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==स्वामी दयानन्द का प्रभाव==
 
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लाला लाजपत राय [[दयानन्द सरस्वती|स्वामी दयानन्द सरस्वती]] से काफ़ी प्रभावित थे। [[पंजाब]] के 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना के लिए भी उन्होंने अथक प्रयास किये थे। स्वामी दयानन्द के साथ मिलकर उन्होंने [[आर्य समाज]] को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने 'दयानंद कॉलेज' के लिए कोष इकट्ठा करने का काम भी किया। डी.ए.वी. कॉलेज पहले [[लाहौर]] में स्थापित किया था। [[लाला हंसराज]] के साथ 'दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों' (डी.ए.वी.) का प्रसार किया। लाजपत राय की आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद एवं उनके कार्यों के प्रति अनन्य निष्ठा थी। स्वामी जी के देहावसान के बाद उन्होंने आर्य समाज के कार्यों को पूरा करने के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। [[हिन्दू धर्म]] में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष, प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति में समन्वय, [[हिन्दी भाषा]] की श्रेष्ठता और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आर-पार की लड़ाई आर्य समाज से मिले संस्कारों के ही परिणाम थे।
 
लाला लाजपत राय [[दयानन्द सरस्वती|स्वामी दयानन्द सरस्वती]] से काफ़ी प्रभावित थे। [[पंजाब]] के 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना के लिए भी उन्होंने अथक प्रयास किये थे। स्वामी दयानन्द के साथ मिलकर उन्होंने [[आर्य समाज]] को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने 'दयानंद कॉलेज' के लिए कोष इकट्ठा करने का काम भी किया। डी.ए.वी. कॉलेज पहले [[लाहौर]] में स्थापित किया था। [[लाला हंसराज]] के साथ 'दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों' (डी.ए.वी.) का प्रसार किया। लाजपत राय की आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद एवं उनके कार्यों के प्रति अनन्य निष्ठा थी। स्वामी जी के देहावसान के बाद उन्होंने आर्य समाज के कार्यों को पूरा करने के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। [[हिन्दू धर्म]] में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष, प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति में समन्वय, [[हिन्दी भाषा]] की श्रेष्ठता और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आर-पार की लड़ाई आर्य समाज से मिले संस्कारों के ही परिणाम थे।
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लाला लाजपत राय, [[बाल गंगाधर तिलक|बालगंगाधर तिलक]] और [[विपिनचंद्र पाल]] को 'लाल-बाल-पाल' के नाम से जाना जाता है। इन नेताओं ने सबसे पहले [[भारत]] की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग उठाई थी।
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[[इटली]] के क्रांतिकारी मैजिनी को लाजपत राय अपना आदर्श मानते थे। किसी पुस्तक में उन्होंने जब मैजिनी का भाषण पढ़ा तो उससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मैजिनी की जीवनी पढ़नी चाही। वह [[भारत]] में उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने उसे इंग्लैण्ड से मंगवाया। मैजिनी द्वारा लिखी गई अभूतपूर्व पुस्तक ‘ड्यूटीज ऑफ़ मैन’ का लाला लाजपत राय ने [[उर्दू]] में अनुवाद किया। इस [[पांडुलिपि]] को उन्होंने लाहौर के एक पत्रकार को पढ़ने के लिए दिया। उसने उसमें थोड़ा बहुत संसोधन किया और अपने नाम से छपवा लिया।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/home.php?bookid=3988|title= लाला लाजपत राय|accessmonthday=16 मई|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= भारतीय साहित्य संग्रह|language= हिन्दी}}</ref>
 
==कांग्रेस के कार्यकर्ता==
 
==कांग्रेस के कार्यकर्ता==
 
लाला लाजपत राय जब [[हिसार]] में वकालत करते थे, तब उन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। [[1892]] में वे लाहौर चले गए। उनके [[हृदय]] में राष्ट्रीय भावना भी बचपन से ही अंकुरित हो उठी थी। [[चित्र:Lala-Lajpath-Rai.jpg|thumb|250px|left|लाला लाजपत राय की प्रतिमा]] [[1888]] के कांग्रेस के 'प्रयाग सम्मेलन' में वे मात्र 23 [[वर्ष]] की आयु में शामिल हुए थे। कांग्रेस के 'लाहौर अधिवेशन' को सफल बनाने में आपका ही हाथ था। वे 'हिसार नगर निगम' के सदस्य चुने गए थे और फिर बाद में सचिव भी चुन लिए गए।
 
