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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
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'''स्कन्द षष्ठी''' का व्रत [[कार्तिक मास]] में [[कृष्ण पक्ष]] की [[षष्ठी]] तिथि को किया जाता है। यह व्रत 'संतान षष्ठी' नाम से भी जाना जाता है। [[स्कंदपुराण]] के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है। एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को 'कुमार' अर्थात् [[कार्तिकेय]] की [[पूजा]] करनी चाहिए।<ref>निर्णयसिन्धु (49); पुरुषार्थचिन्तामणि (101); स्मृतिकौस्तुभ (138</ref> तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है।
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*एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को कुमार अर्थात् [[कार्तिकेय]] की पूजा करनी चाहिए।<ref>निर्णयसिन्धु (49); पुरुषार्थचिन्तामणि (101); स्मृतिकौस्तुभ (138</ref>
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==प्राचीनता एवं प्रमाणिकता==
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इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता स्वयं परिलक्षित होती है। इस कारण यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण करता है। स्कंद षष्ठी के संबंध में मान्यता है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक इससे जुड़ा है। कहते हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई। ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है। स्कन्द षष्ठी पूजा की पौरांणिक परम्परा है। भगवान [[शिव]] के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर रक्षा की थी। इनके छह मुख हैं और उन्हें '[[कार्तिकेय]]' नाम से पुकारा जाने लगा। [[पुराण]] व [[उपनिषद]] में इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है।<ref>{{cite web |url=http://astrobix.com/hindumarg/278-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6_%E0%A4%B7%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A5%80__Skanda_Shashti_Vrat_2013__Skanda_Sashti_Fast.html|title=स्कन्द षष्ठी|accessmonthday= 23 अक्टूबर|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
*तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है।
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निर्णयामृत में इतना और आया है कि [[भाद्रपद]] की [[षष्ठी]] को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन लेने से ब्रह्महत्या जैसे गम्भीर पापों से मुक्ति मिल जाती है।<ref>कृत्यरत्नाकर (275-277</ref> हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि काल, 622</ref>, कृत्यरत्नाकर<ref>कृत्यरत्नाकर 119</ref> ने [[ब्रह्म पुराण]] से उद्धरण देकर बताया है कि [[स्कन्द]] की उत्पत्ति [[अमावास्या]] को [[अग्निदेव|अग्नि]] से हुई थी, वे [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] को प्रत्यक्ष हुए थे, देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा [[तारकासुर]] का वध किया था, अत: उनकी पूजा, [[दीपक|दीपों]], [[वस्त्र|वस्त्रों]], [[अलंकरण|अलंकरणों]], मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर करनी चाहिए। तिथितत्त्व <ref>तिथितत्त्व 35</ref> ने [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] को स्कन्दषष्ठी कहा है।<ref>स्मृतिकौस्तुभ (93</ref>
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10:25, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण

स्कन्द षष्ठी का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। यह व्रत 'संतान षष्ठी' नाम से भी जाना जाता है। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है। एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को 'कुमार' अर्थात् कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए।[1] तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है।

प्राचीनता एवं प्रमाणिकता

इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता स्वयं परिलक्षित होती है। इस कारण यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण करता है। स्कंद षष्ठी के संबंध में मान्यता है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक इससे जुड़ा है। कहते हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई। ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है। स्कन्द षष्ठी पूजा की पौरांणिक परम्परा है। भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर रक्षा की थी। इनके छह मुख हैं और उन्हें 'कार्तिकेय' नाम से पुकारा जाने लगा। पुराणउपनिषद में इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है।[2]

कब करें

यह व्रत प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। वर्ष के किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत आरंभ किया जा सकता है। वैसे चैत्र अथवा आश्विन मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है।[3]

आवश्यक सामग्री

भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, तुलसी का पौधा (गमले में लगा हुआ), तांबे का लोटा, नारियल, पूजा की सामग्री, जैसे- कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली आसन इत्यादि। यह व्रत विधिपूर्वक करने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। संतान को किसी प्रकार का कष्ट या रोग हो तो यह व्रत संतान को इन सबसे बचाता है।

निर्णयामृत में इतना और आया है कि भाद्रपद की षष्ठी को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन लेने से ब्रह्महत्या जैसे गम्भीर पापों से मुक्ति मिल जाती है।[4] हेमाद्रि[5], कृत्यरत्नाकर[6] ने ब्रह्म पुराण से उद्धरण देकर बताया है कि स्कन्द की उत्पत्ति अमावास्या को अग्नि से हुई थी, वे चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को प्रत्यक्ष हुए थे, देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा तारकासुर का वध किया था, अत: उनकी पूजा, दीपों, वस्त्रों, अलंकरणों, मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर करनी चाहिए। तिथितत्त्व [7] ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्दषष्ठी कहा है।[8]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. निर्णयसिन्धु (49); पुरुषार्थचिन्तामणि (101); स्मृतिकौस्तुभ (138
  2. स्कन्द षष्ठी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 अक्टूबर, 2013।
  3. स्कंद षष्ठी व्रत (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 अक्टूबर, 2013।
  4. कृत्यरत्नाकर (275-277
  5. हेमाद्रि काल, 622
  6. कृत्यरत्नाकर 119
  7. तिथितत्त्व 35
  8. स्मृतिकौस्तुभ (93

संबंधित लेख

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