद किया गया। उनका [[4 जनवरी]], 1994 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद रिमिक्स गानों का दौर शुरू हुआ। दिलचस्प है कि रीमिक्स किए गए अधिकतर गाने आर. डी. बर्मन के ही स्वरबद्ध हैं। आर डी बर्मन ने लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें 292 हिंदी फ़िल्में थीं। इसके अलावा उन्होंने [[बंगाली भाषा|बंगाली]], [[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगू]] और [[उड़िया भाषा|उड़िया]] फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया।
 
 
'1942 ए लव स्टोरी' उनके निधन के बाद प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म के गानों में नई ताजगी थी और उन्हें खूब पसंद किया गया। उनका [[4 जनवरी]], 1994 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद रिमिक्स गानों का दौर शुरू हुआ। दिलचस्प है कि रीमिक्स किए गए अधिकतर गाने आर. डी. बर्मन के ही स्वरबद्ध हैं।
 
 
 
आर डी बर्मन ने लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें 292 हिंदी फ़िल्में थीं। इसके अलावा उन्होंने [[बंगाली भाषा|बंगाली]], [[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगू]] और [[उड़िया भाषा|उड़िया]] फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया।  
 
 
 
==सफलता की सीढ़ी चढ़ी==
 
एस.डी. बर्मन हमेशा आर. डी. बर्मन को अपने साथ रखते थे। इस वजह से आर. डी. बर्मन को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी। जब एस.डी. ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफ़ी बीमार थे। आर. डी. बर्मन ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फ़िल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। आर. डी. बर्मन को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं।
 
 
 
==प्रयोग के हिमायती==
 
आर. डी. बर्मन को संगीत में प्रयोग करने का बेहद शौक़ था। नई तकनीक को भी वे बेहद पसंद करते थे। उन्होंने विदेश यात्राएँ कर संगीत संयोजन का अध्ययन किया। सत्ताईस ट्रैक की रिकॉर्डिंग के बारे में जाना। इलेक्ट्रॉनिक [[वाद्य यंत्र|वाद्ययंत्रों]] का प्रयोग किया। कंघी और कई फ़ालतू समझी जाने वाली चीजों का उपयोग उन्होंने अपने संगीत में किया। भारतीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का उन्होंने भरपूर उपयोग किया।
 
 
 
==युवा संगीत==
 
आर. डी. बर्मन द्वारा संगीतबद्ध की गई फ़िल्में ‘तीसरी मंजिल’ और ‘यादों की बारात’ ने धूम मचा दी। [[राजेश खन्ना]] को सुपर सितारा बनाने में भी आर. डी. बर्मन का अहम योगदान है। राजेश खन्ना, [[किशोर कुमार]] और आर. डी. बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी। आर. डी. का संगीत युवा वर्ग को बेहद पसंद आया। उनके संगीत में बेफ़िक्री, जोश, ऊर्जा और मधुरता है, जिसे युवाओं ने पसंद किया। ‘दम मारो दम’ जैसी धुन उन्होंने उस दौर में बनाकर तहलका मचा दिया था। जब राजेश खन्ना का सितारा अस्त हुआ तो आर. डी. ने अमिताभ के लिए यादगार धुनें बनाईं।
 
 
 
आर. डी. बर्मन का संगीत आज का युवा भी सुनता है। समय का उनके संगीत पर कोई असर नहीं हुआ। पुराने गानों को रीमिक्स कर आज पेश किया जाता है, उनमें आर. डी. द्वारा संगीतबद्ध गीत ही सबसे अधिक होते हैं।
 
 
 
ऐसा नहीं है कि आर. डी. ने धूम-धड़ाके वाली धुनें ही बनाईं। गीतकार गुलजार के साथ आर. डी. एक अलग ही संगीतकार के रूप में नजर आते हैं। ‘आँधी’, ‘किनारा’, ‘परिचय’, ‘खुशबू’, ‘इजाजत’, ‘लिबास’ फ़िल्मों के गीत सुनकर लगता ही नहीं कि ये वही आर. डी. हैं, जिन्होंने ‘दम मारो दम’ जैसा गाना बनाया है।
 
 
 
==समय से आगे के संगीतकार==
 
आर. डी. बर्मन के बारे में कहा जाता है कि वे समय से आगे के संगीतकार थे। उन्होंने अपने संगीत में वे प्रयोग कर दिखाए थे, जो आज के संगीतकार कर रहे हैं। आर. डी. का यह दुर्भाग्य रहा कि उनके समय में फ़िल्मों में एक्शन हावी हो गया था और संगीत के लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं थी। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फ़िल्म जगत नहीं कर पाया। 4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक़ ढेर सारे गीत वे दे गए।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/युवा-संगीत-जनक/युवा-संगीत-के-जनक-राहुल-देव-बर्मन-1.htm |title=युवा संगीत के जनक : राहुल देव बर्मन |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दूनिया |language=हिन्दी }}</ref>
 
