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ब्रिगेडियर नील जेम्स प्रथम स्वाधीनता संग्राम (तथाकथित सिपाही विद्रोह) के दिनों में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की सेना का एक उच्च अधिकारी था। [[11 जून]], 1857 ई. को उसने एक साहसिक धावे के उपरान्त [[इलाहाबाद]] के क़िले पर उसी समय अधिकार कर लिया, जब वह दुर्ग विद्रोहियों के हाथों में जाने ही वाला था। शीघ्र ही वहाँ जनरल हैवलाक के नेतृत्व में एक और ब्रिटिश टुकड़ी उससे आ मिली। इस प्रकार स्थिति और भी मज़बूत हो जाने पर हैवलाक और नील के नेतृत्व में [[अंग्रेज़]] सेनाएँ [[कानपुर]] की ओर चल पड़ीं।  
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'''ब्रिगेडियर नील जेम्स''' प्रथम स्वाधीनता संग्राम (तथाकथित सिपाही विद्रोह) के दिनों में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की सेना का एक उच्च अधिकारी था। [[11 जून]], 1857 ई. को उसने एक साहसिक धावे के उपरान्त [[इलाहाबाद]] के क़िले पर उसी समय अधिकार कर लिया, जब वह दुर्ग विद्रोहियों के हाथों में जाने ही वाला था। शीघ्र ही वहाँ जनरल हैवलाक के नेतृत्व में एक और ब्रिटिश टुकड़ी उससे आ मिली। इस प्रकार स्थिति और भी मज़बूत हो जाने पर हैवलाक और नील के नेतृत्व में [[अंग्रेज़]] सेनाएँ [[कानपुर]] की ओर चल पड़ीं।  
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इलाहाबाद से कानपुर तक के मार्ग में नील ने, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर, अपनी नृशंस बर्बरता का परिचय दिया और मार्ग के गाँवों को निरीह निर्दोष भारतीय जनता को मौत के घाट उतारता चला गया। इस प्रकार उसने प्रतिशोध की ऐसी ज्वाला धधका दी, जिसका प्रतिफल भारतीयों तथा [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] दोनों को ही भुगतना पड़ा। नील और उसकी सेनाओं के कानपुर पहुँचने के पूर्व ही बीबीगढ़ का दुखद कांड हो चुका था। नील और हैवलाक ने शीघ्र ही कानपुर पर अधिकार कर लिया और नील वहीं पर ही रुक गया। वहाँ पर उसने अपनी प्रतिशोध भावना का अत्यन्त वीभत्स प्रदर्शन किया तथा हैवलाक के सहायतार्थ जब वह कानपुर से [[लखनऊ]] को चला तो मार्ग में जिस किसी भारतीय को वह पकड़ पाता, उसे पेड़ पर लटकाकर फ़ाँसी दे देता था। किन्तु लखनऊ पहुँचने पर वहाँ की गलियों में युद्ध करता हुआ वह मौत के घाट उतार दिया गया।  
 
इलाहाबाद से कानपुर तक के मार्ग में नील ने, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर, अपनी नृशंस बर्बरता का परिचय दिया और मार्ग के गाँवों को निरीह निर्दोष भारतीय जनता को मौत के घाट उतारता चला गया। इस प्रकार उसने प्रतिशोध की ऐसी ज्वाला धधका दी, जिसका प्रतिफल भारतीयों तथा [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] दोनों को ही भुगतना पड़ा। नील और उसकी सेनाओं के कानपुर पहुँचने के पूर्व ही बीबीगढ़ का दुखद कांड हो चुका था। नील और हैवलाक ने शीघ्र ही कानपुर पर अधिकार कर लिया और नील वहीं पर ही रुक गया। वहाँ पर उसने अपनी प्रतिशोध भावना का अत्यन्त वीभत्स प्रदर्शन किया तथा हैवलाक के सहायतार्थ जब वह कानपुर से [[लखनऊ]] को चला तो मार्ग में जिस किसी भारतीय को वह पकड़ पाता, उसे पेड़ पर लटकाकर फ़ाँसी दे देता था। किन्तु लखनऊ पहुँचने पर वहाँ की गलियों में युद्ध करता हुआ वह मौत के घाट उतार दिया गया।  
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06:19, 5 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

ब्रिगेडियर नील जेम्स प्रथम स्वाधीनता संग्राम (तथाकथित सिपाही विद्रोह) के दिनों में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना का एक उच्च अधिकारी था। 11 जून, 1857 ई. को उसने एक साहसिक धावे के उपरान्त इलाहाबाद के क़िले पर उसी समय अधिकार कर लिया, जब वह दुर्ग विद्रोहियों के हाथों में जाने ही वाला था। शीघ्र ही वहाँ जनरल हैवलाक के नेतृत्व में एक और ब्रिटिश टुकड़ी उससे आ मिली। इस प्रकार स्थिति और भी मज़बूत हो जाने पर हैवलाक और नील के नेतृत्व में अंग्रेज़ सेनाएँ कानपुर की ओर चल पड़ीं।

प्रतिशोध की भावना

इलाहाबाद से कानपुर तक के मार्ग में नील ने, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर, अपनी नृशंस बर्बरता का परिचय दिया और मार्ग के गाँवों को निरीह निर्दोष भारतीय जनता को मौत के घाट उतारता चला गया। इस प्रकार उसने प्रतिशोध की ऐसी ज्वाला धधका दी, जिसका प्रतिफल भारतीयों तथा अंग्रेज़ों दोनों को ही भुगतना पड़ा। नील और उसकी सेनाओं के कानपुर पहुँचने के पूर्व ही बीबीगढ़ का दुखद कांड हो चुका था। नील और हैवलाक ने शीघ्र ही कानपुर पर अधिकार कर लिया और नील वहीं पर ही रुक गया। वहाँ पर उसने अपनी प्रतिशोध भावना का अत्यन्त वीभत्स प्रदर्शन किया तथा हैवलाक के सहायतार्थ जब वह कानपुर से लखनऊ को चला तो मार्ग में जिस किसी भारतीय को वह पकड़ पाता, उसे पेड़ पर लटकाकर फ़ाँसी दे देता था। किन्तु लखनऊ पहुँचने पर वहाँ की गलियों में युद्ध करता हुआ वह मौत के घाट उतार दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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