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[[राजस्थान]] के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल [[माउण्ट आबू]] से 6 किलोमीटर दक्षिण में [[अहमदाबाद]] मार्ग पर ध्वस्त चन्द्रावती नगरी परमार शासकों की राजधानी होने के कारण 11वीं-12वीं सदी में बहुत समृद्ध थी। विद्धानों के अनुसार चन्द्रावती नगरी [[लंका]] के समान वैभवशाली थी। चन्द्रावती के आस-पास के खण्डहरों को देखकर डॉ. भण्डारकर ने यहाँ कम से कम 360 जैन मंदिरों के अस्तित्व की सम्भावना व्यक्त की है। संवत 1503 में सोमधर्म रचित ‘उपदेश सप्तसति’ ग्रंथ में चन्द्रावती के 444 जैन मंदिर तथा 999 शेष मंदिरों का उल्लेख है। परमार शासकों की राजधानी में यशोधवल एवं धारावर्ष प्रतापी राजा हुए, जिनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। 1303 ई. तक यहाँ परमार शासन रहा। 1311 ई. में राव लूमा ने इस पर अधिकार कर परमार शासन परम्परा को खत्म कर दिया। [[दिल्ली]]- [[गुजरात]] के मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण यह समृद्धशाली नगरी मुस्लिम आक्रांताओं द्धारा अनेकों बार लूटी गई। गुजरात के सुलतान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने [[चित्तौड़]] विजय से लौटते समय इस नगरी को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है।  
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'''चन्द्रावती नगरी''' [[राजस्थान]] के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल [[माउण्ट आबू]] से 6 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में है। ध्वस्त हो चुकी यह नगरी [[अहमदाबाद]] मार्ग पर [[परमार वंश|परमार]] शासकों की राजधानी होने के कारण 11वीं-12वीं [[सदी]] में बहुत समृद्ध थी। विद्धानों के अनुसार चन्द्रावती नगरी [[लंका]] के समान वैभवशाली थी। चन्द्रावती के आस-पास के खण्डहरों को देखकर डॉ. भण्डारकर ने यहाँ कम से कम 360 [[जैन]] मंदिरों के अस्तित्व की सम्भावना व्यक्त की है।
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==इतिहास==
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[[संवत]] 1503 में सोमधर्म रचित 'उपदेश सप्तसति' [[ग्रंथ]] में चन्द्रावती के 444 जैन मंदिर तथा 999 शेष मंदिरों का उल्लेख है। परमार शासकों की राजधानी में यशोधवल एवं धारावर्ष प्रतापी राजा हुए हैं, जिनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। 1303 ई. तक यहाँ परमार शासकों का शासन रहा था। 1311 ई. में राव लूमा ने इस पर अधिकार कर परमार शासन परम्परा को खत्म कर दिया। [[दिल्ली]]-[[गुजरात]] के मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण यह समृद्धशाली नगरी [[मुस्लिम]] आक्रांताओं द्वारा अनेकों बार लूटी गई। गुजरात के सुल्तान [[बहादुरशाह]] (1405-1442ई.) ने [[चित्तौड़]] की विजय से लौटते समय इस नगरी को [[आँख|आँखों]] से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है।
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====टॉड का वर्णन====
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[[कर्नल टॉड|टॉड]] के अनुसार यहाँ विभिन्न आकार-प्रकार वाली बीस इमारतें थीं। यहाँ पर मिली 138 मूर्तियों में 'त्रयम्बक' (तीन मुँह वाली आकृति) घुटने पर स्त्री बैठी हुई, बीस भुजाओं वाले [[शिव]], जिनके बाईं ओर एक महिष है और दाहिना पैर उठाकर [[गरुड़]] जैसी आकृति पर रखा हुआ है। एक महाकाल की बीस भुजाओं की प्रतिमा भी मिली है। टॉड ने मंदिर के भीतरी भाग और मध्य के गुम्बद की कलाकारी को बारीक एवं उच्च कोटि का बताया है।
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==पुरातत्त्व स्थल==
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यह ध्वस्त नगरी इतिहासकारों एवं पुरातत्त्वेत्ताओं के लिए रोचक एवं खोज के उपयुक्त स्थल के रूप में आज विद्यमान है। यहाँ के टीलों में अनेकों मूर्तियाँ अभी भी दबी पड़ी हैं। वर्तमान में ऐतिहासिक नगरी ध्वस्त क्षेत्र की तारबन्दी की हुई है। यहाँ खुले में सैकड़ों खण्डित प्रतिमाएँ, स्तम्भ, कलश, बेलबूटेदार, पत्थर, गुम्बद, ईटों के टुकड़े इत्यादि इन टीलों के पास बिखरे पड़े हैं। यहाँ के क़रीब 20 बड़े-बड़े टीलों को देखने पर लगता है कि यहाँ अनेक मंदिर [[विष्णु]] एवं [[शिव]] के रहे हैं। यहाँ पर अनेक खण्डित प्रतिमाएँ मिली है, जिसमें [[गणेश]] की खड़ी हुई प्रतिमा, [[ब्रह्मा]] प्रतिमा, देवी प्रतिमा, रणभैरी से सम्बन्धित पत्थर लेख, [[कुबेर]] की खण्डित प्रतिमा, जो अन्दर से खोखली है।
  
