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एक नई योजना के अन्तर्गत [[राष्ट्रकवि]] [[रामधारी सिंह 'दिनकर']] की वे पुस्तकें, जिनका स्वामित्व उनके पौत्र अरविन्द कुमार सिंह के पास है, एक नए ढंग से प्रकाशित की जा रही हैं। दिनकर जी ने [[कविता]] के साथ-साथ गद्य साहित्य की भी प्रचुर मात्रा में रचना की। स्वभावत: वे पुस्तकें गद्य की भी हैं और पद्य की भी। गद्य की पुस्तकों में से दो पुस्तकें 'शुद्ध कविता की खोज' और 'चेतना की शिखा' को यथावत् प्रकाशित किया गया है। सिर्फ उनके नाम में कारणवश परिवर्तन किया गया है। ‘शुद्ध कविता की खोज’ का नाम इस पुस्तक के पहले [[निबन्ध]] के आधार पर रखा गया है- ‘कविता और शुद्ध कविता’ और ‘चेतना की शिखा’ का नाम उसके पहले निबन्ध के आधार पर ‘श्री अरविन्द : मेरी दृष्टि में’। इस नाम परिवर्तन से पुस्तक की विषय-वस्तु का परिचय प्राप्त करने में अधिक स्पष्टता आ जाती है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=6851|title=व्यक्तिगत निबंध और डायरी|accessmonthday=13 अक्टूबर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | एक नई योजना के अन्तर्गत [[राष्ट्रकवि]] [[रामधारी सिंह 'दिनकर']] की वे पुस्तकें, जिनका स्वामित्व उनके पौत्र अरविन्द कुमार सिंह के पास है, एक नए ढंग से प्रकाशित की जा रही हैं। दिनकर जी ने [[कविता]] के साथ-साथ गद्य साहित्य की भी प्रचुर मात्रा में रचना की। स्वभावत: वे पुस्तकें गद्य की भी हैं और पद्य की भी। गद्य की पुस्तकों में से दो पुस्तकें 'शुद्ध कविता की खोज' और 'चेतना की शिखा' को यथावत् प्रकाशित किया गया है। सिर्फ उनके नाम में कारणवश परिवर्तन किया गया है। ‘शुद्ध कविता की खोज’ का नाम इस पुस्तक के पहले [[निबन्ध]] के आधार पर रखा गया है- ‘कविता और शुद्ध कविता’ और ‘चेतना की शिखा’ का नाम उसके पहले निबन्ध के आधार पर ‘श्री अरविन्द : मेरी दृष्टि में’। इस नाम परिवर्तन से पुस्तक की विषय-वस्तु का परिचय प्राप्त करने में अधिक स्पष्टता आ जाती है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=6851|title=व्यक्तिगत निबंध और डायरी|accessmonthday=13 अक्टूबर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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‘व्यक्तिगत निबन्ध और डायरी’ नामक पुस्तक में भी दिनकरजी के निबन्धों का तो एकत्रीकरण है ही, ‘दिनकर की डायरी’ नामक पूरी पुस्तक यथावत् उसमें शामिल है, क्योंकि डायरी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति का ही तो अतिशय घनीभूत रूप है। बाकी जो नवनिर्मित गद्य की पुस्तकें हैं, वे हैं- ‘कवि और कविता’, ‘साहित्य और समाज’, ‘चिन्तन के आयाम’ तथा ‘संस्कृति, भाषा और राष्ट्र’ इनमें इनके नामों से संबंधित निबन्ध विभिन्न पुस्तकों से लेकर क्रम से लगाए गए हैं। प्रत्येक निबन्ध के नीचे इस बात का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया गया है कि वे किस पुस्तक से लिए गए हैं।<ref name="aa"/> | ‘व्यक्तिगत निबन्ध और डायरी’ नामक पुस्तक में भी दिनकरजी के निबन्धों का तो एकत्रीकरण है ही, ‘दिनकर की डायरी’ नामक पूरी पुस्तक यथावत् उसमें शामिल है, क्योंकि डायरी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति का ही तो अतिशय घनीभूत रूप है। बाकी जो नवनिर्मित गद्य की पुस्तकें हैं, वे हैं- ‘कवि और कविता’, ‘साहित्य और समाज’, ‘चिन्तन के आयाम’ तथा ‘संस्कृति, भाषा और राष्ट्र’ इनमें इनके नामों से संबंधित निबन्ध विभिन्न पुस्तकों से लेकर क्रम से लगाए गए हैं। प्रत्येक निबन्ध के नीचे इस बात का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया गया है कि वे किस पुस्तक से लिए गए हैं।<ref name="aa"/> | ||
