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'''द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन''' का आयोजन [[7 सितम्बर]], [[1931]] ई. को किया गया था। इस सम्मेलन की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसमें [[महात्मा गाँधी]] ने [[कांग्रेस]] के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। सम्मेलन में मुख्य रूप से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर सीटों के बँटवारे के जटिल प्रश्न पर विचार-विनिमय होता रहा, किन्तु इस प्रश्न पर परस्पर मतैक्य न हो सका। क्योंकि [[मुस्लिम]] प्रतिनिधियों को ऐसा विश्वास हो गया था कि [[हिन्दू|हिन्दुओं]] से समझौता करने की अपेक्षा [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से उन्हें अधिक सीटें प्राप्त हो सकेंगी। इस गतिरोध का लाभ उठाकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने '[[साम्प्रदायिक निर्णय]]' की घोषणा कर दी।
 
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==सम्मेलन का आयोजन==
 
==सम्मेलन का आयोजन==
'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' के समय [[ब्रिटेन]] के सर्वदलीय मंत्रिमण्डल में अनुदारवादियों का बहुमत था। अनुदारवादियों ने सैमुअल होर को भारतमंत्री एवं [[लॉर्ड विलिंगडन]] को [[भारत]] का [[वायसराय]] बनाया। 7 सितम्बर, 1931 ई. को सम्मेलन शुरू हुआ। गाँधी जी [[12 सितम्बर]] को 'एस.एस. राजपुताना' नामक जहाज़ से [[इंग्लैण्ड]] पहुँचे। इस सम्मेलन में वे कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे। [[एनी बेसेन्ट]] एवं [[मदन मोहन मालवीय]] व्यक्तिगत रूप से इंग्लैण्ड गये थे। एनी बेसेन्ट ने सम्मेलन में शामिल होकर भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। द्वितीय गोलमेल सम्मेलन में कुल 21 लोगों ने भाग लिया था।
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'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' के समय [[ब्रिटेन]] के सर्वदलीय मंत्रिमण्डल में अनुदारवादियों का बहुमत था। अनुदारवादियों ने सैमुअल होर को भारतमंत्री एवं [[लॉर्ड विलिंगडन]] को [[भारत]] का [[वायसराय]] बनाया। 7 सितम्बर, 1931 ई. को सम्मेलन शुरू हुआ। गाँधी जी [[12 सितम्बर]] को 'एस.एस. राजपूताना' नामक जहाज़ से [[इंग्लैण्ड]] पहुँचे। इस सम्मेलन में वे कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे। [[एनी बेसेन्ट]] एवं [[मदन मोहन मालवीय]] व्यक्तिगत रूप से इंग्लैण्ड गये थे। एनी बेसेन्ट ने सम्मेलन में शामिल होकर भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। द्वितीय गोलमेल सम्मेलन में कुल 21 लोगों ने भाग लिया था।
 
====साम्प्रादायिक समस्या====
 
====साम्प्रादायिक समस्या====
 
इस गोलमेज़ सम्मेलन में राजनीतिज्ञों की कुटिल चाल के कारण साम्प्रादायिक समस्या उभर कर सामने आयी। [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] एवं [[सिक्ख|सिक्खों]] के साथ अनुसूचित जाति के लोगों के लिए भी राजनीतिज्ञों ने भाग लिया। महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधियों में [[भीमराव अम्बेडकर]] ने पृथक् निर्वाचन की मांग की। गाँधी जी इससे बड़े दुःखी हुए। सम्मेलन में भारतीय संघ की रूपरेखा पर विचार-विमर्श हुआ। भारत में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की बात की गयी। अनेक प्रतिनिधयों ने केंद्र में '[[द्वैध शासन पद्धति|द्वैध शासन]]' अपनाने की बात की। हिन्दुओं तथा मुस्लिमों के गतिरोध का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने [[साम्प्रदायिक निर्णय]] की घोषणा कर दी, जिसमें केवल मान्य अल्पसख्यकों को ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के दलित वर्ग को भी अलग प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था थी। महात्मा गांधी ने इसका तीव्र विरोध किया और आमरण अनशन आरम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप [[कांग्रेस]] और ब्रिटिश सरकार में एक समझौता हुआ, जो '[[पूना समझौता]]' के नाम से विख्यात है। यद्यपि इस समझौते से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की समस्या का कोई संतोषजनक समाधान नहीं हुआ, तथापि इससे अच्छा कोई दूसरा हल न मिलने के कारण सभी दलों ने इसे मान लिया।
 
