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'''सुबुक्तगीन''' (977-997) [[ग़ज़नी|ग़ज़नी]] की गद्दी पर [[अलप्तगीन]] की मृत्यु के बाद बैठा था। प्रारंभ में वह गुलाम था, जिसे अलप्तगीन ने खरीद लिया था। अपने गुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया और 'अमीर-उल-उमरा' की उपाधि से उसे सम्मानित किया था।
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'''सुबुक्तगीन''' (977-997) [[ग़ज़नी|ग़ज़नी]] की गद्दी पर [[अलप्तगीन]] की मृत्यु के बाद बैठा था। प्रारंभ में वह एक ग़ुलाम था, जिसे अलप्तगीन ने ख़रीद लिया था। अपने ग़ुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया था और 'अमीर-उल-उमरा' की उपाधि से उसे सम्मानित किया।
 
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==भारत पर आक्रमण==
 
==भारत पर आक्रमण==
सुबुक्तगीन एक योग्य तथा महत्त्वकांक्षी शासक सिद्ध हुआ। उसने अपनी शक्ति को बढ़ाया और साथ ही राज्य का विस्तार करना भी शुरू कर दिया। उसकी बढ़ती हुई शक्ति को कमजोर बना देने के लिए [[पंजाब]] के निकट शाहीवंशीय राज्य के शासक जयपाल ने एक योजना बनाई और सुबुक्तगीन के राज्य पर आक्रमण कर दिया। किन्तु इस युद्ध में जयपाल की सेना सुबुक्तगीन की सेना से पराजित हो गयी। [[हिन्दू]] शासक जयपाल को पराजय के कारण विवश होकर सुबुक्तगीन से एक अपमानजनक संधि करनी पड़ी। पहले इस अपमानजनक संधि को स्वीकार करने के लिए जयपाल तैयार नहीं था, किन्तु जब सुबुक्तगीन ने [[भारत]] में उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे दूसरी बार पराजित किया, तब उसे सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर [[मुस्लिम]] शासक के समक्ष झुकने को विवश होना पड़ा। सुबुक्तगीन ने [[पेशावर]] में अपनी एक सेना रख दी, जो उसके विजित प्रदेशों की देखभाल करने लगी। 991-992 में काफ़ी बड़ी मात्रा में धन लेकर सुबुक्तगीन [[ग़ज़नी]] वापस लौट गया।
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सुबुक्तगीन एक योग्य तथा महत्त्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ। उसने अपनी शक्ति को बढ़ाया और साथ ही राज्य का विस्तार करना भी शुरू कर दिया। उसकी बढ़ती हुई शक्ति को कमज़ोर बना देने के लिए [[पंजाब]] के निकट [[हिन्दुशाही वंश]] राज्य के शासक [[जयपाल]] ने एक योजना बनाई और सुबुक्तगीन के राज्य पर आक्रमण कर दिया। किन्तु इस युद्ध में जयपाल की सेना सुबुक्तगीन की सेना से पराजित हो गयी। [[हिन्दू]] शासक जयपाल को पराजय के कारण विवश होकर सुबुक्तगीन से एक अपमानजनक संधि करनी पड़ी। पहले इस अपमानजनक संधि को स्वीकार करने के लिए जयपाल तैयार नहीं था, किन्तु जब सुबुक्तगीन ने [[भारत]] में उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे दूसरी बार पराजित किया, तब उसे सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर [[मुस्लिम]] शासक के समक्ष झुकने को विवश होना पड़ा। सुबुक्तगीन ने [[पेशावर]] में अपनी एक सेना रख दी, जो उसके विजित प्रदेशों की देखभाल करने लगी। 991-992 में काफ़ी बड़ी मात्रा में धन लेकर सुबुक्तगीन [[ग़ज़नी]] वापस लौट गया।
 
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997 में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी। उसके निधन के बाद उसका पुत्र [[महमूद ग़ज़नवी]] ग़ज़नी की गद्दी पर बैठा, जिसने [[भारत]] के [[इतिहास]] में एक नया अध्याय जोड़ने का प्रयास किया।
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997 में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी। उसके निधन के बाद उसका पुत्र [[महमूद ग़ज़नवी]] ग़ज़नी की गद्दी पर बैठा, जिसने [[भारत]] के [[इतिहास]] में एक नया अध्याय जोड़ दिया। उसने भारत पर लगातार 17 बार आक्रमण किया और बड़ी मात्रा में लूट-पाट की।
  
 
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14:03, 6 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

सुबुक्तगीन (977-997) ग़ज़नी की गद्दी पर अलप्तगीन की मृत्यु के बाद बैठा था। प्रारंभ में वह एक ग़ुलाम था, जिसे अलप्तगीन ने ख़रीद लिया था। अपने ग़ुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया था और 'अमीर-उल-उमरा' की उपाधि से उसे सम्मानित किया।

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भारत पर आक्रमण

सुबुक्तगीन एक योग्य तथा महत्त्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ। उसने अपनी शक्ति को बढ़ाया और साथ ही राज्य का विस्तार करना भी शुरू कर दिया। उसकी बढ़ती हुई शक्ति को कमज़ोर बना देने के लिए पंजाब के निकट हिन्दुशाही वंश राज्य के शासक जयपाल ने एक योजना बनाई और सुबुक्तगीन के राज्य पर आक्रमण कर दिया। किन्तु इस युद्ध में जयपाल की सेना सुबुक्तगीन की सेना से पराजित हो गयी। हिन्दू शासक जयपाल को पराजय के कारण विवश होकर सुबुक्तगीन से एक अपमानजनक संधि करनी पड़ी। पहले इस अपमानजनक संधि को स्वीकार करने के लिए जयपाल तैयार नहीं था, किन्तु जब सुबुक्तगीन ने भारत में उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे दूसरी बार पराजित किया, तब उसे सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर मुस्लिम शासक के समक्ष झुकने को विवश होना पड़ा। सुबुक्तगीन ने पेशावर में अपनी एक सेना रख दी, जो उसके विजित प्रदेशों की देखभाल करने लगी। 991-992 में काफ़ी बड़ी मात्रा में धन लेकर सुबुक्तगीन ग़ज़नी वापस लौट गया।

मृत्यु

997 में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी। उसके निधन के बाद उसका पुत्र महमूद ग़ज़नवी ग़ज़नी की गद्दी पर बैठा, जिसने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। उसने भारत पर लगातार 17 बार आक्रमण किया और बड़ी मात्रा में लूट-पाट की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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