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'''असित भट्टाचार्य''' [[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में से एक थे।
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'''असित रंजन भट्टाचार्य''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Asit Ranjan Bhattacharya'', जन्म- [[4 अप्रॅल]], [[1915]]; बलिदान- [[2 जुलाई]], [[1934]])[[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] ऐसे क्रांतिकारों के बलिदान से भरा है जिन्होंने अपनी चिंगारी से युगों को रौशन किया है परंतु जिनका नाम [[इतिहास]] के पन्नों में कहीं खो गया। असित भट्टाचार्य ऐसे ही क्रांतिकारी थे।
  
*असित प्रारंभ से ही क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े हुए थे और क्रांति दल के सदस्य थे।
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*असित भट्टाचार्य प्रारंभ से ही क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े हुए थे और क्रांति दल के सदस्य थे।
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*इनके जन्म तथा जन्म स्थान के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं हो पाया है। इन्होंने अधिकांशतः खुद को अज्ञात रखने का ही प्रयास किया। यद्यपि इतिहासकारों ने इनके बलिदान के बाद इन्हें और गुमनाम कर दिया। खुद को अज्ञात रखने के पीछे इनकी मनसा ब्रिटिश पुलिस से दूर रहने और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते अपने [[परिवार]] पर दबाव ना आने देने की थी। इसी कारण इतिहास में इनके बारे में बहुत कम बातें वर्णित हैं।
 
*[[31 मार्च]], [[1933]] को हबीबगंज में एक डकैती हुई, जिसमें असित भट्टाचार्य ने महत्वपूर्ण रूप से भाग लिया। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हत्या तथा डकैती के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई।
 
*[[31 मार्च]], [[1933]] को हबीबगंज में एक डकैती हुई, जिसमें असित भट्टाचार्य ने महत्वपूर्ण रूप से भाग लिया। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हत्या तथा डकैती के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई।
 
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05:13, 2 जुलाई 2023 के समय का अवतरण

असित रंजन भट्टाचार्य (अंग्रेज़ी: Asit Ranjan Bhattacharya, जन्म- 4 अप्रॅल, 1915; बलिदान- 2 जुलाई, 1934)भारत के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ऐसे क्रांतिकारों के बलिदान से भरा है जिन्होंने अपनी चिंगारी से युगों को रौशन किया है परंतु जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया। असित भट्टाचार्य ऐसे ही क्रांतिकारी थे।

  • असित भट्टाचार्य प्रारंभ से ही क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े हुए थे और क्रांति दल के सदस्य थे।
  • इनके जन्म तथा जन्म स्थान के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं हो पाया है। इन्होंने अधिकांशतः खुद को अज्ञात रखने का ही प्रयास किया। यद्यपि इतिहासकारों ने इनके बलिदान के बाद इन्हें और गुमनाम कर दिया। खुद को अज्ञात रखने के पीछे इनकी मनसा ब्रिटिश पुलिस से दूर रहने और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते अपने परिवार पर दबाव ना आने देने की थी। इसी कारण इतिहास में इनके बारे में बहुत कम बातें वर्णित हैं।
  • 31 मार्च, 1933 को हबीबगंज में एक डकैती हुई, जिसमें असित भट्टाचार्य ने महत्वपूर्ण रूप से भाग लिया। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हत्या तथा डकैती के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई।
  • 2 जुलाई, 1934 को सिलहट जेल में इस महान सपूत को फांसी पर लटका दिया गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वतंत्रता सेनानी कोश (गांधी युगीन), भाग तीन, पृष्ठ संख्या 65

संबंधित लेख

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