इस गोलमेज़ सम्मेलन में राजनीतिज्ञों की कुटिल चाल के कारण साम्प्रादायिक समस्या उभर कर सामने आयी। [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] एवं [[सिक्ख|सिक्खों]] के साथ अनुसूचित जाति के लोगों के लिए भी राजनीतिज्ञों ने भाग लिया। महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधियों में [[भीमराव अम्बेडकर]] ने पृथक् निर्वाचन की मांग की। गाँधी जी इससे बड़े दुःखी हुए। सम्मेलन में भारतीय संघ की रूपरेखा पर विचार-विमर्श हुआ। भारत में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की बात की गयी। अनेक प्रतिनिधयों ने केंद्र में '[[द्वैध शासन पद्धति|द्वैध शासन]]' अपनाने की बात की। हिन्दुओं तथा मुस्लिमों के गतिरोध का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने [[साम्प्रदायिक निर्णय]] की घोषणा कर दी, जिसमें केवल मान्य अल्पसख्यकों को ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के दलित वर्ग को भी अलग प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था थी। महात्मा गांधी ने इसका तीव्र विरोध किया और आमरण अनशन आरम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप [[कांग्रेस]] और ब्रिटिश सरकार में एक समझौता हुआ, जो '[[पूना समझौता]]' के नाम से विख्यात है। यद्यपि इस समझौते से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की समस्या का कोई संतोषजनक समाधान नहीं हुआ, तथापि इससे अच्छा कोई दूसरा हल न मिलने के कारण सभी दलों ने इसे मान लिया।

12:42, 1 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन 7 सितम्बर, 1931 ई. को किया गया था। इस सम्मेलन की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसमें महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। सम्मेलन में मुख्य रूप से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर सीटों के बँटवारे के जटिल प्रश्न पर विचार-विनिमय होता रहा, किन्तु इस प्रश्न पर परस्पर मतैक्य न हो सका। क्योंकि मुस्लिम प्रतिनिधियों को ऐसा विश्वास हो गया था कि हिन्दुओं से समझौता करने की अपेक्षा अंग्रेज़ों से उन्हें अधिक सीटें प्राप्त हो सकेंगी। इस गतिरोध का लाभ उठाकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने 'साम्प्रदायिक निर्णय' की घोषणा कर दी।

सम्मेलन का आयोजन

'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' के समय ब्रिटेन के सर्वदलीय मंत्रिमण्डल में अनुदारवादियों का बहुमत था। अनुदारवादियों ने सैमुअल होर को भारतमंत्री एवं लॉर्ड विलिंगडन को भारत का वायसराय बनाया। 7 सितम्बर, 1931 ई. को सम्मेलन शुरू हुआ। गाँधी जी 12 सितम्बर को 'एस.एस. राजपूताना' नामक जहाज़ से इंग्लैण्ड पहुँचे। इस सम्मेलन में वे कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे। एनी बेसेन्ट एवं मदन मोहन मालवीय व्यक्तिगत रूप से इंग्लैण्ड गये थे। एनी बेसेन्ट ने सम्मेलन में शामिल होकर भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। द्वितीय गोलमेल सम्मेलन में कुल 21 लोगों ने भाग लिया था।

साम्प्रादायिक समस्या

इस गोलमेज़ सम्मेलन में राजनीतिज्ञों की कुटिल चाल के कारण साम्प्रादायिक समस्या उभर कर सामने आयी। मुस्लिमों एवं सिक्खों के साथ अनुसूचित जाति के लोगों के लिए भी राजनीतिज्ञों ने भाग लिया। महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधियों में भीमराव अम्बेडकर ने पृथक् निर्वाचन की मांग की। गाँधी जी इससे बड़े दुःखी हुए। सम्मेलन में भारतीय संघ की रूपरेखा पर विचार-विमर्श हुआ। भारत में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की बात की गयी। अनेक प्रतिनिधयों ने केंद्र में 'द्वैध शासन' अपनाने की बात की। हिन्दुओं तथा मुस्लिमों के गतिरोध का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा कर दी, जिसमें केवल मान्य अल्पसख्यकों को ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के दलित वर्ग को भी अलग प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था थी। महात्मा गांधी ने इसका तीव्र विरोध किया और आमरण अनशन आरम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार में एक समझौता हुआ, जो 'पूना समझौता' के नाम से विख्यात है। यद्यपि इस समझौते से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की समस्या का कोई संतोषजनक समाधान नहीं हुआ, तथापि इससे अच्छा कोई दूसरा हल न मिलने के कारण सभी दलों ने इसे मान लिया।

गाँधी जी का कथन

1 दिसम्बर, 1931 ई. को 'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' बिना किसी ठोस निर्णय के समाप्त हो गया। 28 दिसम्बर को भारत पहुँचने पर स्वागत के लिए आयी हुई भीड़ को सम्बोधित करते हुए गाँधी जी ने कहा "मैं ख़ाली हाथ लौटा हूँ, परन्तु देश की इज्जत को मैंने बट्टा नहीं लगने दिया।" 'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' के समय फ़्रेंक मोरेस ने गाँधी जी के बारे में कहा "अर्ध नंगे फ़कीर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता हेतु सेण्ट जेम्स पैलेस की सीढ़ियाँ चढ़ने का दृश्य अपने आप में अनोखा एवं दिव्य प्रभाव उत्पन्न करने वाला था।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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