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*([[संस्कृत]] शब्द [[वाणिज्य]] से उत्पन्न), सामान्यत: पैसा उधार देने वालों अथवा व्यापारियों का भारतीय जाति, मुख्यत: उत्तरी और पश्चिमी [[भारत]] में पाई जाती हैं हालाकि संकीर्ण अर्थ में कई व्यापारी समुदाय बनिए नहीं हैं और विलोमत: कुछ बनिए व्यापारी नहीं हैं।  
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*([[संस्कृत]] शब्द [[वाणिज्य]] से उत्पन्न), सामान्यत: पैसा उधार देने वालों अथवा व्यापारियों का भारतीय [[जाति]], मुख्यत: उत्तरी और पश्चिमी [[भारत]] में पाई जाती हैं हालाकि संकीर्ण अर्थ में कई व्यापारी समुदाय बनिए नहीं हैं और विलोमत: कुछ बनिए व्यापारी नहीं हैं।
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*भारतीय समाज की चतुष्वर्णीय व्यवस्था में असंख्य बनिया उपजातियों, जैसे अग्रवाल को वैश्य वर्ण का सदस्य माना जाता है।  
 
*भारतीय समाज की चतुष्वर्णीय व्यवस्था में असंख्य बनिया उपजातियों, जैसे अग्रवाल को वैश्य वर्ण का सदस्य माना जाता है।  
 
*धार्मिक अर्थों में वे सामान्यत: [[वैष्णव]] या [[जैन]] होते हैं और पूर्णत: शाकाहारी, मद्यत्यागी और आनुष्ठानिक पवित्रता के पालन में रूढ़िवादी होते हैं।  
 
*धार्मिक अर्थों में वे सामान्यत: [[वैष्णव]] या [[जैन]] होते हैं और पूर्णत: शाकाहारी, मद्यत्यागी और आनुष्ठानिक पवित्रता के पालन में रूढ़िवादी होते हैं।  
 
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12:53, 11 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

  • (संस्कृत शब्द वाणिज्य से उत्पन्न), सामान्यत: पैसा उधार देने वालों अथवा व्यापारियों का भारतीय जाति, मुख्यत: उत्तरी और पश्चिमी भारत में पाई जाती हैं हालाकि संकीर्ण अर्थ में कई व्यापारी समुदाय बनिए नहीं हैं और विलोमत: कुछ बनिए व्यापारी नहीं हैं।
  • भारतीय समाज की चतुष्वर्णीय व्यवस्था में असंख्य बनिया उपजातियों, जैसे अग्रवाल को वैश्य वर्ण का सदस्य माना जाता है।
  • धार्मिक अर्थों में वे सामान्यत: वैष्णव या जैन होते हैं और पूर्णत: शाकाहारी, मद्यत्यागी और आनुष्ठानिक पवित्रता के पालन में रूढ़िवादी होते हैं।
  • महात्मा गांधी गुजराती बनिया जाति के थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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