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*एक बार अलंबुषा [[ब्रह्मा]] के लोक में नृत्य कर रही थी, तब विधूम नामक एक [[गन्धर्व]] उसे देखकर मुग्ध हो गया। कामातुर हो दोनों ही ब्रह्मा, [[इन्द्र]] आदि देवताओं की उपस्थिति भूलकर अवांछनीय चेष्टाएँ करने लगे। फलत: ब्रह्मा<ref>मतांतर से [[इन्द्र]]</ref> ने उन्हें मनुष्य होने का शाप दे डाला।
 
*एक बार अलंबुषा [[ब्रह्मा]] के लोक में नृत्य कर रही थी, तब विधूम नामक एक [[गन्धर्व]] उसे देखकर मुग्ध हो गया। कामातुर हो दोनों ही ब्रह्मा, [[इन्द्र]] आदि देवताओं की उपस्थिति भूलकर अवांछनीय चेष्टाएँ करने लगे। फलत: ब्रह्मा<ref>मतांतर से [[इन्द्र]]</ref> ने उन्हें मनुष्य होने का शाप दे डाला।
 
*कालांतर में अलंबुषा राजा कृतवर्मा के वंश में मृगावती हुई और विधूम पाण्डव कुल में सहस्रानीक हुआ। दोनों का [[विवाह]] हो गया।
 
*कालांतर में अलंबुषा राजा कृतवर्मा के वंश में मृगावती हुई और विधूम पाण्डव कुल में सहस्रानीक हुआ। दोनों का [[विवाह]] हो गया।
*मृगावती की गर्भावस्था में नररक्त से स्नान करने का दोहद<ref>गर्भवती की इच्छा</ref> हुआ। स्नानोत्तर कोई पक्षी उसे मांसपिण्ड समझकर ले उड़ा। उसकी रक्षा एक दिव्य पुरुष ने की और उस पुरुष ने उसे उदयगिरि में [[जमदग्नि]] के आश्रम में रखा। उससे तेजस्वी उदयन की उत्पत्ति हुई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=26|url=}}</ref>
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*मृगावती की गर्भावस्था में नररक्त से स्नान करने का दोहद<ref>गर्भवती स्त्री की इच्छा, प्रबल अभिलाषा</ref> हुआ। स्नानोत्तर कोई पक्षी उसे मांसपिण्ड समझकर ले उड़ा। उसकी रक्षा एक दिव्य पुरुष ने की और उस पुरुष ने उसे उदयगिरि में [[जमदग्नि]] के आश्रम में रखा। उससे तेजस्वी उदयन की उत्पत्ति हुई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=26|url=}}</ref>
 
*एक दिन एक सँपेरे को [[साँप]] पकड़ते देखकर उदयन ने मदारी को अपनी [[माँ]] का कंगन प्रदान कर सर्प को छुड़ा दिया। कंगन लिए हुए मदारी सहस्रानीक के राज्य में पहुँचा, जहाँ वह उसका विक्रय करते हुए पकड़ा गया।
 
*एक दिन एक सँपेरे को [[साँप]] पकड़ते देखकर उदयन ने मदारी को अपनी [[माँ]] का कंगन प्रदान कर सर्प को छुड़ा दिया। कंगन लिए हुए मदारी सहस्रानीक के राज्य में पहुँचा, जहाँ वह उसका विक्रय करते हुए पकड़ा गया।
 
*14 वर्षों की अवधि के बाद रानी का पता पाकर सहस्रानीक उससे उदयनगिरि में जा मिला। वियोग का कारण तिलोत्तमा का शाप था।
 
*14 वर्षों की अवधि के बाद रानी का पता पाकर सहस्रानीक उससे उदयनगिरि में जा मिला। वियोग का कारण तिलोत्तमा का शाप था।

13:04, 5 मार्च 2015 का अवतरण

अलंबुषा सौन्दर्य तथा नृत्य कला में बेजोड़ एक देवांगना थी। ब्रह्मा ने इसे और विधूम नामक एक गन्धर्व को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दिया था।

  • एक बार अलंबुषा ब्रह्मा के लोक में नृत्य कर रही थी, तब विधूम नामक एक गन्धर्व उसे देखकर मुग्ध हो गया। कामातुर हो दोनों ही ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवताओं की उपस्थिति भूलकर अवांछनीय चेष्टाएँ करने लगे। फलत: ब्रह्मा[1] ने उन्हें मनुष्य होने का शाप दे डाला।
  • कालांतर में अलंबुषा राजा कृतवर्मा के वंश में मृगावती हुई और विधूम पाण्डव कुल में सहस्रानीक हुआ। दोनों का विवाह हो गया।
  • मृगावती की गर्भावस्था में नररक्त से स्नान करने का दोहद[2] हुआ। स्नानोत्तर कोई पक्षी उसे मांसपिण्ड समझकर ले उड़ा। उसकी रक्षा एक दिव्य पुरुष ने की और उस पुरुष ने उसे उदयगिरि में जमदग्नि के आश्रम में रखा। उससे तेजस्वी उदयन की उत्पत्ति हुई।[3]
  • एक दिन एक सँपेरे को साँप पकड़ते देखकर उदयन ने मदारी को अपनी माँ का कंगन प्रदान कर सर्प को छुड़ा दिया। कंगन लिए हुए मदारी सहस्रानीक के राज्य में पहुँचा, जहाँ वह उसका विक्रय करते हुए पकड़ा गया।
  • 14 वर्षों की अवधि के बाद रानी का पता पाकर सहस्रानीक उससे उदयनगिरि में जा मिला। वियोग का कारण तिलोत्तमा का शाप था।
  • उदयन को राज्य भार देकर मृगावती और सहस्रानीक ने चक्रतीर्थ में स्नान किया और शापमुक्त होकर पूर्ण योनियाँ प्राप्त कीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मतांतर से इन्द्र
  2. गर्भवती स्त्री की इच्छा, प्रबल अभिलाषा
  3. हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 26 |

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