"अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ''' (जन्म- 22 अक्टूबर, 1900 ई., [[शाहजहा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
'''अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ''' (जन्म- [[22 अक्टूबर]], [[1900]] ई., [[शाहजहाँपुर]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[19 दिसम्बर]], [[1927]] ई., [[फैजाबाद]]) को [[भारत]] प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में गिना जाता है। देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते प्राण न्यौछावर करने वाले अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता के प्रबल पक्षधर थे। '[[काकोरी कांड]]' के सिलसिले में [[19 दिसम्बर]], [[1927]] ई. को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ऐसे पहले मुस्लिम थे, जिन्हें षड्यंत्र के मामले में फाँसी की सज़ा हुई। उनका [[हृदय]] बड़ा विशाल और विचार बड़े उदार थे। अन्य मुस्लिमों की भांति "मैं मुसलमान वह काफिर" आदि के संकीर्ण भाव उनके हृदय में कभी नहीं आ पाये। सब के साथ सम व्यवहार करना उनका सहज स्वभाव था। कठन परिश्रम, लगन, दृढ़ता, प्रसन्नता ये उनके स्वभाव के विशेष गुण थे।
 
'''अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ''' (जन्म- [[22 अक्टूबर]], [[1900]] ई., [[शाहजहाँपुर]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[19 दिसम्बर]], [[1927]] ई., [[फैजाबाद]]) को [[भारत]] प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में गिना जाता है। देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते प्राण न्यौछावर करने वाले अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता के प्रबल पक्षधर थे। '[[काकोरी कांड]]' के सिलसिले में [[19 दिसम्बर]], [[1927]] ई. को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ऐसे पहले मुस्लिम थे, जिन्हें षड्यंत्र के मामले में फाँसी की सज़ा हुई। उनका [[हृदय]] बड़ा विशाल और विचार बड़े उदार थे। अन्य मुस्लिमों की भांति "मैं मुसलमान वह काफिर" आदि के संकीर्ण भाव उनके हृदय में कभी नहीं आ पाये। सब के साथ सम व्यवहार करना उनका सहज स्वभाव था। कठन परिश्रम, लगन, दृढ़ता, प्रसन्नता ये उनके स्वभाव के विशेष गुण थे।
 
+
==जन्म तथा परिवार==
 +
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 ई. को उत्तर प्रदेश में [[शाहजहाँपुर ज़िला|शाहजहाँपुर ज़िले]] के शहीदगढ़ नामक स्थान पर हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम मोहम्मद शफ़ीक़ उल्ला ख़ाँ तथा [[माता]] मजहूरुन्निशाँ बेगम थीं। इनकी माता बहुत सुन्दर थीं और खूबसूरत स्त्रियों में गिनी जाती थीं। इनका परिवार काफ़ी समृद्ध था। परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे। किंतु अशफ़ाक़ को विदेशी दासता विद्यार्थी जीवन से ही खलती थी। वे देश के लिए कुछ करने को बेताव थे। बंगाल के क्रांतिकारियों का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव था।
 +
====बाल्यावस्था====
 +
अपनी बाल्यावस्था में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगता था। खनौत में तैरने, घोड़े की सवारी करने और भाई की बन्दूक लेकर शिकार करने में इन्हें बड़ा आनन्द आता था। ये बड़े सुडौल, सुन्दर और स्वस्थ जवान थे। चेहरा हमेशा खिला रहता था और दूसरों के साथ हमेशा प्रेम भरी बोली बोला करते थे। बचपन से ही उनमें देश के प्रति अपार अनुराग था। देश की भलाई के लिये किये जाने वाले आन्दोलनों की कथायें वे बड़ी रूचि से पड़ते थे। धीरे-धीरे उनमें क्रान्तिकारी भाव पैदा होने लगे। उनको बड़ी उत्सुकता हुई कि किसी ऐसे आदमी से भेंट हो जाये, जो क्रान्तिकारी दल का सदस्य हो।
 +
==कविता का शौक==
 +
अशफ़ाक़ कविता आदि भी किया करते थे। उन्हें इसका बहुत शौक था। उन्होंने बहुत अच्छी-अच्छी कवितायें लिखी थीं, जो स्वदेशानुराग से सराबोर थीं। कविता में वे अपना उपनाम '''हसरत''' लिखते थे। उन्होंने कभी भी अपनी कविताओं को प्रकाशित कराने की चेष्टा नहीं की। उनका कहना था कि "हमें नाम पैदा करना तो है नहीं। अगर नाम पैदा करना होता तो क्रान्तिकारी काम छोड़ लीडरी न करता?" उनकी लिखी हुई कविताएँ अदालत आते-जाते समय अक्सर 'काकोरी कांड' के क्रांतिकारी गाया करते थे।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 10: पंक्ति 15:
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:औपनिवेशिक काल]]
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:औपनिवेशिक काल]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

