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==हस्तिनापुर / Hastinapur==
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'''हस्तिनापुर''' [[उत्तर प्रदेश]] में [[मेरठ]] के निकट स्थित महाराज हस्ती का बसाया हुआ एक प्राचीन नगर, जो [[कौरव|कौरवों]] और [[पांडव|पांडवों]] की राजधानी थी। इसका [[महाभारत]] में वर्णित अनेक घटनाओं से संबंध है। महाभारत से जुड़ी सारी घटनाएँ हस्तिनापुर में ही हुई थीं। अभी भी यहाँ महाभारत काल से जुड़े कुछ [[अवशेष]] मौजूद हैं। इनमें कौरवों-पांडवों के महलों और मंदिरों के अवशेष प्रमुख हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर को चक्रवर्ती सम्राट [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] की भी राजधानी माना जाता है। यहाँ स्थित 'पांडेश्वर महादेव मंदिर' की काफ़ी मान्यता है। कहा जाता है यह वही मंदिर है, जहाँ पांडवों की रानी [[द्रौपदी]] [[पूजा]] के लिए जाया करती थी। पौराणिक काल में हस्तिनापुर के राजा का नाम [[अधिसीम कृष्ण]] था।
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==स्थिति तथा स्थापना==
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[[मेरठ]] से 22 मील उत्तर-पूर्व में [[गंगा]] की प्राचीन धारा के किनारे हस्तिनापुर बसा हुआ है। हस्तिनापुर महाभारत के समय में कौरवों की वैभवशाली राजधानी के रूप में [[भारत]] भर में प्रसिद्ध था। प्राचीन नगर गंगा तट पर स्थित था, किन्तु अब नदी यहां से कई मील दूर हट गई है। गंगा की पुरानी धारा जिसे 'बूढ़ी गंगा' कहते हैं, यहां के प्राचीन टीलों के समीप बहती है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नगर की स्थापना पुरुवंशी वृहत्क्षत्र के पुत्र हस्तिन् ने की थी और उसी के नाम पर यह नगर हस्तिनापुर कहलाया। हस्तिन् के पश्चात् अजामीढ़, दक्ष, संवरण और [[कुरु]] क्रमानुसार हस्तिनापुर में राज्य करते रहे। कुरु के वंश में ही [[शांतनु]] और उनके पौत्र [[पांडु]] तथा [[धृतराष्ट्र]] हुए, जिनके पुत्र [[पाण्डव]] और [[कौरव]] कहलाए।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=1014|url=}}</ref>
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==इतिहास==
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महाभारतकालीन महानगरों की श्रेणी में हस्तिनापुर भी आता था। इसकी स्थापना 'हस्तिन्' नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी। इसीलिये इसे 'हस्तिनापुर' कहा जाता था। हस्तिनापुर में [[युधिष्ठिर]] जुए में द्रौपदी सहित अपना सब कुछ हार गए थे। पांडवों की ओर से शांतिदूत बनकर [[श्रीकृष्ण]] यहीं [[धृतराष्ट्र]] की सभा में आए थे। अपने पिता [[शांतनु]] की [[सत्यवती]] से [[विवाह]] करने की इच्छा पूरी करने के लिए [[भीष्म पितामह]] ने अपना उत्तराधिकार छोड़ने और आजीवन अविवाहित रहने का प्रण यहीं पर किया था। द्रौपदी से विवाह के बाद कुछ समय के लिए पांडवों ने [[दिल्ली]] के निकट [[इंद्रप्रस्थ]] को अपनी राजधानी बनाया था, किंतु महाभारत युद्ध के बाद उन्होंने हस्तिनापुर को ही राजधानी रखा।
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====विशाल नगर====
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महाभारत के युद्ध के समय हस्तिनापुर बड़ा विशाल नगर था। [[महाभारत आदिपर्व]] में इसका वर्णन इस प्रकार है-
  