 
 
 
==निधन==
 
==निधन==
[[4 जनवरी]] 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक़ बहुत सारे गीत वे दे गए। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फ़िल्म जगत नहीं कर पाया।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/बर्मन-युवाओं-चहेते/आर-डी-बर्मन-युवाओं-के-चहेते-संगीतकार-1110104015_1.htm|title= आर.डी. बर्मन : युवाओं के चहेते संगीतकार |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दूनिया|language=हिन्दी }}</ref>
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[[4 जनवरी]] [[1994]] को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक़ बहुत सारे गीत दे गए। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फ़िल्म जगत नहीं कर पाया।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/बर्मन-युवाओं-चहेते/आर-डी-बर्मन-युवाओं-के-चहेते-संगीतकार-1110104015_1.htm|title= आर.डी. बर्मन : युवाओं के चहेते संगीतकार |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दूनिया|language=हिन्दी }}</ref>
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
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07:17, 27 जून 2018 के समय का अवतरण

राहुल देव बर्मन
राहुल देव बर्मन
पूरा नाम राहुल देव बर्मन
प्रसिद्ध नाम आर. डी. बर्मन, पंचम दा
जन्म 27 जून, 1939
जन्म भूमि कलकत्ता, पश्चिम बंगाल
मृत्यु 4 जनवरी, 1994
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक एस.डी. बर्मन, गायिका मीरा
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार और गायक
मुख्य फ़िल्में 1942 ए लव स्टोरी (1995), तीसरी मंज़िल (1966), यादों की बारात (1974), हम किसी से कम नहीं (1978), कारवाँ (1972) आदि।
विषय भारतीय शास्त्रीय संगीत
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफेयर पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक
नागरिकता भारतीय
मुख्य गीत ‘चिंगारी कोई भड़के’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ 'महबूबा महबूबा', 'पिया तू अब तो आजा' आदि।
अन्य जानकारी आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया।

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आर. डी. बर्मन (अंग्रेज़ी: R. D. Burman, जन्म- 27 जून, 1939, कोलकाता; मृत्यु- 4 जनवरी, 1994, मुम्बई) भारतीय हिन्दी सिनेमा में एक महान् संगीतकार के रूप में प्रसिद्ध थे। आर. डी. बर्मन का पूरा नाम 'राहुल देव बर्मन' था और फ़िल्मी दुनिया में वे 'पंचम दा' के नाम से विख्यात थे। उन्होंने अपने कॅरियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया। मधुर संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने वाले संगीतकार राहुल देव बर्मन के लोकप्रिय संगीत से सजे गीत 'चिंगारी कोई भड़के', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'पिया तू अब तो आजा' आदि हैं।

परिचय

आर. डी. बर्मन का जन्म 27 जून, 1939 को कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल, कोलकाता से प्राप्त की थी। बाद में उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा। आर. डी. बर्मन ने आशा भोंसले के साथ विवाह किया था।

संगीतकार

आर. डी. बर्मन के पिता एस. डी. बर्मन (सचिन देव बर्मन) भी जाने माने संगीतकार थे और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उनके सहायक के रूप में की थी। आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया।

पंचम दा नाम

आर. डी. बर्मन को पंचम नाम से फ़िल्म जगत में पुकारा जाता था। आर. डी. बचपन में जब भी गुनगुनाते थे, 'प' शब्द का ही उपयोग करते थे। यह अभिनेता अशोक कुमार के ध्यान में आई। सा रे गा मा पा में ‘प’ का स्थान पाँचवाँ है। इसलिए उन्होंने राहुल देव को पंचम नाम से पुकारना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनका यही नाम लोकप्रिय हो गया।[1]

सफलता का स्वाद

एस.डी. बर्मन हमेशा आर. डी. बर्मन को अपने साथ रखते थे। इस वजह से आर. डी. बर्मन को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी। जब एस.डी. ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफ़ी बीमार थे। आर. डी. बर्मन ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फ़िल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। आर. डी. बर्मन को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं।

पहला अवसर

एस. डी. बर्मन की वजह से आर. डी. बर्मन को फ़िल्म जगत के सभी लोग जानते थे। पंचम दा को माउथआर्गन बजाने का बेहद शौक़ था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल उस समय ‘दोस्ती’ फ़िल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की ज़रूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें क्योंकि वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए। महमूद से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। महमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें ज़रूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के ज़रिये महमूद ने अपना वादा निभाया।

पहला एकल गीत

महमूद की फ़िल्म छोटे नवाब बतौर संगीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी। लेकिन उन्हें असली पहचान फ़िल्म 'तीसरी मंजिल' और फ़िल्म 'पड़ोसन' से मिली। उन्होंने नासिर हुसैन, रमेश सिप्पी जैसे फ़िल्मकारों के साथ लंबे समय तक काम किया।

