"लक्ष्मी नारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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'''लक्ष्मी नारायण मिश्र''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Laxmi Narayan Mishra'', जन्म- [[1903]], [[आजमगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[1987]]) [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध नाटककार थे। [[हिन्दी]] के एकांकीकारों में उनका विशेष स्थान है। उन्होंने प्रचुर मात्रा में गद्य तथा पद्य दोनों में [[साहित्य]] सृजन किया है। लक्ष्मीनारायण जी पर पाश्चात्य नाटककार इन्सन, शा, मैटरलिंक आदि का ख़ासा प्रभाव था, लेकिन फिर भी उनकी एकांकियों में [[भारत]] की आत्मा बसती थी। मौलिक सृजन से लेकर अनुवाद तक उन्होंने सोद्देश्य लेखन किया।
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==परिचय==
 
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लक्ष्मी नारायण मिश्र जी का जन्म सन 1903 में [[उत्तर प्रदेश]] के आजमगढ़ ज़िले के बस्ती नामक [[ग्राम]] में हुआ था। उन्होंने वर्ष [[1928]] में अपनी बी.ए. की परीक्षा 'केंद्रीय हिन्दू कॉलेज', [[काशी]] से उत्तीर्ण की थी।
 
लक्ष्मी नारायण मिश्र जी का जन्म सन 1903 में [[उत्तर प्रदेश]] के आजमगढ़ ज़िले के बस्ती नामक [[ग्राम]] में हुआ था। उन्होंने वर्ष [[1928]] में अपनी बी.ए. की परीक्षा 'केंद्रीय हिन्दू कॉलेज', [[काशी]] से उत्तीर्ण की थी।
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यूँ तो दृष्टिकोण में लक्ष्मी नारायण जी प्राय: यथार्थवादी हैं- प्रगतिशील स्तर पर नहीं, भारतीय स्तर पर। उनका यथार्थ अपनी ही तरह का है। 'मुक्ति का रहस्य' नामक नाटक में आपने अपने दृष्टिकोण और विचारधारा के विषय में स्पष्ट रूप से कहा है- "जो यथार्थ नहीं है, वह आदर्श नहीं हो सकता। कल्पना की रंगीनी और असंगति साहित्य और कला का मानदण्ड नहीं बन सकती है। जीवन की पाठशाला में बैठकर साहित्यकार अपनी कला सीखता है। अत: जीवन के अनुभव से परे उसे कहीं कुछ भी नहीं ढूँढ़ना चाहिए।"
 
यूँ तो दृष्टिकोण में लक्ष्मी नारायण जी प्राय: यथार्थवादी हैं- प्रगतिशील स्तर पर नहीं, भारतीय स्तर पर। उनका यथार्थ अपनी ही तरह का है। 'मुक्ति का रहस्य' नामक नाटक में आपने अपने दृष्टिकोण और विचारधारा के विषय में स्पष्ट रूप से कहा है- "जो यथार्थ नहीं है, वह आदर्श नहीं हो सकता। कल्पना की रंगीनी और असंगति साहित्य और कला का मानदण्ड नहीं बन सकती है। जीवन की पाठशाला में बैठकर साहित्यकार अपनी कला सीखता है। अत: जीवन के अनुभव से परे उसे कहीं कुछ भी नहीं ढूँढ़ना चाहिए।"
 
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मिश्रजी के ऐतिहासिक और पौराणिक नाटक प्राय: एक विशेष काल [[हिन्दू]] [[संस्कृति]] के एक विशेष अध्याय और ज्वलंत चरित्र पर आधारित हैं और उनसे उस विशेष काल, अध्याय और चरित्र के बहाने प्राय: समूची वस्तुस्थिति पर ऐसा प्रकाश पड़ता है। इस दृष्टि से 'गरुड़ध्वज', 'दशाश्वमेध' और 'नारद की वाणी' आपके प्रतिनिधि [[नाटक]] हैं। 'गरुड़ध्वज' नाटक का कथानक उस युग का है, जिसकी अधिक सामग्री [[इतिहास]] आदि से नहीं प्राप्त होती। नाटककार ने अपनी कल्पना शक्ति से [[शुंग वंश]] के पृष्ठ पर सुन्दर प्रकाश डाला है। 'गरुड़ध्वज' में शुंग के वंशज [[अग्निमित्र]] की [[कथा]] है। 'वत्सराज' मिश्रजी का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटक है, [[उदयन]] की जीवन घटनाओं से सम्बद्ध। 'दशाश्वमेध' नाटक नागों के इतिहास पर आधारित हैं। 'नारद की वीणा' [[आर्य]] और आर्येत्तर संस्कृतियों के पारम्परिक संघर्ष और तदुपरांत समंवय की [[कहानी]] है।
 
