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'''त्रिवेणी और संगम''' वस्तुत: एक ही स्थान है जहां [[गंगा]], [[यमुना]], [[सरस्वती]] का [[संगम]] होता है। यह दुर्लभ संगम विश्व प्रसिद्ध है। गंगा, यमुना के बाद [[भारतीय संस्कृति]] में सरस्वती को महत्व अधिक मिला है। हालांकि [[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]] तथा अन्य नदियों का भी सनातन मत में महत्त्व है। मगर वरिष्ठता के हिसाब से धर्म प्रेमी सज्जन सरस्वती को तीसरा स्थान देंगे। सरस्वती नदी के साथ अद्भुत ही बात है कि [[प्रत्यक्ष]] तौर पर सरस्वती नदी का पानी कम ही स्थानों पर देखने को मिलता है। इसका अस्तित्व अदृश्य रूप में बहता हुआ माना गया है।
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'''त्रिवेणी और संगम''' वस्तुत: एक ही स्थान है जहां [[गंगा]], [[यमुना]], [[सरस्वती]] का [[संगम]] होता है। यह दुर्लभ संगम विश्व प्रसिद्ध है। गंगा, यमुना के बाद [[भारतीय संस्कृति]] में सरस्वती को महत्व अधिक मिला है। हालांकि [[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]] तथा अन्य नदियों का भी सनातन मत में महत्त्व है। मगर वरिष्ठता के हिसाब से धर्म प्रेमी सज्जन सरस्वती को तीसरा स्थान देंगे। सरस्वती नदी के साथ अद्भुत ही बात है कि [[प्रत्यक्ष]] तौर पर सरस्वती नदी का पानी कम ही स्थानों पर देखने को मिलता है। इसका अस्तित्व अदृश्य रूप में बहता हुआ माना गया है।  
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==त्रिवेणी==
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त्रिवेणी शब्द सुनते ही ‘अध्यात्म’ प्रेमी भारतीयों के मन में एक लहर-सी चल पड़ती है। [[हिंदू धर्म]] के सारे तीर्थ नदी और समुद्र के किनारे बसे हैं। नदी में भी जहां त्रिवेणी हैं वहीं पर तीर्थ है। त्रिवेणी को संगम भी कहते हैं। संगम पर गंगा और यमुना नदी अगल अलग नजर आती है।
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==पौराणिक उल्लेख==
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त्रिवेणी संगम गंगा, यमुना, सरस्वती के मिलन को कहा जाता है। इस संगम स्थल को [[ओम|ओंकार]] के नाम से भी अभिहित किया गया है। यह शब्द परमेश्वर की ओर रहस्यात्मक संकेत करता है और यही त्रिवेणी का भी सूचक है। नृसिंह पुराण में [[विष्णु|विष्णु भगवान]] को प्रयाग में योगमूर्ति के रूप में स्थित बताया गया है। इसके साथ ही [[मत्स्य पुराण]] के अनुसार [[शिव]] के [[रुद्र]] रूप द्वारा एक [[कल्प]] के उपरान्त प्रलय करने पर भी प्रयाग स्थल नष्ट नहीं होता तथा उस समय उत्तरी भाग में ब्रह्मा छद्म वेश में, विष्णु वेणी माधव रूप में व भगवान शिव वट वृक्ष के रूप में आवास करते हैं एवं देव, सिद्धऋषि मुनि पापशक्तियों से प्रयाग की रक्षा करते हैं अत: इसीलिए मत्स्य पुराण में तीर्थयात्री को प्रयाग मे एक मास निवास करने तथा देवताओं और पितरों की पूजा करने का विधान भी है।<ref name="astrobix "/> 
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====प्रयाग संगम====
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[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|thumb|[[संगम]], [[इलाहाबाद]]]]
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{{Main|संगम (इलाहाबाद)}}
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संगम स्थल जहां [[भारत]] की पवित्र नदियों गंगा-यमुना व सरस्वती का संगम होता है। हालांकि सरस्वती दिखती नहीं पर लोगों की मान्यता है कि वह अदृश्य रूप में होकर गंगा व यमुना की धाराओं के नीचे बहती है इसीलिए यहां के संगम स्थल को त्रिवेणी संगम कहलाता है। त्रिवेणी संगम के धार्मिक महत्व के बारे में ऐसी धारणा है कि [[समुद्र मंथन]] के समय जब अमृत कलश प्राप्त हुआ तब [[देवता]] लोग इस अमृत कलश को असुरों से बचाने के प्रयास मे लगे थे इसी खींचातानी में अमृत कि कुछ बूंदें धरती पर गिरी थी और जहां-जहां भी यह बूंदें पडी उन स्थानों पर [[कुंभ मेला|कुंभ का मेला]] लगता है यह स्थान [[उज्जैन]], [[हरिद्वार]], [[नासिक]] व [[प्रयाग]] थे। इस स्थान पर कलश से अमृत की बूदें छ्लकी थी इसी कारण लोगों का विश्वास है कि संगम में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है व स्वर्ग की प्राप्ति होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु लोग इस पावन तीर्थयात्रा के लिये यहां आते हैं पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं तथा पूजा-अर्चना करते हैं। अन्य उल्लेखों द्वारा भगवान [[ब्रह्मा]] ने यहां प्राकृष्ट [[यज्ञ]] किया था जिस कारण [[इलाहाबाद]] को प्रयाग नाम से संबोधित किया गया।<ref name="astrobix">{{cite web |url=http://astrobix.com/hindudharm/post/allahabad-sangam-of-scared-rivers-triveni-sangam-prayag-pilgrimage-kumbh-mela.aspx |title=इलाहाबाद त्रिवेणी संगम |accessmonthday= 12 जनवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=astrobix  धर्म |language=हिंदी }} </ref>
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==ऐतिहासिक एवं पौराणिक मान्यताएँ==
 
