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'''अर्थ''' - नाच नचाना।
 
'''अर्थ''' - नाच नचाना।
  
'''प्रयोग''' - वह जानती थी कि अम्मा चाहे मुँह से कुछ न कहे किंतु अपनी खतरनाक आँखों से डमरु बजाकर उसे शाखामृगी-सी ही उठा-बैठा सकती थी। [[शिवानी]]
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'''प्रयोग''' - वह जानती थी कि अम्मा चाहे मुँह से कुछ न कहे किंतु अपनी खतरनाक आँखों से डमरु बजाकर उसे शाखामृगी-सी ही उठा-बैठा सकती थी। -[[शिवानी]]
  
  

11:24, 24 अक्टूबर 2015 का अवतरण

उठाना-बैठाना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है ।

अर्थ - नाच नचाना।

प्रयोग - वह जानती थी कि अम्मा चाहे मुँह से कुछ न कहे किंतु अपनी खतरनाक आँखों से डमरु बजाकर उसे शाखामृगी-सी ही उठा-बैठा सकती थी। -शिवानी


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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