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− | कविता पुस्तकों में सभी पुस्तकों का मूल रूप सुरक्षित रखा गया है, सिर्फ कमोबेश कविताओं की प्रकृति को देखते हुए दो-दो तीन-तीन पुस्तकों को एक जिल्द में लाने की कोशिश की गई है। स्वभावत: संयुक्त पुस्तकों को एक नाम देना पड़ा है, लेकिन वह नाम दिनकर जी कि कविताओं से ही इस सावधानी से चुना गया है कि वह कविताओं के मिजाज का सही ढंग से परिचय दे सके। उदाहरण के लिए ‘धूप और धुआँ’ नाम तय किया गया है, ‘नीम के पत्ते, ‘मृत्ति-तिलक’ और ‘दिनकर के गीत’ नामक पुस्तकों के संयुक्त रूप के लिए ‘[[अमृत मंथन -रामधारी सिंह दिनकर|अमृत-मंथन]]’ और ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’, ‘कविश्री’ और ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ के संयुक्त रूप के लिए ‘[[रश्मिमाला -रामधारी सिंह दिनकर|रश्मिमाला]]’। ‘अमृत-मंथन’ में एक छोटा-सा परिवर्तन यह किया गया है कि ‘मृत्ति-तिलक’ से ‘हे राम !’ शीर्षक कविता हटा दी गई है, क्योंकि वह ‘नीम के पत्ते’ में भी | + | कविता पुस्तकों में सभी पुस्तकों का मूल रूप सुरक्षित रखा गया है, सिर्फ कमोबेश कविताओं की प्रकृति को देखते हुए दो-दो तीन-तीन पुस्तकों को एक जिल्द में लाने की कोशिश की गई है। स्वभावत: संयुक्त पुस्तकों को एक नाम देना पड़ा है, लेकिन वह नाम दिनकर जी कि कविताओं से ही इस सावधानी से चुना गया है कि वह कविताओं के मिजाज का सही ढंग से परिचय दे सके। उदाहरण के लिए ‘धूप और धुआँ’ नाम तय किया गया है, ‘नीम के पत्ते, ‘मृत्ति-तिलक’ और ‘दिनकर के गीत’ नामक पुस्तकों के संयुक्त रूप के लिए ‘[[अमृत मंथन -रामधारी सिंह दिनकर|अमृत-मंथन]]’ और ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’, ‘कविश्री’ और ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ के संयुक्त रूप के लिए ‘[[रश्मिमाला -रामधारी सिंह दिनकर|रश्मिमाला]]’। ‘अमृत-मंथन’ में एक छोटा-सा परिवर्तन यह किया गया है कि ‘मृत्ति-तिलक’ से ‘हे राम !’ शीर्षक कविता हटा दी गई है, क्योंकि वह ‘नीम के पत्ते’ में भी संग्रहीत है। एक ही संकलन में पुनरावृत्ति से बचने के लिए यह करना ज़रूरी था। ‘रश्मिमाला’ नाम इसलिए पसंद किया गया कि इस नाम से दिनकरजी ‘प्रण-भंग’ नामक काव्य के बाद अपनी स्फुट कविताओं का एक संकलन निकालना चाहते थे, जो निकल नहीं सका। उसकी तीन-चार कविताएँ उन्होंने ‘रेणुका’ में लेकर उसे छोड़ दिया था। काफ़ी दिनों बाद उन्होंने बाकी कविताएँ ‘प्रण-भंग’ के दूसरे संस्करण में, जो ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’ के नाम से निकला, डाल दीं। ‘रश्मिमाला’ में ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’ पूरी पुस्तक में दी गई हैं, साथ में ‘कविश्री’ और ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ नामक दो संकलन भी। दिनकर की कविताओं का कोई संकलन दिनकर की किरणों का हार ही तो है। |
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व्यक्तिगत निबंध और डायरी -रामधारी सिंह दिनकर
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कवि | रामधारी सिंह दिनकर | |
मूल शीर्षक | 'व्यक्तिगत निबंध और डायरी' | |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन | |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2008 | |
ISBN | 978-81-8031-332 | |
देश | भारत | |
भाषा | हिंदी | |
विधा | लेख-निबन्ध | |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द | |
टिप्पणी | इस कृति में रामधारी सिंह 'दिनकर' के संस्मरणों को संग्रहीत किया गया है। पुस्तक में दिनकर जी के वैचारिक निबन्धों के साथ-साथ नियमित रूप से लिखी जाने वाली उनकी डायरी भी है। |
व्यक्तिगत निबंध और डायरी हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक और कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की कृति है। इस कृति में दिनकर जी के संस्मरणों को संग्रहीत किया गया है। पुस्तक में दिनकर जी के वैचारिक निबन्धों के साथ-साथ नियमित रूप से लिखी जाने वाली उनकी डायरी भी है। उसके साथ-साथ अनियमित रूप से लिखे जाने वाले जर्नल भी इसमें शामिल हैं, जिसमें विचार, भावनाएँ, सम-सामयिक टिप्पणियाँ और वैयक्तिक बातों का लेखा-जोखा है। यह पुस्तक युवा-पीढ़ी के लिए युगद्रष्टासाहित्यकार का एक उद्बोधन है। उनके जीवन-प्रसंगों तथा निबंधों की ओजस्विता सभी के लिए प्रेरणा का पुंज है।
