"सत्यदेव विद्यालंकार" के अवतरणों में अंतर

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'''सत्यपाल''' (जन्म- [[1885]], वजीराबाद, पश्चिमी पंजाब; मृत्यु- [[1954]]) [[पंजाब]] के प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष पद पर भी रहे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में घायलों की चिकित्सा की खातिर सेना में भर्ती हो गए थे।
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'''सत्यदेव विद्यालंकार''' (जन्म- [[अक्टूबर]], [[1897]], [[पंजाब]], मृत्यु- [[1965]]) प्रसिद्ध पत्रकार, [[लेखक‍]] एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने स्वतंत्रता अंदोलनों में भाग लेने के कारण जेल यातनायें भोगीं। सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रवादी पत्रकार थे। उनकी [[पत्रकारिता]] में राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि थी।  
 
==परिचय==
 
==परिचय==
पंजाब के प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता डॉ सत्यपाल का जन्म पश्चिमी पंजाब वजीराबाद नामक स्थान में [[1885]] ई.में एक खत्री परिवार में हुआ था। उन्होंने [[1908]] ई. में लाहौर मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की परीक्षा पास की और चिकित्सा कार्य के साथ ही सार्वजनिक कार्यों में रुचि लेने लगे। रौलट एक्ट के विरोध में [[गांधी जी]] ने देश में जो आंदोलन आरंभ किया था, उसे पंजाब में आगे बढ़ाने में डॉ. सत्यपाल और उनके साथी [[डॉ. सैफुद्दीन किचलू]] ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। [[1919]] के [[जलियांवाला बाग]] हत्याकांड से पहले ही सरकार ने इन दोनों नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=886|url=}}</ref>
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प्रसिद्ध पत्रकार और [[लेखक‍]] सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म [[पंजाब]] की नाभा रियासत में [[अक्टूबर]], [[1897]] ई. को एक खत्री परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा [[गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय|गुरुकुल कांगड़ी]] में हुई थी। उन्होंने विद्यालंकार की उपाधि पाई। [[गुरुकुल]] में ही उनके ऊपर [[महर्षि दयानंद]] के विचारों का प्रभाव पड़ा और वे आर्य समाजी बन गए। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी प्रवृत्ति पत्रकारिता की ओर हो गयी थी। [[1919]] में [[इंद्र विद्यावाचस्पति]] के साथ उन्होंने 'विजय' नामक पत्र निकाला जो बाद में 'वीर अर्जुन' हो गया। उसके बाद समय-समय पर उन्होंने पत्रों का संपादन किया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=885|url=}}</ref>
==शांतिपूर्ण समाधान==
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==राष्ट्रवादी पत्रकार==
सत्यपाल शांतिपूर्ण तरीके से देश की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति में विश्वास रखते थे। [[1919]] की अमृतसर कांग्रेस में वे [[गांधी जी]], [[जवाहरलाल नेहरू]] आदि नेताओं के संपर्क में आए।  उन्होंने [[स्वतंत्रता संग्राम]] के समर्थन के लिए लाहौर से उर्दू में 'कांग्रेस' नाम का एक पत्र भी प्रकाशित किया था।
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सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रवादी पत्रकार थे। उनकी [[पत्रकारिता]] में राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि थी। [[1921]] में 'राजस्थान केसरी' नाम के एक लेख को आपत्तिजनक बताकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। [[1930]] के [[नमक सत्याग्रह]] और [[1932]] के [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] में भी वे जल गए। इस प्रकार उनका एक पैर किसी पत्र के कार्यालय में रहा तो दूसरा पैर जेल में रहा।
==क्रियाकलाप==
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==सम्पादन कार्य==
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान घायलों की चिकित्सा करने के लिए वे डॉक्टर की हैसियत से सेना में भर्ती हो गए थे। पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष पद पर भी उन्होंने कार्य किया। वे आंदोलनों में भाग लेने के कारण कई बार जेल गये। वे 1919 से पंजाब के राष्ट्रवादी नेता के रूप में प्रसिद्ध थे।
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सत्यदेव विद्यालंकार ने समय-समय पर पत्रों का सम्पादन कार्य किया है। उन्होंने 'राजस्थान केसरी', 'मारवाड़ी', विश्वमित्र', 'नवे भारत', 'अमर भारत', 'हिंदुस्तान', 'नवयुग', 'राजहंस', 'श्रद्धा' आदि पत्रों का संपादन किया है।
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==लेखन कार्य==
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सत्यदेव विद्यालंकार ने एक [[लेखक‍]] के रूप में भी कार्य किया है।
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उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं:
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#'गांधी जी का मुकदमा' (लेखक के रूप में उनकी पहली पुस्तक थी।)
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==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
पंजाब के प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता डॉ सत्यपाल का [[1954]] में स्वर्गवास हो गया।
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प्रसिद्ध पत्रकार और [[लेखक‍]] सत्यदेव विद्यालंकार की [[1954]] में नेत्रों की ज्योति नहीं रही और [[1965]] में उनका निधन हो गया।  
  