लाला लाजपत राय जब [[हिसार]] में वकालत करते थे, तब उन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। [[1892]] में वे लाहौर चले गए। उनके [[हृदय]] में राष्ट्रीय भावना भी बचपन से ही अंकुरित हो उठी थी। [[चित्र:Lala-Lajpath-Rai.jpg|thumb|250px|left|लाला लाजपत राय की प्रतिमा]] [[1888]] के कांग्रेस के 'प्रयाग सम्मेलन' में वे मात्र 23 [[वर्ष]] की आयु में शामिल हुए थे। कांग्रेस के 'लाहौर अधिवेशन' को सफल बनाने में आपका ही हाथ था। वे 'हिसार नगर निगम' के सदस्य चुने गए थे और फिर बाद में सचिव भी चुन लिए गए।
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लाला लाजपत राय ने 1920 में [[कोलकाता|कलकत्ता]] में [[कांग्रेस]] के एक विशेष सत्र में भाग लिया। वे [[महात्मा गाँधी]] द्वारा अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ शुरू किए गए [[असहयोग आंदोलन]] में कूद पड़े, जो सैद्धांतिक तौर पर [[रॉलेक्ट एक्ट]] के विरोध में चलाया जा रहा था। सन 1920 में उन्होंने [[पंजाब]] में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण [[1921]] में आपको जेल हुई। इसके बाद लालाजी ने 'लोक सेवक संघ' की स्थापना की। उनके नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल की आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे 'पंजाब का शेर' या 'पंजाब केसरी' जैसे नामों से पुकारे जाने लगे।
 
लाला लाजपत राय ने 1920 में [[कोलकाता|कलकत्ता]] में [[कांग्रेस]] के एक विशेष सत्र में भाग लिया। वे [[महात्मा गाँधी]] द्वारा अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ शुरू किए गए [[असहयोग आंदोलन]] में कूद पड़े, जो सैद्धांतिक तौर पर [[रॉलेक्ट एक्ट]] के विरोध में चलाया जा रहा था। सन 1920 में उन्होंने [[पंजाब]] में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण [[1921]] में आपको जेल हुई। इसके बाद लालाजी ने 'लोक सेवक संघ' की स्थापना की। उनके नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल की आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे 'पंजाब का शेर' या 'पंजाब केसरी' जैसे नामों से पुकारे जाने लगे।
 
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लाला लाजपत राय, [[बाल गंगाधर तिलक|बालगंगाधर तिलक]] और [[विपिनचंद्र पाल]] को 'लाल-बाल-पाल' के नाम से जाना जाता है। इन नेताओं ने सबसे पहले [[भारत]] की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग उठाई थी।
 
==निधन==
 
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इस घटना के 17 दिन बाद यानि [[17 नवम्बर]], 1928 को लाला जी ने आख़िरी सांस ली और सदा के लिए अपनी [[आँख|आँखें]] मूँद लीं।
==देश भक्तों की प्रतिज्ञा==
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==लालाजी की मृत्यु का प्रतिशोध==
 
लालाजी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और [[17 दिसंबर]], 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई।
 
लालाजी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और [[17 दिसंबर]], 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई।
==श्रद्धांजलि==
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====गाँधीजी द्वारा श्रद्धांजलि====
 
लाला जी को श्रद्धांजलि देते हुए [[महात्मा गाँधी]] ने कहा था-
 
लाला जी को श्रद्धांजलि देते हुए [[महात्मा गाँधी]] ने कहा था-
 
<blockquote>"भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी। वे अमर रहेंगे।" - महात्मा गाँधी</blockquote>
 
<blockquote>"भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी। वे अमर रहेंगे।" - महात्मा गाँधी</blockquote>
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13:13, 16 मई 2015 का अवतरण

लाला लाजपत राय
Lala-Lajpat-Rai.jpg
पूरा नाम लाला लाजपत राय
अन्य नाम लालाजी
जन्म 28 जनवरी, 1865
जन्म भूमि मोगा ज़िला, पंजाब
मृत्यु 17 नवंबर, 1928
मृत्यु स्थान लाहौर, अविभाजित भारत
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
पार्टी कांग्रेस
शिक्षा वक़ालत
विद्यालय राजकीय कॉलेज, लाहौर
जेल यात्रा 3 मई, 1907, असहयोग आंदोलन (1921)
विशेष योगदान 'इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका' नाम से एक संगठन की स्थापना की, अछूत कांफ्रेस का आयोजन
संबंधित लेख बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल
रचनाएँ 'पंजाब केसरी', 'यंग इंण्डिया', 'भारत का इंग्लैंड पर ऋण', 'भारत के लिए आत्मनिर्णय', 'तरुण भारत'।
अन्य जानकारी लालाजी ने अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में अक्टूबर, 1917 में 'इंडियन होमरूल लीग ऑफ़ अमेरिका' नाम से एक संगठन की स्थापना की थी। 20 फ़रवरी, 1920 को जब वे भारत लौटे, उस समय तक वे देशवासियों के लिए एक नायक बन चुके थे।

लाला लाजपत राय (अंग्रेज़ी: Lala Lajpat Rai, जन्म- 28 जनवरी, 1865 ई., मोगा ज़िला, पंजाब; मृत्यु- 17 नवंबर, 1928 ई., लाहौर, अविभाजित भारत) को भारत के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को 'पंजाब केसरी' भी कहा जाता है। लालाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 'गरम दल' के प्रमुख नेता तथा पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। उन्हें 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर हिसार में वकालत प्रारम्भ की थी, किन्तु बाद में स्वामी दयानंद के सम्पर्क में आने के कारण वे आर्य समाज के प्रबल समर्थक बन गये। यहीं से उनमें उग्र राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। लालाजी को पंजाब में वही स्थान प्राप्त था, जो महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक को।

जन्म

लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा ज़िले में 28 जनवरी, सन 1865 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम लाला राधाकृष्ण अग्रवाल था। बालक के जन्म की खबर पूरे गाँव में फैल गई थी। बालक के मुखमंडल को देखकर गाँव के लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। माता-पिता बड़े लाड़-प्यार से अपने बालक का लालन-पालन करते रहे। वे प्यार से उसे लाजपत राय कहकर बुलाते थे। लाजपत राय के पिता वैश्य थे, किंतु उनकी माती सिक्ख परिवार से थीं। दोनों के धार्मिक विचार भिन्न-भिन्न थे। इनकी माता एक साधारण महिला थीं। वे एक हिन्दू नारी की तरह ही अपने पति की सेवा करती थीं।[1]

शिक्षा

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद लाजपत राय ने क़ानून की उपाधि प्राप्त करने के लिए 1880 ई. में लाहौर के 'राजकीय कॉलेज' में प्रवेश ले लिया। इस दौरान वे आर्य समाज के आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने क़ानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद जगरांव में वक़ालत शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वक़ालत की।

स्वामी दयानन्द का प्रभाव

लाला लाजपत राय स्वामी दयानन्द सरस्वती से काफ़ी प्रभावित थे। पंजाब के 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना के लिए भी उन्होंने अथक प्रयास किये थे। स्वामी दयानन्द के साथ मिलकर उन्होंने आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने 'दयानंद कॉलेज' के लिए कोष इकट्ठा करने का काम भी किया। डी.ए.वी. कॉलेज पहले लाहौर में स्थापित किया था। लाला हंसराज के साथ 'दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों' (डी.ए.वी.) का प्रसार किया। लाजपत राय की आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद एवं उनके कार्यों के प्रति अनन्य निष्ठा थी। स्वामी जी के देहावसान के बाद उन्होंने आर्य समाज के कार्यों को पूरा करने के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष, प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति में समन्वय, हिन्दी भाषा की श्रेष्ठता और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आर-पार की लड़ाई आर्य समाज से मिले संस्कारों के ही परिणाम थे।

आदर्श

इटली के क्रांतिकारी मैजिनी को लाजपत राय अपना आदर्श मानते थे। किसी पुस्तक में उन्होंने जब मैजिनी का भाषण पढ़ा तो उससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मैजिनी की जीवनी पढ़नी चाही। वह भारत में उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने उसे इंग्लैण्ड से मंगवाया। मैजिनी द्वारा लिखी गई अभूतपूर्व पुस्तक ‘ड्यूटीज ऑफ़ मैन’ का लाला लाजपत राय ने उर्दू में अनुवाद किया। इस पांडुलिपि को उन्होंने लाहौर के एक पत्रकार को पढ़ने के लिए दिया। उसने उसमें थोड़ा बहुत संसोधन किया और अपने नाम से छपवा लिया।[2]

कांग्रेस के कार्यकर्ता

लाला लाजपत राय जब हिसार में वकालत करते थे, तब उन्होंने कांग्रेस की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। 1892 में वे लाहौर चले गए। उनके हृदय में राष्ट्रीय भावना भी बचपन से ही अंकुरित हो उठी थी।