[[महाभारत]] से जुड़ी सारी घटनाएं हस्तिनापुर में ही हुई थीं। अभी भी यहां महाभारत काल से जुड़े कुछ अवशेष मौजूद हैं। इनमें [[कौरव|कौरवों]]-[[पांडव|पांडवों]] के महलों और मंदिरों के अवशेष प्रमुख हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर को चक्रवर्ती सम्राट भरत की भी राजधानी माना जाता है। यहां स्थित पांडेश्वर [[महादेव]] मंदिर की  काफी मान्यता है। कहा जाता है यह वही मंदिर है, जहां पांडवों की रानी [[द्रौपदी]] पूजा के लिए जाया करती थी।
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<blockquote>'नगरं हास्तिनपुरं शनैः प्रविविशुस्तदा। पांडवानागतांञ्छ्रुत्वा त्वा नागरास्तु कुतूहालात्, मंडयांचकिरेतत्र नगरं नागसाह्वयम। मुक्तपुष्पावकीर्ण तज्जलसिक्तं तु सर्वश:, घूषितं दिव्यघूपेन मंडनैश्चापि संवृतम्। पताकोछ्रितमाल्यमं च पुरमप्रतिमंबभौ, शंबभेरीनिनादैश्चनागवादित्रनि:स्वनै:। कौतूहलेन नगरं दीप्यमानमिवाभवत, तत्र ते पुरुषव्याघ्रा: दु:खशोकविनाशना:।'<ref> महाभारत, आदिपर्व 206, 14-दाक्षिणात्य पाठ, 15</ref></blockquote>
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==महाभारतकालीन हस्तिनापुर==
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[[महाभारत]] में इस नगर का खुला वर्णन मिलता है। इसके अनुसार विभिन्न शस्त्रों द्वारा सुरक्षित होने के कारण इस पुर के भीतर शत्रुओं का प्रवेश दुष्कर था। नगर के परकोटे में बने गोपुर (दरवाज़े) ऊँचे थे। नगर का भीतरी भाग राजमार्गों द्वारा विभक्त था। सड़कों के दोनों किनारों पर महल और बाज़ार सुशोभित थे। राजमहल नगर के बीच में स्थित था। इसमें अनेक सरोवर और उद्यान थे। नागरिक धर्मनिरत, होमपरायण, यज्ञादि में श्रद्धा रखने वाले, वर्णाश्रम-व्यवस्था के पोषक और धन-धान्य से सम्पन्न थे। सूत-मागध और बन्दी अपने-अपने कर्म में निरत थे। इनके द्वारा नगर की शोभा इतनी बढ़ गई थी कि वह इन्द्रलोक के समान सुन्दर लगता था।
  
