मुसहर जाति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

मुसहर अथवा मुशहर उत्तरी भारत के निचले गंगा मैदान और तराई इलाकों में निवास करने वाली एक जाति है। मुसहर का शाब्दिक अर्थ है- "चूहा खाने वाला"। 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी इसी समुदाय के हैं। उनके रूप में देश को पहली बार किसी मुसहर जाति का मुख्यमंत्री मिला। वह 9 महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। समाचार एजेंसी एएफपी से मांझी ने कहा था कि- "सिर्फ शिक्षा ही हमारी जिंदगी और भविष्य बदल सकती है। मेरा समुदाय इतना पिछड़ा है कि सरकारी आंकड़ों में भी यह दर्ज नहीं कि उनकी संख्या कितनी है। जबकि बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि पूरे देश में इस समुदाय के 80 लाख लोग हैं"।

आदिम जनजाति

मुसहर दो शब्दों के मेल से बना है। 'मूस' यानी चूहा और 'हर' यानी उसका शिकार करने वाला। मुसहर आदिम जनजाति है। आज भी दूर-दराज के इलाकों में बसी मुसहर टोलियों में चूहा मारने-खाने का रिवाज जिंदा है। ब्रिटिश काल में इस जाति को डिप्रेस्ड क्लास की श्रेणी में रखा गया था। 1871 में पहली जनगणना के बाद पहली बार इस जाति को अलग श्रेणि में डालकर जनजाति का दर्जा दिया गया।[1]

मूल बसावट

इस जाति की मूल बसावट दक्षिण बिहार और झारखंड के इलाके में है। बिहार की दलित जातियों पर विस्तृत शोध के साथ 'स्वर्ग पर धावा' नाम की किताब लिख चुके बाबू जगजीवन राम संसदीय अध्ययन और शोध संस्थान के निदेशक श्रीकांतजी बताते हैं, 'यह समाज का भूमिहीन मजदूर वर्ग है। ऐसी जातियों का समाज में कोई खैरख्वाह नहीं होता क्योकि इनके पास संपत्ति के नाम कुछ नहीं होता। पहले ये खानाबदोशों की तरह रहते थे।' आजाद भारत के इतिहास में मुसहर मूलत: दूसरी दलित जातियों के अंदर ही एक हिस्से के रूप में स्थान पाते रहे हैं। 2007 तक बिहार की समस्त चुनावी राजनीति छह मुख्य जातीय समूहों के सांचे में बंटी हुई थी, अगड़ी जातियां, यादव, ओबीसी, पासी, अन्य दलित जातियां और मुसलमान।

मुसहर अन्य दलित जातियों की दायरे में आते थे। इस श्रेणी में बिहार की कुल 23 जातियों को संवैधानिक मान्यता मिली हुई है। 2007 में नीतीश कुमार ने इसमें बड़ा परिवर्तन किया। ओबीसी को दो हिस्सों में बांटकर उन्होंने एक नई श्रेणी बनाई अति पिछड़ा वर्ग और अन्य दलित जातियों को दो हिस्से में बांट कर इसमें से नया जातीय समूह खड़ा किया महादलित। इसी महादलित समूह में मुसहर जाति को भी रखा गया है।[1]

जनसंख्या

बिहार और झारखंड के एक बड़े हिस्से में मुसहर फैले हुए हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुकांत नागार्जुन के शब्दों में, 'इनकी आबादी बहुत बड़ी है लेकिन वे किसी एक स्थान पर सामूहिक रूप से नहीं रहते। अपने मूल स्वरूप में यह एक घुमंतू जनजाति है। जो अब धीरे-धीरे एक समाज के रूप में संगठित होकर बसने लगी है।' संख्या के लिहाज से मुसहर जाति बिहार की 23 दलित जातियों में तीसरे स्थान पर है। इनसे ऊपर सिर्फ चमार और पासी हैं। बिहार में दलितों की कुल जनसंख्या में मुसहरों का प्रतिशत 13.4 फीसदी है। अगर कुल जनसंख्या के संदर्भ में देखें तो मुसहर करीब 2.5 से तीन प्रतिशत हैं।

बावजूद इसके आजादी के बाद से अब तक इस समूह का कोई संगठित राजनीतिक स्वरूप नहीं रहा, न ही इनका कोई एक सर्वमान्य नेता पैदा हुआ। छिटपुट रूप में कुछ लोग राजनीतिक क्षितिज पर थोड़ी देर के लिए जरूर चमके लेकिन समय की धूल ने सबको धूमिल कर दिया। 1952 की पहली लोकसभा में ही पहला और अकेला मुसहर सांसद कांग्रेस के टिकट पर बना था। उनका नाम था किराई मुसहर।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मुसहर यानी बंधुआ खेतिहर मजदूर (हिंदी) hindi.catchnews.com। अभिगमन तिथि: 17 जून, 2020।

संबंधित लेख