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08:12, 29 मार्च 2011 का अवतरण

सौराष्ट्र, वर्तमान काठियावाड़-प्रदेश, जो प्रायद्वीपीय क्षेत्र है। महाभारत के समय द्वारिकापुरी इसी क्षेत्र में स्थित थी। सुराष्ट्र या सौराष्ट्र को सहदेव ने अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में विजित किया था। विष्णु पुराण में अपरान्त के साथ सौराष्ट्र का उल्लेख है।[1] विष्णुपुराण[2] में सौराष्ट्र में शूद्रों का राज्य बताया गया है, 'सौराष्ट्र विषयांश्च शूद्राद्याभोक्ष्यन्ति'।

इतिहास

इतिहास प्रसिद्ध सोमनाथ का मन्दिर सौराष्ट्र ही की विभूति था। रैवतकपर्वत गिरनार पर्वतमाला का ही एक भाग था। अशोक, रुद्रदामन तथा गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त के समय के महत्त्वपूर्ण अभिलेख जूनागढ़ के निकट एक चट्टान पर अंकित हैं, जिससे प्राचीन काल में इस प्रदेश के महत्त्व पर प्रकाश पड़ता है। रुद्रदामन के अभिलेख में सुराष्ट्र पर शक क्षत्रपों का प्रभुत्व बताया गया है। जान पड़ता है कि अलक्षेन्द्र के पंजाब पर आक्रमण के समय वहाँ निवास करने वाली जाति कठ जिसने यवन सम्राट के दाँत खट्टे कर दिए थे, कालान्तर में पंजाब छोड़कर दक्षिण की ओर आ गई और सौराष्ट्र में बस गई, जिससे इस देश का नाम काठियावाड़ भी हो गया। इतिहास के अधिकांश काल में सौराष्ट्र पर गुजरात नरेशों का अधिकार रहा और गुजरात के इतिहास के साथ ही इसका भाग्य बंधा रहा।

सौराष्ट्र के नाम

सौराष्ट्र के कई भागों के नाम हमें इतिहास में मिलते हैं।

  • हालार (उत्तर-पश्चिमी भाग),
  • सोरठ (पश्चिमी भाग),
  • गोहिलवाड़ (दक्षिण-पूर्वी भाग) आदि।

इसी इलाके में बब्बर शेर या सिंह पाया जाता है। सौराष्ट्र के बारे में एक प्राचीन कहावत प्रसिद्ध है–'सौराष्ट्र पंचरत्नानि नदीनारीतुरंगमाः चतुर्थः सोमनाथश्च पंचमम् हरिदर्शनम्'; इस श्लोक में सौराष्ट्र की मनोहर नदियों–जैसे चन्द्रभागा, भद्रावती, प्राची-सरस्वती, शशिमती, वेत्रवती, पलाशिनी और सुवर्णसिकता; घोघा आदि प्रदेशों की लोक-कथाओं में वर्णित सुन्दर नारियों, सुन्दर अरबी जाति के तेज़ घोड़ों और सोमनाथ और कृष्ण की पुण्यनगरी द्वारिका के मन्दिरों को सौराष्ट्र के रत्न बताया गया है।  


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'तथा परान्ताः सौराष्ट्राः शूराभीरास्तथार्बुदाः' विष्णुपुराण 2, 3, 16
  2. विष्णुपुराण 2, 24, 68

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