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कुमारप्रव्रजिता पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रचलित एक शब्द था।

  • यास्क ने परिव्राजक नामक आचार्यों का उल्लेख किया है, जो संभवत सन्यास धर्म के अनुयायी थे।
  • गणपाठ का ‘कुमारप्रव्रजिता’ शब्द उस संप्रदाय की नैष्ठिक व्रतचारिणी स्त्रियों के लिए प्रयुक्त हुआ जान पड़ता है।[1]


इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 103 |

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