श्रेणी:लंकाकाण्ड
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- जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं
- जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं
- जगत बिदित तुम्हारि प्रभुताई
- जग्य बिधंसि कुसल कपि
- जथा पंख बिनु खग अति दीना
- जथा मत्त गज जूथ
- जथाजोग सेनापति कीन्हे
- जद्यपि लघुता राम
- जन रंजन भंजन सोक भयं
- जनकसुता समेत प्रभु
- जनि जल्पना करि सुजसु नासहि
- जनि जल्पसि जड़ जंतु
- जनु राहु केतु अनेक नभ
- जब अति भयउ बिरह उर दाहू
- जब कीन्ह तेहिं पाषंड
- जब ते तुम्ह सीता हरि आनी
- जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा
- जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन
- जय कृपा कंद मुकुंद
- जय जय जय रघुबंस
- जय दूषनारि खरारि
- जय राम सदा सुख धाम हरे
- जय राम सोभा धाम
- जय हरन धरनी भार
- जयति राम जय लछिमन
- जरत बिलोकेउँ जबहि कपाला
- जरहिं पतंग मोह बस
- जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं
- जहँ जहँ कृपासिंधु बन
- जहँ जाहिं मर्कट भागि
- जहँ तहँ थकित करि कीस
- जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा
- जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी
- जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा
- जागा निसिचर देखिअ कैसा
- जातुधान अंगद पन देखी
- जानत परम दुर्ग अति लंका
- जानहिं दिग्गज उर कठिनाई
- जाना प्रताप ते रहे निर्भय
- जानु टेकि कपि भूमि न गिरा
- जान्यो मनुज करि दनुज
- जामवंत कह बैद सुषेना
- जामवंत बोले दोउ भाई
- जासु घ्रान अस्विनीकुमारा
- जासु चलत डोलति इमि धरनी
- जासु परसु सागर खर धारा
- जासु प्रबल माया बस
- जाहिं कहाँ ब्याकुल भए बंदर
- जिन्ह कर नासा कान निपाता
- जिन्ह के बल कर गर्ब तोहि
- जिमि अरुनोपल निकर निहारी
- जिमि जिमि प्रभु हर
- जीतेहु जे भट संजुग माहीं
- जुगुति सुनत रावन मुसुकाई
- जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर
- जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं
- जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा
- जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला
- जेहिं बारीस बँधायउ हेला
- जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा
- जैहउँ अवध कौन मुहु लाई
- जो अति सुभट सराहेहु रावन
- जो रन बिमुख सुना मैं काना
- जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं
- जोगिनि गहें करबाल
- जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं
- जोरि पानि सबहीं सिर नाएना
- जौं अस करौं तदपि न बड़ाई
- जौं असि मति पितु खाए कीसा
- जौं तेहि आजु बंधे बिनु आवौं
- जौं प्रभु सिद्ध होइ सो पाइहि
- जौं मन बच क्रम मम उर माहीं
- जौं मम चरन सकसि सठ टारी
त
- तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई
- तन काम अनेक अनूप छबी
- तब कपीस रिच्छेस बिभीषन
- तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा
- तब दसकंठ बिबिधि बिधि
- तब मारुतसुत मुठिका हन्यो
- तब रघुपति अनुसासन पाई
- तब रघुपति रावन के
- तब रघुबीर पचारे
- तब रावन दस सूल चलावा
- तब रावन मयसुता उठाई
- तब सत बान सारथी मारेसि
- तब हनुमंत नगर महुँ आए
- तरकि पवनसुत कर गहे
- तव प्रताप उर राखि
- तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि
- तव बल नाथ डोल नित धरनी
- तव बस बिधि प्रचंड सब नाथा
- तव रिपु नारि रुदन जल धारा
- तव सोनित कीं प्यास
- तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए
- ताके गुन गन कछु
- तात कुसल कहु सुखनिधान की
- तात गहरु होइहि तोहि जाता
- तात बचन मम सुनु अति आदर
- तात लात रावन मोहि मारा
- तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ
- तानेउ चाप श्रवन लगि
- तापस बेष गात कृस
- तासु तेज समान प्रभु आनन
- तासु बिरोध न कीजिअ नाथा
- तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए
- ताहि कि संपति सगुन
- तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन
- तीरथपति पुनि देखु प्रयागा
- तुम्ह समरूप ब्रह्म अबिनासी
- तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ
- तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद
- तुरत आन रथ चढ़ि खिसिआना
- तुरत चले कपि सुनि प्रभु बचना
- तुरत निसाचर एक पठावा
- तुरत पवनसुत गवनत भयऊ
- तुरत बिमान तहाँ चलि आवा
- तुरतहिं सकल गए जहँ सीता
- ते तव सिर कंदुक सम नाना
- तेज पुंज रथ दिब्य अनूपा
- तेहि अवसर दसरथ तहँ आए
- तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू
- तेहि कारन करुनानिधि
- तेहि कारन खल अब लगि बाँच्यो
- तेहि रावन कहँ लघु
- तेहिं अंगद कहुँ लात उठाई
- तेहिं पद गहि बहु बिधि समुझावा
- तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर
- तेही निसि सीता पहिं जाई
- तैं निसिचर पति गर्ब बहूता
- तोर कोस गृह मोर सब
- तोहि पटकि महि सेन
- तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला
- तौ बसीठ पठवत केहि काजा
द
- दस दस सर सब मारेसि
- दस दिसि दाह होन अति लागा
- दस दिसि रहे बान नभ छाई
- दसन गहहु तृन कंठ कुठारी
- दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना
- दसमुख देखि सभा भय पाई
- दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी
- दहँ दिसि धावहिं कोटिन्ह रावन
- दिगपालन्ह मैं नीर भरावा
- दिन के अंत फिरीं द्वौ अनी
- दीन बंधु दयाल रघुराया
- दीन्हि असीस हरषि मन गंगा
- दुइ सुत मरे दहेउ पुर
- दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी
- दुहु दिसि जय जयकार
- दुहुँ दिसि पर्बत करहिं प्रहारा
- दूरिहि ते प्रनाम कपि कीन्हा
- दे भक्ति रमानिवास त्रास
- देखा भरत बिसाल अति
- देखा श्रमित बिभीषनु भारी
- देखा सैल न औषध चीन्हा
- देखि अजय रिपु डरपे कीसा
- देखि निबिड़ तम दसहुँ
- देखि पवनसुत कटक बिहाला
- देखि पवनसुत धायउ
- देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना
- देखि बिभीषनु आगें आयउ
- देखि भालुपति निज दल घाता
- देखि महा मर्कट प्रबल
- देखि राम रुख लछिमन धाए
- देखु विभीषन दच्छिन आसा
- देखे कपिन्ह अमित दससीसा
- देखेसि आवत पबि सम बाना
- देखेहु कालि मोरि मनुसाई
- देव बचन सुनि प्रभु मुसुकाना
- देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा
- देहिं परम गति सो जियँ जानी