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'''हर्षवर्धन''' या '''हर्ष''' (606ई.-647ई.), [[राज्यवर्धन]] के बाद लगभग 606 ई. में [[थानेश्वर]] के सिंहासन पर बैठा। हर्ष के विषय में हमें [[बाणभट्ट]] के [[हर्षचरित]] से व्यापक जानकारी मिलती है। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया। इन वर्षों में हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार [[जालंधर]], [[पंजाब]], [[कश्मीर]], [[नेपाल]] एवं [[बल्लभीपुर गुजरात|बल्लभीपुर]] तक कर लिया। इसने [[आर्यावर्त]] को भी अपने अधीन किया। हर्ष को [[बादामी कर्नाटक|बादामी]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यवंशी]] शासक [[पुलकेशी द्वितीय|पुलकेशिन द्वितीय]] से पराजित होना पड़ा। ऐहोल प्रशस्ति (634 ई.) में इसका उल्लेख मिलता है।
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'''हर्षवर्धन''' या '''हर्ष''' (606ई.-647ई.), [[राज्यवर्धन]] के बाद लगभग 606 ई. में [[थानेश्वर]] के सिंहासन पर बैठा। हर्ष के विषय में हमें [[बाणभट्ट]] के [[हर्षचरित]] से व्यापक जानकारी मिलती है। हर्ष ने लगभग 41 [[वर्ष]] शासन किया। इन वर्षों में हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार [[जालंधर]], [[पंजाब]], [[कश्मीर]], [[नेपाल]] एवं [[बल्लभीपुर गुजरात|बल्लभीपुर]] तक कर लिया। इसने [[आर्यावर्त]] को भी अपने अधीन किया। हर्ष को [[बादामी]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यवंशी]] शासक [[पुलकेशी द्वितीय|पुलकेशिन द्वितीय]] से पराजित होना पड़ा। [[ऐहोल|ऐहोल प्रशस्ति]] (634 ई.) में इसका उल्लेख मिलता है।
 
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इसने '''परम् भट्टारक''' [[मगध]] नरेश की उपाधि ग्रहण की। हर्ष को अपने दक्षिण के अभियान में असफलता हाथ लगी। चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को [[ताप्ती नदी]] के किनारे परास्त किया।
 
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'''हर्ष एक प्रतिष्ठित नाटककार एवं कवि था'''। इसने 'नागानन्द', 'रत्नावली' एवं 'प्रियदर्शिका' नामक नाटकों की रचना की। इसके दरबार में [[बाणभट्ट]], [[हरिदत्त]] एवं [[जयसेन]] जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक शोभा बढ़ाते थे। हर्ष [[बौद्ध धर्म]] की [[महायान]] शाखा का समर्थक होने के साथ-साथ [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की भी स्तुति करता था। ऐसा माना जाता है कि हर्ष प्रतिदिन 500 [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था। हर्ष ने लगभग 643ई. में कन्नौज तथा [[प्रयाग]] में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया था। हर्ष द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा को '''मोक्षपरिषद्''' कहा गया है।
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'''हर्ष एक प्रतिष्ठित नाटककार एवं [[कवि]] था'''। इसने 'नागानन्द', 'रत्नावली' एवं 'प्रियदर्शिका' नामक [[नाटक|नाटकों]] की रचना की। इसके दरबार में [[बाणभट्ट]], [[हरिदत्त]] एवं [[जयसेन]] जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक शोभा बढ़ाते थे। हर्ष [[बौद्ध धर्म]] की [[महायान|महायान शाखा]] का समर्थक होने के साथ-साथ [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की भी स्तुति करता था। ऐसा माना जाता है कि हर्ष प्रतिदिन 500 [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था। हर्ष ने लगभग 643ई. में कन्नौज तथा [[प्रयाग]] में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया था। हर्ष द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा को '''मोक्षपरिषद्''' कहा गया है।
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==हर्ष की मृत्यु==
 