==प्रमुख जैन तीर्थ==
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कहा जाता है कि महाभारत के समय हस्तिनापुर राज्य की उत्तरी सीमा 'शुक्करताल' ([[मुज़फ़्फ़रनगर ज़िला]]), दक्षिणी सीमा 'पुष्पवटी'<ref>पूठ, [[बुलंदशहर ज़िला]])</ref> और पश्चिमी सीमा 'वारणावत<ref>=बरनावा, [[मेरठ ज़िला]]</ref> तक थी। पूर्व की ओर [[गंगा]] प्रवाहित होती थी। गढ़मुक्तेश्वर शायद यहां का एक उपनगर था और [[मेरठ]] या 'मयराष्ट्र' भी इसकी परिसीमा के भीतर स्थित था।<ref>दि मानुमेंटल एंटिविवटीज एण्ड इंसक्रिप्शंस ऑव एन डब्ल्यू प्राविंसेज, [[1891]]</ref> मेरठ से 15 मील उत्तर-पूर्व में स्थित 'मवाना' (मुहाना) नामक ग्राम को हस्तिनापुर का प्रमुख द्वार कहा जाता है।<ref>हस्तिनापुर, शिक्षा विभाग, [[उत्तर प्रदेश]], पृ. 2</ref> [[महाभारत आदिपर्व]]<ref>महाभारत आदिपर्व 125,9</ref> में हस्तिनापुर के वर्धमान नामक पुरद्वार का उल्लेख है। [[पांडु]] की मृत्यु के पश्चात् शतश्रंग से हस्तिनापुर आते समय [[कुंती]] अपने पुत्रों सहित इसी द्वार से राजधानी में प्रविष्ट हुईं थी<ref name="aa"/>-
[[जैन]] समुदाय के बीच हस्तिनापुर को एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहां जैन धर्म के कई तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। यही वजह है कि यहां काफी संख्या में जैन मंदिर मौजूद हैं। इनमें क़रीब 200 साल पुराना बड़ा मंदिर, जंबूद्वीप, कैलाश पर्वत, अष्टापद जी, कमल मंदिर और ध्यान मंदिर मुख्य हैं। प्राचीन बड़ा मंदिर में हस्तिनापुर की नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुई जिन प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। इन मंदिरों को काफी सुंदर और कलात्मक तरीके से बनाया गया है।
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==सिखों का पवित्र स्थान ==
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<blockquote>'सात्वदीर्घेण कालेन सम्प्राप्ता: कुरुजांगलम्, वर्धमानपुरद्वारमाससाद यश-स्विनी।'</blockquote>
हस्तिनापुर पहला ऐसा तीर्थस्थान है, जो हिंदू और जैनों के साथ सिखों का भी पवित्र तीर्थ है। हस्तिनापुर के पास ही स्थित सैफपुर सिख धर्म के पंच प्यारों में से एक भाई धर्मदास की जन्मस्थली है। देश भर के श्रद्धालु यहां स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने के लिए आते रहते हैं।
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==पुराण उल्लेख==
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[[पुराण|पुराणों]] में कहा गया है कि जब गंगा की [[बाढ़]] के कारण यह पुर विनष्ट हो गया, उस समय [[पाण्डव]] हस्तिनापुर को छोड़कर [[कौशाम्बी]] चले आये थे। यह घटना झूठी नहीं मानी जा सकती। हस्तिनापुर और कौशाम्बी में जो खुदाइयाँ हाल में हुई हैं, उनसे इसकी पुष्टि हो चुकी है। अब विद्वान इस बात को मानने लगे हैं कि गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को सचमुच ही किसी समय बहा दिया था। कौशाम्बी के कुछ प्राचीन बर्तन बनावट में हस्तिनापुर के बर्तनों के तुल्य हैं। इससे प्रमाणित होता है कि गंगा की बाढ़ के कारण पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी में बस गये थे। हस्तिनापुर की आधुनिक खुदाइयों ने वहाँ की प्राचीन कला और संस्कृति पर प्रकाश डाला है। वहाँ के नागरिक अपने बर्तनों पर भूरे [[रंग]] की पालिश चढ़ाते थे। यह प्रथा [[मथुरा]], [[इन्द्रप्रस्थ]] तथा महाभारतकालीन अन्य नगरों में भी प्रचलित थी। इससे सिद्ध होता है कि उनका सामाजिक जीवन एकाकी नहीं था। वे एक-दूसरे से कोई बहुत दूर भी नहीं थे। जलमार्ग से एक-दूसरे से वे लगे हुये थे, अत:एइन महापुरियों के निवासियों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध कोई अनहोनी बात नहीं मानी जा सकती।
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'[[विष्णुपुराण]] से ज्ञात होता है कि [[बलराम]] ने कौरवों पर क्रोध करके उनके नगर हस्तिनापुर को अपने हल की नोंक से खींच कर [[गंगा]] में गिराना चाहा था, किंतु पीछे उन्हें क्षमा कर दिया; किन्तु उसके पश्चात् हस्तिनापुर गंगा की ओर कुछ झुका हुआ-सा प्रतीत होने लगा था-
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<blockquote>'बलदेवस्ततोगत्वा नगरं नागसाहृयम् बाह्योपवनमध्येऽभून्नविवेशतत्पुरम्।'<ref>विष्णुपुराण 5,35,8</ref></blockquote>
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<blockquote>'अद्याप्याघूर्णिताकारं लक्ष्यते तत्गुरं द्विज, एष प्रभावो रामस्य बलशौयोलक्षणः।'<ref>विष्णुपुराण 5,35,37</ref></blockquote>
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इससे जान पड़ता है कि हस्तिनापुर को [[गंगा]] की धारा के भय कौरवों के समय में ही उत्पन्न हो गया था। [[परीक्षित]] के वंशज 'निचक्षु' या 'निचक्नु' के समय में तो वास्तव में ही गंगा ने हस्तिनापुर को बहा दिया और उसे इस नगर को छोड़कर वत्स देश की प्रसिद्ध नगरी [[कौशाम्बी]] में जाकर बसना पड़ा था-
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<blockquote>'अधिसीमकृष्णान्निचक्नुः यो गंगया पह्ते हस्तिनापुरे कौशम्बयां निवत्स्यति।'<ref>विष्णुपुराण 21,7-78; पार्जिटर-डायनेस्टजी ऑव दि कलि एज, पृ. 5</ref></blockquote>
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पुरातत्वों की खोजों से भी उपरोक्त तथ्य की पुष्टि होती है। उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की सर्वप्राचीन बस्ती 1000 ई. पूर्व से पहले की अवश्य थी और यह कई शतियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती 90 ई. पू. के लगभग बसाई गई थी, जो 300 ई. पू. के लगभग तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई. पू. से लगभग 200 ई. तक विद्धमान थी और अन्तिम 11वीं से 14वीं शती तक। इस प्रकार हस्तिनापुर का [[इतिहास]] कई बार बना और बिगड़ा।<ref name="aa"/>