 
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सत्यदेव विद्यालंकार (जन्म- अक्टूबर, 1897, पंजाब, मृत्यु- 1965) प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक‍ एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने स्वतंत्रता अंदोलनों में भाग लेने के कारण जेल यातनायें भोगीं। सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रवादी पत्रकार थे। उनकी पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि थी।

परिचय

प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक‍ सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म पंजाब की नाभा रियासत में अक्टूबर, 1897 ई. को एक खत्री परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई थी। उन्होंने विद्यालंकार की उपाधि पाई। गुरुकुल में ही उनके ऊपर महर्षि दयानंद के विचारों का प्रभाव पड़ा और वे आर्य समाजी बन गए। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी प्रवृत्ति पत्रकारिता की ओर हो गयी थी। 1919 में इंद्र विद्यावाचस्पति के साथ उन्होंने 'विजय' नामक पत्र निकाला जो बाद में 'वीर अर्जुन' हो गया। उसके बाद समय-समय पर उन्होंने पत्रों का संपादन किया।[1]

राष्ट्रवादी पत्रकार

सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रवादी पत्रकार थे। उनकी पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि थी। 1921 में 'राजस्थान केसरी' नाम के एक लेख को आपत्तिजनक बताकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। 1930 के नमक सत्याग्रह और 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे जल गए। इस प्रकार उनका एक पैर किसी पत्र के कार्यालय में रहा तो दूसरा पैर जेल में रहा।

सम्पादन कार्य

सत्यदेव विद्यालंकार ने समय-समय पर पत्रों का सम्पादन कार्य किया है। उन्होंने 'राजस्थान केसरी', 'मारवाड़ी', विश्वमित्र', 'नवे भारत', 'अमर भारत', 'हिंदुस्तान', 'नवयुग', 'राजहंस', 'श्रद्धा' आदि पत्रों का संपादन किया है।

लेखन कार्य

सत्यदेव विद्यालंकार ने एक लेखक‍ के रूप में भी कार्य किया है। उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं:

  1. 'गांधी जी का मुकदमा' (लेखक के रूप में उनकी पहली पुस्तक थी।)
  2. दयानंद दर्शन
  3. स्वामी श्रद्धानंद
  4. आर्य सत्याग्रह
  5. परदा
  6. मध्य भारत
  7. नवनिर्माण की पुकार
  8. करो या मरो
  9. यूरोप में आजादहिन्द
  10. लालकिले में
  11. जय हिन्द
  12. राष्ट्र धर्म
  13. पंजाब की चिनगारी

मृत्यु

प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक‍ सत्यदेव विद्यालंकार की 1954 में नेत्रों की ज्योति नहीं रही और 1965 में उनका निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 885 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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