==हर्ष की मृत्यु==
'''हर्ष का दिन तीन भागों में बंटा था'''- प्रथम भाग सरकारी कार्यो के लिए तथा शेष दो भागों में धार्मिक कार्य सम्पन्न किए जाते थे। महाराज हर्ष ने 641 ई. में एक [[ब्राह्मण]] को अपना दूत बनाकर [[चीन]] भेजा। 643 ई. में चीनी सम्राट ने ल्यांग-होआई-किंग नाम के दूत को हर्ष के दरबार में भेजा। लगभग 646 ई. में एक और चीनी दूतमण्डल लीन्य प्याओं एवं वांग-ह्नन-त्से के नेतृत्व में हर्ष के दरबार में आया। तीसरे दूत मण्डल के [[भारत]] पहुंचने से पूर्व ही हर्ष की मृत्यु हो गई।
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'''हर्ष का दिन तीन भागों में बंटा था'''- प्रथम भाग सरकारी कार्यो के लिए तथा शेष दो भागों में धार्मिक कार्य सम्पन्न किए जाते थे। महाराज हर्ष ने 641 ई. में एक [[ब्राह्मण]] को अपना दूत बनाकर [[चीन]] भेजा। 643 ई. में चीनी सम्राट ने 'ल्यांग-होआई-किंग' नाम के दूत को हर्ष के दरबार में भेजा। लगभग 646 ई. में एक और चीनी दूतमण्डल 'लीन्य प्याओं' एवं 'वांग-ह्नन-त्से' के नेतृत्व में हर्ष के दरबार में आया। तीसरे दूत मण्डल के [[भारत]] पहुंचने से पूर्व ही हर्ष की मृत्यु हो गई।
 
==हर्ष का शासन प्रबन्ध==
 
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#'''सर्वगत''' - गुप्तचर विभाग का सदस्य।
 
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'''हर्ष के समय में अधिकारियों को वेतन''', नकद व जागीर के रूप में दिया जाता था, पर [[ह्वेनसांग]] का मानना है कि, मंत्रियों एवं अधिकारियों का वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था। अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले बड़े पैमाने पर भूखण्ड देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में सामन्तवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। हर्ष का प्रशासन [[गुप्त साम्राज्य|गुप्त प्रशासन]] की अपेक्षाकृत अधिक सामन्तिक एवं विकेन्द्रीकृत हो गया। इस कारण सामन्तों की कई श्रेणियां हो गई थीं।
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'''हर्ष के समय में अधिकारियों को वेतन''', नकद व जागीर के रूप में दिया जाता था, पर [[ह्वेनसांग]] का मानना है कि, मंत्रियों एवं अधिकारियों का वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था। अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले बड़े पैमाने पर भूखण्ड देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में [[सामन्तवाद]] अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। हर्ष का प्रशासन [[गुप्त साम्राज्य|गुप्त प्रशासन]] की अपेक्षाकृत अधिक सामन्तिक एवं विकेन्द्रीकृत हो गया। इस कारण सामन्तों की कई श्रेणियां हो गई थीं।
 
====राष्ट्रीय आय एवं कर====
 
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'''हर्ष के समय में राष्ट्रीय आय का एक चौथाई भाग''' उच्च कोटि के राज्य कर्मचारियों को वेतन या उपहार के रूप में, एक चौथाई भाग धार्मिक कार्यो के खर्च हेतु, एक चौथाई भाग शिक्षा के खर्च के लिए एवं एक चौथाई भाग राजा स्वयं अपने खर्च के लिए प्रयोग करता था। राजस्व के स्रोत के रूप में तीन प्रकार के करों का विवरण मिलता है- भाग, हिरण्य, एवं बलि। 'भाग' या भूमिकर पदार्थ के रूप में लिया जाता था। 'हिरण्य' नगद में रूप में लिया जाने वाला कर था। इस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।
 
'''हर्ष के समय में राष्ट्रीय आय का एक चौथाई भाग''' उच्च कोटि के राज्य कर्मचारियों को वेतन या उपहार के रूप में, एक चौथाई भाग धार्मिक कार्यो के खर्च हेतु, एक चौथाई भाग शिक्षा के खर्च के लिए एवं एक चौथाई भाग राजा स्वयं अपने खर्च के लिए प्रयोग करता था। राजस्व के स्रोत के रूप में तीन प्रकार के करों का विवरण मिलता है- भाग, हिरण्य, एवं बलि। 'भाग' या भूमिकर पदार्थ के रूप में लिया जाता था। 'हिरण्य' नगद में रूप में लिया जाने वाला कर था। इस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।
==सेन्य रचना==
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==सैन्य रचना==
 