==ऐतिहासिक एवं पौराणिक मान्यताएँ==
 
* हिन्दुस्तान का संगम क्षेत्र [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के पवित्रतम तीर्थों में से एक है। [[पद्म पुराण]] में ऐसा माना गया है कि जो त्रिवेणी संगम पर नहाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। जैसे [[ग्रह|ग्रहों]] में [[सूर्य]] तथा तारों में [[चंद्रमा]] है वैसे ही तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है तथा [[सप्तपुरी|सप्तपुरियों]] को इसकी रानियां कहा गया है। 
 
* हिन्दुस्तान का संगम क्षेत्र [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के पवित्रतम तीर्थों में से एक है। [[पद्म पुराण]] में ऐसा माना गया है कि जो त्रिवेणी संगम पर नहाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। जैसे [[ग्रह|ग्रहों]] में [[सूर्य]] तथा तारों में [[चंद्रमा]] है वैसे ही तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है तथा [[सप्तपुरी|सप्तपुरियों]] को इसकी रानियां कहा गया है। 
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* [[अक्षय वट]] संगम के निकट सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह [[बरगद]] का बहुत पुराना पेड़ है जो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता। पर्याप्त सुरक्षा के बीच संगम के निकट किले में अक्षय वट की एक डाल के दर्शन कराए जाते हैं। पूरा पेड़ कभी नहीं दिखाया जाता। सप्ताह में दो दिन, अक्षय वट के दर्शन के लिए द्वार खोले जाते हैं। हालांकि यह बहुत पुराना सूखा वृक्ष है जो कितने हजार वर्ष पुराना है यह कहा नहीं जा सकता। मगर ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल में भगवान [[विष्णु]] इसके एक पत्ते पर बाल मुकंद रूप में अपना अंगूठा चूसते हुए कमलवत शयन करते हैं।
 
* [[अक्षय वट]] संगम के निकट सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह [[बरगद]] का बहुत पुराना पेड़ है जो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता। पर्याप्त सुरक्षा के बीच संगम के निकट किले में अक्षय वट की एक डाल के दर्शन कराए जाते हैं। पूरा पेड़ कभी नहीं दिखाया जाता। सप्ताह में दो दिन, अक्षय वट के दर्शन के लिए द्वार खोले जाते हैं। हालांकि यह बहुत पुराना सूखा वृक्ष है जो कितने हजार वर्ष पुराना है यह कहा नहीं जा सकता। मगर ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल में भगवान [[विष्णु]] इसके एक पत्ते पर बाल मुकंद रूप में अपना अंगूठा चूसते हुए कमलवत शयन करते हैं।
 
* प्रत्येक बारहवें वर्ष पूर्ण [[कुंभ मेला|कुंभ]] का तथा प्रत्येक छठे वर्ष [[अर्द्ध कुंभ]] मेलों का त्रिवेणी संगम पर आयोजन होता है। त्रिवेणी संगम पर महापर्व कुंभ के आयोजन में भक्तों की संख्या एक करोड़ से भी पार चली जाती है। सद्भाव, सौहार्द, सामाजिक समरसता का प्रतीक त्रिवेणी पथ का महापर्व कुंभ मेला छुआछूत, जातीयता, साम्प्रदायिकता से परे और सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल है।<ref>{{cite web |url=http://www.punjabkesari.in/news/%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%AD-%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0--96465 |title=इलाहाबाद कुंभ त्रिवेणी संगम पर महापर्व |accessmonthday= 12 जनवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पंजाब केसरी |language=हिंदी }} </ref>
 
* प्रत्येक बारहवें वर्ष पूर्ण [[कुंभ मेला|कुंभ]] का तथा प्रत्येक छठे वर्ष [[अर्द्ध कुंभ]] मेलों का त्रिवेणी संगम पर आयोजन होता है। त्रिवेणी संगम पर महापर्व कुंभ के आयोजन में भक्तों की संख्या एक करोड़ से भी पार चली जाती है। सद्भाव, सौहार्द, सामाजिक समरसता का प्रतीक त्रिवेणी पथ का महापर्व कुंभ मेला छुआछूत, जातीयता, साम्प्रदायिकता से परे और सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल है।<ref>{{cite web |url=http://www.punjabkesari.in/news/%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%AD-%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0--96465 |title=इलाहाबाद कुंभ त्रिवेणी संगम पर महापर्व |accessmonthday= 12 जनवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पंजाब केसरी |language=हिंदी }} </ref>
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==राजस्थान के त्रिवेणी संगम==
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==संबंधित लेख==
 
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12:15, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

मानचित्र में गंगा और यमुना का संगम, इलाहाबाद, 1885

त्रिवेणी और संगम वस्तुत: एक ही स्थान है जहां गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम होता है। यह दुर्लभ संगम विश्व प्रसिद्ध है। गंगा, यमुना के बाद भारतीय संस्कृति में सरस्वती को महत्व अधिक मिला है। हालांकि गोदावरी, नर्मदा, कावेरी तथा अन्य नदियों का भी सनातन मत में महत्त्व है। मगर वरिष्ठता के हिसाब से धर्म प्रेमी सज्जन सरस्वती को तीसरा स्थान देंगे। सरस्वती नदी के साथ अद्भुत ही बात है कि प्रत्यक्ष तौर पर सरस्वती नदी का पानी कम ही स्थानों पर देखने को मिलता है। इसका अस्तित्व अदृश्य रूप में बहता हुआ माना गया है।

त्रिवेणी

त्रिवेणी शब्द सुनते ही ‘अध्यात्म’ प्रेमी भारतीयों के मन में एक लहर-सी चल पड़ती है। हिंदू धर्म के सारे तीर्थ नदी और समुद्र के किनारे बसे हैं। नदी में भी जहां त्रिवेणी हैं वहीं पर तीर्थ है। त्रिवेणी को संगम भी कहते हैं। संगम पर गंगा और यमुना नदी अगल अलग नजर आती है।