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====विभिन्न नाम====
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परवर्ती काल में [[जैन धर्म]] के [[तीर्थ]] के रूप में इस नगर की ख्याति बनी रही। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] में इस नगर के 'हास्तिनापुर'<ref>[[पाणिनि]]  4, 2, 101</ref>, 'गजपुर', 'नागपुर', 'नागसाह्वय', '[[हस्तिग्राम]]', 'आसन्दीवत' और 'ब्रह्मस्थल' आदि नाम मिलते हैं। कहा जाता है कि [[हाथी|हाथियों]] के बहुतायत के कारण इस प्रदेश का प्रथम नाम 'गजपुर' था, पीछे राजा हस्तिन के नाम पर यह हस्तिनापुर कहलाया और [[महाभारत]] के युद्ध के पश्चात् यह नाग जाति का प्रमुख होने से 'नागपुर' या 'नागसाह्वय' कहलाया। ये सब [[पर्यायवाची शब्द|पर्यायवाची]] नाम हैं। 'आसंदीवत्' का [[बौद्ध साहित्य]]<ref>अवदान, 2 पृ. 359</ref> में उल्लेख है। संभव है '[[विष्णुपुराण]]' के उर्पयुक्त उल्लेख के अनुसार गंगा की ओर झुके होने के कारण ही यह नाम पड़ा हो।<ref>आसंदी = कुर्सी</ref> इस उल्लेख में इसे 'कुरुट्ठ'<ref>कुरुराष्ट्र</ref> की राजधानी बताया गया है। 'वसुदेव हिंडि' नामक [[ग्रंथ]] में 'ब्रह्मस्थल' नाम भी मिलता है। यह जैन ग्रंथ है।
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==कालीदास का उल्लेख==
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[[कालिदास]] ने '[[अभिज्ञान शाकुंतलम्]]' में [[दुष्यंत]] की राजधानी हस्तिनापुर का उल्लेख किया है। दुष्यंत से 'गंघर्व विवाह' होने के पश्चात् [[शकुंतला]] ऋषि कुमारों के साथ कण्वाश्रम से दुष्यंत की राजधानी हस्तिनापुर गई थी-
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<blockquote>'अनुसूये त्वरस्व, स्वरस्व, एतेखलु हस्तिनपुरगामिनः ऋषयः शब्दाय्यान्ते।'<ref>अंक 4</ref></blockquote>
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हस्तिनापुर के पूर्व की ओर [[गंगा]] के पार उस समय विस्तृत घना वन प्रदेश था, जहां दुष्यंत आखेट के लिए गया था और जहां मालिनी के तट पर कण्वाश्रम में उसकी भेंट शकुंतला से हुई थी। यह वन [[गढ़वाल]]<ref>पहले उत्तर प्रदेश का भाग</ref> की [[तराई]] क्षेत्र में स्थित था तथा इसका विस्तार [[बिजनौर]] तथा गढ़वाल के इलाके में था। वर्तमान हस्तिनापुर नामक [[ग्राम]] में, जो इसी नाम से आज तक प्रसिद्ध है, प्राचीन नगर के [[खंडहर]], ऊंचे-नीचे टीलों की श्रृंखलाओं के रूप में दूर-दूर तक फैले हैं। मुख्य टीला 'बिदुर का टीला' या 'उलटखेड़ा' कहलाता है। इसकी खुदाई से अनेक प्राचीन [[अवशेष]] प्रकाश में आये हैं।
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==जैन तीर्थ==
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जैन समुदाय के बीच हस्तिनापुर को एक प्रमुख [[तीर्थ]] माना जाता है। हस्तिनापुर जैन धर्मावलंबियों का भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहाँ [[जैन धर्म]] के कई [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] का जन्म हुआ था। यही वजह है कि यहाँ काफ़ी संख्या में जैन मंदिर मौजूद हैं। यहीं पर राजा श्रेयांस ने आदितीर्थकर [[ऋषभदेव]] को [[गन्ना|गन्ने]] के रस का दान दिया था। इसलिए इसको 'दानतीर्थ' कहते हैं। इसका संबंध [[शांतिनाथ]], [[कुन्थुनाथ]] और [[अरनाथ]] नामक तीर्थकरों से भी है। यहाँ भगवान शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ के चार-चार कल्याणक हुए हैं। यहाँ अनेक जैन धर्मशालाएं और मंदिर हैं। खुदाई में यहाँ अनेक प्राचीन खंडहर मिले हैं। इनमें क़रीब 200 साल पुराना बड़ा मंदिर, [[जंबूद्वीप]], [[कैलाश पर्वत]], अष्टापद जी, [[कमल मंदिर]] और ध्यान मंदिर मुख्य हैं। प्राचीन बड़ा मंदिर में हस्तिनापुर की नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुई जिन प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। इन मंदिरों को काफ़ी सुंदर और कलात्मक तरीक़े से बनाया गया है।
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जैन ग्रंथ 'विविधतीर्थकल्प' के अनुसार महाराज ऋषभदेव ने अपने सम्बंधी कुरु को [[कुरूक्षेत्र]] का राज्य दे दिया था। इन्हीं कुरु के पुत्र हस्ति ने हस्तिनापुर को भागीरथी के किनारे बसाया था। हस्तिनापुर में शान्ति, कुंधु और अरनाध तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। ये क्रमशः 16वें, 17वें और 18वें [[तीर्थंकर]] थे। 5वें, 6वें और 7वें तीर्थंकरों ने यहाँ [[कैवल्य ज्ञान]] प्राप्त किया था। हस्तिनापुर नरेश बाहुबली के पौत्र श्रेयांश के निवास स्थान पर ऋषभदेव ने प्रथम उपवास का पारण किया था। विष्रग कुमार नामक जैन साधु जिन्होंने नमुचि नामक दैत्य को वश में किया था, हस्तिनापुर ही के निवासी थे। इनके अतिरिक्त सनत्कुमार, महापद्म, सुभूभ और [[परशुराम]] का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था। यहाँ चार [[चैत्य गृह|चैत्यों]] का निर्माण किया गया था।<ref name="aa"/>
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====त्रिधर्म स्थल====
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हस्तिनापुर पहला ऐसा तीर्थ स्थान है, जो [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] और जैनों के साथ [[सिक्ख|सिक्खों]] का भी पवित्र तीर्थ है। हस्तिनापुर के पास ही स्थित 'सैफपुर' [[सिक्ख धर्म]] के [[पंच प्यारे|पंच प्यारों]] में से एक भाई धर्मदास की जन्मस्थली है। देश भर के श्रद्धालु यहाँ स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने के लिए आते रहते हैं।
 
