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[[चित्र:Surpanakha.jpg|thumb|300px|[[लक्ष्मण]] शूर्पणखा की नाक काटते हुए]]
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'''शूर्पणखा''' एक प्रसिद्ध पौराणिक चरित्र है, जो [[लंका]] के [[रावण|राजा रावण]] की बहन थी। '''शूर्पवत् नखानि यस्या सा शूर्पणखा''' अर्थात- "जिसके नख सूप के समान हों।" '[[रामायण]]', '[[रामचरितमानस]]', '[[रामचन्द्रिका]]', '[[साकेत (महाकाव्य)|साकेत]]', 'साकेत सन्त', पंचवटी' आदि रामकथा- सम्बन्धी काव्य-ग्रन्थों में शूर्पणखा का प्रसंग वर्णित हुआ है।
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==रामायण के अनुसार==
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शूर्पणखा लंका के राजा रावण की बहन तथा दानवों के राजा कालका के पुत्र विद्युज्जिह्व की पत्नी थी। समस्त संसार पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से रावण ने अनेक युद्ध किये, अनेक दैत्यों को मारा। उन्हीं दैत्यों में विद्युज्जिह्व भी मारा गया। शूर्पणखा बहुत दु:खी हुई। [[रावण]] ने उसे आश्वस्त करते हुए अपने भाई [[खर दूषण|खर]] के पास रहने के लिए भेज दिया। वह [[दंडकारण्य]] में रहने लगी।
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एक बार [[राम]] और [[सीता]] [[कुटिया]] में बैठे थे। अचानक शूर्पणखा<ref>बूढ़ी कुरुप तथा डरावनी राक्षसी</ref> ने वहां प्रवेश किया। वह राम को देखकर मुग्ध हो गयी तथा उनका परिचय जानकर उसने अपने विषय में इस प्रकार बतलाया- "मैं इस प्रदेश में स्वेच्छाचारिणी राक्षसी हूं। मुझसे सब भयभीत रहते हैं। [[विश्रवा]] का पुत्र बलवान रावण मेरा भाई है। मैं तुमसे [[विवाह]] करना चाहती हूं।" राम ने उसे बतलाया कि- "उनका विवाह हो चुका है तथा उनका छोटा भाई [[लक्ष्मण]] अविवाहित है, अत: वह उसके पास जाय।"
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;लक्ष्मण द्वारा नाक-कान काटना
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लक्ष्मण ने शूर्पणखा के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर उसे फिर राम के पास भेजा। शूर्पणखा ने राम से पुन: विवाह का प्रस्ताव रखते हुए कहा- "मैं [[सीता]] को अभी खाये लेती हूं, तब सौत न रहेगी और हम विवाह कर लेंगे।" जब वह सीता की ओर झपटी तो राम के आदेशानुसार लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। वह क्रुद्ध होकर अपने भाई खर के पास गयी। खर ने चौदह राक्षसों को राम-हनन के निमित्त भेजा, क्योंकि शूर्पणखा राम, लक्ष्मण और सीता का लहू पीना चाहती थी। राम ने उन चौदहों को मार डाला तो शूर्पणखा पुन: रोती हुई अपने भाई खर के पास गयी।
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==भाई खर-दूषण का वध==
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खर ने क्रुद्ध होकर अपने सेनापति भाई [[खर दूषण|दूषण]] को चौदह हज़ार सैनिकों को तैयार करने का आदेश दिया। सेना तैयार होने पर खर तथा दूषण ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया। जब सेना [[राम]] के आश्रम में पहुंची तो राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वह सीता को लेकर किसी दुर्गम पर्वत कंदरा में चला जाय तथा स्वयं युद्ध के लिए तैयार हो गये। मुनि और [[गंधर्व]] भी यह युद्ध देखते गये। राम ने अकेले होने पर भी शत्रुदल के शस्त्रों को छिन्न-भिन्न करना प्रारंभ कर दिया। अनेकों [[राक्षस]] प्रभावशाली बाणों से मारे गये, शेष डर कर भाग गये। दूषण, [[त्रिशिरा]] तथा अनेक राक्षसों के मारे जाने पर खर स्वयं राम से युद्ध करने गया।
  