पौराणिक उल्लेख

त्रिवेणी संगम गंगा, यमुना, सरस्वती के मिलन को कहा जाता है। इस संगम स्थल को ओंकार के नाम से भी अभिहित किया गया है। यह शब्द परमेश्वर की ओर रहस्यात्मक संकेत करता है और यही त्रिवेणी का भी सूचक है। नृसिंह पुराण में विष्णु भगवान को प्रयाग में योगमूर्ति के रूप में स्थित बताया गया है। इसके साथ ही मत्स्य पुराण के अनुसार शिव के रुद्र रूप द्वारा एक कल्प के उपरान्त प्रलय करने पर भी प्रयाग स्थल नष्ट नहीं होता तथा उस समय उत्तरी भाग में ब्रह्मा छद्म वेश में, विष्णु वेणी माधव रूप में व भगवान शिव वट वृक्ष के रूप में आवास करते हैं एवं देव, सिद्धऋषि मुनि पापशक्तियों से प्रयाग की रक्षा करते हैं अत: इसीलिए मत्स्य पुराण में तीर्थयात्री को प्रयाग मे एक मास निवास करने तथा देवताओं और पितरों की पूजा करने का विधान भी है।[1]

प्रयाग संगम

संगम स्थल जहां भारत की पवित्र नदियों गंगा-यमुना व सरस्वती का संगम होता है। हालांकि सरस्वती दिखती नहीं पर लोगों की मान्यता है कि वह अदृश्य रूप में होकर गंगा व यमुना की धाराओं के नीचे बहती है इसीलिए यहां के संगम स्थल को त्रिवेणी संगम कहलाता है। त्रिवेणी संगम के धार्मिक महत्व के बारे में ऐसी धारणा है कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्राप्त हुआ तब देवता लोग इस अमृत कलश को असुरों से बचाने के प्रयास मे लगे थे इसी खींचातानी में अमृत कि कुछ बूंदें धरती पर गिरी थी और जहां-जहां भी यह बूंदें पडी उन स्थानों पर कुंभ का मेला लगता है यह स्थान उज्जैन, हरिद्वार, नासिकप्रयाग थे। इस स्थान पर कलश से अमृत की बूदें छ्लकी थी इसी कारण लोगों का विश्वास है कि संगम में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है व स्वर्ग की प्राप्ति होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु लोग इस पावन तीर्थयात्रा के लिये यहां आते हैं पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं तथा पूजा-अर्चना करते हैं। अन्य उल्लेखों द्वारा भगवान ब्रह्मा ने यहां प्राकृष्ट यज्ञ किया था जिस कारण इलाहाबाद को प्रयाग नाम से संबोधित किया गया।[1]

