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[[बलराम]] और [[कृष्ण]] स्वच्छंद विहार कर रहे थे। तभी एक '''शंखचूड़''' नामक यक्ष कुछ गोपियों को लेकर उत्तर की ओर भागा। गोपियों ने शोर मचाया। बलराम और कृष्ण शाल वृक्ष लेकर उसके पीछे-पीछे भागे। उनको आता देखकर वह गोपियों को छोड़कर भागा। बलराम उनकी सुरक्षा के लिए वहीं पर रह गए तथा कृष्ण ने उसका पीछा कर उसे पकड़ लिया। कृष्ण ने उसके सिर पर घूँसा मारा तो उसका सिर धड़ से अलग हो गया तथा उसके सिर में रहने वाली चूड़ामणि कृष्ण को मिल गई।<ref>श्रीमदभागवत, 10|34</ref>
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*बलराम गोपियों की सुरक्षा के लिए वहीं पर रह गए तथा कृष्ण ने उसका पीछा कर उसे पकड़ लिया।
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==संबंधित लेख==
 
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10:48, 22 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

शंखचूड़ नामक यक्ष का वध श्रीकृष्ण के द्वारा किया गया था, क्योंकि वह कुछ गोपियों का हरण करके भाग रहा था।

  • जब बलराम और कृष्ण स्वच्छंद विहार कर रहे थे, तभी शंखचूड़ यक्ष कुछ गोपियों को लेकर उत्तर की ओर भागा।
  • गोपियों ने शोर मचाया, तब बलराम और कृष्ण शाल वृक्ष लेकर उसके पीछे-पीछे भागे।
  • उनको आता देखकर शंखचूड़ गोपियों को छोड़कर भागा।
  • बलराम गोपियों की सुरक्षा के लिए वहीं पर रह गए तथा कृष्ण ने उसका पीछा कर उसे पकड़ लिया।
  • कृष्ण ने उसके सिर पर घूँसा मारा तो उसका सिर धड़ से अलग हो गया तथा उसके सिर में रहने वाली चूड़ामणि कृष्ण को मिल गई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 301 |

  1. श्रीमदभागवत, 10|34

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