*[[लंका]] के राजा [[रावण]] की बहन शुर्पणखा [[पंचवटी]] में [[राम]] को देखकर मुग्ध हो गयी और उसने राम से विवाह का प्रस्ताव किया।
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युद्ध में राम का धनुष खंडित हो गया, कवच कटकर नीचे गिर गया। तदनंतर राम ने [[अगस्त्य|महर्षि अगस्त्य]] का दिया हुआ शत्रुनाशक धनुष धारण किया। [[इन्द्र]] के दिये अमोघ बाण से राम ने खर को जलाकर नष्ट कर दिया। इस प्रकार केवल तीन मुहूर्त में राम ने खर, दूषण, त्रिशिरा तथा चौदह हज़ार राक्षसों को मार डाला।<ref>वाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड, 17-30।, उत्तर कांड, 12।1-2, 24।23-42</ref>
*राम ने उसे अपने भाई [[लक्ष्मण]] से सम्बन्ध स्थापित करने का परामर्श दिया।
 
*वह लक्ष्मण के पास गयी और लक्ष्मण ने क्रुद्ध होकर उसके नाक-कान काट दिए।
 
*शूर्पणखा अत्यन्त कुपित और अपमानित होकर रावण के पास गयी।
 
*फलत: [[सीता हरण]] और [[राम रावण युद्ध]] की घटनाएँ घटित हुई।
 
*'[[रामायण]]' , '[[रामचरितमानस]]', 'रामचन्द्रिका', 'साकेत', 'साकेत सन्त', पंचवटी' आदि रामकथा- सम्बन्धी काव्य-ग्रन्थों में शूर्पणखा का प्रसंग वर्णित हुआ है।
 
  
==शूर्पणखा रामायण में==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
शूर्पणखा रावण की बहन तथा दानवों के राजा कालका के पुत्र विद्युज्जिह्व की पत्नी थी। समस्त संसार पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से रावण ने अनेक युद्ध किये, अनेक दैत्यों को मारा। उन्हीं दैत्यों में विद्युज्जिह्व भी मारा गया। शूर्पणखा बहुत दुखी हुई। रावण ने उसे आश्वस्त करते हुए अपने भाई खर के पास रहने के लिए भेज दिया। वह [[दंडकारण्य]] में रहने लगी। एक बार [[राम]] और [[सीता]] कुटिया में बैठे थे। अचानक शूर्पणखा (बूढ़ी कुरुप तथा डरावनी राक्षसी) ने वहां प्रवेश किया। वह राम को देखकर मुग्ध हो गयी तथा उनका परिचय जानकर उसने अपने विषय में इस प्रकार बतलाया-'मैं इस प्रदेश में स्वेच्छाचारिणी राक्षसी हूं। मुझसे सब भयभीत रहते हैं। विश्रवा का पुत्र बलवान रावण मेरा भाई है। मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं।' राम ने उसे बतलाया कि उसका विवाह हो चुका है तथा उसका छोटा भाई लक्ष्मण अविवाहित है, अत: वह उसके पास जाय। लक्ष्मण से उसे फिर राम के पास भेजा। शूर्पणखा ने राम से पुन: विवाह का प्रस्ताव रखते हुए कहा-'मैं [[सीता]] को अभी खाये लेती हूं-तब सौत न रहेगी और हम विवाह कर लेंगे।' जब वह सीता की ओर झपटी तो राम के आदेशानुसार लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। वह क्रुद्ध होकर अपने भाई [[खर]] के पास गयीं खर ने चौदह राक्षसों को राम-हनन के निमित्त भेजा क्योंकि शूर्पणखा राम, लक्ष्मण और सीता का लहू पीना चाहती थी। राम ने उन चौदहों को मार डाला तो शूर्पणखा पुन: रोती हुई अपने भाई खर के पास गयी। खर ने क्रुद्ध होकर अपने सेनापति [[दूषण]] को चौदह हज़ार सैनिकों को तैयार करने का आदेश दिया। सेना तैयार होने पर खर तथा दूषण ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया। जब सेना राम के आश्रम में पहुंची तो राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वह सीता को लेकर किसी दुर्गम पर्वत कंदरा में चला जाय तथा स्वयं युद्ध के लिए तैयार हो गये। मुनि और गंधर्व भी यह युद्ध देखते गये। राम ने अकेले होने पर भी शत्रुदल के शस्त्रों को छिन्न-भिन्न करना प्रारंभ कर दिया। अनेकों राक्षस प्रभावशाली बाणों से मारे गये, शेष डर कर भाग गये। दूषण, त्रिशिरा तथा अनेक राक्षसों के मारे जाने पर खर स्वयं राम से युद्ध करने गया। युद्ध में राम का धनुष खंडित हो गया, कवच कटकर नीचे गिर गया। तदनंतर राम ने महर्षि [[अगस्त्य]] का दिया हुआ शत्रुनाशक धनुष धारण किया। [[इन्द्र]] के दिये अमोघ बाण से राम ने खर को जलाकर नष्ट कर दिया। इस प्रकार केवल तीन मुहूर्त में राम ने खर, दूषण, त्रिशिरा तथा चौदह हज़ार राक्षसों को मार डाला।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड, 17-30।, उत्तर कांड, 12।1-2, 24।23-42" style="color:blue">*</balloon>
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==संबंधित लेख==
 
