"कथनी-करणी का अंग -कबीर" के अवतरणों में अंतर
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गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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− | जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै | + | जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल। |
− | पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै | + | पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥ |
− | पद गाए मन हरषियां, | + | पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद। |
− | सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया | + | सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥ |
− | मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ | + | मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग। |
− | राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ | + | राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥ |
− | `कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ | + | `कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ। |
− | बावन | + | बावन आखर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाइ॥ |
− | पोथी पढ़ पढ़ जग | + | पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। |
− | ऐकै | + | ऐकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥ |
− | करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि | + | करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड। |
− | जानें-बूझै कुछ नहीं, | + | जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधां रूंड॥ |
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07:57, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण
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जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल। |
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