प्रकाशकीय
एक नई योजना के अन्तर्गत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की वे पुस्तकें, जिनका स्वामित्व उनके पौत्र अरविन्द कुमार सिंह के पास है, एक नए ढंग से प्रकाशित की जा रही हैं। दिनकर जी ने कविता के साथ-साथ गद्य साहित्य की भी प्रचुर मात्रा में रचना की। स्वभावत: वे पुस्तकें गद्य की भी हैं और पद्य की भी। गद्य की पुस्तकों में से दो पुस्तकें 'शुद्ध कविता की खोज' और 'चेतना की शिखा' को यथावत् प्रकाशित किया गया है। सिर्फ उनके नाम में कारणवश परिवर्तन किया गया है। ‘शुद्ध कविता की खोज’ का नाम इस पुस्तक के पहले निबन्ध के आधार पर रखा गया है- ‘कविता और शुद्ध कविता’ और ‘चेतना की शिखा’ का नाम उसके पहले निबन्ध के आधार पर ‘श्री अरविन्द : मेरी दृष्टि में’। इस नाम परिवर्तन से पुस्तक की विषय-वस्तु का परिचय प्राप्त करने में अधिक स्पष्टता आ जाती है।[1]
‘व्यक्तिगत निबन्ध और डायरी’ नामक पुस्तक में भी दिनकरजी के निबन्धों का तो एकत्रीकरण है ही, ‘दिनकर की डायरी’ नामक पूरी पुस्तक यथावत् उसमें शामिल है, क्योंकि डायरी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति का ही तो अतिशय घनीभूत रूप है। बाकी जो नवनिर्मित गद्य की पुस्तकें हैं, वे हैं- ‘कवि और कविता’, ‘साहित्य और समाज’, ‘चिन्तन के आयाम’ तथा ‘संस्कृति, भाषा और राष्ट्र’ इनमें इनके नामों से संबंधित निबन्ध विभिन्न पुस्तकों से लेकर क्रम से लगाए गए हैं। प्रत्येक निबन्ध के नीचे इस बात का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया गया है कि वे किस पुस्तक से लिए गए हैं।[1]
कविता पुस्तक
कविता पुस्तकों में सभी पुस्तकों का मूल रूप सुरक्षित रखा गया है, सिर्फ कमोबेश कविताओं की प्रकृति को देखते हुए दो-दो तीन-तीन पुस्तकों को एक जिल्द में लाने की कोशिश की गई है। स्वभावत: संयुक्त पुस्तकों को एक नाम देना पड़ा है, लेकिन वह नाम दिनकर जी कि कविताओं से ही इस सावधानी से चुना गया है कि वह कविताओं के मिजाज का सही ढंग से परिचय दे सके। उदाहरण के लिए ‘धूप और धुआँ’ नाम तय किया गया है, ‘नीम के पत्ते, ‘मृत्ति-तिलक’ और ‘दिनकर के गीत’ नामक पुस्तकों के संयुक्त रूप के लिए ‘अमृत-मंथन’ और ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’, ‘कविश्री’ और ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ के संयुक्त रूप के लिए ‘रश्मिमाला’। ‘अमृत-मंथन’ में एक छोटा-सा परिवर्तन यह किया गया है कि ‘मृत्ति-तिलक’ से ‘हे राम !’ शीर्षक कविता हटा दी गई है, क्योंकि वह ‘नीम के पत्ते’ में भी संग्रहीत है। एक ही संकलन में पुनरावृत्ति से बचने के लिए यह करना ज़रूरी था। ‘रश्मिमाला’ नाम इसलिए पसंद किया गया कि इस नाम से दिनकरजी ‘प्रण-भंग’ नामक काव्य के बाद अपनी स्फुट कविताओं का एक संकलन निकालना चाहते थे, जो निकल नहीं सका। उसकी तीन-चार कविताएँ उन्होंने ‘रेणुका’ में लेकर उसे छोड़ दिया था। काफ़ी दिनों बाद उन्होंने बाकी कविताएँ ‘प्रण-भंग’ के दूसरे संस्करण में, जो ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’ के नाम से निकला, डाल दीं। ‘रश्मिमाला’ में ‘प्रणभंग तथा अन्य कविताएँ’ पूरी पुस्तक में दी गई हैं, साथ में ‘कविश्री’ और ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ नामक दो संकलन भी। दिनकर की कविताओं का कोई संकलन दिनकर की किरणों का हार ही तो है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 व्यक्तिगत निबंध और डायरी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 अक्टूबर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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