"गार्हपत संस्था" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''गार्हपत संस्था''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में किसी क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
*सामान्यतः गृहपति का स्थान [[पिता]] का था। उसके बाद उत्तराधिकारी ज्येष्ठ पुत्र गृहपति की पदवी धारण करता था।
 
*सामान्यतः गृहपति का स्थान [[पिता]] का था। उसके बाद उत्तराधिकारी ज्येष्ठ पुत्र गृहपति की पदवी धारण करता था।
 
*प्रत्येक जनपद में फैले हुए कुल के इस ताने-बाने को ‘गार्हपत संस्था’ कहते थे।
 
*प्रत्येक जनपद में फैले हुए कुल के इस ताने-बाने को ‘गार्हपत संस्था’ कहते थे।
*[[पाणिनि]] ने [[कुरु जनपद]] के गृहपतियों की संस्था को ‘कुरुगार्हपत’ कहा है।  6/2 /42
+
*[[पाणिनि]] ने [[कुरु जनपद]] के गृहपतियों की संस्था को ‘कुरुगार्हपत’ कहा है।<ref> 6/2 /42</ref>
 
*[[कात्यायन]] ने [[वृज्जि जनपद]] अर्थात उत्तरी बिहार के कुलों के लिए ‘वृजि गार्हपत’ शब्द का प्रयोग किया है।  
 
*[[कात्यायन]] ने [[वृज्जि जनपद]] अर्थात उत्तरी बिहार के कुलों के लिए ‘वृजि गार्हपत’ शब्द का प्रयोग किया है।  
  

08:10, 22 अप्रैल 2018 का अवतरण

गार्हपत संस्था पाणिनिकालीन भारतवर्ष में किसी कुल के सदस्यों के प्रत्येक जनपद में फैले हुए ताने-बाने को कहा जाता था।[1]

  • पाणिनिकालीन समाज की सबसे महत्वपूर्ण इकाई गृह थी। गृह का स्वामी गृहपति उस गृह की अपेक्षा से सर्वाधिकार संपन्न माना जाता था।
  • सामान्यतः गृहपति का स्थान पिता का था। उसके बाद उत्तराधिकारी ज्येष्ठ पुत्र गृहपति की पदवी धारण करता था।
  • प्रत्येक जनपद में फैले हुए कुल के इस ताने-बाने को ‘गार्हपत संस्था’ कहते थे।
  • पाणिनि ने कुरु जनपद के गृहपतियों की संस्था को ‘कुरुगार्हपत’ कहा है।[2]
  • कात्यायन ने वृज्जि जनपद अर्थात उत्तरी बिहार के कुलों के लिए ‘वृजि गार्हपत’ शब्द का प्रयोग किया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 111 |
  2. 6/2 /42

संबंधित लेख