"क्षत्रिय" के अवतरणों में अंतर
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*उनका कार्य युद्ध करना तथा प्रजा की रक्षा करना था। | *उनका कार्य युद्ध करना तथा प्रजा की रक्षा करना था। | ||
*'क्षत्रिय' शब्द की व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थ है जो दूसरों को क्षत से बचाये। | *'क्षत्रिय' शब्द की व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थ है जो दूसरों को क्षत से बचाये। | ||
− | *[[ब्राह्मण साहित्य|ब्राह्मण ग्रंथों]] के अनुसार क्षत्रियों की गणना [[ब्राह्मण|ब्राहमणों]] के बाद की जाती थी, परंतु [[बौद्ध]] | + | *[[ब्राह्मण साहित्य|ब्राह्मण ग्रंथों]] के अनुसार क्षत्रियों की गणना [[ब्राह्मण|ब्राहमणों]] के बाद की जाती थी, परंतु [[बौद्ध साहित्य|बौद्ध ग्रंथों]] के अनुसार चार वर्णों में क्षत्रियों को ब्राह्मणों से ऊँचा अर्थात समाज में सर्वोपरि स्थान प्राप्त था। |
*[[गौतम बुद्ध]] और [[महावीर]] दोनों क्षत्रिय थे और इससे इस स्थापना को बल मिलता है कि [[बौद्ध धर्म]] और [[जैन धर्म]] जहाँ एक ओर समाज में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के दावे के प्रति क्षत्रियों के विरोध भाव को प्रकट करते हैं, वहीं दूसरी ओर पृथक जीवन दर्शन के लिए उनकी आकांक्षा को भी अभिव्यक्ति देते हैं। जो भी है बाद में क्षत्रियों का स्थान निश्चित रूप से चारों वर्णों में ब्राह्मणों के बाद दूसरा माना जाता था। | *[[गौतम बुद्ध]] और [[महावीर]] दोनों क्षत्रिय थे और इससे इस स्थापना को बल मिलता है कि [[बौद्ध धर्म]] और [[जैन धर्म]] जहाँ एक ओर समाज में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के दावे के प्रति क्षत्रियों के विरोध भाव को प्रकट करते हैं, वहीं दूसरी ओर पृथक जीवन दर्शन के लिए उनकी आकांक्षा को भी अभिव्यक्ति देते हैं। जो भी है बाद में क्षत्रियों का स्थान निश्चित रूप से चारों वर्णों में ब्राह्मणों के बाद दूसरा माना जाता था। | ||
13:25, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण
- भारतीय आर्यों में अत्यंत आरम्भिक काल से वर्ण व्यवस्था मिलती है, जिसके अनुसार समाज में उनको दूसरा स्थान प्राप्त था।
- उनका कार्य युद्ध करना तथा प्रजा की रक्षा करना था।
- 'क्षत्रिय' शब्द की व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थ है जो दूसरों को क्षत से बचाये।
- ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार क्षत्रियों की गणना ब्राहमणों के बाद की जाती थी, परंतु बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चार वर्णों में क्षत्रियों को ब्राह्मणों से ऊँचा अर्थात समाज में सर्वोपरि स्थान प्राप्त था।
- गौतम बुद्ध और महावीर दोनों क्षत्रिय थे और इससे इस स्थापना को बल मिलता है कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म जहाँ एक ओर समाज में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के दावे के प्रति क्षत्रियों के विरोध भाव को प्रकट करते हैं, वहीं दूसरी ओर पृथक जीवन दर्शन के लिए उनकी आकांक्षा को भी अभिव्यक्ति देते हैं। जो भी है बाद में क्षत्रियों का स्थान निश्चित रूप से चारों वर्णों में ब्राह्मणों के बाद दूसरा माना जाता था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भट्टाचार्य, सच्चिदानंद भारतीय इतिहास कोश (हिंदी)। लखनऊ: उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, 110।