प्रयोग के हिमायती

राहुल देव बर्मन

आर. डी. बर्मन को संगीत में प्रयोग करने का बेहद शौक़ था। नई तकनीक को भी वे बेहद पसंद करते थे। उन्होंने विदेश यात्राएँ कर संगीत संयोजन का अध्ययन किया। 27 ट्रैक की रिकॉर्डिंग के बारे में जाना। इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया। कंघी और कई फ़ालतू समझी जाने वाली चीजों का उपयोग उन्होंने अपने संगीत में किया। भारतीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का उन्होंने भरपूर उपयोग किया। आर. डी. बर्मन के बारे में कहा जाता है कि वे समय से आगे के संगीतकार थे। उन्होंने अपने संगीत में वे प्रयोग कर दिखाए थे, जो आज के संगीतकार कर रहे हैं। आर. डी. का यह दुर्भाग्य रहा कि उनके समय में फ़िल्मों में एक्शन हावी हो गया था और संगीत के लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं थी। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फ़िल्म जगत नहीं कर पाया। 4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक़ ढेर सारे गीत वे दे गए।[2]

युवाओं के संगीतकार

आर. डी. बर्मन द्वारा संगीतबद्ध की गई फ़िल्में ‘तीसरी मंजिल’ और ‘यादों की बारात’ ने धूम मचा दी। राजेश खन्ना को सुपर सितारा बनाने में भी आर. डी. बर्मन का अहम योगदान है। राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आर. डी. बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी। आर. डी. का संगीत युवा वर्ग को बेहद पसंद आया। उनके संगीत में बेफ़िक्री, जोश, ऊर्जा और मधुरता है, जिसे युवाओं ने पसंद किया। ‘दम मारो दम’ जैसी धुन उन्होंने उस दौर में बनाकर तहलका मचा दिया था। जब राजेश खन्ना का सितारा अस्त हुआ तो आर. डी. ने अमिताभ के लिए यादगार धुनें बनाईं। आर. डी. बर्मन का संगीत आज का युवा भी सुनता है। समय का उनके संगीत पर कोई असर नहीं हुआ। पुराने गानों को रीमिक्स कर आज पेश किया जाता है, उनमें आर. डी. द्वारा संगीतबद्ध गीत ही सबसे अधिक होते हैं। ऐसा नहीं है कि आर. डी. ने धूम-धड़ाके वाली धुनें ही बनाईं। गीतकार गुलज़ार के साथ राहुल देव एक अलग ही संगीतकार के रूप में नजर आते हैं। ‘आँधी’, ‘किनारा’, ‘परिचय’, ‘खुश्बू’, ‘इजाजत’, ‘लिबास’ फ़िल्मों के गीत सुनकर लगता ही नहीं कि ये वही आर. डी. बर्मन हैं, जिन्होंने ‘दम मारो दम’ जैसा गाना बनाया है।

प्रसिद्ध गीत

जी.पी. सिप्पी के साथ उन्होंने 'सीता और गीता', 'शोले', 'शान' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। नासिर हुसैन के साथ उनका लंबा साथ रहा और उन्होंने तीसरी मंजिल, कारवाँ, हम किसी से कम नहीं, यादों की बारात जैसी कई फ़िल्मों के गानों को यादगार बना दिया। आर. डी. बर्मन के विविधतापूर्ण गानों में एक ओर जहाँ शास्त्रीय संगीत पर आधारित रैना बीती जाए, मेरा कुछ सामान जैसे गाने है वहीं महबूबा महबूबा, पिया तू अब तो आजा जैसे गाने भी हैं।

लोकप्रियता

1970 के दशक की उनकी लोकप्रियता 1980 के दशक में भी क़ायम रही और इस दौरान भी उन्होंने कई चर्चित फ़िल्मों में संगीत दिया। लेकिन दशक के आखिरी कुछ वर्ष अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे और उनकी कई फ़िल्में नाकाम रहीं। '1942 ए लव स्टोरी' उनके निधन के बाद प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म के गानों में नई ताजगी थी और उन्हें खूब पसंद किया गया। उनका 4 जनवरी, 1994 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद रिमिक्स गानों का दौर शुरू हुआ। दिलचस्प है कि रीमिक्स किए गए अधिकतर गाने आर. डी. बर्मन के ही स्वरबद्ध हैं। आर डी बर्मन ने लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें 292 हिंदी फ़िल्में थीं। इसके अलावा उन्होंने बंगाली, तमिल, तेलुगू और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया।

निधन

4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक़ बहुत सारे गीत दे गए। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फ़िल्म जगत नहीं कर पाया।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बरक़रार है आर. डी. बर्मन की धुनों का जादू (हिन्दी) (एच. टी. एम. एल) बी.बी. सी। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2011।
  2. युवा संगीत के जनक : राहुल देव बर्मन (हिन्दी) वेब दूनिया। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2011।
  3. आर.डी. बर्मन : युवाओं के चहेते संगीतकार (हिन्दी) वेब दूनिया। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2011।

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