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12:39, 19 जून 2015 का अवतरण

लक्ष्मी नारायण मिश्र
लक्ष्मी नारायण मिश्र
पूरा नाम लक्ष्मी नारायण मिश्र
जन्म 1903
जन्म भूमि आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1987
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र लेखन
मुख्य रचनाएँ 'अंतर्जगत', 'राक्षस का मंदिर', 'मुक्ति का रहस्य', 'सिंदूर की होली', 'गरुड़ध्वज', 'नारद की वीणा', 'वितस्ता की लहरें' तथा 'मृत्युंजय' आदि।
भाषा हिन्दी
विद्यालय 'केंद्रीय हिन्दू कॉलेज', काशी
शिक्षा बी.ए. (1928)
प्रसिद्धि नाटककार, एकांकीकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी मिश्रजी के ऐतिहासिक और पौराणिक नाटक प्राय: एक विशेष काल हिन्दू संस्कृति के एक विशेष अध्याय और ज्वलंत चरित्र पर आधारित हैं। उनकी लिखी एकांकियों में भारत की आत्मा बसती है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

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लक्ष्मी नारायण मिश्र (अंग्रेज़ी: Laxmi Narayan Mishra, जन्म- 1903, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1987) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार थे। हिन्दी के एकांकीकारों में उनका विशेष स्थान है। उन्होंने प्रचुर मात्रा में गद्य तथा पद्य दोनों में साहित्य सृजन किया है। लक्ष्मीनारायण जी पर पाश्चात्य नाटककार इन्सन, शा, मैटरलिंक आदि का ख़ासा प्रभाव था, लेकिन फिर भी उनकी एकांकियों में भारत की आत्मा बसती थी। मौलिक सृजन से लेकर अनुवाद तक उन्होंने सोद्देश्य लेखन किया।

परिचय

लक्ष्मी नारायण मिश्र जी का जन्म सन 1903 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले के बस्ती नामक ग्राम में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1928 में अपनी बी.ए. की परीक्षा 'केंद्रीय हिन्दू कॉलेज', काशी से उत्तीर्ण की थी।

साहित्य सृजन

18 वर्ष की अवस्था से ही लक्ष्मी नारायण मिश्र साहित्य सृजन की ओर उन्मुख हुए। उनकी 'अंतर्जगत्' (1921-1922 ई.) नामक काव्य रचना उसी समय की है। इसके उपरांत आपकी नाटकीय प्रतिभा का उदय प्रारम्भ हुआ। 'अशोक' उनका पहला नाटक है।

नाट्य साहित्य

इनके समस्त नाट्य साहित्य के दो वर्ग हैं-

  1. सांस्कृतिक अथवा ऐतिहासिक
  2. सामाजिक

आधारभूत सत्य की दृष्टि से लक्ष्मीनारायण मिश्र के समूचे नाट्य-साहित्य में भारतीय संस्कृति के आदर्शों और मान्यताओं का प्रभाव है। सब नाटकों की शिल्पविधि और रूपगठन आधुनिक (पाश्चात्य) है, पर नाटक अपनी आंतरिक प्रकृति में पाय: भारतीय हैं; किंतु उस अर्थ में प्राचीन भारतीय और पाश्चात्य नाट्य-तत्त्वों का समंवय नहीं, जैसा कि जयशंकर प्रसाद के नाटकों में है। दूसरे ही स्तर पर मिश्रजी के नाटक अपने बहिरंग में आधुनिक पाश्चात्य नाट्य-शिल्प के अनुरूप हैं और आंतरिकता में विशुद्ध भारतीय हैं। यह सत्य वस्तुत: दृष्टिकोण और भावधारा के स्तर पर प्रतिष्ठित है। जहाँ एक शिल्प गठन का प्रश्न है, आपके नाटकों का विकास और निर्माण गीतों, स्वगत कथनों और भावुकतापूर्ण कवित्व वर्णनों के माध्यम से न होकर, बिल्कुल नये ढंग से होता है। ऐतिहासिक नाटकों में निश्चय ही तात्त्विक विवेचनों और सैद्धांतिक विचार विनिमय के गहन तत्त्व हैं।

यथार्थवादी दृष्टिकोण

यूँ तो दृष्टिकोण में लक्ष्मी नारायण जी प्राय: यथार्थवादी हैं- प्रगतिशील स्तर पर नहीं, भारतीय स्तर पर। उनका यथार्थ अपनी ही तरह का है। 'मुक्ति का रहस्य' नामक नाटक में आपने अपने दृष्टिकोण और विचारधारा के विषय में स्पष्ट रूप से कहा है- "जो यथार्थ नहीं है, वह आदर्श नहीं हो सकता। कल्पना की रंगीनी और असंगति साहित्य और कला का मानदण्ड नहीं बन सकती है। जीवन की पाठशाला में बैठकर साहित्यकार अपनी कला सीखता है। अत: जीवन के अनुभव से परे उसे कहीं कुछ भी नहीं ढूँढ़ना चाहिए।"