'''[[कर्नल टॉड|टॉड]] के अनुसार'''- यहाँ विभिन्न आकार-प्रकार वाली बीस इमारतें थीं। यहाँ पर मिली 138 मूर्तियों में [[त्रयम्बक]] (तीन मुँह वाली आकृति) घुटने पर स्त्री बैठी हुई, बीस भुजाओं वाले [[शिव]], जिनके बाईं ओर एक महिष है और दाहिना पैर उठाकर [[गरुड़]] जैसी आकृति पर रखा हुआ है। एक महाकाल की बीस भुजाओं की प्रतिमा भी मिली है। टॉड ने मंदिर के भीतरी भाग और मध्य के गुम्बद की कलाकारी को बारीक एवं उच्च कोटि क़ा बताया है।  
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इस प्रकार की प्रतिमाएँ मदिंर में दान-भेट डालने के लिए रखी जाती थीं। काम-कला से सम्बन्धित कुछ खण्डित मूर्तियाँ भी ध्वस्त मंदिर के गर्भगृह के बाहर बारीकी से उत्कीर्ण हैं। ध्वस्त मंदिर के फाउंडेशन पर जानवरों, [[गन्धर्व|गन्धर्वों]], [[अप्सरा|अप्सराओं]] की मैथुन क्रियाओं आदि से सम्बन्धित कुछ मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इस ध्वस्त क्षेत्र के लिए ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने जब रेलमार्ग बिछाया था, तब यहाँ के उत्कीर्ण पत्थरों को पटरियों के नीचे बिछा दिया तथा अधिकांश मूर्तियों को तस्कर और चोर उठाकर ले गये। वर्तमान में चन्द्रावती के ध्वस्त टीलों में हमारी [[कला]] और [[संस्कृति]] की भावी सम्भावना नज़र आती है।
  
यह ध्वस्त नगरी इतिहासविज्ञों एवं पुरातत्वेत्ताओं के लिए रोचक एवं खोज के उपयुक्त स्थल के रूप में आज विद्यमान है। यहाँ के टीलों में अनेकों मूर्तियाँ अभी भी दबी पड़ी हैं। वर्तमान में ऐतिहासिक नगरी ध्वस्त क्षेत्र की तारबन्दी की हुई है। यहाँ खुले में सैकड़ों खण्डित प्रतिमाएँ, स्तम्भ, कलश, बेलबूटेदार, पत्थर, गुम्बद, ईटों के टुकड़े इत्यादि इन टीलों के पास बिखरे पड़े हैं। यहाँ के क़रीब 20 बड़े-बड़े टीलों को देखने पर लगता है कि यहाँ अनेक मंदिर [[विष्णु]] एवं शैव के रहे हैं। यहाँ पर अनेक खण्डित प्रतिमाएँ मिली है। जिसमें [[गणेश]] की खड़ी हुई प्रतिमा, [[ब्रह्मा]] प्रतिमा, देवी प्रतिमा, रणभैरी से सम्बन्धित पत्थर लेख, [[कुबेर]] की खण्डित प्रतिमा, जो अन्दर से खोखली है। इस प्रकार की प्रतिमाएँ मदिंर में दान- भेट डालने के लिए रखी जाती थीं। काम- कला से सम्बन्धित कुछ खण्डित मूर्तियाँ भी ध्वस्त मंदिर के गर्भगृह के बाहर बारीकी से उत्कीर्ण हैं। ध्वस्त मंदिर के फाउंडेशन पर जानवरों, गन्धर्वों, अप्सराओं मैथुन क्रियाओं आदि से सम्बन्धित कुछ मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। एक ध्वस्त क्षेत्र के लिए ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने जब रेलमार्ग बिछाया था तब यहाँ के उत्कीर्ण पत्थरों को पटरियों के नीचे बिछा दिया तथा अधिकांश मूर्तियों को तस्कर और चोर उठाकर ले गये। वर्तमान में चन्द्रावती के ध्वस्त टीलों में हमारी कला-संस्कृति की भावीं सम्भावना नज़र आती है।
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14:10, 3 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