==मेले==
 
==मेले==
हस्तिनापुर में साल में कई छोटे-बड़े मेले लगते हैं। इनमें [[अक्षय तृतीया]], [[होली]] और 2 अक्टूबर का मेला प्रमुख है। अक्षय तृतीया को देश भर से श्रद्धालु यहां भगवान को गन्ने के रस का आहार कराने के लिए आते हैं। अगर आपको होली के रंग पसंद नहीं आते, तो हस्तिनापुर आपके लिए इनसे बचने की एक बेहतरीन जगह साबित हो सकता है। दुल्हैंडी वाले दिन यहां लगने वाले मेले में देश भर से होली नहीं खेलने वाले लोग आते हैं। साथ ही 2 अक्टूबर को लगने वाले मेले में भी काफी भीड़ उमड़ती है।
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हस्तिनापुर में साल में कई छोटे-बड़े मेले लगते हैं। इनमें [[अक्षय तृतीया]], [[होली]] और [[2 अक्टूबर]] का मेला प्रमुख है। अक्षय तृतीया को देश भर से श्रद्धालु यहाँ भगवान को गन्ने के रस का आहार कराने के लिए आते हैं। यदि किसी को होली के [[रंग]] पसंद नहीं आते, तो हस्तिनापुर उनके लिए इनसे बचने की एक बेहतरीन जगह साबित हो सकता है। दुल्हैंडी वाले दिन यहाँ लगने वाले मेले में देश भर से होली नहीं खेलने वाले लोग आते हैं। साथ ही 2 अक्टूबर को लगने वाले मेले में भी काफ़ी भीड़ उमड़ती है।
 
 
  
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07:35, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश में मेरठ के निकट स्थित महाराज हस्ती का बसाया हुआ एक प्राचीन नगर, जो कौरवों और पांडवों की राजधानी थी। इसका महाभारत में वर्णित अनेक घटनाओं से संबंध है। महाभारत से जुड़ी सारी घटनाएँ हस्तिनापुर में ही हुई थीं। अभी भी यहाँ महाभारत काल से जुड़े कुछ अवशेष मौजूद हैं। इनमें कौरवों-पांडवों के महलों और मंदिरों के अवशेष प्रमुख हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर को चक्रवर्ती सम्राट भरत की भी राजधानी माना जाता है। यहाँ स्थित 'पांडेश्वर महादेव मंदिर' की काफ़ी मान्यता है। कहा जाता है यह वही मंदिर है, जहाँ पांडवों की रानी द्रौपदी पूजा के लिए जाया करती थी। पौराणिक काल में हस्तिनापुर के राजा का नाम अधिसीम कृष्ण था।

स्थिति तथा स्थापना

मेरठ से 22 मील उत्तर-पूर्व में गंगा की प्राचीन धारा के किनारे हस्तिनापुर बसा हुआ है। हस्तिनापुर महाभारत के समय में कौरवों की वैभवशाली राजधानी के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध था। प्राचीन नगर गंगा तट पर स्थित था, किन्तु अब नदी यहां से कई मील दूर हट गई है। गंगा की पुरानी धारा जिसे 'बूढ़ी गंगा' कहते हैं, यहां के प्राचीन टीलों के समीप बहती है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नगर की स्थापना पुरुवंशी वृहत्क्षत्र के पुत्र हस्तिन् ने की थी और उसी के नाम पर यह नगर हस्तिनापुर कहलाया। हस्तिन् के पश्चात् अजामीढ़, दक्ष, संवरण और कुरु क्रमानुसार हस्तिनापुर में राज्य करते रहे। कुरु के वंश में ही शांतनु और उनके पौत्र पांडु तथा धृतराष्ट्र हुए, जिनके पुत्र पाण्डव और कौरव कहलाए।[1]