ऐतिहासिक और पौराणिक नाटक

लक्ष्मी नारायण मिश्र की प्रमुख कृतियाँ
क्र.सं. कृति वर्ष क्र.सं. कृति वर्ष क्र.सं. कृति वर्ष
1. अंतर्जगत कविता संग्रह, 1925 2. अशोक नाटक, 1926 3. संन्यासी नाटक, 1930
4. राक्षस का मंदिर नाटक, 1931 5. मुक्ति का रहस्य नाटक, 1932 6. राजयोग 1933
7. सिंदूर की होली 1933 8. आधी रात 1936 9. गरुड़ध्वज 1945
10. नारद की वीणा 1946 11. वत्सराज 1950 12. दशाश्वमेध 1950
13. अशोक वन एकांकी संग्रह, 1950 14. वितस्ता की लहरें 1953 15. 'जगदगुरु' 1955
16. मृत्युजंय 1955 17. चक्रव्यूह नाटक, 1955 18. सेनापति कर्ण महाकाव्य, अपूर्ण[1]

मिश्रजी के ऐतिहासिक और पौराणिक नाटक प्राय: एक विशेष काल हिन्दू संस्कृति के एक विशेष अध्याय और ज्वलंत चरित्र पर आधारित हैं और उनसे उस विशेष काल, अध्याय और चरित्र के बहाने प्राय: समूची वस्तुस्थिति पर ऐसा प्रकाश पड़ता है। इस दृष्टि से 'गरुड़ध्वज', 'दशाश्वमेध' और 'नारद की वाणी' आपके प्रतिनिधि नाटक हैं। 'गरुड़ध्वज' नाटक का कथानक उस युग का है, जिसकी अधिक सामग्री इतिहास आदि से नहीं प्राप्त होती। नाटककार ने अपनी कल्पना शक्ति से शुंग वंश के पृष्ठ पर सुन्दर प्रकाश डाला है। 'गरुड़ध्वज' में शुंग के वंशज अग्निमित्र की कथा है। 'वत्सराज' मिश्रजी का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटक है, उदयन की जीवन घटनाओं से सम्बद्ध। 'दशाश्वमेध' नाटक नागों के इतिहास पर आधारित हैं। 'नारद की वीणा' आर्य और आर्येत्तर संस्कृतियों के पारम्परिक संघर्ष और तदुपरांत समंवय की कहानी है।

'संन्यासी', 'राक्षस का मन्दिर', 'मुक्ति का रहस्य', 'राजयोग' तथा 'सिन्दूर की होली' लक्ष्मी नारायण मिश्र जी के प्रसिद्ध समस्या सामाजिक नाटक हैं। व्यक्ति और समाज के जिस उत्तरोत्तर संघर्ष में हमारा जीवन पल-पल बढ़ रहा है, उसके किसी-न-किसी महत्त्वपूर्ण पहलू का आधार इन सामाजिक नाटकों में विद्यमान है। 'मुक्ति का रहस्य' और 'सिन्दूर की होली' नाटककार के शिल्प और विचार, दोनों दृष्टियों से प्रतिनिधि नाटक हैं। 'मुक्ति का रहस्य' में स्त्री-पुरुष की सनातन काम-वासना का चित्रण है।

एकांकी संग्रह

'प्रलय के पंख पर' और 'अशोक वन' मिश्रजी के दो एकांकी संग्रह हैं। 'प्रलय के पंख पर' नामक एकांकी सग्रह में लेखक की छ: एकांकी संगृहीत हैं। प्राय: समस्त एकांकी समस्या प्रधान हैं। अधिकांश एकांकी विशुद्धत: नारी समस्या को आधार बनाकर लिखी गई हैं। दो-एक एकांकी ग्रामीण भावभूमि तथा वहाँ के जन-जीवन से उत्पन्न समस्याओं पर लिखी गई हैं। इन दो संग्रहों के अतिरिक्त 'भगवान मनु तथा अन्य एकांकी' भी एक संग्रह है। इसके सभी एकांकी पौराणिक और ऐतिहासिक हैं। 'भगवान् मनु', 'विधायक पराशर', 'याज्ञवल्क्य', 'कौटिल्य', 'आचार्य शंकर', एकांकी के ये नाम ही हिन्दुत्व और भारतीय संस्कृति के ऐसे उज्ज्वल उदाहरण लगते हैं कि हिन्दू मन इनसे सर्वथा अभिभूत हो जाता है। इन एकांकियों की शिल्पविधि पर रेडियो एकांकी कला और उसके शिल्प संगठन का प्रभाव स्पष्ट है। ये एकांकियाँ जयशंकर प्रसाद के नाटकों की भाँति ही पठन-पाठन की सुन्दर सामग्री उपस्थित करती हैं, पर इनका रंगमंचीय पक्ष उतना ही निर्बल और जटिल है।

मौलिक विचारधारा

नाटककार लक्ष्मी नारायण मिश्र जी की शक्ति उनकी मौलिक विचारधारा है, वह चाहे ऐतिहासिक स्तर पर हो, चाहे पौराणिक अथवा सामाजिक स्तर पर। साथ ही चरित्र प्रतिष्ठा और उसके भीतर से 'ब्राह्मणत्व' का अनुपम आलोक और भारतीय संस्कृति का उदार स्वर्णिम चित्र इनके नाट्य-साहित्य की की सबसे बड़ी देन है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसका आरम्भ सन 1953 में हुआ था, किंतु ये पूर्ण नहीं हुआ।

संबंधित लेख

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