"अव्यंग सप्तमी" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
शिल्पी गोयल (चर्चा | योगदान) छो (अव्यंगसप्तमी का नाम बदलकर अव्यंग सप्तमी कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
*इस व्रत में [[सूर्य देव|सूर्य]] को अव्यंग दिया जाता है। | *इस व्रत में [[सूर्य देव|सूर्य]] को अव्यंग दिया जाता है। | ||
*ऐसी मान्यता है कि अव्यंग एक छिछला (पुटाकार) वस्त्रखण्ड, जो कपास की रुई के सूत से बना होता है, जो [[सर्प]] के फण के समान होता है, और 122 अंगुल लम्बा (उत्तम) या 120 अंगुल लम्बा (मध्यम) या 108 अंगुल लम्बा होता है। | *ऐसी मान्यता है कि अव्यंग एक छिछला (पुटाकार) वस्त्रखण्ड, जो कपास की रुई के सूत से बना होता है, जो [[सर्प]] के फण के समान होता है, और 122 अंगुल लम्बा (उत्तम) या 120 अंगुल लम्बा (मध्यम) या 108 अंगुल लम्बा होता है। | ||
− | *यह आधुनिक [[पारसी धर्म|पारसियों]] के द्वारा पहनी जाने वाली कुरती के समान होता है। भविष्योत्तर पुराण <ref>(ब्राह्मणपर्व के 3, 1-8); | + | *यह आधुनिक [[पारसी धर्म|पारसियों]] के द्वारा पहनी जाने वाली कुरती के समान होता है। भविष्योत्तर पुराण<ref>(ब्राह्मणपर्व के 3, 1-8); भविष्य॰ (ब्राह्मणपर्व 142|1-29)</ref> में अव्यंगोत्पत्ति की कथा है। |
*18वें [[श्लोक]] में 'शारसनः' शब्द आया है जो 'सारसेन' (एक [[मुसलमान|मुस्लिम]] जाति) का स्मरण दिलाता है। | *18वें [[श्लोक]] में 'शारसनः' शब्द आया है जो 'सारसेन' (एक [[मुसलमान|मुस्लिम]] जाति) का स्मरण दिलाता है। | ||
*ऐसी मान्यता है कि यह जेन्द अवेस्ता (पारसियों के धार्मिक ग्रन्थ) के 'ऐव्यंघन' (मेखला या करधनी) का रूपान्तर है। | *ऐसी मान्यता है कि यह जेन्द अवेस्ता (पारसियों के धार्मिक ग्रन्थ) के 'ऐव्यंघन' (मेखला या करधनी) का रूपान्तर है। | ||
*ऐसी मान्यता है कि यह विधि पारसियों से उधार ली हुई है। | *ऐसी मान्यता है कि यह विधि पारसियों से उधार ली हुई है। | ||
− | *बृहत्संहिता <ref>(बृहत्संहिता 59|19)</ref> में आया है कि सविता के पुरोहितों को मग या शाकद्वीपीय [[ब्राह्मण]] होना चाहिए। | + | *बृहत्संहिता<ref>(बृहत्संहिता 59|19)</ref> में आया है कि सविता के पुरोहितों को मग या शाकद्वीपीय [[ब्राह्मण]] होना चाहिए। |
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति |
05:03, 11 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- श्रावण शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अव्यंगसप्तमी प्रतिवर्ष सम्पादित की जाने वाली है।
- इस व्रत में सूर्य को अव्यंग दिया जाता है।
- ऐसी मान्यता है कि अव्यंग एक छिछला (पुटाकार) वस्त्रखण्ड, जो कपास की रुई के सूत से बना होता है, जो सर्प के फण के समान होता है, और 122 अंगुल लम्बा (उत्तम) या 120 अंगुल लम्बा (मध्यम) या 108 अंगुल लम्बा होता है।
- यह आधुनिक पारसियों के द्वारा पहनी जाने वाली कुरती के समान होता है। भविष्योत्तर पुराण[1] में अव्यंगोत्पत्ति की कथा है।
- 18वें श्लोक में 'शारसनः' शब्द आया है जो 'सारसेन' (एक मुस्लिम जाति) का स्मरण दिलाता है।
- ऐसी मान्यता है कि यह जेन्द अवेस्ता (पारसियों के धार्मिक ग्रन्थ) के 'ऐव्यंघन' (मेखला या करधनी) का रूपान्तर है।
- ऐसी मान्यता है कि यह विधि पारसियों से उधार ली हुई है।
- बृहत्संहिता[2] में आया है कि सविता के पुरोहितों को मग या शाकद्वीपीय ब्राह्मण होना चाहिए।
|
|
|
|
|