'''ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में''' क़रीब 5,000 [[हाथी]], 2,000 घुड़सवार एवं 5,000 पैदल सैनिक थे। कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 एवं घुड़सवारों की संख्या एक लाख पहुंच गई। हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को '''चाट एवं भाट''', अश्वसेना के अधिकारियों को '''हदेश्वर''' पैदल सेना के अधिकारियों को '''बलाधिकृत''' एवं '''महाबलाधिकृत''' कहा जाता था।
 
'''ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में''' क़रीब 5,000 [[हाथी]], 2,000 घुड़सवार एवं 5,000 पैदल सैनिक थे। कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 एवं घुड़सवारों की संख्या एक लाख पहुंच गई। हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को '''चाट एवं भाट''', अश्वसेना के अधिकारियों को '''हदेश्वर''' पैदल सेना के अधिकारियों को '''बलाधिकृत''' एवं '''महाबलाधिकृत''' कहा जाता था।
 
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05:34, 16 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

Disamb2.jpg हर्षवर्धन एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- हर्षवर्धन (बहुविकल्पी)

हर्षवर्धन या हर्ष (606ई.-647ई.), राज्यवर्धन के बाद लगभग 606 ई. में थानेश्वर के सिंहासन पर बैठा। हर्ष के विषय में हमें बाणभट्ट के हर्षचरित से व्यापक जानकारी मिलती है। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया। इन वर्षों में हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार जालंधर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल एवं बल्लभीपुर तक कर लिया। इसने आर्यावर्त को भी अपने अधीन किया। हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित होना पड़ा। ऐहोल प्रशस्ति (634 ई.) में इसका उल्लेख मिलता है।

दक्षिण में असफलता

यात्रियों में राजकुमार, नीति का पण्डित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहे जाने वाला चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 630 से 640 ई. के बीच भारत की धरती पर पदार्पण किया। हर्ष के विषय में ह्वेनसांग से विस्तृत जानकारी मिलती है। हर्ष ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। हर्ष को एक और नाम शिलादित्य से भी जाना जाता है।

  • चीनी यात्री युवानच्वांग ने कन्नौजाधिप महाराज हर्षवर्धन का प्रति पांचवें वर्ष प्रयाग के मेले में जाकर सर्वस्व दान कर देने का अपूर्व वर्णन किया है।

इसने परम् भट्टारक मगध नरेश की उपाधि ग्रहण की। हर्ष को अपने दक्षिण के अभियान में असफलता हाथ लगी। चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को ताप्ती नदी के किनारे परास्त किया।

नाटककार एवं कवि

हर्ष एक प्रतिष्ठित नाटककार एवं कवि था। इसने 'नागानन्द', 'रत्नावली' एवं 'प्रियदर्शिका' नामक नाटकों की रचना की। इसके दरबार में बाणभट्ट, हरिदत्त एवं जयसेन जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक शोभा बढ़ाते थे। हर्ष बौद्ध धर्म की महायान शाखा का समर्थक होने के साथ-साथ विष्णु एवं शिव की भी स्तुति करता था। ऐसा माना जाता है कि हर्ष प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था। हर्ष ने लगभग 643ई. में कन्नौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया था। हर्ष द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्षपरिषद् कहा गया है।

हर्ष की मृत्यु

हर्ष का दिन तीन भागों में बंटा था- प्रथम भाग सरकारी कार्यो के लिए तथा शेष दो भागों में धार्मिक कार्य सम्पन्न किए जाते थे। महाराज हर्ष ने 641 ई. में एक ब्राह्मण को अपना दूत बनाकर चीन भेजा। 643 ई. में चीनी सम्राट ने 'ल्यांग-होआई-किंग' नाम के दूत को हर्ष के दरबार में भेजा। लगभग 646 ई. में एक और चीनी दूतमण्डल 'लीन्य प्याओं' एवं 'वांग-ह्नन-त्से' के नेतृत्व में हर्ष के दरबार में आया। तीसरे दूत मण्डल के भारत पहुंचने से पूर्व ही हर्ष की मृत्यु हो गई।