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15:00, 27 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

लक्ष्मण शूर्पणखा की नाक काटते हुए

शूर्पणखा एक प्रसिद्ध पौराणिक चरित्र है, जो लंका के राजा रावण की बहन थी। शूर्पवत् नखानि यस्या सा शूर्पणखा अर्थात- "जिसके नख सूप के समान हों।" 'रामायण', 'रामचरितमानस', 'रामचन्द्रिका', 'साकेत', 'साकेत सन्त', पंचवटी' आदि रामकथा- सम्बन्धी काव्य-ग्रन्थों में शूर्पणखा का प्रसंग वर्णित हुआ है।

रामायण के अनुसार

शूर्पणखा लंका के राजा रावण की बहन तथा दानवों के राजा कालका के पुत्र विद्युज्जिह्व की पत्नी थी। समस्त संसार पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से रावण ने अनेक युद्ध किये, अनेक दैत्यों को मारा। उन्हीं दैत्यों में विद्युज्जिह्व भी मारा गया। शूर्पणखा बहुत दु:खी हुई। रावण ने उसे आश्वस्त करते हुए अपने भाई खर के पास रहने के लिए भेज दिया। वह दंडकारण्य में रहने लगी।

राम पर आसक्त

एक बार राम और सीता कुटिया में बैठे थे। अचानक शूर्पणखा[1] ने वहां प्रवेश किया। वह राम को देखकर मुग्ध हो गयी तथा उनका परिचय जानकर उसने अपने विषय में इस प्रकार बतलाया- "मैं इस प्रदेश में स्वेच्छाचारिणी राक्षसी हूं। मुझसे सब भयभीत रहते हैं। विश्रवा का पुत्र बलवान रावण मेरा भाई है। मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं।" राम ने उसे बतलाया कि- "उनका विवाह हो चुका है तथा उनका छोटा भाई लक्ष्मण अविवाहित है, अत: वह उसके पास जाय।"

लक्ष्मण द्वारा नाक-कान काटना

लक्ष्मण ने शूर्पणखा के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर उसे फिर राम के पास भेजा। शूर्पणखा ने राम से पुन: विवाह का प्रस्ताव रखते हुए कहा- "मैं सीता को अभी खाये लेती हूं, तब सौत न रहेगी और हम विवाह कर लेंगे।" जब वह सीता की ओर झपटी तो राम के आदेशानुसार लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। वह क्रुद्ध होकर अपने भाई खर के पास गयी। खर ने चौदह राक्षसों को राम-हनन के निमित्त भेजा, क्योंकि शूर्पणखा राम, लक्ष्मण और सीता का लहू पीना चाहती थी। राम ने उन चौदहों को मार डाला तो शूर्पणखा पुन: रोती हुई अपने भाई खर के पास गयी।

भाई खर-दूषण का वध

खर ने क्रुद्ध होकर अपने सेनापति भाई दूषण को चौदह हज़ार सैनिकों को तैयार करने का आदेश दिया। सेना तैयार होने पर खर तथा दूषण ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया। जब सेना राम के आश्रम में पहुंची तो राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वह सीता को लेकर किसी दुर्गम पर्वत कंदरा में चला जाय तथा स्वयं युद्ध के लिए तैयार हो गये। मुनि और गंधर्व भी यह युद्ध देखते गये। राम ने अकेले होने पर भी शत्रुदल के शस्त्रों को छिन्न-भिन्न करना प्रारंभ कर दिया। अनेकों राक्षस प्रभावशाली बाणों से मारे गये, शेष डर कर भाग गये। दूषण, त्रिशिरा तथा अनेक राक्षसों के मारे जाने पर खर स्वयं राम से युद्ध करने गया।

युद्ध में राम का धनुष खंडित हो गया, कवच कटकर नीचे गिर गया। तदनंतर राम ने महर्षि अगस्त्य का दिया हुआ शत्रुनाशक धनुष धारण किया। इन्द्र के दिये अमोघ बाण से राम ने खर को जलाकर नष्ट कर दिया। इस प्रकार केवल तीन मुहूर्त में राम ने खर, दूषण, त्रिशिरा तथा चौदह हज़ार राक्षसों को मार डाला।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बूढ़ी कुरुप तथा डरावनी राक्षसी
  2. वाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड, 17-30।, उत्तर कांड, 12।1-2, 24।23-42

संबंधित लेख

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