इतिहास

महाभारतकालीन महानगरों की श्रेणी में हस्तिनापुर भी आता था। इसकी स्थापना 'हस्तिन्' नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी। इसीलिये इसे 'हस्तिनापुर' कहा जाता था। हस्तिनापुर में युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी सहित अपना सब कुछ हार गए थे। पांडवों की ओर से शांतिदूत बनकर श्रीकृष्ण यहीं धृतराष्ट्र की सभा में आए थे। अपने पिता शांतनु की सत्यवती से विवाह करने की इच्छा पूरी करने के लिए भीष्म पितामह ने अपना उत्तराधिकार छोड़ने और आजीवन अविवाहित रहने का प्रण यहीं पर किया था। द्रौपदी से विवाह के बाद कुछ समय के लिए पांडवों ने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाया था, किंतु महाभारत युद्ध के बाद उन्होंने हस्तिनापुर को ही राजधानी रखा।

विशाल नगर

महाभारत के युद्ध के समय हस्तिनापुर बड़ा विशाल नगर था। महाभारत आदिपर्व में इसका वर्णन इस प्रकार है-

'नगरं हास्तिनपुरं शनैः प्रविविशुस्तदा। पांडवानागतांञ्छ्रुत्वा त्वा नागरास्तु कुतूहालात्, मंडयांचकिरेतत्र नगरं नागसाह्वयम। मुक्तपुष्पावकीर्ण तज्जलसिक्तं तु सर्वश:, घूषितं दिव्यघूपेन मंडनैश्चापि संवृतम्। पताकोछ्रितमाल्यमं च पुरमप्रतिमंबभौ, शंबभेरीनिनादैश्चनागवादित्रनि:स्वनै:। कौतूहलेन नगरं दीप्यमानमिवाभवत, तत्र ते पुरुषव्याघ्रा: दु:खशोकविनाशना:।'[2]

महाभारतकालीन हस्तिनापुर

महाभारत में इस नगर का खुला वर्णन मिलता है। इसके अनुसार विभिन्न शस्त्रों द्वारा सुरक्षित होने के कारण इस पुर के भीतर शत्रुओं का प्रवेश दुष्कर था। नगर के परकोटे में बने गोपुर (दरवाज़े) ऊँचे थे। नगर का भीतरी भाग राजमार्गों द्वारा विभक्त था। सड़कों के दोनों किनारों पर महल और बाज़ार सुशोभित थे। राजमहल नगर के बीच में स्थित था। इसमें अनेक सरोवर और उद्यान थे। नागरिक धर्मनिरत, होमपरायण, यज्ञादि में श्रद्धा रखने वाले, वर्णाश्रम-व्यवस्था के पोषक और धन-धान्य से सम्पन्न थे। सूत-मागध और बन्दी अपने-अपने कर्म में निरत थे। इनके द्वारा नगर की शोभा इतनी बढ़ गई थी कि वह इन्द्रलोक के समान सुन्दर लगता था।

कहा जाता है कि महाभारत के समय हस्तिनापुर राज्य की उत्तरी सीमा 'शुक्करताल' (मुज़फ़्फ़रनगर ज़िला), दक्षिणी सीमा 'पुष्पवटी'[3] और पश्चिमी सीमा 'वारणावत[4] तक थी। पूर्व की ओर गंगा प्रवाहित होती थी। गढ़मुक्तेश्वर शायद यहां का एक उपनगर था और मेरठ या 'मयराष्ट्र' भी इसकी परिसीमा के भीतर स्थित था।[5] मेरठ से 15 मील उत्तर-पूर्व में स्थित 'मवाना' (मुहाना) नामक ग्राम को हस्तिनापुर का प्रमुख द्वार कहा जाता है।[6] महाभारत आदिपर्व[7] में हस्तिनापुर के वर्धमान नामक पुरद्वार का उल्लेख है। पांडु की मृत्यु के पश्चात् शतश्रंग से हस्तिनापुर आते समय कुंती अपने पुत्रों सहित इसी द्वार से राजधानी में प्रविष्ट हुईं थी[1]-

'सात्वदीर्घेण कालेन सम्प्राप्ता: कुरुजांगलम्, वर्धमानपुरद्वारमाससाद यश-स्विनी।'

पुराण उल्लेख

पुराणों में कहा गया है कि जब गंगा की बाढ़ के कारण यह पुर विनष्ट हो गया, उस समय पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी चले आये थे। यह घटना झूठी नहीं मानी जा सकती। हस्तिनापुर और कौशाम्बी में जो खुदाइयाँ हाल में हुई हैं, उनसे इसकी पुष्टि हो चुकी है। अब विद्वान इस बात को मानने लगे हैं कि गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को सचमुच ही किसी समय बहा दिया था। कौशाम्बी के कुछ प्राचीन बर्तन बनावट में हस्तिनापुर के बर्तनों के तुल्य हैं। इससे प्रमाणित होता है कि गंगा की बाढ़ के कारण पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी में बस गये थे। हस्तिनापुर की आधुनिक खुदाइयों ने वहाँ की प्राचीन कला और संस्कृति पर प्रकाश डाला है। वहाँ के नागरिक अपने बर्तनों पर भूरे रंग की पालिश चढ़ाते थे। यह प्रथा मथुरा, इन्द्रप्रस्थ तथा महाभारतकालीन अन्य नगरों में भी प्रचलित थी। इससे सिद्ध होता है कि उनका सामाजिक जीवन एकाकी नहीं था। वे एक-दूसरे से कोई बहुत दूर भी नहीं थे। जलमार्ग से एक-दूसरे से वे लगे हुये थे, अत:एइन महापुरियों के निवासियों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध कोई अनहोनी बात नहीं मानी जा सकती।

