सेमल का युद्ध

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सेमल का युद्ध 1544 ई. में राजपूत राजा राव मालदेव और अफ़ग़ान शासक शेरशाह सूरी की सेनाओं के मध्य लड़ा गया था। अजमेर और जोधपुर के बीच स्थित 'सेमल' नामक स्थान पर यह इतिहास प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। राव मालदेव की बढ़ती हुई शक्ति से शेरशाह काफ़ी चिंतित था। इसीलिए उसने बीकानेर नरेश कल्याणमल एवं मेड़ता के शासक वीरमदेव के आमन्त्रण पर राव मालदेव के विरुद्ध सैन्य अभियान किया। राव मालदेव और वीरमदेव की आपसी अनबन का शेरशाह ने बखूवी लाभ उठाया और युद्ध में विजय प्राप्त की।

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शेरशाह की नीति

राजस्थान में आगे बढ़ते हुए शेरशाह ने बहुत ही सावधानी से काम लिया। वह प्रत्येक पड़ाव पर आकस्मिक आक्रमणों से बचने के लिए खाई खोद लेता था। यह स्पष्ट है कि राणा साँगा और बाबर के मध्य हुई भयंकर परिणामों वाली लड़ाई के बाद राजपूतों ने भी बहुत-सी सैनिक पद्धतियों को सीख लिया था। उन्होंने दृढ़ता से सुरक्षित शेरशाह के पड़ावों पर आक्रमण करना मंज़ूर नहीं किया। एक महीना इंतज़ार करने के बाद राव मालदेव अचानक ही जोधपुर की ओर लौट गया। तत्कालीन लेखकों के अनुसार ऐसा शेरशाह की सैनिक चतुरता से ही हुआ था। उसने उस क्षेत्र के राजपूत सेनापतियों को कुछ पत्र लिखे थे, जिससे मालदेव के मन में उनकी स्वामिभक्ति के प्रति संदेह उत्पन्न हो जाए। शेरशाह की यह चाल काम आई।

अफ़ग़ानों की विजय

राव मालदेव को जब अपनी ग़लती का एहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कुछ राजपूत सरदारों ने पीछे लौटने से इंकार कर दिया। उन्होंने 10,000 सैनिकों की छोटी-सी सेना लेकर शेरशाह की सेना के केन्द्रीय भाग पर आक्रमण कर दिया और उसमें भगदड़ मचा दी। लेकिन शेरशाह शांत रहा। जल्दी ही बेहतर अफ़ग़ान तोपख़ाने ने राजपूतों के आक्रमण को रोक दिया। राजपूत घिर गए, लेकिन आख़िरी दम तक लड़ते रहे। उनके साथ बहुत-से अफ़ग़ान सैनिक भी मारे गये, लेकिन अंतत: विजय शेरशाह की ही हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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