चन्द्रावती नगरी राजस्थान के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल माउण्ट आबू से 6 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में है। ध्वस्त हो चुकी यह नगरी अहमदाबाद मार्ग पर परमार शासकों की राजधानी होने के कारण 11वीं-12वीं सदी में बहुत समृद्ध थी। विद्धानों के अनुसार चन्द्रावती नगरी लंका के समान वैभवशाली थी। चन्द्रावती के आस-पास के खण्डहरों को देखकर डॉ. भण्डारकर ने यहाँ कम से कम 360 जैन मंदिरों के अस्तित्व की सम्भावना व्यक्त की है।

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इतिहास

संवत 1503 में सोमधर्म रचित 'उपदेश सप्तसति' ग्रंथ में चन्द्रावती के 444 जैन मंदिर तथा 999 शेष मंदिरों का उल्लेख है। परमार शासकों की राजधानी में यशोधवल एवं धारावर्ष प्रतापी राजा हुए हैं, जिनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। 1303 ई. तक यहाँ परमार शासकों का शासन रहा था। 1311 ई. में राव लूमा ने इस पर अधिकार कर परमार शासन परम्परा को खत्म कर दिया। दिल्ली-गुजरात के मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण यह समृद्धशाली नगरी मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा अनेकों बार लूटी गई। गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने चित्तौड़ की विजय से लौटते समय इस नगरी को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है।

टॉड का वर्णन

टॉड के अनुसार यहाँ विभिन्न आकार-प्रकार वाली बीस इमारतें थीं। यहाँ पर मिली 138 मूर्तियों में 'त्रयम्बक' (तीन मुँह वाली आकृति) घुटने पर स्त्री बैठी हुई, बीस भुजाओं वाले शिव, जिनके बाईं ओर एक महिष है और दाहिना पैर उठाकर गरुड़ जैसी आकृति पर रखा हुआ है। एक महाकाल की बीस भुजाओं की प्रतिमा भी मिली है। टॉड ने मंदिर के भीतरी भाग और मध्य के गुम्बद की कलाकारी को बारीक एवं उच्च कोटि का बताया है।

पुरातत्त्व स्थल

यह ध्वस्त नगरी इतिहासकारों एवं पुरातत्त्वेत्ताओं के लिए रोचक एवं खोज के उपयुक्त स्थल के रूप में आज विद्यमान है। यहाँ के टीलों में अनेकों मूर्तियाँ अभी भी दबी पड़ी हैं। वर्तमान में ऐतिहासिक नगरी ध्वस्त क्षेत्र की तारबन्दी की हुई है। यहाँ खुले में सैकड़ों खण्डित प्रतिमाएँ, स्तम्भ, कलश, बेलबूटेदार, पत्थर, गुम्बद, ईटों के टुकड़े इत्यादि इन टीलों के पास बिखरे पड़े हैं। यहाँ के क़रीब 20 बड़े-बड़े टीलों को देखने पर लगता है कि यहाँ अनेक मंदिर विष्णु एवं शिव के रहे हैं। यहाँ पर अनेक खण्डित प्रतिमाएँ मिली है, जिसमें गणेश की खड़ी हुई प्रतिमा, ब्रह्मा प्रतिमा, देवी प्रतिमा, रणभैरी से सम्बन्धित पत्थर लेख, कुबेर की खण्डित प्रतिमा, जो अन्दर से खोखली है।

इस प्रकार की प्रतिमाएँ मदिंर में दान-भेट डालने के लिए रखी जाती थीं। काम-कला से सम्बन्धित कुछ खण्डित मूर्तियाँ भी ध्वस्त मंदिर के गर्भगृह के बाहर बारीकी से उत्कीर्ण हैं। ध्वस्त मंदिर के फाउंडेशन पर जानवरों, गन्धर्वों, अप्सराओं की मैथुन क्रियाओं आदि से सम्बन्धित कुछ मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इस ध्वस्त क्षेत्र के लिए ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने जब रेलमार्ग बिछाया था, तब यहाँ के उत्कीर्ण पत्थरों को पटरियों के नीचे बिछा दिया तथा अधिकांश मूर्तियों को तस्कर और चोर उठाकर ले गये। वर्तमान में चन्द्रावती के ध्वस्त टीलों में हमारी कला और संस्कृति की भावी सम्भावना नज़र आती है।


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