08:37, 22 फ़रवरी 2013 का अवतरण

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ (जन्म- 22 अक्टूबर, 1900 ई., शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 19 दिसम्बर, 1927 ई., फैजाबाद) को भारत प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में गिना जाता है। देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते प्राण न्यौछावर करने वाले अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर थे। 'काकोरी कांड' के सिलसिले में 19 दिसम्बर, 1927 ई. को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ऐसे पहले मुस्लिम थे, जिन्हें षड्यंत्र के मामले में फाँसी की सज़ा हुई। उनका हृदय बड़ा विशाल और विचार बड़े उदार थे। अन्य मुस्लिमों की भांति "मैं मुसलमान वह काफिर" आदि के संकीर्ण भाव उनके हृदय में कभी नहीं आ पाये। सब के साथ सम व्यवहार करना उनका सहज स्वभाव था। कठन परिश्रम, लगन, दृढ़ता, प्रसन्नता ये उनके स्वभाव के विशेष गुण थे।

जन्म तथा परिवार

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 ई. को उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर ज़िले के शहीदगढ़ नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम मोहम्मद शफ़ीक़ उल्ला ख़ाँ तथा माता मजहूरुन्निशाँ बेगम थीं। इनकी माता बहुत सुन्दर थीं और खूबसूरत स्त्रियों में गिनी जाती थीं। इनका परिवार काफ़ी समृद्ध था। परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे। किंतु अशफ़ाक़ को विदेशी दासता विद्यार्थी जीवन से ही खलती थी। वे देश के लिए कुछ करने को बेताव थे। बंगाल के क्रांतिकारियों का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव था।

बाल्यावस्था

अपनी बाल्यावस्था में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगता था। खनौत में तैरने, घोड़े की सवारी करने और भाई की बन्दूक लेकर शिकार करने में इन्हें बड़ा आनन्द आता था। ये बड़े सुडौल, सुन्दर और स्वस्थ जवान थे। चेहरा हमेशा खिला रहता था और दूसरों के साथ हमेशा प्रेम भरी बोली बोला करते थे। बचपन से ही उनमें देश के प्रति अपार अनुराग था। देश की भलाई के लिये किये जाने वाले आन्दोलनों की कथायें वे बड़ी रूचि से पड़ते थे। धीरे-धीरे उनमें क्रान्तिकारी भाव पैदा होने लगे। उनको बड़ी उत्सुकता हुई कि किसी ऐसे आदमी से भेंट हो जाये, जो क्रान्तिकारी दल का सदस्य हो।

कविता का शौक

अशफ़ाक़ कविता आदि भी किया करते थे। उन्हें इसका बहुत शौक था। उन्होंने बहुत अच्छी-अच्छी कवितायें लिखी थीं, जो स्वदेशानुराग से सराबोर थीं। कविता में वे अपना उपनाम हसरत लिखते थे। उन्होंने कभी भी अपनी कविताओं को प्रकाशित कराने की चेष्टा नहीं की। उनका कहना था कि "हमें नाम पैदा करना तो है नहीं। अगर नाम पैदा करना होता तो क्रान्तिकारी काम छोड़ लीडरी न करता?" उनकी लिखी हुई कविताएँ अदालत आते-जाते समय अक्सर 'काकोरी कांड' के क्रांतिकारी गाया करते थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख