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*इंद्रकील [[हिमालय]] के उतर में एक छोटा सा पर्वत।  
 
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*इंद्रकील पर [[अर्जुन]] ने उग्र तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप अर्जुन को [[इंद्र]] के दर्शन हुए थे।  
 
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'हिमवन्तमतिक्रम्य गंधमादनमेव च, अत्यक्रामत् स दुर्गाणि दिवारात्रमतिन्द्रत:। इंद्रकीलं समासाद्यततोऽतिष्ठद् धनंजय:'।<ref>महा0, वन0 37, 41-42 ।</ref>  
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'हिमवन्तमतिक्रम्य गंधमादनमेव च, अत्यक्रामत् स दुर्गाणि दिवारात्रमतिन्द्रत:। इंद्रकीलं समासाद्यततोऽतिष्ठद् धनंजय:'।<ref>[[महाभारत]], [[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]] 37, 41-42 ।</ref>  
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12:51, 26 जून 2011 का अवतरण

  • इंद्रकील हिमालय के उतर में एक छोटा सा पर्वत।
  • इंद्रकील पर अर्जुन ने उग्र तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप अर्जुन को इंद्र के दर्शन हुए थे।

'हिमवन्तमतिक्रम्य गंधमादनमेव च, अत्यक्रामत् स दुर्गाणि दिवारात्रमतिन्द्रत:। इंद्रकीलं समासाद्यततोऽतिष्ठद् धनंजय:'।[1]

  • इंद्रकील के निकट ही शिव और अर्जुन का युद्ध हुआ था[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 37, 41-42 ।
  2. (वनपर्व 38)

बाहरी कड़ियाँ

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