वर्धन वंश

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  • ई० छठी शती के प्रारम्भ में पु्ष्यभूति ने थानेश्वर में एक नये राजवंश की नींव डाली।
  • इस वंश का पाँचवा और शक्तिशाली राजा प्रभाकरवर्धन (लगभग 583 - 605 ई०) हुआ।
  • उसकी उपाधि 'परम भट्टारक महाराजाधिराज' थी। उपाधि से ज्ञात होता है कि प्रभाकरवर्धन ने अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिया था।
  • बाणभट्ट द्वारा रचित 'हर्षचरित' से पता चलता है कि इस शासक ने सिंध, गुजरात और मालवा पर अधिकार कर लिया था।
  • गांधार प्रदेश तक के शासक प्रभाकरवर्धन से डरते थे तथा उसने हूणों को भी पराजित किया था।
  • राजा प्रभाकरवर्धन के दो पुत्र राज्यवर्धन, हर्षवर्धन और एक पुत्री राज्यश्री थी।
  • राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के शासक ग्रहवर्मन से हुआ था। उस वैवाहिक संबंध के कारण उत्तरी भारत के दो प्रसिद्ध मौखरी और वर्धन राज्य प्रेम-सूत्र मे बँध गये थे, जिससे उन दोनों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी।
  • हर्षचरित से ज्ञात होता है कि प्रभाकरवर्धन ने अपनी मृत्यु से पहले राज्यवर्धन को उत्तर दिशा में हूणों का दमन करने के लिए भेजा था। संभवत: उस समय हूणों का अधिकार उत्तरी पंजाब और कश्मीर के कुछ भाग पर ही था।
  • शक्तिशाली प्रभाकरवर्धन का शासन पश्चिम में व्यास नदी से लेकर पूर्व में यमुना तक था।



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