ऐतिहासिक एवं पौराणिक मान्यताएँ

  • हिन्दुस्तान का संगम क्षेत्र हिन्दुओं के पवित्रतम तीर्थों में से एक है। पद्म पुराण में ऐसा माना गया है कि जो त्रिवेणी संगम पर नहाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। जैसे ग्रहों में सूर्य तथा तारों में चंद्रमा है वैसे ही तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है तथा सप्तपुरियों को इसकी रानियां कहा गया है। 
  • त्रिवेणी संगम होने के कारण इसे यज्ञ वेदी भी कहा गया है। संगम क्षेत्र में धाराएं तीन भागों में अपना अस्तित्व बिखेरती हैं। ये संगम क्षेत्र के तीनों भाग लम्बे-चौड़े विस्तृत हैं और जहां-जहां तक इनका प्रभाव है वहां-वहां पर भक्तगणों को एक-एक रात्रि का शयन अवश्य करना चाहिए। 
  • संगम क्षेत्र में पांच कुंडों का अस्तित्व है। वे सभी पुण्यदायी व मोक्षदायी हैं। जो व्यक्ति संगम स्थान पर पाटल तथा कपिल वर्ण की स्वर्ण मंडित सींग वाली, रजत मंडित खुरों वाली, वस्त्रों से आच्छादित कंठ वाली गाय का दान करता है वह रुद्रलोक में पूजित होता है। यदि त्रिवेणी संगम पर तीर्थ करने वाला बैल पर आरुढ़ होकर गमन करता है तो वह नरक वास प्राप्त करता है। 
  • संगम क्षेत्र में जो व्यक्ति आर्षपद्धति के माध्यम से कन्या का दान करता है वह चिरकाल तक आनंद सुखों का उपभोग करता है। जो मनुष्य संगम क्षेत्र में पैर ऊपर तथा सिर नीचे करके तपस्या करता है वह दीर्घकाल तक स्वर्गलोक में पूजित होता है। त्रिवेणी संगम पर मरने वाला तुरंत मोक्ष को प्राप्त होता है।
  • आठवीं शताब्दी के मीमांसक कुमारिल भट्ट ने गुरु विद्रोह के लिए प्रायश्चित स्वरूप उक्त आस्था के कारण त्रिवेणी तट पर आकर अपने शरीर को जीवित जला दिया था। प्रत्येक तीर्थ में जप, दान, उपवास, पूजा-पाठ इत्यादि के मुख्य कर्म होते हैं और इसी तरह से तीर्थों का अपना-अपना कोई प्रधान कर्म भी होता है। त्रिवेणी तट पर आम दिनों का मुख्य कर्म मुंडन है। विधवा व सधवा दोनों प्रकार की स्त्रियां यहां मुंडन कार्य अथवा बालों के कुछ अंशों को कटवाती हैं। 
  • सधवा स्त्रियों के पति इसमें सहयोग भी करते हैं। त्रिवेणी तट पर चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन ने कई बार सम्मेलन किए थे। इतिहास में ऐसा वर्णित है। गौतम बुद्ध ने भी यहां आकर धर्म प्रचार किया था। सम्राट अशोक ने भी यहां कुछ न कुछ सत्कर्म अवश्य ही किया था तभी तो उनका स्तम्भ किले के पास स्थित है।
  • भगवान राम वनवास के दौरान यहां पधारे थे और वे उस समय न केवल भारद्वाज आश्रम में ठहरे थे बल्कि उन्होंने इसी परिक्षेत्र में निषादराज के यहां रात्रि विश्राम किया था।
  • अक्षय वट संगम के निकट सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह बरगद का बहुत पुराना पेड़ है जो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता। पर्याप्त सुरक्षा के बीच संगम के निकट किले में अक्षय वट की एक डाल के दर्शन कराए जाते हैं। पूरा पेड़ कभी नहीं दिखाया जाता। सप्ताह में दो दिन, अक्षय वट के दर्शन के लिए द्वार खोले जाते हैं। हालांकि यह बहुत पुराना सूखा वृक्ष है जो कितने हजार वर्ष पुराना है यह कहा नहीं जा सकता। मगर ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल में भगवान विष्णु इसके एक पत्ते पर बाल मुकंद रूप में अपना अंगूठा चूसते हुए कमलवत शयन करते हैं।
  • प्रत्येक बारहवें वर्ष पूर्ण कुंभ का तथा प्रत्येक छठे वर्ष अर्द्ध कुंभ मेलों का त्रिवेणी संगम पर आयोजन होता है। त्रिवेणी संगम पर महापर्व कुंभ के आयोजन में भक्तों की संख्या एक करोड़ से भी पार चली जाती है। सद्भाव, सौहार्द, सामाजिक समरसता का प्रतीक त्रिवेणी पथ का महापर्व कुंभ मेला छुआछूत, जातीयता, साम्प्रदायिकता से परे और सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल है।[2]

राजस्थान के त्रिवेणी संगम

राजस्थान के त्रिवेणी संगम[3]
त्रिवेणी संगम स्थल नदियां ज़िला विशेष
साबंला (बेणेश्वर) सोम, माही और जाखम डूंगरपुर राजस्थान का कुंभ/ आदिवासियों का महाकुंभ
मांडलगढ़ (बींगोद) बनास, बेड़च और मेनाल भीलवाड़ा त्रिवेणी तीर्थ
मानपुर (रामेश्वर घाट) चम्बल, बनास और सीप सवाई माधोपुर वर्षो से अखण्ड संकीर्तन / श्रीजी मंदिर

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 इलाहाबाद त्रिवेणी संगम (हिंदी) astrobix धर्म। अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2013।
  2. इलाहाबाद कुंभ त्रिवेणी संगम पर महापर्व (हिंदी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2013। 
  3. राजस्थान के त्रिवेणी संगम (हिंदी) राजस्थान अध्ययन। अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख