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11:18, 18 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

आचार्य प्यारे मोहन
आचार्य प्यारे मोहन
पूरा नाम आचार्य प्यारे मोहन
जन्म 5 अगस्त, 1852
जन्म भूमि कटक ज़िला, उड़ीसा
मृत्यु दिसंबर, 1881
कर्म भूमि भारत
भाषा उड़िया
विशेष योगदान आचार्य प्यारे मोहन ने उड़िया भाषा में उड़ीसा का इतिहास लिखा था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आचार्य प्यारे मोहन ने विद्यार्थी जीवन में ही 'उत्कल पुत्र' नामक एक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। वे इसमें अपने विचार निर्भयतापूर्वक व्यक्त करते थे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

आचार्य प्यारे मोहन (जन्म- 5 अगस्त, 1852, कटक ज़िला, उड़ीसा; मृत्यु- दिसंबर, 1881) उड़ीसा के प्रमुख राष्ट्रवादी थे। उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही 'उत्कल पुत्र' नामक एक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया था। 1875 ई. में उनके प्रयास से ही एक हाई स्कूल की स्थापना हुई थी, जो अब 'प्यारे मोहन एकेडमी' के नाम से प्रसिद्ध है। उड़िया भाषा में प्यारे मोहन ने उड़ीसा का इतिहास लिखा।[1]

परिचय

उड़ीसा के प्रमुख राष्ट्रवादी प्यारे मोहन आचार्य का जन्म 5 अगस्त, 1852 ई. को उड़ीसा राज्य के कटक ज़िले में कौनपा नामक गांव में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद वे कटक के कॉलेज में भर्ती हुए। परंतु विद्यालय की शिक्षा में उनका मन नहीं लगता था।

समाजसेवा

प्यारे मोहन अपना अधिक समय सामाजिक कार्यों में लगाने लगे। वे उड़ीसा के पिछड़े हुए लोगों को सामाजिक और राजनीतिक न्याय दिलाना चाहते थे। इस उद्देश्य के लिए प्यारे मोहन ने विद्यार्थी जीवन में ही 'उत्कल पुत्र' नामक एक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। वे इसमें अपने विचार निर्भयतापूर्वक व्यक्त करते थे। उनके विचारों से रूष्ठ होकर कटक के ज़िला मजिस्ट्रेट ने कॉलेज के प्रिंसिपल को आदेश दिया कि प्यारे मोहन आचार्य को विद्ययालय से निकाल दिया जाए। प्रिंसिपल चाहते थे कि उनका विद्यार्थी ज़िला मजिस्ट्रेट से क्षमा माँग ले। पर आचार्य इसके लिए तैयार नहीं हुए और उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। अब उन्होंने अपना पूरा समय समाजसेवा के काम में लगा दिया। उनके प्रयत्न से 1875 ई. में एक हाई स्कूल की स्थापना हुई, जो अब 'प्यारे मोहन एकेडमी' के नाम से प्रसिद्ध है।

लेखन कार्य

आचार्य प्यारे मोहन ने उड़िया भाषा में उड़ीसा का इतिहास लिखा था।

राष्ट्रभक्त

प्यारे मोहन लोगों को निरंतर विदेशी दासता के विरुद्ध प्रेरित किया करते थे। उनको इस काम से हटाने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने कई बार प्रलोभन दिए। सरकार उन्हें डिप्टी मजिस्ट्रेट बनाना चाहती थी, पर आचार्य ने अधिकारियों को लिख दिया कि- "यदि मुझे वाइसराय का पद ग्रहण करने के लिए भी कहा जाए तो मैं उसे भी ठुकरा दूँगा"।

निधन

राष्ट्रभक्त प्यारे मोहन का 29 वर्ष की उम्र में ही दिसंबर, 1881 ई. में देहांत हो गया।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 482 |

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