हर्ष का शासन प्रबन्ध

हर्षकालीन प्रमुख अधिकारी
अधिकारी विभाग
महाबलाधिकृत सर्वोच्च सेनापति/सेनाध्यक्ष
बलाधिकृत सेनापति
महासन्धि विग्रहाधिकृत संधिरु/युद्ध करने संबंधी अधिकारी
कटुक हस्ति सेनाध्यक्ष
वृहदेश्वर अश्व सेनाध्यक्ष
अध्यक्ष विभिन्न विभागों के सर्वोच्च अधिकारी
आयुक्तक साधारण अधिकारी
मीमांसक न्यायधीश
महाप्रतिहार राजाप्रासाद का रक्षक
चाट-भाट वैतनिक/अवैतनिक सैनिक
उपरिक महाराज प्रांतीय शासक
अक्षपटलिक लेखा-जोखा लिपिक
पूर्णिक साधारण लिपिक

हर्ष स्वयं प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेता था। सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् गठिन की गई थी। बाणभट्ट के अनुसार अवन्ति युद्ध और शान्ति का सर्वोच्च मंत्री था। सिंहनाद हर्ष का महासेनापति था। बाणभट्ट ने हर्षचरित में इन पदों की व्याख्या इस प्रकार की है-

  1. अवन्ति - युद्ध और शान्ति का मंत्री।
  2. सिंहनाद - हर्ष की सेना का महासेनापति।
  3. कुन्तल - अश्वसेना का मुख्य अधिकारी।
  4. स्कन्दगुप्त - हस्तिसेना का मुख्य अधिकारी।

राज्य के कुछ अन्य प्रमुख अधिकारी भी थे- जैसे महासामन्त, महाराज, दौस्साधनिक, प्रभातार, राजस्थानीय, कुमारामात्य, उपरिक, विषयपति आदि।

  1. कुमारामात्य- उच्च प्रशासनिक सेवा में नियुक्त।
  2. दीर्घध्वज - राजकीय संदेशवाहक होते थे।
  3. सर्वगत - गुप्तचर विभाग का सदस्य।

सामन्तवाद में वृद्धि

हर्ष के समय में अधिकारियों को वेतन, नकद व जागीर के रूप में दिया जाता था, पर ह्वेनसांग का मानना है कि, मंत्रियों एवं अधिकारियों का वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था। अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले बड़े पैमाने पर भूखण्ड देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में सामन्तवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। हर्ष का प्रशासन गुप्त प्रशासन की अपेक्षाकृत अधिक सामन्तिक एवं विकेन्द्रीकृत हो गया। इस कारण सामन्तों की कई श्रेणियां हो गई थीं।

राष्ट्रीय आय एवं कर

हर्ष के समय में राष्ट्रीय आय का एक चौथाई भाग उच्च कोटि के राज्य कर्मचारियों को वेतन या उपहार के रूप में, एक चौथाई भाग धार्मिक कार्यो के खर्च हेतु, एक चौथाई भाग शिक्षा के खर्च के लिए एवं एक चौथाई भाग राजा स्वयं अपने खर्च के लिए प्रयोग करता था। राजस्व के स्रोत के रूप में तीन प्रकार के करों का विवरण मिलता है- भाग, हिरण्य, एवं बलि। 'भाग' या भूमिकर पदार्थ के रूप में लिया जाता था। 'हिरण्य' नगद में रूप में लिया जाने वाला कर था। इस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।

सैन्य रचना

ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में क़रीब 5,000 हाथी, 2,000 घुड़सवार एवं 5,000 पैदल सैनिक थे। कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 एवं घुड़सवारों की संख्या एक लाख पहुंच गई। हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को चाट एवं भाट, अश्वसेना के अधिकारियों को हदेश्वर पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत एवं महाबलाधिकृत कहा जाता था।


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