लाला लाजपत राय की प्रतिमा

1888 के कांग्रेस के 'प्रयाग सम्मेलन' में वे मात्र 23 वर्ष की आयु में शामिल हुए थे। कांग्रेस के 'लाहौर अधिवेशन' को सफल बनाने में आपका ही हाथ था। वे 'हिसार नगर निगम' के सदस्य चुने गए थे और फिर बाद में सचिव भी चुन लिए गए।

समाज सेवी

वे स्वभाव से ही समाज सेवी थे। 1897 और 1899 के देशव्यापी अकाल के समय वे पीड़ितों की सेवा में जी जान से जुटे रहे। जब देश के कई हिस्सों में अकाल पड़ा तो लालाजी राहत कार्यों में सबसे अग्रिम मोर्चे पर दिखाई दिए। देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया। लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की। लाला लाजपत राय के व्यक्तित्व के बारे में तत्कालीन मशहूर अंग्रेज़ लेखक विन्सन ने लिखा था- "लाजपत राय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित ग़रीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी। इस क्षेत्र में अंग्रेज़ी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।" 1901-1908 की अवधि में उन्हें फिर भूकम्प एवं अकाल पीड़ितों की मदद के लिए सामने आना पड़ा।

स्वदेशी आन्दोलन

लाला लाजपत राय ने देशभर में स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया। अंग्रेज़ों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेज़ों के इस फैसले का जमकर विरोध किया। 3 मई, 1907 को ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें रावलपिंडी में गिरफ़्तार कर लिया। रिहा होने के बाद भी लालाजी आज़ादी के लिए लगातार संघर्ष करते रहे।

निर्वासन

Blockquote-open.gif "लाजपत राय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित ग़रीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी। इस क्षेत्र में अंग्रेज़ी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।"- विन्सन Blockquote-close.gif

गोपाल कृष्ण गोखले के साथ एक प्रतिनिधिमंडल में लाला लाजपत राय इंग्लैंड गए। वहाँ से जापान जाने में अपने देश का हित देखा तो चले गए। लालाजी कहीं भारतीय सैनिकों की भर्ती में व्यवधान न खड़ा कर दें, इसलिए सरकार ने उनको भारत आने की अनुमति नहीं दी। 1907 में उन्हें 6 माह का निर्वासन सहना पड़ा था। वे कई बार इंग्लैंड गए, जहाँ उन्होंने भारत की स्थिति में सुधार के लिए अंग्रेज़ों से विचार-विमर्श किया। प्रथम विश्व युद्ध के समय लालाजी ने अमरीका जाकर वहाँ के जनमत को अपने अनुकूल बनाने का भी सराहनीय प्रयास किया था। उन्होंने अमेरिका पहुँचकर वहाँ के न्यूयॉर्क शहर में अक्टूबर, 1917 में 'इंडियन होमरूल लीग ऑफ़ अमेरिका' नाम से एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने 'तरुण भारत' नामक एक देशप्रेम तथा नवजागृति से परिपूर्ण पुस्तक लिखी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने 'यंग इंण्डिया' नामक मासिक पत्र भी निकाला। इसी दौरान उन्होंने 'भारत का इंग्लैंड पर ऋण', 'भारत के लिए आत्मनिर्णय' आदि पुस्तकें लिखीं, जो यूरोप की प्रमुख भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। लालाजी परदेश में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए काम करते रहे। अपने चार वर्ष के प्रवास काल में उन्होंने 'इंडियन इन्फार्मेशन' और 'इंडियन होमरूल' दो संस्थाएं सक्रियता से चलाईं। लाला लाजपत राय ने जागरूकता और स्वतंत्रता के प्रयास किए। 'लोक सेवक मंडल' स्थापित करने के साथ ही वह राजनीति में आए।

हरिजन उद्धार

सन 1912 में लाला लाजपत राय ने एक 'अछूत कांफ्रेस' आयोजित की थी, जिसका उद्देश्य हरिजनों के उद्धार के लिये ठोस कार्य करना था।

'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के अध्यक्ष

द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद राजनीतिक आन्दोलनों में काफ़ी तेज़ी आ गई थी, जिसके फलस्वरूप श्रमिकों के आन्दोलनों को बल मिला। रूस में 1918 ई. की 'साम्यवादी क्रांति' ने भारतीय मज़दूर संघों को प्रोत्साहित किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 'अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर संघ' (आई.एल.ओ.) की स्थापना हुई। वी.पी. वाडिया ने भारत में आधुनिक श्रमिक संघ 'मद्रास श्रमिक संघ' की स्थापना की। उन्हीं के प्रयासों से 1926 ई. में 'श्रमिक संघ अधिनियम' पारित किया गया। 1920 ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (ए.आई.टी.यू.सी.) में तत्कालीन, लगभग 64 श्रमिक संघ शामिल हो गये। एन. एम. जोशी, लाला लाजपत राय एवं जोसेफ़ बैपटिस्टा के प्रयत्नों से 1920 ई. में स्थापित 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' पर वामपंथियों का प्रभाव बढ़ने लगा। 'एटक' (ए.आई.टी.यू.सी) के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। यह सम्मेलन 1920 ई. में बम्बई में हुआ था। इसके उपाध्यक्ष जोसेफ़ बैप्टिस्टा तथा महामंत्री दीवान चमनलाल थे।

ओजस्वी लेखक

लाला लाजपत राय जीवनपर्यंत राष्ट्रीय हितों के लिए जूझते रहे। वे उच्च कोटि के राजनीतिक नेता ही नहीं थे, अपितु ओजस्वी लेखक और प्रभावशाली वक्ता भी थे। 'बंगाल की खाड़ी' में हज़ारों मील दूर मांडले जेल में लाला लाजपत राय का किसी से भी किसी प्रकार का कोई संबंध या संपर्क नहीं था। अपने इस समय का उपयोग उन्होंने लेखन कार्य में किया। लालाजी ने भगवान श्रीकृष्ण, अशोक, शिवाजी, स्वामी दयानंद सरस्वती, गुरुदत्त, मत्सीनी और गैरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनियाँ भी लिखी। 'नेशनल एजुकेशन', 'अनहैप्पी इंडिया' और 'द स्टोरी ऑफ़ माई डिपोर्डेशन' उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं। उन्होंने 'पंजाबी', 'वंदे मातरम्‌' (उर्दू) और 'द पीपुल' इन तीन समाचार पत्रों की स्थापना करके इनके माध्यम से देश में 'स्वराज' का प्रचार किया। लाला लाजपत राय ने उर्दू दैनिक 'वंदे मातरम्‌' में लिखा था-

"मेरा मजहब हक़परस्ती है, मेरी मिल्लत कौमपरस्ती है, मेरी इबादत खलकपरस्ती है, मेरी अदालत मेरा जमीर है, मेरी जायदाद मेरी कलम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं।"

जब वे जेल से लौटे तो विकट समस्याएँ सामने थीं। 1914 में विश्वयुद्ध छिड़ गया था और विदेशी सरकार ने भारतीय सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी थी।

असहयोग आंदोलन में सहभागिता

लाला लाजपत राय ने 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में भाग लिया। वे महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, जो सैद्धांतिक तौर पर रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में चलाया जा रहा था। सन 1920 में उन्होंने पंजाब में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण 1921 में आपको जेल हुई। इसके बाद लालाजी ने 'लोक सेवक संघ' की स्थापना की। उनके नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल की आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे 'पंजाब का शेर' या 'पंजाब केसरी' जैसे नामों से पुकारे जाने लगे।

लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और बिपिनचंद्र पाल
Lala Lajpat, Bal Gangadhar Tilak and Bipinchandra Pal

लाल-बाल-पाल

लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल को 'लाल-बाल-पाल' के नाम से जाना जाता है। इन नेताओं ने सबसे पहले भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग उठाई थी।

निधन

3 फ़रवरी, 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुँचा, जिसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी। लाहौर में 30 अक्टूबर, 1928 को एक बड़ी घटना घटी, जब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने लाला लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियाँ बरसाईं। वे बुरी तरह घायल हो गए। इस समय अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा था-

मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के क़फन की कील बनेगी।

और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आज़ादी मिली।

इस घटना के 17 दिन बाद यानि 17 नवम्बर, 1928 को लाला जी ने आख़िरी सांस ली और सदा के लिए अपनी आँखें मूँद लीं।

लालाजी की मृत्यु का प्रतिशोध

लालाजी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसंबर, 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई।

गाँधीजी द्वारा श्रद्धांजलि

लाला जी को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गाँधी ने कहा था-

"भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी। वे अमर रहेंगे।" - महात्मा गाँधी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लाला लाजपतराय (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) मनोज पब्लिकेशन। अभिगमन तिथि: 1अगस्त, 2010।
  2. लाला लाजपत राय (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 16 मई, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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