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'''शांता''' [[अयोध्या]] के [[दशरथ|राजा दशरथ]] की पुत्री थी। यह महर्षि ऋष्यश्रृंग को ब्याही गई थी। दशरथ के मित्र राजा लोमपाद ने<ref>अंग देश के राजा</ref> शांता को दशरथ से पोष्य पुत्रिका के रूप में पाया था।<ref>भाग.9.23.7; [[विष्णुपुराण]] 4.12.37.38</ref>
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==राजा रोमपद की दत्तक पुत्री==
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दक्षिण में '[[वाल्मीकि रामायण]]', 'कंबन रामायण' और '[[रामचरित मानस]]', 'अद्भुत रामायण', 'अध्यात्म रामायण' और 'आनंद रामायण' की चर्चा ज्यादा होती है। उक्त रामायण का अध्ययन करने पर रामकथा से जुड़े कई नए तथ्‍यों की जानकारी मिलती है। इसी तरह अगर दक्षिण की रामायण की मानें तो भगवान राम की एक बहन भी थीं, जो उनसे बड़ी थी। [[दक्षिण भारत]] की रामायण के अनुसार [[राम]] की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता [[दशरथ|राजा दशरथ]] और [[कौशल्या]] की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों के बाद ही अंगदेश के राजा रोमपद ने निःशंतान होने के कारण राजा दशरथ से उनकी बेटी शांता को दत्तक पुत्री के रूप में गोद ले लिया था।
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==कथाएँ==
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भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं। इस संबंध में तीन कथाएं हैं-
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#वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार [[अयोध्या]] में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। [[दशरथ]] भी मान गए। [[रघु वंश|रघुकुल]] का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता [[वेद]], कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।
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#दूसरी लोककथा के अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्‍या में [[अकाल]] पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्‍या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे, इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
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#कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्‍योंकि वह लड़की होने की वजह से उनकी उत्‍तराधिकारी नहीं बन सकती थीं।
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==विवाह==
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शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में [[स्नान]] कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ। एक बार एक [[ब्राह्मण]] अपने क्षेत्र में फ़सल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने [[भक्त]] की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए [[इन्द्र]] ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को [[यज्ञ]] करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी [[वर्षा]] हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।
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==दशरथ का पुत्रकामेष्ठि यज्ञ==
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राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए [[वशिष्ठ]] सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।
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दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे, वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया। पहले तो ऋंग ऋषि ने [[यज्ञ]] करने से इंकार किया, लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए। लेकिन दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया, लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के [[अयोध्या]] में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
  
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जब दशरथ ने पुत्र की कामना से पुत्रकामेष्ठि यज्ञ के दौरान अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया। तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि- "हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।" जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि- "वो उनकी पुत्री शांता है।" दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था। दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से [[राम]] तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।
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कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया, जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और [[यज्ञ]] से प्राप्त खीर से [[राम]], [[लक्ष्मण]], [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और [[शत्रुघ्न]] का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे।
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12:04, 4 दिसम्बर 2015 का अवतरण

शांता अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्री थी। यह महर्षि ऋष्यश्रृंग को ब्याही गई थी। दशरथ के मित्र राजा रोमपद ने[1] शांता को दशरथ से पोष्य पुत्रिका के रूप में पाया था।[2]

राजा रोमपद की दत्तक पुत्री

दक्षिण में 'वाल्मीकि रामायण', 'कंबन रामायण' और 'रामचरित मानस', 'अद्भुत रामायण', 'अध्यात्म रामायण' और 'आनंद रामायण' की चर्चा ज्यादा होती है। उक्त रामायण का अध्ययन करने पर रामकथा से जुड़े कई नए तथ्‍यों की जानकारी मिलती है। इसी तरह अगर दक्षिण की रामायण की मानें तो भगवान राम की एक बहन भी थीं, जो उनसे बड़ी थी। दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों के बाद ही अंगदेश के राजा रोमपद ने निःशंतान होने के कारण राजा दशरथ से उनकी बेटी शांता को दत्तक पुत्री के रूप में गोद ले लिया था।

कथाएँ

भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं। इस संबंध में तीन कथाएं हैं-

  1. वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।
  2. दूसरी लोककथा के अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्‍या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्‍या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे, इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
  3. कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्‍योंकि वह लड़की होने की वजह से उनकी उत्‍तराधिकारी नहीं बन सकती थीं।

विवाह

शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ। एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फ़सल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इन्द्र ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।

दशरथ का पुत्रकामेष्ठि यज्ञ

राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी। दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे, वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया। पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया, लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए। लेकिन दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया, लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।

जब दशरथ ने पुत्र की कामना से पुत्रकामेष्ठि यज्ञ के दौरान अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया। तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि- "हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।" जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि- "वो उनकी पुत्री शांता है।" दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था। दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।

कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया, जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे।

जनता के समक्ष शांता ने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वह दशरथ और कौशल्या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना। सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंग देश के राजा
  2. भाग.9.23.7; विष्णुपुराण 4.12.37.38

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