'विष्णुपुराण से ज्ञात होता है कि बलराम ने कौरवों पर क्रोध करके उनके नगर हस्तिनापुर को अपने हल की नोंक से खींच कर गंगा में गिराना चाहा था, किंतु पीछे उन्हें क्षमा कर दिया; किन्तु उसके पश्चात् हस्तिनापुर गंगा की ओर कुछ झुका हुआ-सा प्रतीत होने लगा था-

'बलदेवस्ततोगत्वा नगरं नागसाहृयम् बाह्योपवनमध्येऽभून्नविवेशतत्पुरम्।'[8]

'अद्याप्याघूर्णिताकारं लक्ष्यते तत्गुरं द्विज, एष प्रभावो रामस्य बलशौयोलक्षणः।'[9]

इससे जान पड़ता है कि हस्तिनापुर को गंगा की धारा के भय कौरवों के समय में ही उत्पन्न हो गया था। परीक्षित के वंशज 'निचक्षु' या 'निचक्नु' के समय में तो वास्तव में ही गंगा ने हस्तिनापुर को बहा दिया और उसे इस नगर को छोड़कर वत्स देश की प्रसिद्ध नगरी कौशाम्बी में जाकर बसना पड़ा था-

'अधिसीमकृष्णान्निचक्नुः यो गंगया पह्ते हस्तिनापुरे कौशम्बयां निवत्स्यति।'[10]

पुरातत्वों की खोजों से भी उपरोक्त तथ्य की पुष्टि होती है। उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की सर्वप्राचीन बस्ती 1000 ई. पूर्व से पहले की अवश्य थी और यह कई शतियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती 90 ई. पू. के लगभग बसाई गई थी, जो 300 ई. पू. के लगभग तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई. पू. से लगभग 200 ई. तक विद्धमान थी और अन्तिम 11वीं से 14वीं शती तक। इस प्रकार हस्तिनापुर का इतिहास कई बार बना और बिगड़ा।[1]

विभिन्न नाम

परवर्ती काल में जैन धर्म के तीर्थ के रूप में इस नगर की ख्याति बनी रही। प्राचीन संस्कृत साहित्य में इस नगर के 'हास्तिनापुर'[11], 'गजपुर', 'नागपुर', 'नागसाह्वय', 'हस्तिग्राम', 'आसन्दीवत' और 'ब्रह्मस्थल' आदि नाम मिलते हैं। कहा जाता है कि हाथियों के बहुतायत के कारण इस प्रदेश का प्रथम नाम 'गजपुर' था, पीछे राजा हस्तिन के नाम पर यह हस्तिनापुर कहलाया और महाभारत के युद्ध के पश्चात् यह नाग जाति का प्रमुख होने से 'नागपुर' या 'नागसाह्वय' कहलाया। ये सब पर्यायवाची नाम हैं। 'आसंदीवत्' का बौद्ध साहित्य[12] में उल्लेख है। संभव है 'विष्णुपुराण' के उर्पयुक्त उल्लेख के अनुसार गंगा की ओर झुके होने के कारण ही यह नाम पड़ा हो।[13] इस उल्लेख में इसे 'कुरुट्ठ'[14] की राजधानी बताया गया है। 'वसुदेव हिंडि' नामक ग्रंथ में 'ब्रह्मस्थल' नाम भी मिलता है। यह जैन ग्रंथ है।

कालीदास का उल्लेख

कालिदास ने 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' में दुष्यंत की राजधानी हस्तिनापुर का उल्लेख किया है। दुष्यंत से 'गंघर्व विवाह' होने के पश्चात् शकुंतला ऋषि कुमारों के साथ कण्वाश्रम से दुष्यंत की राजधानी हस्तिनापुर गई थी-

'अनुसूये त्वरस्व, स्वरस्व, एतेखलु हस्तिनपुरगामिनः ऋषयः शब्दाय्यान्ते।'[15]

हस्तिनापुर के पूर्व की ओर गंगा के पार उस समय विस्तृत घना वन प्रदेश था, जहां दुष्यंत आखेट के लिए गया था और जहां मालिनी के तट पर कण्वाश्रम में उसकी भेंट शकुंतला से हुई थी। यह वन गढ़वाल[16] की तराई क्षेत्र में स्थित था तथा इसका विस्तार बिजनौर तथा गढ़वाल के इलाके में था। वर्तमान हस्तिनापुर नामक ग्राम में, जो इसी नाम से आज तक प्रसिद्ध है, प्राचीन नगर के खंडहर, ऊंचे-नीचे टीलों की श्रृंखलाओं के रूप में दूर-दूर तक फैले हैं। मुख्य टीला 'बिदुर का टीला' या 'उलटखेड़ा' कहलाता है। इसकी खुदाई से अनेक प्राचीन अवशेष प्रकाश में आये हैं।

