कवींद्र

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कवींद्र रीति काल के कवि थे। कवींद्र कालिदास त्रिवेदी के पुत्र थे। इनका नाम उदयनाथ भी मिलता है।

  • कवींद्र संवत 1736 के लगभग उत्पन्न हुए थे।
  • इनका 'रसचंद्रोदय' नामक ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त 'विनोदचंद्रिका' और 'जोगलीला' नामक इनकी दो और पुस्तकों का ज्ञान है।
  • 'विनोद चंद्रिका' संवत 1777 और 'रसचंद्रोदय' संवत 1804 में लिखी गयी। अत: इनका कविता काल संवत 1804 या उसके कुछ आगे तक माना जा सकता है।
  • ये अमेठी के राजा हिम्मतसिंह और गुरुदत्तासिंह (भूपति) के यहाँ बहुत दिन रहे।
  • इनका 'रसचंद्रोदय' शृंगार का एक अच्छा ग्रंथ है।
  • इनकी भाषा मधुर और प्रसादपूर्ण है।
  • वर्ण्य विषय के अनुकूल कल्पना भी ये अच्छी करते थे। इनके दो कवित्त इस प्रकार हैं -

शहर मँझार ही पहर एक रागि जैहै,
छोर पै नगर के सराय है उतारे की।
कहत कविंद मग माँझ ही परैगी साँझ,
खबर उड़ानी है बटोही द्वैक मारे की
घर के हमारे परदेस को सिधारे,
या तें दया कै बिचारी हम रीति राहबारे की।
उतरौ नदी के तीर, बर के तरे ही तुम,
चौकौं जनि चौकी तहाँ पाहरू हमारे की

राजै रसमै री तैसी बरखा समै री चढ़ी,
चंचला नचै री चकचौंध कौंध बारै री।
व्रती व्रत हारै हिए परत फुहारैं,
कछु छोरैं कछू धारैं जलधार जलधारैं री
भनत कविंद कुंजभौन पौन सौरभ सों,
काके न कँपाय प्रान परहथ पारै री?
कामकंदुका से फूल डोलि डोलि डारैं, मन
औरै किए डारै ये कदंबन की डारैं री

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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