प्रीतिलता वादेदार

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प्रीतिलता वादेदार (अंग्रेज़ी: Pritilata Waddedar, जन्म- 5 मई, 1911; आत्म-बलिदान- 23 सितम्बर, 1932)) बंगाल की राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थीं। वह एक प्रतिभावान छात्रा थीं। प्रीतिलता वादेदार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की थी। ‘चटगांव शस्त्रागार काण्ड’ की घटना से प्रभावित होकर इन्होंने क्रांतिकारी मास्टर सूर्य सेन के दल की सदस्यता ले ली थी। 24 सितम्बर, 1932 को प्रीतिलता वादेदार ने ही सूर्य सेन के साथ मिलकर यूरोपीय क्लब पर हमला किया था।

परिचय

भारतीय स्वतंत्रता संगाम की महान क्रान्तिकारिणी प्रीतिलता वादेदार का जन्म 5 मई, 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (अब बांग्लादेश) में स्थित चटगाँव के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता नगरपालिका के क्लर्क थे। उन्होंने सन् 1928 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। इसके बाद सन् 1929 में उन्होंने ढाका के इडेन कॉलेज में प्रवेश लिया और इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं। दो वर्ष बाद प्रीतिलता ने कोलकाता के बेथुन कॉलेज से दर्शनशास्त्र से स्नातक परीक्षा उत्तिर्ण की। कोलकाता विश्वविद्यालय के ब्रितानी अधिकारियों ने उनकी डिग्री को रोक दिया। उन्हें 80 वर्ष बाद मरणोपरान्त यह डिग्री प्रदान की गयी। शिक्षा उपरान्त उन्होंने परिवार की मदद के लिए एक पाठशाला में नौकरी शुरू की।

सूर्य सेन से भेंट

पाठशाला की नौकरी करते हुए प्रीतिलता वादेदार की भेट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई। प्रीतिलता उनके दल की सक्रिय सदस्य बन गईं। प्रीतिलता जब सूर्य सेन से मिलीं, तब वे अज्ञातवास में थे। उनका एक साथी रामकृष्ण विश्वास कलकत्ता के अलीपुर जेल में था। उनको फांसी की सज़ा सुनाई गयी थी। उनसे मिलना आसान नहीं था। लेकिन प्रीतिलता उनसे कारागार में लगभग चालीस बार मिलीं और किसी अधिकारी को उन पर सशंय भी नही हुआ। यह था, उनकी बुद्धिमत्ता और बहादुरी का प्रमाण। इसके बाद वे सूर्य सेन के नेतृत्त्व कि इन्डियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनिक बनीं।

यूरोपीय क्लब पर धावा

पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रान्तिकारियों को पुलिस ने घेर लिया था। घिरे हुए क्रान्तिकारियों में अपूर्व सेन, निर्मल सेन, प्रीतिलता और सूर्य सेन आदि थे। सूर्य सेन ने लड़ाई करने का आदेश दिया। अपूर्व सेन और निर्मल सेन शहीद हो गये। सूर्य सेन की गोली से कैप्टन कैमरान मारा गया। सूर्य सेन और प्रीतिलता लड़ते-लड़ते भाग गये। क्रांतिकारी सूर्य सेन पर 10 हजार रूपये का इनाम घोषित था। दोनों एक सावित्री नाम की महिला के घर गुप्त रूप से रहे। वह महिला क्रान्तिकारियो को आश्रय देने के कारण अंग्रेजों का कोपभाजन बनी। सूर्य सेन ने अपने साथियों का बदला लेने की योजना बनाई। योजना यह थी की पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच-गाने में मग्न अंग्रेजों को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया जाए।

प्रीतिलता वादेदार के नेतृत्त्व में कुछ क्रांतिकारी वहाँ पहुंचे। 24 सितम्बर 1932 की रात इस काम के लिए निश्चित की गयी। हथियारों से लैस प्रीतिलता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था। पूरी तैयारी के साथ वह क्लब पहुंची। बाहर से खिड़की में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कांपने लगी। नाच-रंग के वातावरण में एकाएक चीखें सुनाई देने लगीं।

आत्म बलिदान

13 अंग्रेज़ जख्मी हो गये और बाकी भाग गये। इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी। थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी। वे घायल अवस्था में भागीं, लेकिन फिर गिरीं और पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। इतनी कम उम्र में उन्होंने झांसी की रानी का रास्ता अपनाया और उन्हीं की तरह अंतिम समय तक अंग्रेजोंं से लड़ते हुए स्वंय ही मृत्यु का वरण कर लिया।

प्रीतिलता वादेदार के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों को तलाशी लेने पर जो पत्र मिले, उनमें एक छपा हुआ पत्र था। इस पत्र में छपा था कि- "चटगाँव शस्त्रागार काण्ड के बाद जो मार्ग अपनाया जाएगा, वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगी"।​

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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