जैन तीर्थ

जैन समुदाय के बीच हस्तिनापुर को एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। हस्तिनापुर जैन धर्मावलंबियों का भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहाँ जैन धर्म के कई तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। यही वजह है कि यहाँ काफ़ी संख्या में जैन मंदिर मौजूद हैं। यहीं पर राजा श्रेयांस ने आदितीर्थकर ऋषभदेव को गन्ने के रस का दान दिया था। इसलिए इसको 'दानतीर्थ' कहते हैं। इसका संबंध शांतिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ नामक तीर्थकरों से भी है। यहाँ भगवान शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ के चार-चार कल्याणक हुए हैं। यहाँ अनेक जैन धर्मशालाएं और मंदिर हैं। खुदाई में यहाँ अनेक प्राचीन खंडहर मिले हैं। इनमें क़रीब 200 साल पुराना बड़ा मंदिर, जंबूद्वीप, कैलाश पर्वत, अष्टापद जी, कमल मंदिर और ध्यान मंदिर मुख्य हैं। प्राचीन बड़ा मंदिर में हस्तिनापुर की नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुई जिन प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। इन मंदिरों को काफ़ी सुंदर और कलात्मक तरीक़े से बनाया गया है।

जैन ग्रंथ 'विविधतीर्थकल्प' के अनुसार महाराज ऋषभदेव ने अपने सम्बंधी कुरु को कुरूक्षेत्र का राज्य दे दिया था। इन्हीं कुरु के पुत्र हस्ति ने हस्तिनापुर को भागीरथी के किनारे बसाया था। हस्तिनापुर में शान्ति, कुंधु और अरनाध तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। ये क्रमशः 16वें, 17वें और 18वें तीर्थंकर थे। 5वें, 6वें और 7वें तीर्थंकरों ने यहाँ कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था। हस्तिनापुर नरेश बाहुबली के पौत्र श्रेयांश के निवास स्थान पर ऋषभदेव ने प्रथम उपवास का पारण किया था। विष्रग कुमार नामक जैन साधु जिन्होंने नमुचि नामक दैत्य को वश में किया था, हस्तिनापुर ही के निवासी थे। इनके अतिरिक्त सनत्कुमार, महापद्म, सुभूभ और परशुराम का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था। यहाँ चार चैत्यों का निर्माण किया गया था।[1]

त्रिधर्म स्थल

हस्तिनापुर पहला ऐसा तीर्थ स्थान है, जो हिन्दू और जैनों के साथ सिक्खों का भी पवित्र तीर्थ है। हस्तिनापुर के पास ही स्थित 'सैफपुर' सिक्ख धर्म के पंच प्यारों में से एक भाई धर्मदास की जन्मस्थली है। देश भर के श्रद्धालु यहाँ स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने के लिए आते रहते हैं।

मेले

हस्तिनापुर में साल में कई छोटे-बड़े मेले लगते हैं। इनमें अक्षय तृतीया, होली और 2 अक्टूबर का मेला प्रमुख है। अक्षय तृतीया को देश भर से श्रद्धालु यहाँ भगवान को गन्ने के रस का आहार कराने के लिए आते हैं। यदि किसी को होली के रंग पसंद नहीं आते, तो हस्तिनापुर उनके लिए इनसे बचने की एक बेहतरीन जगह साबित हो सकता है। दुल्हैंडी वाले दिन यहाँ लगने वाले मेले में देश भर से होली नहीं खेलने वाले लोग आते हैं। साथ ही 2 अक्टूबर को लगने वाले मेले में भी काफ़ी भीड़ उमड़ती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 1014 |
  2. महाभारत, आदिपर्व 206, 14-दाक्षिणात्य पाठ, 15
  3. पूठ, बुलंदशहर ज़िला)
  4. =बरनावा, मेरठ ज़िला
  5. दि मानुमेंटल एंटिविवटीज एण्ड इंसक्रिप्शंस ऑव एन डब्ल्यू प्राविंसेज, 1891
  6. हस्तिनापुर, शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश, पृ. 2
  7. महाभारत आदिपर्व 125,9
  8. विष्णुपुराण 5,35,8
  9. विष्णुपुराण 5,35,37
  10. विष्णुपुराण 21,7-78; पार्जिटर-डायनेस्टजी ऑव दि कलि एज, पृ. 5
  11. पाणिनि 4, 2, 101
  12. अवदान, 2 पृ. 359
  13. आसंदी = कुर्सी
  14. कुरुराष्ट्र
  15. अंक 4
  16. पहले उत्तर प्रदेश का भाग

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